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  • रोज़ाना बाइबल वचनों पर ध्यान दीजिए—2022
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  • मंगलवार, 29 नवंबर
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रोज़ाना बाइबल वचनों पर ध्यान दीजिए—2022
es22 पेज 128-140

नवंबर

मंगलवार, 1 नवंबर

जो सुनने से पहले ही जवाब देता है, वह मूर्खता का काम करता है और अपनी बेइज़्ज़ती कराता है।​—नीति. 18:13.

योना का नाम सुनते ही हम शायद सोचें कि वह भरोसे के लायक नहीं था और उसने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी। हम इसलिए ऐसा सोचते होंगे क्योंकि हमें योना के बारे में पूरी जानकारी नहीं है। हम बस यह जानते हैं कि जब यहोवा ने उसे नीनवे जाने को कहा, तो उसने उसकी बात नहीं मानी। वह जहाज़ पर चढ़कर बिलकुल उलटी दिशा में गया यानी “यहोवा से दूर चला” गया। (योना 1:1-3) क्या आप योना को यहोवा का काम करने का एक और मौका देते? शायद नहीं। लेकिन यहोवा ने उसे मौका दिया। (योना 3:1, 2) आइए इसकी कुछ वजह जानें। योना अंदर से कैसा इंसान था, यह हम उसकी एक प्रार्थना से जान सकते हैं। (योना 2:1, 2, 9) उसने यहोवा से कई बार प्रार्थना की होगी। लेकिन उसने मछली के पेट में रहकर जो प्रार्थना की, उससे पता चलता है कि वह कोई बुज़दिल नहीं था। यह सच है कि यहोवा का दिया काम करने के बजाय वह दूसरी जगह भाग गया, मगर वह बहुत नम्र था, यहोवा का एहसानमंद था और उसके दिल में यहोवा की आज्ञा मानने की गहरी इच्छा थी। इसीलिए यहोवा ने योना की गलती पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि उसकी प्रार्थना सुनी और उसे आगे भी भविष्यवाणी करने का काम दिया। इस घटना से हर प्राचीन को सीख मिलती है कि किसी को सलाह देने से पहले उसकी पूरी बात सुननी चाहिए। प्र20.04 पेज 15 पै 4-6

बुधवार, 2 नवंबर

‘पौलुस ने पवित्र शास्त्र से यहूदियों के साथ तर्क-वितर्क किया और वह शास्त्र से हवाले दे-देकर समझाता रहा और साबित करता रहा।’​—प्रेषि. 17:2, 3.

पहली सदी के मसीही यीशु की शिक्षाओं पर विश्‍वास करते थे और परमेश्‍वर के वचन को समझने के लिए वे पवित्र शक्‍ति पर निर्भर रहे। उन्होंने खोजबीन की ताकि उन्हें पक्का यकीन हो कि ये शिक्षाएँ वाकई शास्त्र में दी गयी हैं। (प्रेषि. 17:11, 12; इब्रा. 5:14) उन्होंने सिर्फ भावनाओं में बहकर यहोवा पर विश्‍वास नहीं किया और न ही इस वजह से कि उन्हें भाई-बहनों से मिलना अच्छा लगता था। उनके पास “परमेश्‍वर के बारे में सही ज्ञान” था, इसीलिए उन्होंने विश्‍वास किया। (कुलु. 1:9, 10) बाइबल की सच्चाइयाँ कभी नहीं बदलतीं। (भज. 119:160) ये तब भी नहीं बदलतीं जब मुश्‍किलें आती हैं, कोई भाई या बहन गंभीर पाप करता है या हमें ठेस पहुँचाता है। इस वजह से हमें बाइबल की शिक्षाएँ अच्छी तरह पता होनी चाहिए और पक्का यकीन होना चाहिए कि ये सही हैं। अगर इन शिक्षाओं पर हम मज़बूत विश्‍वास बढ़ाएँगे, तो मुश्‍किलें आने पर हम डटे रहेंगे, ठीक जैसे लंगर की वजह से जहाज़ तूफान में टिका रहता है। प्र20.07 पेज 9 पै 6-7

गुरुवार, 3 नवंबर

‘उसने हमें यह आज्ञा दी कि हम लोगों को प्रचार करें और अच्छी तरह गवाही दें।’​—प्रेषि. 10:42.

हम यीशु के अभिषिक्‍त भाइयों के लिए जो भी करते हैं, वह यीशु की नज़र में ऐसा है मानो हम उसके लिए कर रहे हैं। (मत्ती 25:34-40) अभिषिक्‍त मसीहियों का साथ देने का सबसे खास तरीका है, यीशु की आज्ञा मानकर जी-जान से चेला बनाना। (मत्ती 28:19, 20) आज पूरी दुनिया में प्रचार काम चल रहा है। मसीह के भाई ‘दूसरी भेड़ों’ की मदद से ही यह काम पूरा कर सकते हैं। (यूह. 10:16) अगर आप दूसरी भेड़ों में से एक हैं, तो जब भी आप प्रचार करते हैं, आप यही दिखा रहे होते हैं कि आप अभिषिक्‍त मसीहियों से और यीशु से प्यार करते हैं। राज के काम के लिए दान देने से भी हम यहोवा और यीशु के अच्छे दोस्त बन पाते हैं। (लूका 16:9) हम पूरी दुनिया में हो रहे काम के लिए दान दे सकते हैं। इससे कई कामों का खर्च पूरा होता है। जैसे, इससे उन भाई-बहनों की मदद की जाती है जिनके साथ कोई हादसा हुआ है। हम अपनी मंडली के खर्च के लिए भी दान दे सकते हैं और अगर हमें किसी ज़रूरतमंद भाई या बहन के बारे में पता है, तो उसकी मदद कर सकते हैं।​—नीति. 19:17. प्र20.04 पेज 24 पै 12-13

शुक्रवार, 4 नवंबर

‘वह अपने पिताओं के ईश्‍वर की कोई कदर नहीं करेगा। इसके बजाय वह किलों के देवता की महिमा करेगा।’​—दानि. 11:37, 38.

जैसे इस भविष्यवाणी में बताया गया था, उत्तर के राजा ने “अपने पिताओं के ईश्‍वर की कोई कदर नहीं” की। यह हम कैसे कह सकते हैं? सोवियत संघ ने धर्मों को ही मिटा देने की कोशिश की। उसने उन धर्मों का दबदबा खत्म करने की कोशिश की जो पिताओं या पुरखों के ज़माने से थे। मिसाल के लिए, 1918 में ही सोवियत सरकार ने स्कूलों को यह सिखाने का हुक्म दिया कि कोई ईश्‍वर नहीं होता। उत्तर के इस राजा ने “किलों के देवता की महिमा” कैसे की? सोवियत संघ ने खूब सारा पैसा लगाकर अपने सैनिकों की गिनती बढ़ा ली और हज़ारों परमाणु हथियार बनाए ताकि अपनी सत्ता मज़बूत कर सके। देखते-ही-देखते उत्तर के राजा और दक्षिण के राजा दोनों ने घातक हथियारों का भंडार जमा कर लिया। अब उनके पास अरबों लोगों को मार डालने की ताकत थी। हालाँकि उत्तर के राजा और दक्षिण के राजा के बीच लंबे समय से लड़ाई चल रही थी, फिर भी उत्तर के राजा ने एक अनोखा काम करने के लिए दक्षिण के राजा का साथ दिया। उन दोनों ने मिलकर एक “उजाड़नेवाली घिनौनी चीज़ खड़ी” की। वह चीज़ है संयुक्‍त राष्ट्र।​—दानि. 11:31. प्र20.05 पेज 6-7 पै 16-17

शनिवार, 5 नवंबर

‘तेरे भाई को हमने खो दिया था, लेकिन अब पा लिया है।’​—लूका 15:32.

निष्क्रिय लोगों को ढूँढ़ने में कौन मदद कर सकते हैं? हम सब मदद कर सकते हैं फिर चाहे हम प्राचीन हों, पायनियर हों, प्रचारक हों या उनके परिवार के सदस्य। शायद आपका कोई दोस्त या रिश्‍तेदार निष्क्रिय हो गया हो, या फिर आपको घर-घर प्रचार करते वक्‍त या सरेआम गवाही देते वक्‍त ऐसा कोई भाई या बहन मिली हो। आप उसकी मदद कैसे कर सकते हैं? उससे कहिए कि अगर वह चाहता है कि कोई आकर उससे मिले, तो आप उसका पता या फोन नंबर अपनी मंडली के प्राचीनों को दे सकते हैं। थॉमस नाम का एक प्राचीन कहता है, “सबसे पहले मैं अलग-अलग भाई-बहनों से पूछता हूँ कि क्या वे किसी ऐसे प्रचारक को जानते हैं जो निष्क्रिय हो गया है। फिर मैं उनसे उस प्रचारक का नाम-पता पूछता हूँ। जब मैं उन भाई-बहनों से मिलता हूँ जो यहोवा से दूर चले गए हैं, तो मैं उनके बच्चों और रिश्‍तेदारों का हाल-चाल भी पूछता हूँ। इनमें से कुछ लोग सभाओं में अपने बच्चों को साथ लाते थे। शायद उनके बच्चे भी एक समय पर प्रचारक थे। यहोवा के पास लौट आने में हम उनकी भी मदद कर सकते हैं।” प्र20.06 पेज 24 पै 1; पेज 25 पै 6-7

रविवार, 6 नवंबर

हे याह, मैं तेरे काम याद करूँगा, गुज़रे ज़माने में किए तेरे आश्‍चर्य के काम याद करूँगा।​—भज. 77:11.

याद रखने की क्षमता की वजह से हमें अपनी ज़िंदगी की कई बातें याद रहती हैं। अब तक हमारे साथ जो अच्छा-बुरा हुआ है, वह सब हम याद रख पाते हैं और उससे कुछ अच्छे सबक सीख पाते हैं। यह काबिलीयत सिर्फ इंसानों में होती है, जानवरों में नहीं। जब हम अपनी गलतियों से सबक सीखते हैं, तो हम अपनी सोच बदल पाते हैं और अच्छे इंसान बनते हैं। (1 कुरिं. 6:9-11; कुलु. 3:9, 10) हम अपने ज़मीर को भी सिखा पाते हैं कि सही-गलत में फर्क कैसे करें। (इब्रा. 5:14) हम दूसरों से प्यार करना और उन पर दया और करुणा करना भी सीख पाते हैं। हम यहोवा की तरह न्याय से काम करना भी सीख पाते हैं। हमें यहोवा का एहसान मानना चाहिए कि उसने हमें याद रखने की काबिलीयत दी है। इसके लिए हम अपना एहसान कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं? हम याद रख सकते हैं कि अब तक यहोवा ने हमारी कितनी मदद की है और मुश्‍किल वक्‍त में हमें कैसे सँभाला है। तब हमारा भरोसा बढ़ेगा कि भविष्य में भी वह हमें सँभालेगा। (भज. 77:12; 78:4, 7) हम एक और तरीके से अपना एहसान दिखा सकते हैं। हम याद रख सकते हैं कि दूसरे लोगों ने हमारी खातिर क्या-क्या किया है। खोजकर्ताओं का कहना है कि जिनका दिल कदरदानी से भरा होता है, वे खुश रहते हैं। प्र20.05 पेज 23-24 पै 12-13

सोमवार, 7 नवंबर

‘अपने परमेश्‍वर यहोवा के शानदार और विस्मयकारी नाम का डर मानो।’​—व्यव. 28:58.

ज़रा मूसा के बारे में सोचिए। जब वह एक चट्टान की बड़ी दरार में छिपा हुआ था, तो उसने यहोवा की महिमा का तेज गुज़रते देखा। यह एक अदना इंसान के लिए कितना हैरतअंगेज़ नज़ारा रहा होगा! उस वक्‍त मूसा ने यह बात सुनी जो शायद स्वर्गदूत ने कही होगी, “यहोवा, यहोवा परमेश्‍वर दयालु और करुणा से भरा है, क्रोध करने में धीमा और अटल प्यार और सच्चाई से भरपूर है, हज़ारों पीढ़ियों से प्यार करता है, वह गुनाहों, अपराधों और पापों को माफ करता है।” (निर्ग. 33:17-23; 34:5-7) इसके बाद जब मूसा ने आज के वचन में दर्ज़ बात कही होगी और यहोवा का नाम लिया होगा, तो उसे यह दर्शन याद आया होगा। हमारे लिए भी यहोवा का नाम लेना काफी नहीं है। हमें यह भी समझना होगा कि वह कैसा परमेश्‍वर है। हमें उसके गुणों पर भी मनन करना चाहिए। जैसे, उसकी शक्‍ति, बुद्धि, न्याय और उसका प्यार। ऐसा करने से हमारा दिल भी यहोवा के लिए श्रद्धा और विस्मय से भर जाएगा।​—भज. 77:11-15. प्र20.06 पेज 8-9 पै 3-4

मंगलवार, 8 नवंबर

जो बातें तूने सीखी हैं और जिनका तुझे दलीलें देकर यकीन दिलाया गया था उन बातों को मानता रह।​—2 तीमु. 3:14.

यीशु ने कहा था कि प्यार उसके चेलों की पहचान होगा। (यूह. 13:34, 35) लेकिन अपना विश्‍वास मज़बूत करने के लिए प्यार के अलावा और भी कई बातें ज़रूरी हैं। आपको सिर्फ यह देखकर विश्‍वास नहीं बढ़ाना है कि साक्षियों में कितना प्यार है। ऐसा क्यों? मान लीजिए कोई भाई या बहन, यहाँ तक कि कोई प्राचीन या पायनियर गंभीर पाप कर देता है। या कोई भाई या बहन आपको ठेस पहुँचाता है या फिर सच्चाई से बगावत करता है और कहता है कि हमारी शिक्षाएँ गलत हैं। ऐसे में आप क्या करेंगे? क्या आप ठोकर खाकर यहोवा की सेवा करना छोड़ देंगे? अगर आप सिर्फ लोगों का प्यार देखकर सच्चाई में आए हैं और आपने खुद यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता कायम नहीं किया है, तो आपका विश्‍वास कमज़ोर हो जाएगा। विश्‍वास बढ़ाना घर बनाने जैसा है। घर बनाते वक्‍त सिर्फ रेत इस्तेमाल नहीं की जाती बल्कि ऐसे सामान भी इस्तेमाल किए जाते हैं, जो मज़बूत और टिकाऊ हों। ठीक उसी तरह, यहोवा और भाई-बहनों के बारे में आपको जो बातें अच्छी लगती हैं, अगर सिर्फ उन्हीं की वजह से आपने विश्‍वास बढ़ाया है, तो आपका विश्‍वास ज़्यादा दिनों तक टिका नहीं रहेगा। यह ऐसा होगा मानो आपने विश्‍वास-रूपी घर रेत से बनाया है। आपको बाइबल का गहराई से अध्ययन करना होगा ताकि आपको पक्का यकीन हो कि इसमें जो लिखा है, वह सच्चाई है।​—रोमि. 12:2. प्र20.07 पेज 8 पै 2-3

बुधवार, 9 नवंबर

उन लोगों की मदद करो जो कमज़ोर हैं।​—प्रेषि. 20:35.

कई अनुभवों से पता चलता है कि निष्क्रिय लोगों को ढूँढ़ने में स्वर्गदूत भी हमारी मदद करते हैं। (प्रका. 14:6) इक्वाडोर के रहनेवाले सिलविओ का उदाहरण लीजिए। वह यहोवा के पास लौट आना चाहता था। इसलिए उसने गिड़गिड़ाकर यहोवा से बिनती की। वह प्रार्थना कर ही रहा था कि दो प्राचीनों ने उसके घर का दरवाज़ा खटखटाया। वे उसकी मदद करने में फौरन लग गए। जब हम निष्क्रिय लोगों को यहोवा के पास लौट आने में मदद करते हैं तो हमें बहुत खुशी मिलती है। ध्यान दीजिए कि एक पायनियर भाई जो ऐसे लोगों की मदद करने के लिए बहुत मेहनत करता है, कहता है, “जब मैं उन लोगों के बारे में सोचता हूँ जो यहोवा के पास लौट आए हैं तो मेरी आँखों में आँसू आ जाते हैं। मुझे यह देखकर खुशी होती है कि यहोवा इन भाई-बहनों को शैतान की दुनिया से बचाकर अपने पास वापस ले आया है। मेरे लिए यह एक सम्मान की बात है कि मैंने यहोवा के साथ मिलकर उनकी मदद की।” क्या आपने भी सभाओं में जाना और प्रचार करना बंद कर दिया है? अगर हाँ, तो यकीन रखिए कि यहोवा अब भी आपसे प्यार करता है। यहोवा आपका इंतज़ार कर रहा है और वह खुशी-खुशी आपका स्वागत करेगा। प्र20.06 पेज 29 पै 16-18

गुरुवार, 10 नवंबर

‘तू अपने महान उपदेशक को देखेगा।’​—यशायाह 30:20.

हमारे “महान उपदेशक” यहोवा ने हमें सिखाने के लिए अपने वचन में कुछ लोगों के बारे में लिखवाया है। (यशा. 30:21) हम उनके बारे में पढ़ सकते हैं और मनन कर सकते हैं कि उन्होंने कैसे परमेश्‍वर को भानेवाले गुण दर्शाए। बाइबल में यह भी बताया गया है कि जब कुछ लोग अपनी मर्यादा में नहीं रहे, तो अंजाम क्या हुआ। (भज. 37:37; 1कुरिं. 10:11) राजा शाऊल के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। वह पहले एक नम्र इंसान था और अपनी मर्यादा में रहता था। जब उसे एक बड़ी ज़िम्मेदारी दी गयी, तो वह उसे लेने से झिझकने लगा क्योंकि वह अपनी हद पहचानता था। (1 शमू. 9:21; 10:20-22) मगर जब वह राजा बना, तो कुछ ही समय बाद उसमें घमंड आ गया। वह ऐसे काम करने लगा जिन्हें करने का अधिकार उसे नहीं था। एक बार उसे भविष्यवक्‍ता शमूएल का इंतज़ार करना था कि वह आकर होम-बलि चढ़ाए। जब शमूएल को आने में देर होने लगी, तो शाऊल उतावला होने लगा और उसने खुद जाकर बलि चढ़ा दी जबकि उसे ऐसा करने का अधिकार नहीं था। अंजाम क्या हुआ? यहोवा ने शाऊल को ठुकरा दिया और बाद में उसे राजा के पद से हटा दिया। (1 शमू. 13:8-14) हमें शाऊल से सबक लेना चाहिए और कभी-भी अपनी मर्यादा नहीं लाँघनी चाहिए। प्र20.8 पेज 10 पै 10-11

शुक्रवार, 11 नवंबर

‘जो प्रभु में तुम्हारी अगुवाई करते हैं, उनका आदर करो।’​—1 थिस्स. 5:12.

यह सच है कि अगुवाई करनेवाले भाई “आदमियों के रूप में तोहफे” हैं जो यहोवा ने मंडलियों को दिए हैं। (इफि. 4:8) ये हैं शासी निकाय के भाई, उनके मददगार, शाखा-समिति के भाई, सर्किट निगरान, संगठन के स्कूलों में सिखानेवाले भाई, मंडली के प्राचीन और सहायक सेवक। इन सभी भाइयों को पवित्र शक्‍ति के ज़रिए नियुक्‍त किया जाता है। वे यहोवा की अनमोल भेड़ों की देखभाल करते हैं और मंडलियों का हौसला बढ़ाते हैं। (1 पत. 5:2, 3) इन भाइयों को पवित्र शक्‍ति से इसलिए नियुक्‍त किया जाता है ताकि वे अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ निभाएँ। इन भाइयों की कड़ी मेहनत से पूरी मंडली को फायदा होता है, जैसे शरीर के अलग-अलग अंगों के ठीक तरह काम करने से पूरे शरीर को फायदा होता है। ये भाई दूसरों से तारीफ पाने की कोशिश नहीं करते बल्कि भाई-बहनों की हिम्मत बँधाने और उन्हें सच्चाई में मज़बूत करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। (1 थिस्स. 2:6-8) हम यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि उसने हमें ऐसे काबिल भाई दिए हैं जो खुद से ज़्यादा दूसरों की फिक्र करते हैं। प्र20.08 पेज 21 पै 5-6

शनिवार, 12 नवंबर

‘जाओ और लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ।’​—मत्ती 28:19.

प्रचार करने की एक वजह यह है कि लोगों की हालत बहुत खराब है। वे ऐसी भेड़ों की तरह हैं जिनकी “खाल खींच ली गयी हो और जिन्हें बिन चरवाहे के यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया गया हो।” (मत्ती 9:36) उन्हें राज के बारे में सच्चाई बताना बहुत ज़रूरी है। यहोवा चाहता है कि सब किस्म के लोग सच्चाई का सही ज्ञान पाएँ और उनका उद्धार हो। (1 तीमु. 2:4) अगर हम इस बारे में सोचें कि कैसे हमारे प्रचार काम से लोगों का भला होता है, तो हम ज़रूर प्रचारक बनना चाहेंगे। हम लोगों की जान बचाते हैं। (रोमि. 10:13-15; 1 तीमु. 4:16) प्रचार करने के लिए हमारे पास सही प्रकाशन होने चाहिए और हमें उनका इस्तेमाल करना आना चाहिए। यीशु ने जब अपने चेलों को प्रचार करने भेजा, तो उसने साफ शब्दों में कुछ निर्देश दिए थे। उसने बताया कि उन्हें किस इलाके में प्रचार करना है, लोगों से क्या कहना है और अपने साथ क्या रखना है और क्या नहीं। (मत्ती 10:5-7; लूका 10:1-11) आज यहोवा के संगठन ने हमें प्रकाशनों का पिटारा दिया है। इसमें दिए प्रकाशनों का इस्तेमाल करने से कई अच्छे नतीजे मिले हैं। संगठन हमें यह भी सिखाता है कि हमें कैसे इन प्रकाशनों का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे हम प्रचार करने में कुशल बनते हैं और हमारा भरोसा बढ़ता है कि हम यह काम अच्छे से कर सकते हैं।​—2 तीमु. 2:15. प्र20.09 पेज 4 पै 6-7, 10

रविवार, 13 नवंबर

मुझे इससे ज़्यादा किस बात से खुशी मिल सकती है कि मैं यह सुनूँ कि मेरे बच्चे सच्चाई की राह पर चल रहे हैं।​—3 यूह. 4.

प्रेषित यूहन्‍ना ने कई लोगों को सच्चाई सिखायी थी। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि बरसों बाद जब उसने सुना कि वे लोग अब भी सच्चाई की राह पर चल रहे हैं, तो उसे कितनी खुशी हुई होगी? यूहन्‍ना के लिए ये वफादार मसीही मानो उसके बच्चे थे। वे कई मुश्‍किलों का सामना कर रहे थे। उनका विश्‍वास मज़बूत करने के लिए यूहन्‍ना ने कई तरीकों से उनकी मदद की। आज जब हमारे बच्चे या जिन्हें हम सच्चाई सिखाते हैं, वे यहोवा को अपना जीवन समर्पित करते हैं और उसकी सेवा में लगे रहते हैं, तो हमें भी बहुत खुशी होती है। (3 यूह. 3) ईसवी सन्‌ 98 के आस-पास यहोवा की पवित्र शक्‍ति ने यूहन्‍ना को तीन चिट्ठियाँ लिखने के लिए उभारा। उसने ये चिट्ठियाँ इसलिए लिखीं क्योंकि वह वफादार मसीहियों को यीशु पर विश्‍वास करने और सच्चाई की राह पर चलते रहने का बढ़ावा देना चाहता था। यूहन्‍ना को भाई-बहनों की चिंता खाए जा रही थी, क्योंकि मंडली में झूठे शिक्षक घुस आए थे और वे उन्हें गुमराह कर रहे थे। (1 यूह. 2:18, 19, 26) ये बगावती लोग यहोवा को जानने का दावा तो करते थे, मगर उसकी आज्ञाएँ नहीं मानते थे। प्र20.07 पेज 20 पै 1-3

सोमवार, 14 नवंबर

परमेश्‍वर पर विश्‍वास करो और मुझ पर भी विश्‍वास करो।​—यूह. 14:1.

हमें विश्‍वास है कि हम लोगों को जो बताते हैं वह ज़रूर पूरा होगा, इसलिए हम ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को प्रचार करना चाहते हैं। हमें भरोसा है कि बाइबल में लिखे सारे वादे पूरे होंगे। (भज. 119:42; यशा. 40:8) हमने खुद बाइबल की भविष्यवाणियों को पूरा होते देखा है। हमने यह भी देखा है कि जब लोग बाइबल की सलाह मानते हैं, तो वे अपने अंदर बदलाव करते हैं और अच्छी ज़िंदगी जीते हैं। इससे हमारा यकीन बढ़ जाता है कि हर किसी को खुशखबरी सुनाना ज़रूरी है। इसके अलावा, हमें यहोवा पर विश्‍वास है जिसने हमें यह खुशखबरी दी है। हमें यीशु पर भी विश्‍वास है जिसे यहोवा ने अपने राज का राजा बनाया है। चाहे हम पर जो भी मुश्‍किल आए, यहोवा हमारी पनाह और ताकत बना रहेगा। (भज. 46:1-3) हमें इस बात का भरोसा है कि यीशु हमारे साथ है। यहोवा ने उसे बहुत अधिकार दिया है और आज वह स्वर्ग से प्रचार काम के लिए निर्देश दे रहा है। (मत्ती 28:18-20) विश्‍वास होने की वजह से हमें यकीन है कि यहोवा हमारी मेहनत पर ज़रूर आशीष देगा। प्र20.09 पेज 12 पै 15-17

मंगलवार, 15 नवंबर

इसने मेरी खातिर एक बढ़िया काम किया है। . . . वह जो कर सकती थी उसने किया।​—मर. 14:6, 8.

जब बहनें मुश्‍किलों का सामना करती हैं, तो कभी-कभी यह ज़रूरी होता है कि कोई उनकी तरफ से बात करे। (यशा. 1:17) मिसाल के लिए, अगर कोई बहन विधवा है या उसका तलाक हो गया है, तो यह ज़रूरी हो जाता है कि जो काम उसके पति करते थे उन्हें करने में कोई उसकी मदद करे। बुज़ुर्ग बहनों को डॉक्टरों से बात करने के लिए किसी की ज़रूरत होती है। अगर एक पायनियर बहन संगठन के किसी और काम में हाथ बँटा रही है, तो शायद वह दूसरे पायनियरों के जितना प्रचार न कर पाए। ऐसे में अगर भाई-बहन उसकी नुक्‍ताचीनी करते हैं, तो हमें उसकी तरफ से बोलना चाहिए। आइए यीशु की मिसाल पर गौर करें। जब भी यीशु ने देखा कि परमेश्‍वर की सेवा करनेवाली स्त्रियों को गलत समझा जा रहा है, तो उसने फौरन उनकी तरफ से बात की। जब मारथा मरियम की शिकायत करने लगी, तो यीशु ने मरियम की तरफ से बात की और कहा कि उसने कुछ गलत नहीं किया है। (लूका 10:38-42) एक और मौके पर लोग मरियम पर भड़क गए, क्योंकि उन्होंने सोचा कि मरियम ने जो किया वह सही नहीं है। तब भी यीशु ने मरियम की तरफ से बात की। (मर. 14:3-9) यीशु जानता था कि मरियम ने जो किया, वह सही इरादे से किया, इसलिए उसने मरियम की तारीफ की। यीशु ने यह भविष्यवाणी भी की कि मरियम ने जो भला काम किया है, उसे हमेशा याद किया जाएगा और ‘सारी दुनिया में जहाँ कहीं खुशखबरी का प्रचार किया जाएगा, वहाँ उसके काम की चर्चा की जाएगी।’ प्र20.09 पेज 24 पै 15-16

बुधवार, 16 नवंबर

चरवाहों की तरह परमेश्‍वर के झुंड की देखभाल करो जो तुम्हें सौंपा गया है और निगरानी करनेवालों के नाते परमेश्‍वर के सामने खुशी-खुशी सेवा करो, न कि मजबूरी में।​—1 पत. 5:2.

एक अच्छा चरवाहा यह बात समझता था कि उसकी भेड़ें खो सकती हैं। यही वजह थी कि अगर कोई भेड़ झुंड से भटक जाती, तो वह उसके साथ बुरा सुलूक नहीं करता था। ध्यान दीजिए कि परमेश्‍वर ने अपने कुछ सेवकों की कैसे मदद की, जो कुछ वक्‍त के लिए भटक गए थे। यहोवा ने भविष्यवक्‍ता योना को नीनवे जाने के लिए कहा था, मगर योना ने परमेश्‍वर की बात नहीं मानी। लेकिन इस वजह से यहोवा ने उसे ठुकरा नहीं दिया। यहोवा एक अच्छा चरवाहा है, इसलिए उसने योना को मौत के मुँह से बचाया और उसे अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने की हिम्मत दी। (योना 2:7; 3:1, 2) बाद में यहोवा ने घीए की बेल से योना को समझाया कि उसके लिए हर इंसान की जान बहुत कीमती है। (योना 4:10, 11) इससे हम क्या सीख सकते हैं? प्राचीनों को निष्क्रिय मसीहियों के साथ सब्र से पेश आना चाहिए। उन्हें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि यहोवा की एक भेड़ किस वजह से झुंड से दूर चली गयी। जब वह भेड़ यहोवा के पास लौट आए, तो प्राचीनों को उसके साथ प्यार से पेश आना चाहिए। प्र20.06 पेज 20-21 पै 10-12

गुरुवार, 17 नवंबर

उन्हें थोड़ी मदद दी जाएगी।​—दानि. 11:34.

सन्‌ 1991 में सोवियत संघ गिर गया। तब उसके बड़े इलाके में यहोवा के जितने भी लोग रहते थे, उन्हें थोड़ी आज़ादी मिली। जैसे दानियेल की भविष्यवाणी में कहा गया है, उन्हें “थोड़ी मदद” मिली। इस वजह से उन सभी देशों में साक्षी बिना रोक-टोक के प्रचार कर पाए जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा थे। कुछ ही समय के अंदर उनकी गिनती बढ़कर लाखों में हो गयी। फिर कुछ साल बाद रूस और उसके मित्र राष्ट्र उत्तर का राजा बन गए। किसी सरकार को उत्तर या दक्षिण का राजा तभी कहा जा सकता है जब उसमें तीन बातें होंगी। (1) वह सरकार ऐसे देश पर राज करती है जहाँ परमेश्‍वर के बहुत-से लोग रहते हैं या वह उन पर ज़ुल्म करती है। (2) वह सरकार यहोवा से नफरत करती है, इसलिए वह उसके लोगों के साथ बुरा सुलूक करती है। (3) वह सरकार या राजा दूसरे राजा से ऊपर उठने के लिए उससे लड़ता रहता है। रूस और उसके मित्र राष्ट्रों ने लाखों साक्षियों पर ज़ुल्म किया और प्रचार काम पर रोक लगा दी। इससे साफ पता चलता है कि वे यहोवा और उसके लोगों से नफरत करते हैं। और वे दक्षिण के राजा यानी ब्रिटेन और अमरीका से ज़्यादा ताकतवर बनने की कोशिश करते आए हैं। प्र20.05 पेज 12-13 पै 3-4

शुक्रवार, 18 नवंबर

अपनी शिक्षा पर लगातार ध्यान देता रह।​—1 तीमु. 4:16.

जब हम लोगों को अच्छी तरह सिखाएँगे, तो ही वे चेले बन पाएँगे। हम लाखों लोगों को बाइबल की सच्चाइयाँ सिखा रहे हैं। हमें बाइबल की बातें बहुत अच्छी लगती हैं, इसलिए यह स्वाभाविक है कि हम बाइबल के बारे में बहुत-सी बातें दूसरों को बताना चाहते हैं। लेकिन दूसरों को सिखाते वक्‍त हमें ध्यान रखना है कि हम बहुत ज़्यादा न बोलें। चाहे हम प्रहरीदुर्ग अध्ययन चला रहे हों या मंडली बाइबल अध्ययन में या किसी के घर पर सिखा रहे हों, हमें खुद ही नहीं बोलते जाना चाहिए बल्कि बाइबल का अच्छा इस्तेमाल करना चाहिए। हो सकता है, बाइबल की किसी आयत या विषय के बारे में हमें बहुत सारी बातें पता हों, लेकिन हमें एक-साथ वे सारी बातें नहीं बता देनी चाहिए। (यूह. 16:12) याद कीजिए कि जब आपका बपतिस्मा हुआ था, तब आप बाइबल की सिर्फ बुनियादी शिक्षाएँ समझते थे। (इब्रा. 6:1) आज आपके पास बाइबल का जो ज्ञान है, उसे पाने में आपको कई साल लगे हैं। इसलिए नए विद्यार्थी को सारी बातें एक ही बार में मत बताइए। प्र20.10 पेज 14-15 पै 2-4

शनिवार, 19 नवंबर

‘यह तो वही बढ़ई है न, जो मरियम का बेटा है!’​—मर. 6:3.

यहोवा ने यीशु की परवरिश करने के लिए यूसुफ और मरियम को चुना। उनसे अच्छे माता-पिता शायद ही कोई और हो सकते थे। (मत्ती 1:18-23; लूका 1:26-38) ऐसा हम क्यों कह सकते हैं? मरियम को यहोवा और उसके वचन से गहरा लगाव था। एक मौके पर उसके दिल से जो शब्द निकले थे, उनसे साफ पता चलता है कि वह यहोवा से कितना प्यार करती थी और उसके वचन का कितना अध्ययन करती थी। (लूका 1:46-55) यूसुफ भी परमेश्‍वर का डर माननेवाला इंसान था और उसे खुश करना चाहता था। यह हम इसलिए कह सकते हैं क्योंकि जब परमेश्‍वर ने उसे एक आज्ञा दी, तो उसने तुरंत माना। (मत्ती 1:24) यहोवा ने यीशु की परवरिश करने के लिए ऐसे माता-पिता को चुना जो अमीर नहीं थे। यीशु के जन्म के बाद यूसुफ और मरियम ने भेंट में सिर्फ दो चिड़ियाँ दीं। इससे पता चलता है कि वे गरीब थे। (लूका 2:24) यूसुफ और मरियम ज़रूर एक सादी ज़िंदगी जीते होंगे। उनके पास शायद ज़्यादा पैसे नहीं होते थे, क्योंकि बाइबल के मुताबिक उनके सात-आठ बच्चे थे। (मत्ती 13:55, 56) यहोवा ने यीशु को कुछ खतरों से बचाया था, मगर उसे कुछ मुश्‍किलों से भी गुज़रने दिया। (मत्ती 2:13-15) मिसाल के लिए, उसके परिवार के कुछ लोग उस पर विश्‍वास नहीं करते थे और उसे मसीहा नहीं मानते थे। (मर. 3:21; यूह. 7:5) जब यीशु छोटा था, तभी शायद उसके पिता यूसुफ की मौत हो गयी थी। प्र20.10 पेज 26-27 पै 4-6

रविवार, 20 नवंबर

मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, न कभी त्यागूँगा।​—इब्रा. 13:5.

क्या आपकी ज़िंदगी में कभी ऐसी समस्या आयी जिसका सामना करना आपको बहुत मुश्‍किल लगा? ऐसे में कई लोग बिलकुल अकेला महसूस करते हैं, यहाँ तक कि यहोवा के वफादार सेवक भी। (1 राजा 19:14) अगर आपने कभी ऐसा महसूस किया है, तो यहोवा का यह वादा याद रखिए, “मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, न कभी त्यागूँगा।” इसलिए हम पूरे भरोसे के साथ कह सकते हैं, “यहोवा मेरा मददगार है, मैं नहीं डरूँगा।” (इब्रा. 13:5, 6) प्रेषित पौलुस ने ये शब्द ईसवी सन्‌ 61 के आस-पास यहूदिया में रहनेवाले इब्रानी मसीहियों को लिखे थे। कुछ इसी तरह की बात बहुत पहले भजन के एक लेखक ने भी कही थी जो भजन 118:5-7 में लिखी है। भजन के उस लेखक की तरह पौलुस ने भी कई बार महसूस किया कि यहोवा उसका मददगार है। इब्रानी मसीहियों को चिट्ठी लिखने के दो साल पहले पौलुस ने एक बहुत बड़ी समस्या का सामना किया था। वह जिस जहाज़ से सफर कर रहा था, वह एक बहुत बड़े तूफान में फँस गया था। (प्रेषि. 27:4, 15, 20) उस पूरे सफर के दौरान और उससे पहले भी यहोवा ने कई तरीकों से पौलुस की मदद की थी। प्र20.11 पेज 12 पै 1-2

सोमवार, 21 नवंबर

यह मत कहना, “इन दिनों से अच्छे तो बीते हुए दिन थे।”​—सभो. 7:10.

यह सोचना क्यों बुद्धिमानी की बात नहीं होगी कि हमारा बीता कल आज से अच्छा था? क्योंकि ऐसा सोचने से हमें लगेगा कि पहले सब अच्छा-ही-अच्छा था। इसराएलियों ने यही गलती की थी। मिस्र छोड़ने के कुछ ही समय के अंदर वे भूल गए कि वहाँ उन्होंने कितना दुख झेला था। वे बस यह याद करते रहे कि वहाँ उन्हें कितना अच्छा खाना मिलता था। उन्होंने कहा, “वे दिन हम कैसे भुला सकते हैं जब हम मिस्र में मछलियाँ मुफ्त खाया करते थे! और खीरा, तरबूज़, लहसुन, प्याज़, क्या नहीं मिलता था वहाँ!” (गिन. 11:5) मगर क्या वाकई इसराएलियों को वहाँ “मुफ्त” में खाना मिलता था? नहीं। मिस्र में उनसे कड़ी मज़दूरी करायी जाती थी। एक तरह से कहें तो उन्होंने खाने के लिए भारी कीमत चुकायी थी। (निर्ग. 1:13, 14; 3:6-9) फिर भी वे उन तकलीफों को भूल गए और सोचने लगे कि काश! वे दिन लौट आते। यहोवा ने अभी-अभी उनके लिए जो भले काम किए थे, उन पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया। इसलिए यहोवा का क्रोध उन पर भड़क उठा।​—गिन. 11:10. प्र20.11 पेज 25 पै 5-6

मंगलवार, 22 नवंबर

यहोवा टूटे मनवालों के करीब रहता है, वह उन्हें बचाता है जो निराश हैं।​—भज. 34:18, फु.

हम सब कभी-कभी बहुत निराश हो जाते हैं। इस छोटी-सी ज़िंदगी में हमें कई दुख झेलने पड़ते हैं। देखा जाए तो हमारी ज़िंदगी “दुखों से भरी” होती है। (अय्यू. 14:1) पुराने ज़माने में भी यहोवा के कई सेवक निराश हो जाते थे। कुछ तो इतने निराश हो गए थे कि वे मर जाना चाहते थे। (1 राजा 19:2-4; अय्यू. 3:1-3, 11; 7:15, 16) लेकिन जब भी वे निराश हुए, यहोवा ने उनकी हिम्मत बँधायी और उनके दुखी मन को दिलासा दिया। उन्हें अपने परमेश्‍वर पर भरोसा था और परमेश्‍वर ने उन्हें छोड़ा नहीं। परमेश्‍वर ने उनके बारे में बाइबल में लिखवाया ताकि हम उनसे सीखें और हमें भी दिलासा मिले। (रोमि. 15:4) याकूब के बेटे यूसुफ को ही लीजिए। देखते-ही-देखते यूसुफ की ज़िंदगी बिलकुल बदल गयी। कल तक जो अपने पिता का चहेता बेटा था, अब मिस्र में एक गुलाम बनकर रह गया जहाँ उसे पूछनेवाला कोई नहीं था। (उत्प. 37:3, 4, 21-28; 39:1) इसके बाद पोतीफर की पत्नी ने उस पर झूठा इलज़ाम लगाया कि उसने उसका बलात्कार करने की कोशिश की। पोतीफर ने जानने की कोशिश भी नहीं की कि यह इलज़ाम सही है या गलत, सीधे उसे जेल में डाल दिया और लोहे की ज़ंजीरों में जकड़ दिया। (उत्प. 39:14-20; भज. 105:17, 18) यूसुफ ज़रूर निराश हो गया होगा। प्र20.12 पेज 16-17 पै 1-4

बुधवार, 23 नवंबर

तेरा नाम पवित्र किया जाए।​—मत्ती 6:9.

यीशु ने कहा कि परमेश्‍वर से प्रार्थना करते वक्‍त हमें सबसे पहले यह बिनती करनी चाहिए। यीशु के कहने का क्या मतलब था? किसी चीज़ को पवित्र करने का मतलब है उसे शुद्ध करना। मगर कुछ लोग शायद सोचें, ‘परमेश्‍वर का नाम तो पहले से पवित्र और शुद्ध है। उसे पवित्र करने की क्या ज़रूरत है?’ इसका जवाब जानने के लिए एक पल के लिए सोचिए कि एक नाम के क्या मायने होते हैं। एक नाम सिर्फ पुकारने के लिए या कागज़ पर लिखने के लिए नहीं होता। बाइबल कहती है, “एक अच्छा नाम बेशुमार दौलत से बढ़कर है।” (नीति. 22:1; सभो. 7:1) एक इंसान का नाम क्यों इतना मायने रखता है? वह इसलिए कि उसका नाम सुनते ही यह ध्यान में आता है कि उसने चार लोगों में कैसा नाम कमाया है। यह कोई मायने नहीं रखता कि एक इंसान का नाम कैसे लिखा जाता है या कैसे पुकारा जाता है बल्कि यह मायने रखता है कि उसका नाम सुनते ही लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं। अकसर लोग यहोवा के बारे में ऐसी बातें कहते हैं जो सच नहीं हैं। ऐसा करके वे असल में उसका नाम बदनाम करते हैं। प्र20.06 पेज 2-3 पै 5-7

गुरुवार, 24 नवंबर

मैं बहुत परेशान हूँ। हे यहोवा, मैं तुझसे पूछता हूँ, मैं कब तक यूँ ही तड़पता रहूँ?​—भज. 6:3.

हो सकता है, हम अपनी समस्याओं को लेकर इतने परेशान हो जाएँ कि हम दिन-रात उन्हीं के बारे में सोचते रहें। जैसे, गुज़ारा चलाने के लिए पैसे कहाँ से आएँगे। या अगर हम बीमार हो गए, तो हमारी नौकरी का क्या होगा। या शायद हमें यह चिंता भी सताए कि लुभाए जाने पर कहीं हम परमेश्‍वर की आज्ञा न तोड़ दें। हम शायद यह सोचकर भी परेशान हों कि बहुत जल्द जब शैतान का साथ देनेवाले, परमेश्‍वर के लोगों पर हमला करेंगे, तो उस वक्‍त हम क्या करेंगे। शायद हम सोचें, ‘क्या इन बातों को लेकर परेशान होना सही है?’ यीशु ने अपने चेलों से कहा था, “चिंता करना छोड़ दो।” (मत्ती 6:25) क्या यीशु का यह मतलब था कि हमें कभी किसी बात को लेकर चिंता नहीं करनी चाहिए? जी नहीं। बीते समय में यहोवा के कुछ सेवकों के मन में भी चिंताएँ थीं, लेकिन इस वजह से यहोवा ने उन्हें ठुकराया नहीं। (1 राजा 19:4) जब यीशु ने कहा, “चिंता करना छोड़ दो,” तो उसका यह मतलब था कि हमें किसी भी बात को लेकर हद-से-ज़्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए वरना हमारा ध्यान यहोवा की सेवा से हट जाएगा। प्र21.01 पेज 3 पै 4-5

शुक्रवार, 25 नवंबर

औरत का सिर आदमी है।​—1 कुरिं. 11:3.

एक पति जिस तरह अपने परिवार के साथ व्यवहार करता है, उसके लिए उसे यहोवा और यीशु दोनों को जवाब देना होगा। (1 पत. 3:7) अपने परिवार का मुखिया होने के नाते, यहोवा के पास अधिकार है कि वह अपने बच्चों के लिए नियम बनाए। वह इस बात का भी ध्यान रखता है कि वे इन नियमों को मानें। (यशा. 33:22) यीशु मंडली का मुखिया है इसलिए उसे भी अधिकार है कि वह मंडली के लिए नियम बनाए और ध्यान रखे कि मंडली उन नियमों को माने। (गला. 6:2; कुलु. 1:18-20) यहोवा और यीशु की तरह पति के पास यह अधिकार होता है कि वह अपने परिवार के लिए नियम बनाए। (रोमि. 7:2; इफि. 6:4) इसका यह मतलब नहीं है कि वह अपना अधिकार जैसा चाहे इस्तेमाल कर सकता है। उदाहरण के लिए, अगर वह परिवार के लिए कोई नियम बनाता है, तो वह बाइबल के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए। (नीति. 3:5, 6) वह उन लोगों के लिए नियम नहीं बना सकता जो उसके परिवार के सदस्य नहीं हैं। (रोमि. 14:4) और जब बच्चे बड़े होकर शादी कर लेते हैं, तो वह उनका मुखिया नहीं रहता। हालाँकि बच्चे अपने पिता के अधिकार के अधीन नहीं हैं, लेकिन वे अब भी अपने पिता की इज़्ज़त करते हैं।​—मत्ती 19:5. प्र21.02 पेज 2-3 पै 3-5

शनिवार, 26 नवंबर

‘अपने घर के लोगों की देखभाल कर।’​—1 तीमु. 5:8.

जब एक परिवार का मुखिया अपने परिवारवालों की खाने-पीने की ज़रूरतें पूरी करता है, तो इससे पता चलता है कि वह उनसे प्यार करता है। पर इससे भी ज़्यादा ज़रूरी है कि वह यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाने में उनकी मदद करे। (मत्ती 5:3) यीशु यातना के काठ पर लटका हुआ था और दर्द से तड़प रहा था, फिर भी उसने प्रेषित यूहन्‍ना से कहा कि वह उसकी माँ का खयाल रखे। (यूह. 19:26, 27) एक परिवार के मुखिया पर बहुत सारी ज़िम्मेदारियाँ होती हैं। उसे नौकरी करनी होती है। उसे इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि वह दिल लगाकर काम करे ताकि यहोवा के नाम की बदनामी न हो। (इफि. 6:5, 6; तीतु. 2:9, 10) शायद उस पर मंडली की भी ज़िम्मेदारियाँ हों। जैसे, भाई-बहनों का हौसला बढ़ाना और प्रचार काम की अगुवाई करना। मुखिया पर एक और बड़ी ज़िम्मेदारी है। यहोवा की सेवा करते रहने में उसे अपने परिवार की मदद करनी है। उसे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ लगातार बाइबल का अध्ययन करना है। उसे ही इस बात का ध्यान रखना है कि उसका परिवार सेहतमंद रहे, खुश रहे और यहोवा की सेवा करता रहे। वह जो भी मेहनत करता है उसके लिए उसका परिवार बहुत एहसान मानेगा।​—इफि. 5:28, 29; 6:4. प्र21.01 पेज 12 पै 15, 17

रविवार, 27 नवंबर

[एक अच्छी पत्नी] अपने घरबार का ध्यान रखती है।​—नीति. 31:27.

बाइबल बताती है कि एक अच्छी पत्नी क्या-क्या करती है। वह घरबार सँभालती है, ज़मीन का लेन-देन करती है और कारोबार करती है। (नीति. 31:15, 16, 18) पति इस बात को भी समझेगा कि पत्नी कोई नौकरानी नहीं है जिसे अपनी बात कहने का हक न हो। वह अपनी पत्नी पर भरोसा करेगा और उसकी बात सुनेगा। (नीति. 31:11, 26) इस तरह जब एक पति अपनी पत्नी का आदर करता है, तो पत्नी खुशी-खुशी उसके अधीन रह पाती है। हालाँकि यीशु ने कई बड़े-बड़े काम किए हैं, लेकिन यहोवा के अधीन रहना उसे अपमान की बात नहीं लगती। (1 कुरिं. 15:28; फिलि. 2:5, 6) एक अच्छी पत्नी भी अपने पति के अधीन रहना अपमान की बात नहीं मानती। वह अपने पति का साथ देती है क्योंकि वह उससे प्यार करती है। पर उसका साथ देने की सबसे खास वजह यह है कि वह यहोवा से प्यार करती है और उसका आदर करती है। लेकिन अगर उसका पति उससे कुछ ऐसा करने के लिए कहता है जो बाइबल के सिद्धांतों के खिलाफ है, तो वह उसे नहीं मानेगी। प्र21.02 पेज 11 पै 14-15; पेज 12 पै 19

सोमवार, 28 नवंबर

दुख-तकलीफों से धीरज पैदा होता है।​—रोमि. 5:3.

यहोवा के लिए प्यार होने की वजह से उसके सेवक ज़ुल्म सह पाए हैं। जैसे, पहली सदी में जब यहूदियों की सबसे बड़ी अदालत ने प्रेषितों को प्रचार करने से रोका, तो वे नहीं रुके। उन्हें यहोवा से प्यार था, इसलिए उन्होंने ‘इंसानों के बजाय परमेश्‍वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानी।’ (प्रेषि. 5:29; 1 यूह. 5:3) आज भी ऐसे बहुत-से मसीही हैं जो बेरहम और ताकतवर सरकारों के ज़ुल्म सह पाते हैं। ज़ुल्मों के बावजूद वे निराश नहीं होते बल्कि खुश रहते हैं। (प्रेषि. 5:41; रोमि. 5:4,5) जब हमारे परिवारवाले हमें सताते हैं, तो शायद उसे सहना और भी बहुत मुश्‍किल हो। शायद वे सोचें कि किसी ने हमें बहका दिया है या हमारा दिमाग खराब हो गया है। (मरकुस 3:21 से तुलना करें।) हमें रोकने के लिए शायद वे किसी भी हद तक जाएँ। ऐसे में हम हैरान नहीं होते क्योंकि यीशु ने कहा था, “एक आदमी के दुश्‍मन उसके अपने ही घराने के लोग होंगे।”​—मत्ती 10:36. प्र21.03 पेज 21 पै 6-7

मंगलवार, 29 नवंबर

हर कोई सुनने में फुर्ती करे, बोलने में उतावली न करे।​—याकू. 1:19.

जब आप किसी के साथ उनके बाइबल अध्ययन पर जाते हैं, तो शिक्षक और विद्यार्थी के बीच हो रही बातचीत को ध्यान से सुनिए। तब आप समझ पाएँगे कि आपको कब और क्या बोलना चाहिए। फिर भी आपको बहुत सोच-समझकर बोलना है, नहीं तो आप बहुत ज़्यादा बोलने लग सकते हैं। या फिर जब शिक्षक कुछ समझा रहा है, तो आप बीच में बोलने लग सकते हैं या फिर मुद्दे से हटकर बात करने लग सकते हैं। लेकिन जो मुद्दा सिखाया जा रहा है अगर उसी को समझाने के लिए आप एक छोटा-सा उदाहरण दें, एक सवाल करें या एक-दो बातें कहें, तो इससे विद्यार्थी को बहुत फायदा होगा। कभी-कभी शायद आपको लगे कि जिस विषय पर अध्ययन हो रहा है, उस पर बोलने के लिए आपके पास कुछ नहीं है। फिर भी अगर आप विद्यार्थी की तारीफ करें और उसमें सच्ची दिलचस्पी लें, तो उसका हौसला बढ़ेगा। विद्यार्थी को बताइए कि आप सच्चाई में कैसे आए, आपको किन मुश्‍किलों का सामना करना पड़ा और यहोवा ने कैसे आपकी मदद की। (भज. 78:4, 7) हो सकता है, आपका अनुभव सुनकर विद्यार्थी का विश्‍वास मज़बूत हो और उसे बढ़ावा मिले कि वह भी बपतिस्मा ले। प्र21.03 पेज 10 पै 9-10

बुधवार, 30 नवंबर

सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ।​—मत्ती 28:19.

जब हमें प्रचार काम में अच्छे नतीजे मिलते हैं, तो हमें किसकी बड़ाई करनी चाहिए? जब पौलुस ने कुरिंथ में प्रचार किया, तो वहाँ कई लोग मसीही बन गए। उनके बारे में उसने कहा, “मैंने लगाया, अपुल्लोस ने पानी देकर सींचा लेकिन परमेश्‍वर उसे बढ़ाता रहा। इसलिए न तो लगानेवाला कुछ है, न ही पानी देनेवाला कुछ है मगर परमेश्‍वर सबकुछ है जो इसे बढ़ाता है।” (1 कुरिं. 3:6, 7) पौलुस ने यहोवा की बड़ाई की। हमें भी प्रचार में जो अच्छे नतीजे मिलते हैं, उसके लिए हमें यहोवा की बड़ाई करनी चाहिए। जैसे हमने देखा हमें परमेश्‍वर, यीशु और स्वर्गदूतों के ‘साथ काम करने’ का मौका मिला है। (2 कुरिं. 6:1) अगर हम इस आशीष के लिए एहसानमंद हैं, तो हम क्या करेंगे? हमें जब भी मौका मिलता है, हम लोगों को खुशखबरी सुनाएँगे। हमें सच्चाई के बीज बोने के साथ-साथ उन्हें पानी भी देना चाहिए। जब कोई हमारा संदेश अच्छी तरह सुनता है, तो हमें उससे दोबारा मिलने की पूरी कोशिश करनी चाहिए ताकि उसके साथ बाइबल अध्ययन शुरू कर सकें। और सोचिए अगर वह व्यक्‍ति अध्ययन करे और यहोवा की मदद से अपनी पुरानी सोच बदल दे, तो हमें कितनी खुशी होगी। प्र20.05 पेज 30 पै 14, 16-18

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