“यहोवा अपनी प्रजा को न तजेगा”
“धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो हैं, परन्तु यहोवा उसको उन सब से मुक्त करता है।”—भजन ३४:१९.
१, २. (क) यहोवा अपने लोगों को आज कैसे आशीष दे रहा है? (ख) अनेक मसीही किसका सामना कर रहे हैं, और क्या सवाल खड़े होते हैं?
बाइबल भविष्यवाणी की पूर्ति में, यहोवा के उपासक एक आध्यात्मिक परादीस में रहते हैं। (२ कुरिन्थियों १२:१-४) यहोवा के साक्षियों में ऐसा अंतर्राष्ट्रीय साहचर्य है जिसकी पहचान प्रेम और एकता है। (यूहन्ना १३:३५) वे बाइबल सच्चाइयों के गहरे और व्यापक ज्ञान का आनंद उठाते हैं। (यशायाह ५४:१३) वे यहोवा के कितने आभारी हैं कि वह अपने आध्यात्मिक तंबू में उन्हें रहने का विशेषाधिकार दे रहा है!—भजन १५:१.
२ जबकि यहोवा के संगठन में सभी लोग आध्यात्मिक संपन्नता का आनंद उठाते हैं, ऐसा लगता है मानो कुछ तो तुलनात्मक रूप से शांति और चैन में हैं और बाक़ी दुःख-तकलीफ़ों का सामना करते हैं। कई मसीही अपने आप को लंबे समय तक एक दयनीय स्थिति में पाते हैं, जहाँ राहत का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं। ऐसी परिस्थितियों में हताशा स्वाभाविक है। (नीतिवचन १३:१२) क्या विपत्तियाँ परमेश्वर की नाराज़गी का प्रमाण हैं? क्या यहोवा कुछ मसीहियों को विशेष सुरक्षा दे रहा है और दूसरों को तज रहा है?
३. (क) क्या यहोवा अपने लोगों द्वारा अनुभव की जानेवाली विपत्तियों के लिए ज़िम्मेवार है? (ख) यहोवा के वफ़ादार उपासक भी इंसानी दुःख-तकलीफ़ का अनुभव क्यों करते हैं?
३ बाइबल जवाब देती है: “जब किसी की परीक्षा हो, तो वह यह न कहे, कि मेरी परीक्षा परमेश्वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है।” (याकूब १:१३) यहोवा अपने लोगों का रक्षक और पालनहार है। (भजन ९१:२-६) “यहोवा अपनी प्रजा को न तजेगा।” (भजन ९४:१४) इसका यह मतलब नहीं है कि वफ़ादार उपासकों को दुःख-तकलीफ़ नहीं उठानी पड़ेगी। वर्तमान सांसारिक रीति-व्यवस्था पर ऐसे व्यक्तियों का शासन है जो जन्मजात अपरिपूर्ण हैं। अनेक भ्रष्ट हैं, और कुछ तो एकदम दुष्ट हैं। उनमें से कोई भी बुद्धि के लिए यहोवा की ओर नहीं देखता है। नतीजा होता है बेहद दुःख-तकलीफ़। बाइबल स्पष्ट करती है कि यहोवा के लोग मानवीय अपरिपूर्णता और दुष्टता के दुःखद परिणामों से हमेशा बच नहीं सकते।—प्रेरितों १४:२२.
वफ़ादार मसीही जानते हैं कि दुःख उठाएँगे
४. जब तक सभी मसीही इस दुष्ट रीति-व्यवस्था में रहते हैं, वे किस बात की उम्मीद कर सकते हैं, और क्यों?
४ हालाँकि यीशु के अनुयायी संसार का भाग नहीं हैं, वे इसी रीति-व्यवस्था में रहते हैं। (यूहन्ना १७:१५, १६) बाइबल में, शैतान का पर्दाफ़ाश इस संसार पर क़ाबू रखनेवाली शक्ति के रूप में किया गया है। (१ यूहन्ना ५:१९) इसलिए, सभी मसीही उम्मीद कर सकते हैं कि आज नहीं तो कल उन्हें गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। यह ध्यान में रखते हुए, प्रेरित पतरस कहता है: “सचेत हो, और जागते रहो, क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाले सिंह की नाईं इस खोज में रहता है, कि किस को फाड़ खाए। विश्वास में दृढ़ होकर, और यह जानकर उसका साम्हना करो, कि तुम्हारे भाई जो संसार में हैं, ऐसे ही दुख भुगत रहे हैं।” (१ पतरस ५:८, ९) जी हाँ, मसीहियों का पूरा समुदाय दुःख-तकलीफ़ों की उम्मीद कर सकता है।
५. यीशु ने किस तरह से यह स्पष्ट किया कि वफ़ादार मसीही जीवन में दुःख-भरी बातों का अनुभव करेंगे?
५ यदि हम यहोवा से गहरा प्रेम करते हैं और उसके सिद्धांतों के प्रति वफ़ादार हैं, तो भी हम जीवन में दुःखों का अनुभव करेंगे। यीशु ने इस बात को मत्ती ७:२४-२७ में रिकॉर्ड किए गए अपने दृष्टांत में स्पष्ट किया, जहाँ उसने उसकी बातों पर चलनेवालों और न चलनेवालों के बीच विषमता दिखाई। उसने आज्ञाकारी शिष्यों की तुलना एक बुद्धिमान मनुष्य से की जो अपना घर चट्टान पर बनाता है। और जो उसकी बातों पर नहीं चलते हैं, उनकी तुलना उसने एक निर्बुद्धि मनुष्य से की जो अपना घर बालू पर बनाता है। एक ज़ोरदार तूफ़ान के बाद, सिर्फ़ चट्टान पर बनाया गया घर बचता है। ध्यान दीजिए कि बुद्धिमान मनुष्य के घर के मामले में, “मेंह बरसा और बाढ़ें आईं, और आन्धियां चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं, परन्तु वह नहीं गिरा।” यीशु ने यह वायदा नहीं किया कि बुद्धिमान मनुष्य हमेशा शांति और चैन से रहेगा। इसके बजाय, उस मनुष्य की बुद्धिमानी उसे तूफ़ान का सामना करने के लिए तैयार करेगी। ऐसा ही विचार बीज बोनेवाले के दृष्टांत में भी ज़ाहिर होता है। उसमें यीशु समझाता है कि “भले और उत्तम मन” रखनेवाले आज्ञाकारी उपासक भी “धीरज से फल लाते हैं।”—लूका ८:४-१५.
६. पौलुस के अग्नि-रोधक पदार्थों के दृष्टांत में, कौन अग्निपरीक्षा से गुज़रते हैं?
६ कुरिन्थियों को लिखते समय प्रेरित पौलुस ने, परीक्षाओं का सामना करने में हमारी मदद करनेवाले टिकाऊ गुणों की ज़रूरत को चित्रित करने के लिए, लाक्षणिक भाषा का इस्तेमाल किया। सोना, चाँदी, और हीरे-जवाहरात जैसे अग्नि-रोधक पदार्थ ईश्वरीय गुणों से मेल खाते हैं। (नीतिवचन ३:१३-१५; १ पतरस १:६, ७ से तुलना कीजिए।) दूसरी ओर, शारीरिक लक्षणों की तुलना ज्वलनशील पदार्थों से की गई है। फिर पौलुस कहता है: “हर एक का काम प्रगट हो जाएगा; क्योंकि वह दिन उसे बताएगा; इसलिये कि आग के साथ प्रगट होगा: और वह आग हर एक का काम परखेगी कि कैसा है? जिस का काम उस पर बना हुआ स्थिर रहेगा, वह मजदूरी पाएगा।” (१ कुरिन्थियों ३:१०-१४) यहाँ फिर से, बाइबल स्पष्ट करती है कि हम सभी को किसी-न-किसी तरह की अग्निपरीक्षा का सामना करना पड़ेगा।
७. रोमियों १५:४ के अनुसार, परीक्षाओं का सामना करने में शास्त्रवचन हमारी मदद कैसे कर सकते हैं?
७ बाइबल में परमेश्वर के ऐसे वफ़ादार सेवकों के कई विवरण हैं जिन्हें विपत्तियाँ सहनी पड़ीं, कई बार लंबे समय तक। लेकिन, यहोवा ने उन्हें नहीं तजा। प्रेरित पौलुस के मन में शायद ऐसे ही उदाहरण थे जब उसने कहा: “जितनी बातें पहिले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिये लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्र शास्त्र की शान्ति के द्वारा आशा रखें।” (रोमियों १५:४) तीन व्यक्तियों के उदाहरणों पर ध्यान दीजिए जिन्होंने, परमेश्वर के साथ एक घनिष्ठ संबंध का आनंद उठाते हुए, कई विपत्तियाँ सहीं।
हम बाइबल वृत्तांतों से जो सीखते हैं
८. यूसुफ के मामले में यहोवा ने किस बात की अनुमति दी, और कितने समय तक?
८ याकूब का बेटा यूसुफ बचपन से ही यहोवा को प्रिय था। फिर भी, बिना अपनी किसी ग़लती के, उसे एक के बाद एक कई विपत्तियाँ सहनी पड़ीं। उसके अपने ही भाइयों ने उसका अपहरण किया और उसके साथ क्रूर बर्ताव किया। उसे एक दास के तौर पर पराये देश में बेच दिया गया जहाँ उस पर झूठ-मूठ दोष लगा कर उसे एक “कारागार” में डाल दिया गया। (उत्पत्ति ४०:१५) वहाँ, “लोगों ने उसके पैरों में बेड़ियां डालकर उसे दुःख दिया; वह लोहे की सांकलों से जकड़ा गया।” (भजन १०५:१७, १८) निःसंदेह, अपनी ग़ुलामी और क़ैद के दौरान, यूसुफ ने रिहाई के लिए यहोवा से बार-बार याचना की। परंतु, क़रीब १३ साल तक, यहोवा द्वारा कई तरीक़ों से मज़बूत किए जाने पर भी, उसने हर सुबह अपने आप को एक ग़ुलाम या क़ैदी पाया।—उत्पत्ति ३७:२; ४१:४६.
९. दाऊद को कई सालों तक क्या सहना पड़ा?
९ दाऊद का किस्सा भी कुछ ऐसा ही है। जब यहोवा इस्राएल पर शासन करने के लिए एक योग्य पुरुष को चुन रहा था, तब उसने कहा: “मुझे एक मनुष्य यिशै का पुत्र दाऊद, मेरे मन के अनुसार मिल गया है।” (प्रेरितों १३:२२) यहोवा की नज़रों में प्रिय होने के बावजूद, दाऊद ने बहुत कुछ सहा। जान बचा कर भागते हुए, वह कई सालों तक बीहड़, गुफाओं, दरारों, और अजनबी इलाक़ों में छिपता रहा। एक जंगली जानवर की नाईं पीछा किए जाने पर, उसने हताशा और भय का अनुभव किया। फिर भी, उसने यहोवा की शक्ति की मदद से सब कुछ सहा। दाऊद अपने ख़ुद के अनुभव से ठीक ही कह सका: “धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो हैं, परन्तु यहोवा उसको उन सब से मुक्त करता है।”—भजन ३४:१९.
१०. नाबोत और उसके परिवार पर कौन-सी विपत्ति आ पड़ी?
१० भविष्यवक्ता एलिय्याह के समय में, इस्राएल में मात्र ७,००० लोग ऐसे थे जिन्होंने झूठे देवता बाल के आगे घुटने नहीं टेके थे। (१ राजा १९:१८; रोमियों ११:४) नाबोत, जो संभवतः उनमें से एक था, एक घोर अन्याय का शिकार बना। उसने ईशनिंदा के आरोप का अपमान सहा। दोषी पाए जाने पर, उसे शाही फ़ैसले के अनुसार दंड दिया गया और पत्थरवाह से मारे जाने की सज़ा सुनाई गई। उसका लहू कुत्तों ने चाटा। उसके बेटों को भी मार डाला गया! लेकिन, उस पर लगाया गया आरोप झूठा था। उसके विरुद्ध गवाह झूठे लोग थे। यह सब रानी ईज़ेबेल द्वारा रचा गया षड्यंत्र था, ताकि नाबोत की दाख की बारी पर राजा अपना क़ब्ज़ा कर सके।—१ राजा २१:१-१९; २ राजा ९:२६.
११. बाइबल इतिहास के वफ़ादार पुरुषों और स्त्रियों के बारे में प्रेरित पौलुस हमें क्या बताता है?
११ यूसुफ, दाऊद, और नाबोत बाइबल में ज़िक्र किए गए अनेक वफ़ादार पुरुषों और स्त्रियों में से मात्र तीन जन हैं, जिन्होंने विपत्तियों का सामना किया। प्रेरित पौलुस ने सदियों के दौरान यहोवा के सेवक रहे लोगों की एक ऐतिहासिक समीक्षा लिखी। उसमें उसने उन लोगों के बारे में लिखा जो “ठट्ठों में उड़ाए जाने; और कैद में पड़ने के द्वारा परखे गए। पत्थरवाह किए गए; आरे से चीरे गए; उन की परीक्षा की गई; तलवार से मारे गए; वे कंगाली में और क्लेश में और दुख भोगते हुए भेड़ों और बकरियों की खालें ओढ़े हुए, इधर उधर मारे मारे फिरे। और जंगलों और पहाड़ों, और गुफाओं में, और पृथ्वी की दरारों में भटकते फिरे। संसार उन के योग्य न था।” (इब्रानियों ११:३६-३९) लेकिन यहोवा ने उन्हें नहीं तजा।
दुःख उठानेवालों की यहोवा परवाह करता है
१२. आज यहोवा के साक्षियों द्वारा अनुभव की जा रही विपत्तियों में से कुछ कौन-सी हैं?
१२ आज यहोवा के लोगों के बारे में क्या? एक संगठन के तौर पर, हम ईश्वरीय सुरक्षा तथा अंतिम दिनों और बड़े क्लेश से सुरक्षित बच निकलने की उम्मीद कर सकते हैं। (यशायाह ५४:१७; प्रकाशितवाक्य ७:९-१७) लेकिन, व्यक्तिगत तौर पर, हम पहचानते हैं कि “सब [मनुष्य] समय और संयोग के वश में है।” (सभोपदेशक ९:११) आज कई वफ़ादार मसीही हैं जो विपत्तियों का सामना कर रहे हैं। कुछ कड़ी ग़रीबी झेलते हैं। बाइबल उन मसीही “अनाथों और विधवाओं” के बारे में बताती है जो क्लेश में हैं। (याकूब १:२७) अन्य प्राकृतिक विपदाओं, युद्ध, अपराध, शक्ति के दुरुपयोग, बीमारी, और मृत्यु की वजह से दुःख उठाते हैं।
१३. कौन-से कठिन अनुभव अभी हाल ही में रिपोर्ट किए गए हैं?
१३ मिसाल के तौर पर, यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय को अपनी १९९६ की रिपोर्टों में, वॉच टावर शाखा कार्यालयों ने बताया कि हमारे कुछ भाई और बहन बाइबल सिद्धांतों का पालन करने के कारण, खेदजनक हालात में जेल की सज़ा भुगत रहे हैं। जब एक दक्षिण अमरीकी देश में छापामार दलों ने सैकड़ों साक्षियों को एक इलाक़ा ख़ाली करने पर विवश किया, तब वहाँ की तीन कलीसियाएँ भंग हो गईं। एक पश्चिम अफ्रीकी देश में, कुछ साक्षी गृह-युद्ध की चपेट में आने से मारे गए। एक केंद्रीय अमरीकी देश में तूफ़ान के कारण, कुछ भाइयों की पहले से ही कठिन आर्थिक स्थिति और भी गंभीर हो गई। दूसरी जगहों में जहाँ ग़रीबी और भोजन की कमी शायद बड़ी समस्याएँ न हों, वहाँ नकारात्मक प्रभाव कुछ लोगों के आनंद को शायद फीका कर दें। अन्य लोग आधुनिक-दिन जीवन के दबावों तले पिस रहे हैं। और दूसरे जब राज्य के सुसमाचार का प्रचार करते हैं, तब जनता की उदासीनता के कारण शायद निरुत्साहित महसूस करें।
१४. (क) हम अय्यूब के उदाहरण से क्या सीखते हैं? (ख) क्लेश के समय नकारात्मक रूप से सोचने के बजाय, हमें क्या करना चाहिए?
१४ इन स्थितियों को परमेश्वर की नाराज़गी का प्रमाण नहीं मानना चाहिए। अय्यूब के उदाहरण और उन अनेक विपत्तियों को जो उसने झेलीं, याद कीजिए। वह एक “खरा और सीधा” मनुष्य था। (अय्यूब १:८) अय्यूब ने कितना हताश महसूस किया होगा जब एलीपज ने उस पर ग़लती करने का आरोप लगाया! (अय्यूब, अध्याय ४, ५, २२) हम इस निष्कर्ष पर पहुँचने की जल्दबाज़ी नहीं करना चाहेंगे कि हम पर विपत्तियाँ इसलिए आती हैं क्योंकि हमने किसी बात में यहोवा को निराश किया है अथवा उसने अपनी आशीष हमारे ऊपर से उठा ली है। क्लेश के समय नकारात्मक सोच-विचार हमारे विश्वास को कमज़ोर कर सकता है। (१ थिस्सलुनीकियों ३:१-३, ५) दुःख के समय, इस हक़ीक़त पर मनन करना सबसे अच्छा होगा कि चाहे कुछ भी हो, यहोवा और यीशु धर्मी लोगों के क़रीब रहते हैं।
१५. हम कैसे जान सकते हैं कि यहोवा अपने लोगों द्वारा विपत्तियों का सामना किए जाने के बारे में बहुत चिंता करता है?
१५ प्रेरित पौलुस हमें आश्वासन देता है जब वह कहता है: “कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश, या संकट, या उपद्रव, या अकाल, या नङ्गाई, या जोखिम, या तलवार? . . . मैं निश्चय जानता हूं, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊंचाई, न गहिराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।” (रोमियों ८:३५, ३८, ३९) यहोवा हमारे बारे में बहुत चिंता करता है और हमारी तकलीफ़ जानता है। जब दाऊद भगोड़ा ही था, तब उसने लिखा: “यहोवा की आंखें धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान भी उनकी दोहाई की ओर लगे रहते हैं। यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है।” (भजन ३४:१५, १८; मत्ती १८:६, १४) हमारा स्वर्गीय पिता हमारा ध्यान रखता है और जो तकलीफ़ में होते हैं उनके लिए करुणा महसूस करता है। (१ पतरस ५:६, ७) हम चाहे जो भी तकलीफ़ उठाएँ, उन्हें सहन करने के लिए हमें जो चाहिए वह हमें देता है।
यहोवा के दान हमें बनाए रखते हैं
१६. यहोवा की ओर से कौन-सा प्रबंध सहने में हमारी मदद करता है, और कैसे?
१६ हालाँकि हम इस पुरानी रीति-व्यवस्था में एक विपत्ति-रहित जीवन की उम्मीद नहीं कर सकते, लेकिन हम “त्यागे नहीं जाते” हैं। (२ कुरिन्थियों ४:८, ९) यीशु ने अपने अनुयायियों को एक सहायक देने का वायदा किया। उसने कहा: “मैं पिता से बिनती करूंगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे। अर्थात् सत्य का आत्मा।” (यूहन्ना १४:१६, १७) सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त के दिन, प्रेरित पतरस ने अपने सुननेवालों से कहा कि वे ‘पवित्र आत्मा का दान’ पा सकते थे। (प्रेरितों २:३८) क्या पवित्र आत्मा आज हमारी मदद कर रही है? जी हाँ! यहोवा की सक्रिय शक्ति हमें अद्भुत फल देती है: “प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम।” (गलतियों ५:२२, २३) ये सब अमूल्य गुण हैं जो सहने में हमारी मदद करते हैं।
१७. ऐसी कौन-सी कुछ बाइबल सच्चाइयाँ हैं जो यहोवा पर धीरज के साथ आशा लगाए रखने के हमारे विश्वास और संकल्प को मज़बूत करती हैं?
१७ पवित्र आत्मा हमें यह समझने में भी मदद देती है कि अनंत जीवन के इनाम की तुलना में, वर्तमान क्लेश ‘पल भर के और हल्के’ हैं। (२ कुरिन्थियों ४:१६-१८) हम निश्चित हैं कि परमेश्वर हमारे कामों को और उस प्रेम को नहीं भूलेगा जो हम उसकी ओर दिखाते हैं। (इब्रानियों ६:९-१२) बाइबल के उत्प्रेरित वचनों को पढ़ने पर, हम उन पुराने वफ़ादार सेवकों के उदाहरणों से दिलासा पाते हैं, जिन्होंने कई विपत्तियाँ सहीं लेकिन जिन्हें धन्य कहा गया। याकूब लिखता है: “हे भाइयो, जिन भविष्यद्वक्ताओं ने प्रभु के नाम से बातें कीं, उन्हें दुख उठाने और धीरज धरने का एक आदर्श समझो। देखो, हम धीरज धरनेवालों को धन्य कहते हैं।” (याकूब ५:१०, ११) बाइबल हमें परीक्षाएँ सहने में मदद करने के लिए “असीम सामर्थ” का वायदा करती है। यहोवा हमें पुनरुत्थान की आशा भी देता है। (२ कुरिन्थियों १:८-१०; ४:७) रोज़ाना बाइबल पढ़ने और इन प्रार्थनाओं पर मनन करने के द्वारा, हम परमेश्वर पर धीरज के साथ आशा लगाए रखने के अपने विश्वास और संकल्प को मज़बूत करेंगे।—भजन ४२:५.
१८. (क) २ कुरिन्थियों १:३, ४ में हमें क्या करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है? (ख) मसीही ओवरसियर किस प्रकार सांत्वना और ताज़गी के स्रोत साबित हो सकते हैं?
१८ इसके अलावा, यहोवा ने हमें आध्यात्मिक परादीस दिया है जिसमें हम अपने मसीही भाइयों और बहनों के सच्चे प्रेम का आनंद उठा सकते हैं। एक दूसरे को दिलासा देने में हम सब को एक भूमिका अदा करनी है। (२ कुरिन्थियों १:३, ४) ख़ासकर मसीही ओवरसियर सांत्वना और ताज़गी का मुख्य स्रोत हो सकते हैं। (यशायाह ३२:२) “मनुष्यों को दान दिए” गए लोगों के तौर पर उन्हें दुःख उठानेवालों को संभालने के लिए, ‘हताश प्राणों से सांत्वनापूर्वक बोलने,’ और ‘कमज़ोरों को सहारा देने’ के लिए नियुक्त किया गया है। (इफिसियों ४:८, ११, १२; १ थिस्सलुनीकियों ५:१४, NW) प्राचीनों को प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिकाओं, तथा “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” द्वारा दिए गए अन्य प्रकाशनों का अच्छा इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। (मत्ती २४:४५-४७) इनमें बाइबल पर आधारित सलाहों का भंडार है जो परेशान करनेवाली समस्याओं को हल—और यहाँ तक कि उनकी रोकथाम करने में भी हमारी मदद कर सकता है। ऐसा हो कि हम कठिन समयों के दौरान एक दूसरे को सांत्वना देने और प्रोत्साहित करने के द्वारा यहोवा का अनुकरण करें!
१९. (क) कुछ विपत्तियों से बचने में कौन-सी बात हमारी मदद करती है? (ख) आख़िरकार, हमें किस पर भरोसा रखना चाहिए, और परीक्षाओं का सामना करने के लिए हमें कौन-सी बात समर्थ करेगी?
१९ जैसे-जैसे हम अंतिम दिनों में बढ़ते जाते हैं और वर्तमान रीति-व्यवस्था के हालात बदतर होते जाते हैं, विपत्तियों से बचने के लिए मसीहियों से जो बन पड़ता है वे करते हैं। (नीतिवचन २२:३) अच्छा अनुमान, संयम, और बाइबल सिद्धांतों का ज्ञान हमें समझदारी से निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं। (नीतिवचन ३:२१, २२) हम यहोवा के वचन को सुनते हैं और उसका पालन करते हैं ताकि बेकार की ग़लतियाँ करने से बचें। (भजन ३८:४) फिर भी हम जानते हैं कि चाहे हम कितनी भी कोशिश क्यों न करें, हम अपने जीवन से दुःख-तकलीफ़ को पूरी तरह से नहीं मिटा पाएँगे। इस रीति व्यवस्था में, अनेक धर्मी लोग कड़ी विपत्तियों का सामना करते हैं। लेकिन, हम अपनी परीक्षाओं का पूरे विश्वास के साथ सामना कर सकते हैं कि “यहोवा अपनी प्रजा को न तजेगा।” (भजन ९४:१४) और हम जानते हैं कि यह रीति-व्यवस्था और इसकी विपत्तियाँ जल्द ही मिट जाएँगी। इसलिए, हम संकल्प करें कि “भले काम करने में हियाव न छोड़ें, क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।”—गलतियों ६:९.
हमने क्या सीखा?
◻ मसीहियों का पूरा समुदाय किन परीक्षाओं का अनुभव करता है?
◻ बाइबल में कौन-से उदाहरण हमें यह समझने में मदद करते हैं कि विपत्तियाँ यहोवा की नाराज़गी का प्रमाण नहीं हैं?
◻ यहोवा अपने लोगों द्वारा विपत्तियाँ झेलने के बारे में कैसा महसूस करता है?
◻ यहोवा की ओर से ऐसे कौन-से कुछ दान हैं जो हमें परीक्षाओं का सामना करने में मदद देते हैं?
[पेज 10 पर तसवीर]
दाऊद, नाबोत, और यूसुफ ऐसे तीन जन हैं जिन्होंने विपत्तियों का सामना किया