मंगलवार, 22 नवंबर
यहोवा टूटे मनवालों के करीब रहता है, वह उन्हें बचाता है जो निराश हैं।—भज. 34:18, फु.
हम सब कभी-कभी बहुत निराश हो जाते हैं। इस छोटी-सी ज़िंदगी में हमें कई दुख झेलने पड़ते हैं। देखा जाए तो हमारी ज़िंदगी “दुखों से भरी” होती है। (अय्यू. 14:1) पुराने ज़माने में भी यहोवा के कई सेवक निराश हो जाते थे। कुछ तो इतने निराश हो गए थे कि वे मर जाना चाहते थे। (1 राजा 19:2-4; अय्यू. 3:1-3, 11; 7:15, 16) लेकिन जब भी वे निराश हुए, यहोवा ने उनकी हिम्मत बँधायी और उनके दुखी मन को दिलासा दिया। उन्हें अपने परमेश्वर पर भरोसा था और परमेश्वर ने उन्हें छोड़ा नहीं। परमेश्वर ने उनके बारे में बाइबल में लिखवाया ताकि हम उनसे सीखें और हमें भी दिलासा मिले। (रोमि. 15:4) याकूब के बेटे यूसुफ को ही लीजिए। देखते-ही-देखते यूसुफ की ज़िंदगी बिलकुल बदल गयी। कल तक जो अपने पिता का चहेता बेटा था, अब मिस्र में एक गुलाम बनकर रह गया जहाँ उसे पूछनेवाला कोई नहीं था। (उत्प. 37:3, 4, 21-28; 39:1) इसके बाद पोतीफर की पत्नी ने उस पर झूठा इलज़ाम लगाया कि उसने उसका बलात्कार करने की कोशिश की। पोतीफर ने जानने की कोशिश भी नहीं की कि यह इलज़ाम सही है या गलत, सीधे उसे जेल में डाल दिया और लोहे की ज़ंजीरों में जकड़ दिया। (उत्प. 39:14-20; भज. 105:17, 18) यूसुफ ज़रूर निराश हो गया होगा। प्र20.12 पेज 16-17 पै 1-4
बुधवार, 23 नवंबर
तेरा नाम पवित्र किया जाए।—मत्ती 6:9.
यीशु ने कहा कि परमेश्वर से प्रार्थना करते वक्त हमें सबसे पहले यह बिनती करनी चाहिए। यीशु के कहने का क्या मतलब था? किसी चीज़ को पवित्र करने का मतलब है उसे शुद्ध करना। मगर कुछ लोग शायद सोचें, ‘परमेश्वर का नाम तो पहले से पवित्र और शुद्ध है। उसे पवित्र करने की क्या ज़रूरत है?’ इसका जवाब जानने के लिए एक पल के लिए सोचिए कि एक नाम के क्या मायने होते हैं। एक नाम सिर्फ पुकारने के लिए या कागज़ पर लिखने के लिए नहीं होता। बाइबल कहती है, “एक अच्छा नाम बेशुमार दौलत से बढ़कर है।” (नीति. 22:1; सभो. 7:1) एक इंसान का नाम क्यों इतना मायने रखता है? वह इसलिए कि उसका नाम सुनते ही यह ध्यान में आता है कि उसने चार लोगों में कैसा नाम कमाया है। यह कोई मायने नहीं रखता कि एक इंसान का नाम कैसे लिखा जाता है या कैसे पुकारा जाता है बल्कि यह मायने रखता है कि उसका नाम सुनते ही लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं। अकसर लोग यहोवा के बारे में ऐसी बातें कहते हैं जो सच नहीं हैं। ऐसा करके वे असल में उसका नाम बदनाम करते हैं। प्र20.06 पेज 2-3 पै 5-7
गुरुवार, 24 नवंबर
मैं बहुत परेशान हूँ। हे यहोवा, मैं तुझसे पूछता हूँ, मैं कब तक यूँ ही तड़पता रहूँ?—भज. 6:3.
हो सकता है, हम अपनी समस्याओं को लेकर इतने परेशान हो जाएँ कि हम दिन-रात उन्हीं के बारे में सोचते रहें। जैसे, गुज़ारा चलाने के लिए पैसे कहाँ से आएँगे। या अगर हम बीमार हो गए, तो हमारी नौकरी का क्या होगा। या शायद हमें यह चिंता भी सताए कि लुभाए जाने पर कहीं हम परमेश्वर की आज्ञा न तोड़ दें। हम शायद यह सोचकर भी परेशान हों कि बहुत जल्द जब शैतान का साथ देनेवाले, परमेश्वर के लोगों पर हमला करेंगे, तो उस वक्त हम क्या करेंगे। शायद हम सोचें, ‘क्या इन बातों को लेकर परेशान होना सही है?’ यीशु ने अपने चेलों से कहा था, “चिंता करना छोड़ दो।” (मत्ती 6:25) क्या यीशु का यह मतलब था कि हमें कभी किसी बात को लेकर चिंता नहीं करनी चाहिए? जी नहीं। बीते समय में यहोवा के कुछ सेवकों के मन में भी चिंताएँ थीं, लेकिन इस वजह से यहोवा ने उन्हें ठुकराया नहीं। (1 राजा 19:4) जब यीशु ने कहा, “चिंता करना छोड़ दो,” तो उसका यह मतलब था कि हमें किसी भी बात को लेकर हद-से-ज़्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए वरना हमारा ध्यान यहोवा की सेवा से हट जाएगा। प्र21.01 पेज 3 पै 4-5