अध्याय 7
परमेश्वर की तरह क्या आप भी जीवन को अनमोल समझते हैं?
“तू ही जीवन देनेवाला है।”—भजन 36:9.
1, 2. (क) परमेश्वर ने हमें कौन-सा बेशकीमती तोहफा दिया है? (ख) बाइबल के सिद्धांतों की समझ होना आज खासकर क्यों ज़रूरी है?
स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता यहोवा ने हम सबको एक बेशकीमती तोहफा दिया है। उसने हमें जीवन दिया है, साथ ही बुद्धि दी है जिसकी वजह से हम उसके जैसे गुण दिखाने की काबिलीयत रखते हैं। (उत्पत्ति 1:27) बुद्धि के इस बेशकीमती तोहफे की बदौलत हम समझ पाते हैं कि बाइबल के सिद्धांत कैसे हमारे फायदे के लिए हैं। इन सिद्धांतों को लागू करने से हम आध्यात्मिक उन्नति करके प्रौढ़ मसीही बन सकते हैं। जी हाँ, हम ऐसे लोग बन सकते हैं जो यहोवा से प्यार करते हैं और जिन्होंने “अपनी सोचने-समझने की शक्ति का इस्तेमाल करते-करते, सही-गलत में फर्क करने के लिए इसे प्रशिक्षित” किया है।—इब्रानियों 5:14.
2 बाइबल के सिद्धांतों की समझ होना खास तौर पर आज के ज़माने में बेहद ज़रूरी है, क्योंकि आज की दुनिया बहुत जटिल हो चुकी है। इसलिए ज़िंदगी में क्या-क्या हालात पैदा हो सकते हैं, उनका पहले से अंदाज़ा लगाकर उनके बारे में कायदे-कानून बनाना मुमकिन नहीं है। इलाज के मामले को ही ले लीजिए। खासकर जब इलाज के उन तरीकों की बात आती है जिनमें खून का मसला सामने आता है, तो सही चुनाव करना बहुत पेचीदा हो सकता है। यह एक ऐसा मसला है जो उन सभी के लिए अहमियत रखता है जो यहोवा की हर आज्ञा मानना चाहते हैं। लेकिन अगर हम इलाज और खून के इस्तेमाल पर लागू होनेवाले बाइबल के सिद्धांतों की अच्छी समझ रखते हैं, तो हम सोच-समझकर ऐसे फैसले कर सकेंगे जिससे न सिर्फ हमारे ज़मीर को चैन रहे बल्कि हम परमेश्वर के प्यार के लायक भी बने रहें। (नीतिवचन 2:6-11) आइए ऐसे कुछ सिद्धांतों पर ध्यान दें।
जीवन और खून पवित्र हैं
3, 4. शास्त्र में यह बात सबसे पहले कब बतायी गयी कि खून पवित्र है? शास्त्र में बतायी कौन-सी बुनियादी सच्चाइयाँ दिखाती हैं कि खून पवित्र है?
3 जीवन और खून का आपस में गहरा नाता है और ये दोनों यहोवा की नज़र में पवित्र हैं। इस बात का खुलासा सबसे पहले यहोवा ने तब किया जब कैन ने हाबिल का कत्ल कर दिया था। परमेश्वर ने कैन से कहा, “सुन! तेरे भाई का खून ज़मीन से चीख-चीखकर मुझे न्याय की दुहाई दे रहा है।” (उत्पत्ति 4:10) यहोवा की नज़र में हाबिल का खून उसके जीवन की निशानी था, जिसे बड़ी बेरहमी से मिटा दिया गया था। हाबिल का खून मानो परमेश्वर से फरियाद कर रहा था कि उसका बदला लिया जाए।—इब्रानियों 12:24.
4 नूह के दिनों के जलप्रलय के बाद परमेश्वर ने इंसानों को जानवरों का माँस तो खाने की इजाज़त दी थी मगर उनका खून नहीं। परमेश्वर ने कहा, “तुम माँस के साथ खून मत खाना क्योंकि खून जीवन है। और अगर कोई तुम्हारा खून बहाए, जो कि तुम्हारा जीवन है, तो मैं उससे तुम्हारे खून का हिसाब माँगूँगा।” (उत्पत्ति 9:4, 5) यह आदेश नूह के सभी वंशजों पर लागू होता है, जिनमें हम भी शामिल हैं। परमेश्वर के इस आदेश में वे बुनियादी सच्चाइयाँ दोहरायी गयीं, जो उसने पहले कैन से कही थीं। वह यह कि सभी प्राणियों के जीवन की निशानी उनका खून है। यह आदेश इस सच्चाई को भी साबित करता है कि यहोवा ही सबका जीवनदाता है और इसलिए वह उन सभी इंसानों से हिसाब लेगा जो जीवन और खून का अनादर करते हैं।—भजन 36:9.
5, 6. मूसा के कानून में यह कैसे दिखाया गया कि खून पवित्र भी है और अनमोल भी? (“जानवरों के जीवन का आदर कीजिए” नाम का बक्स भी देखिए।)
5 मूसा के कानून से भी ये दो बुनियादी सच्चाइयाँ साफ पता लगती हैं कि खून पवित्र है और जीवन की निशानी है। लैव्यव्यवस्था 17:10, 11 कहता है, ‘अगर कोई किसी भी जीव का खून खाता है, तो मैं उसे बेशक ठुकरा दूँगा और उसे मौत की सज़ा दूँगा। क्योंकि हरेक जीवित प्राणी की जान उसके खून में है। और मैंने खुद यह इंतज़ाम ठहराया है कि खून वेदी पर उँडेला जाए ताकि तुम्हारी जान के लिए प्रायश्चित हो, क्योंकि खून में ही जान है और खून से ही पापों का प्रायश्चित किया जा सकता है।’a—“खून की प्रायश्चित करने की शक्ति” नाम का बक्स देखिए।
6 अगर किसी जानवर को हलाल करने के बाद उसका खून वेदी पर नहीं डाला जाता तो उसे ज़मीन पर उँडेल देना था। ऐसा करना इस बात की निशानी था कि यह जीवन इसके असली मालिक, परमेश्वर को लौटाया जा रहा है। (व्यवस्थाविवरण 12:16; यहेजकेल 18:4) लेकिन गौर कीजिए कि इसराएलियों से यह नहीं कहा गया था कि वे जानवरों के माँस से खून का आखिरी कतरा तक निकालने के लिए हद-से-ज़्यादा एहतियात बरतें। अगर एक जानवर सही ढंग से हलाल किया गया है और उसका खून बहने दिया गया है, तो एक इसराएली जीवनदाता को आदर दे चुका होता। अब वह साफ ज़मीर के साथ उसका माँस खा सकता था।
7. दाविद ने कैसे दिखाया कि वह खून को पवित्र समझता था?
7 दाविद ऐसा इंसान था जो परमेश्वर के “दिल को भाता” था। (प्रेषितों 13:22) वह उन सिद्धांतों को अच्छी तरह समझ पाया था जिनकी वजह से परमेश्वर ने खून के बारे में कानून दिया था। एक बार जब वह बहुत प्यासा था तो उसके तीन आदमी जान हथेली पर रखकर दुश्मनों की छावनी में घुस गए और उसके लिए एक कुएँ से पानी भर लाए। दाविद ने तब क्या किया? उसने कहा, “मैं इन आदमियों का खून कैसे पी सकता हूँ जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डाल दी थी?” दाविद की नज़रों में वह पानी एक मायने में उसके आदमियों के खून के बराबर था। इसलिए प्यासा होने पर भी उसने वह पानी “यहोवा के सामने उँडेल दिया।”—2 शमूएल 23:15-17.
8, 9. मसीही मंडली के वजूद में आने के बाद क्या खून और जीवन के बारे में परमेश्वर का नज़रिया बदल गया? समझाइए।
8 जैसे पहले बताया गया है, यहोवा ने जलप्रलय से बचनेवाले नूह को ही सबसे पहले खून के बारे में कानून दिया था। फिर 900 साल बाद खून के बारे में यही मनाही मूसा के कानून में दोहरायी गयी। इसके करीब 1,500 साल बाद यहोवा ने खून के बारे में यही आज्ञा फिर से दोहरायी। उसने शुरू की मसीही मंडली के शासी निकाय को यह लिखने के लिए प्रेरित किया, “हम पवित्र शक्ति की मदद से इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि इन ज़रूरी बातों को छोड़ हम तुम पर और बोझ न लादें कि तुम मूरतों को बलि की हुई चीज़ों से, खून से, गला घोंटे हुए जानवरों के माँस से और नाजायज़ यौन-संबंध से हमेशा दूर रहो।”—प्रेषितों 15:28, 29.
9 यह साफ है कि पहली सदी में शासी निकाय को इस बात की समझ थी कि खून पवित्र है और इसका गलत इस्तेमाल करना उतना ही गंभीर पाप है जितना कि मूर्तिपूजा में हिस्सा लेना या नाजायज़ यौन-संबंध रखना। आज सच्चे मसीही भी यही मानते हैं। खून के इस्तेमाल के बारे में वे हर छोटी-से-छोटी बात के लिए नियमों की उम्मीद नहीं करते, बल्कि वे बाइबल के सिद्धांतों पर सोचते हैं और उन्हें लागू करके ऐसे फैसले कर पाते हैं जिनसे यहोवा खुश हो।
इलाज में खून का इस्तेमाल
10, 11. (क) खून और उसके चार खास घटकों को अपने शरीर में चढ़वाने के बारे में यहोवा के साक्षियों का क्या मानना है? (ख) खून के इस्तेमाल से जुड़े किन मामलों में शायद मसीहियों का नज़रिया अलग-अलग हो?
10 यहोवा के साक्षी इस बात को समझते हैं कि ‘खून से दूर’ रहने का मतलब है कि इलाज के लिए अपने शरीर में खून न चढ़वाना, न रक्तदान करना, न ही ज़रूरत के वक्त इस्तेमाल के लिए अपना ही खून जमा करवाना। वे इस बारे में परमेश्वर के कानून की इज़्ज़त करते हैं और इसलिए वे इलाज के लिए न सिर्फ खून चढ़वाने से इनकार करते हैं, बल्कि खून जिन चार खास घटकों से बना है, उन्हें भी अपने इलाज में इस्तेमाल नहीं करते। खून के ये चार घटक हैं: लाल रक्त कोशिकाएँ, श्वेत रक्त कोशिकाएँ, प्लेटलेट्स और प्लाज़मा।
11 आज आधुनिक तकनीक की मदद से खून के इन चार घटकों में से छोटे-छोटे पदार्थ या अंश निकाले जाते हैं, जिनका इलाज में अलग-अलग तरह से इस्तेमाल किया जाता है। क्या एक मसीही इलाज के लिए ऐसे पदार्थ या अंश स्वीकार कर सकता है? क्या वह इन्हें सिर्फ एक पदार्थ समझता है या इन्हें “खून” मानता है? इस मामले पर हर किसी को अपना फैसला खुद करना होगा। यही बात इलाज के कई तरीकों पर भी लागू होती है जैसे हिमो-डाइलिसिस, हिमो-डाइल्युशन और सैल साल्वेज जिसमें मशीनों के ज़रिए हमारा अपना ही खून हमारे शरीर में वापस पहुँचाया जाता है, बशर्ते इन तरीकों का इस्तेमाल करते वक्त खून को हमारे शरीर से निकालकर अलग जमा न किया गया हो।—“खून में से निकाले गए पदार्थ और इलाज के तरीके” नाम का अतिरिक्त लेख देखिए।
12. अपने ज़मीर के हिसाब से फैसला करने के मामलों में हमें किस बात का ध्यान रखना चाहिए?
12 ऐसे मामलों में हममें से हरेक का निजी फैसला क्या यहोवा की नज़र में अहमियत रखता है? बिलकुल रखता है। यहोवा इस बात पर बहुत ध्यान देता है कि हम क्या सोचते हैं और किस इरादे से कोई फैसला कर रहे हैं। (नीतिवचन 17:3; 24:12 पढ़िए।) इसलिए फैसला करने से पहले यहोवा से प्रार्थना करके मदद माँगिए कि आपको सही राह दिखाए। फिर इलाज में इस्तेमाल होनेवाली दवा या इलाज के तरीके के बारे में खोजबीन कीजिए। यह सब करने के बाद बाइबल से सिखाए गए अपने ज़मीर की आवाज़ सुनिए और फैसला कीजिए। (रोमियों 14:2, 22, 23) बेशक, दूसरों को अपने फैसले हम पर नहीं थोपने चाहिए, और न ही हमें किसी से पूछना चाहिए कि “अगर आप मेरी जगह होते तो क्या करते?” इलाज के ऐसे मामलों में हर मसीही को “अपना बोझ खुद” उठाना चाहिए।b—गलातियों 6:5; रोमियों 14:12; “क्या मैं खून को पवित्र समझता हूँ?” नाम का बक्स देखिए।
यहोवा के नियम—पिता के प्यार का सबूत
13. यहोवा के सिद्धांत और कानून उसके बारे में क्या सबूत देते हैं? मिसाल देकर समझाइए।
13 बाइबल में पाए जानेवाले कानून और सिद्धांत न सिर्फ इस बात का सबूत देते हैं कि यहोवा एक बुद्धिमान कानून-साज़ है, बल्कि वह प्यार करनेवाला पिता भी है, जो अपने बच्चों की खुशहाली चाहता है। (भजन 19:7-11) हालाँकि ‘खून से दूर’ रहने का आदेश अच्छी सेहत बनाए रखने के लिए नहीं दिया गया था, मगर इसे मानने से हम इलाज से जुड़ी उन समस्याओं से ज़रूर बचते हैं जो खून चढ़वानेवालों को झेलनी पड़ती हैं। (प्रेषितों 15:20) आज इलाज के क्षेत्र में काम करनेवाले बहुतों का मानना है कि बिना खून के ऑपरेशन कराना, आज के ज़माने में इलाज का सबसे बेहतरीन तरीका है। चिकित्सा क्षेत्र के लोगों का इन नतीजों पर पहुँचना सच्चे मसीहियों के इस यकीन को और भी पक्का करता है कि यहोवा की बुद्धि अथाह है और एक पिता के नाते वह हमसे बेइंतहा प्यार करता है।—यशायाह 55:9 पढ़िए; यूहन्ना 14:21, 23.
14, 15. (क) परमेश्वर के कौन-से नियम दिखाते हैं कि वह अपने लोगों से प्यार करता है? (ख) ये सुरक्षा नियम जिन सिद्धांतों पर आधारित थे, उन पर आप कैसे चल सकते हैं?
14 यहोवा अपने लोगों की कितनी परवाह करता है, यह हम उन कानूनों से देख सकते हैं जो उसने पुराने ज़माने में इसराएलियों को दिए थे। मिसाल के लिए, परमेश्वर ने उन्हें यह नियम दिया था कि वे घर की छत पर मुँडेर बनाएँ ताकि कोई हादसा न हो। इसकी वजह यह थी कि इसराएल में घर की छत पर बहुत-से काम किए जाते थे और वहाँ काफी चहल-पहल रहती थी। (व्यवस्थाविवरण 22:8; 1 शमूएल 9:25, 26; नहेमायाह 8:16; प्रेषितों 10:9) एक और नियम यह था कि ऐसे बैलों को बाँधकर रखा जाए जिनसे दूसरों की जान को खतरा हो सकता है। (निर्गमन 21:28, 29) इन आज्ञाओं को मानने में लापरवाह होना यह दिखाता कि एक इंसान दूसरों के भले की ज़रा भी परवाह नहीं करता और इस वजह से वह किसी की मौत का ज़िम्मेदार भी हो सकता था।
15 आप कैसे उन सिद्धांतों पर चल सकते हैं जिनके आधार पर ये नियम दिए गए थे? क्या आपकी गाड़ी अच्छी हालत में है? गाड़ी चलाते वक्त क्या आप सुरक्षा का ध्यान रखते हैं? क्या आपका घर अच्छी हालत में है? आपके घर में पल रहे जानवरों से आपको या किसी और को कोई खतरा तो नहीं? आप जहाँ काम करते हैं, उस जगह के बारे में क्या? क्या आपका मनोरंजन आपके लिए खतरनाक है? कुछ देशों में जवानों की मौत की सबसे बड़ी वजह दुर्घटनाएँ होती हैं, क्योंकि वे बेवजह जान का जोखिम लेते हैं। मगर जो नौजवान परमेश्वर के प्यार के लायक बने रहना चाहते हैं वे जीवन को अनमोल समझते हैं और मज़े के लिए खतरों से नहीं खेलते। वे जवानी के जोश में होश नहीं खोते और यह नहीं सोचते कि वे चाहे कितने ही खतरों से खेलें उन्हें कुछ नहीं होगा। इसके बजाय, वे एहतियात बरतते हैं ताकि नुकसान पहुँचानेवाली बातों से दूर रहें और इस तरह अपनी जवानी का मज़ा उठाते हैं।—सभोपदेशक 11:9, 10.
16. गर्भपात करवाना बाइबल के किस सिद्धांत के मुताबिक गलत है? (फुटनोट भी देखिए।)
16 यहाँ तक कि अजन्मे शिशु की जान भी परमेश्वर की नज़र में अनमोल है। प्राचीन इसराएल में अगर कोई किसी गर्भवती औरत को चोट पहुँचाता और इस वजह से वह औरत या उसका बच्चा मर जाता तो चोट पहुँचानेवाला, परमेश्वर की नज़र में कातिल ठहरता और उसे ‘जान के बदले जान’ देनी होती थी।c (निर्गमन 21:22, 23 पढ़िए।) ज़रा सोचिए, आज यहोवा को यह देखकर कैसा लगता होगा कि हर साल ऐसे अनगिनत बच्चों को गर्भपात से जानबूझकर मार डाला जाता है, क्योंकि वे या तो नाजायज़ संबंधों का अंजाम होते हैं या उन्हें आज़ादी में रोड़ा समझा जाता है!
17. अगर किसी औरत ने परमेश्वर के स्तरों के बारे में जानने से पहले अपना गर्भ गिराया हो तो आप उसे कैसे दिलासा देंगे?
17 अगर किसी औरत ने बाइबल की सच्चाई जानने से पहले अपना गर्भ गिराया हो तो उसके बारे में क्या? क्या परमेश्वर उस पर दया करके उसे माफ करेगा? अगर एक इंसान सच्चे दिल से पश्चाताप करता है तो वह उम्मीद कर सकता है कि यीशु के बहाए गए खून के आधार पर यहोवा उसे ज़रूर माफ करेगा। (भजन 103:8-14; इफिसियों 1:7) दरअसल खुद मसीह ने कहा था, “मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ कि वे पश्चाताप करें।”—लूका 5:32.
मन से नफरत निकालिए!
18. बाइबल, खून-खराबे की असली वजह के बारे में क्या बताती है?
18 यहोवा यह नहीं चाहता कि हम बस दूसरों को चोट न पहुँचाएँ। इसके बजाय, वह चाहता है कि हम नफरत की भावना को ही दिल से उखाड़ फेंकें, क्योंकि इसी नफरत की वजह से आज तक इतना खून-खराबा हुआ है। प्रेषित यूहन्ना ने लिखा, “हर कोई जो अपने भाई से नफरत करता है वह कातिल है।” (1 यूहन्ना 3:15) ऐसा इंसान न सिर्फ अपने भाई को नापसंद करता है, बल्कि यह चाहता है कि उसे मौत आ जाए। उसकी दुश्मनी कई तरीकों से ज़ाहिर होती है। वह अपने भाई को नुकसान पहुँचाने के इरादे से उसे बदनाम करता है या उस पर ऐसे झूठे और संगीन इलज़ाम लगाता है जिनका कसूरवार परमेश्वर से सज़ा पाने के लायक होता है। (लैव्यव्यवस्था 19:16; व्यवस्थाविवरण 19:18-21; मत्ती 5:22) तो यह कितना ज़रूरी है कि हम किसी का बुरा चाहने के खयाल को भी अपने दिल से फौरन निकाल फेंकें!—याकूब 1:14, 15; 4:1-3.
19. बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक चलनेवाला इंसान भजन 11:5 और फिलिप्पियों 4:8, 9 जैसी आयतों के बारे में क्या नज़रिया रखता है?
19 जो लोग यहोवा की तरह जीवन को अनमोल समझते हैं और उसके प्यार के लायक बने रहना चाहते हैं, वे हर तरह की हिंसा से भी दूर रहते हैं। भजन 11:5 कहता है, ‘यहोवा हिंसा से प्यार करनेवाले से नफरत करता है।’ यहोवा को किस बात से नफरत है, यह बताने के अलावा, इस आयत में एक सिद्धांत दिया गया है कि हम किस तरह की ज़िंदगी जीएँ। परमेश्वर से प्यार करनेवालों को यह आयत उभारती है कि वे ऐसे किसी भी किस्म के मनोरंजन से दूर रहें, जिससे उन्हें मार-पीट और खून-खराबा देखने का चस्का लग जाए। उसी तरह, यहोवा “शांति का परमेश्वर” है, यह आयत उसके सेवकों को उभारती है कि वे अपने दिल और दिमाग को ऐसी बातों से भरें जो चाहने लायक हैं, सद्गुण की हैं, तारीफ के लायक हैं और जिनसे शांति कायम करने में मदद मिलती है।—फिलिप्पियों 4:8, 9 पढ़िए।
ऐसे संगठनों से दूर रहिए जो खून बहाने के दोषी हैं
20-22. दुनिया की तरफ मसीही कैसा रुख अपनाते हैं? और क्यों?
20 परमेश्वर की नज़र में शैतान की पूरी दुनिया खून की दोषी है। इसकी राजनैतिक व्यवस्था को शास्त्र में खूँखार जानवरों जैसा बताया गया है। इन संगठनों ने करोड़ों लोगों का खून बहाया है, जिनमें यहोवा के कई सेवक भी थे। (दानियेल 8:3, 4, 20-22; प्रकाशितवाक्य 13:1, 2, 7, 8) इन वहशी ताकतों का साथ देनेवाले व्यापार जगत और विज्ञान ने ऐसे-ऐसे खौफनाक हथियार बनाए हैं जिनके बारे में हम सोच भी नहीं सकते और इन हथियारों के व्यापार से उन्होंने बेशुमार दौलत कमायी है। यह बात कितनी सच है कि “सारी दुनिया शैतान के कब्ज़े में पड़ी हुई है”!—1 यूहन्ना 5:19.
21 यीशु के चेले “दुनिया के नहीं” हैं और दुनिया की राजनीति और युद्धों में पूरी तरह निष्पक्ष रहते हैं। इसलिए वे निजी तौर पर और सामाजिक तौर पर किसी के खून के दोषी नहीं हैं।d (यूहन्ना 15:19; 17:16) जब दूसरे उन पर ज़ुल्म ढाते हैं तो मसीह के चेले उसके नक्शे-कदम पर चलते हैं और बदले में अपने सतानेवालों के साथ मार-पीट नहीं करते। इसके बजाय, वे अपने दुश्मनों से भी प्यार करते हैं, यहाँ तक कि उनके लिए प्रार्थना करते हैं।—मत्ती 5:44; रोमियों 12:17-21.
22 दुनिया-भर में साम्राज्य की तरह फैला झूठा धर्म यानी “महानगरी बैबिलोन” सबसे ज़्यादा खून की दोषी है। इसलिए सच्चे मसीही उसके साथ कोई नाता नहीं रखते। वे हर हाल में उससे दूरी बनाए रखते हैं क्योंकि परमेश्वर का वचन कहता है कि उस “नगरी में भविष्यवक्ताओं, पवित्र जनों और उन सबका खून पाया गया जिनका धरती पर कत्ल किया गया था।” इसलिए हमें यह चेतावनी दी गयी है: “मेरे लोगो, उसमें से बाहर निकल आओ।”—प्रकाशितवाक्य 17:6; 18:2, 4, 24.
23. महानगरी बैबिलोन से निकल आने का मतलब क्या है?
23 महानगरी बैबिलोन से निकल आने का मतलब बस इतना नहीं कि हम उसके किसी संगठन के रजिस्टर से अपना नाम कटवा लें। इसके लिए यह भी ज़रूरी है कि हम उन बुराइयों से नफरत करें जिन्हें झूठा धर्म मंज़ूर करता है या जिनकी सरेआम वकालत करता है। जैसे अनैतिकता, राजनीति में हिस्सा लेना और हर कीमत पर दौलत हासिल करने का जुनून। (भजन 97:10 पढ़िए; प्रकाशितवाक्य 18:7, 9, 11-17) ऐसे कामों की वजह से कितनी ही बार खून की नदियाँ बहायी गयी हैं!
24, 25. (क) अगर कोई खून बहाने का दोषी है, मगर वह पश्चाताप करता है तो परमेश्वर किस आधार पर उस पर दया कर सकता है? (ख) यह हमें इसराएलियों के ज़माने के किस इंतज़ाम की याद दिलाता है?
24 अपने समर्पण और बपतिस्मे से पहले हममें से हर कोई किसी-न-किसी तरीके से शैतान की दुनिया का साथ दे रहा था। इसलिए दुनिया के साथ-साथ हम भी कुछ हद तक खून बहाने के दोषी थे। मगर हमने अपनी ज़िंदगी में बदलाव किए, मसीह के फिरौती बलिदान पर विश्वास किया और अपना जीवन परमेश्वर को समर्पित किया। इस वजह से परमेश्वर ने हम पर दया की और अब हम उसकी हिफाज़त में हैं। (प्रेषितों 3:19) यह हिफाज़त हमें शरण नगरों की याद दिलाती है जो इसराएलियों के ज़माने में हुआ करते थे।—गिनती 35:11-15; व्यवस्थाविवरण 21:1-9.
25 शरण नगर क्यों बनाए गए थे? अगर एक इसराएली गलती से किसी की जान ले लेता, तो उसे एक शरण नगर में भाग जाना होता था। तब वहाँ के काबिल न्यायी उसके बारे में फैसला सुनाते। इसके बाद उसे तब तक उस शरण नगर में रहना होता था जब तक कि महायाजक की मौत नहीं हो जाती। इसके बाद उसे शरण नगर छोड़कर कहीं भी रहने की आज़ादी थी। इस बेहतरीन इंतज़ाम से हम समझ सकते हैं कि परमेश्वर दयालु होने के साथ-साथ इंसान के जीवन को कितना अनमोल समझता है! आज भी परमेश्वर ने हमारे लिए पुराने ज़माने के शरण नगरों जैसा कुछ इंतज़ाम किया है। इस इंतज़ाम का आधार मसीह का फिरौती बलिदान है। हम इंसान, जो गलती से जीवन और खून की पवित्रता के बारे में परमेश्वर की आज्ञा तोड़ने के गुनहगार हैं, इस इंतज़ाम की बदौलत मौत की सज़ा से बचाए जाते हैं। क्या आप इस इंतज़ाम की कदर करते हैं? आप अपनी कदर कैसे दिखा सकते हैं? एक तरीका है, दूसरों को भी न्यौता देना कि वे भी हिफाज़त के लिए किए गए इस इंतज़ाम का फायदा उठाएँ क्योंकि “महा-संकट” बड़ी तेज़ी से नज़दीक आ रहा है।—मत्ती 24:21; 2 कुरिंथियों 6:1, 2.
राज का संदेश सुनाकर जीवन के लिए कदर दिखाइए
26-28. आज हमारे कंधों पर कैसे वही ज़िम्मेदारी है जो एक वक्त पर यहेजकेल के कंधों पर थी? हम परमेश्वर के प्यार के लायक कैसे बने रह सकते हैं?
26 आज के ज़माने में परमेश्वर के लोगों पर वही ज़िम्मेदारी है जो एक वक्त पर यहेजकेल भविष्यवक्ता के कंधों पर थी। यहोवा ने उसे इसराएल राष्ट्र के लिए एक पहरेदार का काम सौंपा ताकि वह परमेश्वर की तरफ से आनेवाली मुसीबत के बारे में चेतावनी दे। परमेश्वर ने उससे कहा, “जब तू मेरे मुँह से कोई संदेश सुनता है, तो जाकर मेरी तरफ से लोगों को चेतावनी देना।” अगर यहेजकेल अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने में लापरवाही बरतता, तो उसे उन सभी के खून का दोषी ठहराया जाता जो यरूशलेम के नाश के वक्त मारे जाते। (यहेजकेल 33:7-9) मगर यहेजकेल ने परमेश्वर की आज्ञा मानी और इसलिए वह किसी के खून का दोषी नहीं हुआ।
27 आज हमारे दिनों में शैतान की सारी दुनिया का अंत होनेवाला है। इसलिए यहोवा के साक्षी मानते हैं कि राज का संदेश सुनाने के साथ-साथ “परमेश्वर के बदला लेने के दिन” का प्रचार करना न सिर्फ उनकी ज़िम्मेदारी है बल्कि उनके लिए बड़े सम्मान की बात है। (यशायाह 61:2; मत्ती 24:14) क्या आप भी इस ज़रूरी काम में पूरी तरह लगे हुए हैं? प्रेषित पौलुस ने प्रचार करने की अपनी ज़िम्मेदारी को बहुत गंभीरता से लिया और उसे पूरा किया। इसी वजह से वह कह सका, “मैं सब लोगों के खून से निर्दोष हूँ। क्योंकि मैं परमेश्वर की मरज़ी के बारे में तुम्हें सारी बातें बताने से पीछे नहीं हटा।” (प्रेषितों 20:26, 27) पौलुस हम सबके लिए क्या ही बढ़िया मिसाल है!
28 बेशक, एक पिता के नाते यहोवा हमसे बहुत प्यार करता है। लेकिन अगर हम यहोवा का प्यार और स्नेह पाने के लायक बनना चाहते हैं, तो इतना काफी नहीं कि हम जीवन और खून को उसी तरह अनमोल समझें जैसे वह समझता है। इसके साथ-साथ हमें यहोवा की नज़र में शुद्ध या पवित्र होने की ज़रूरत है। इस बारे में हम अगले अध्याय में चर्चा करेंगे।
a “हरेक जीवित प्राणी की जान उसके खून में है,” परमेश्वर की इस बात के बारे में साइंटिफिक अमेरिकन पत्रिका कहती है, “हालाँकि यह बात सच है कि खून को जीवन का एक रूपक या निशानी कहा जा सकता है, मगर असलियत में भी यह बात सौ फीसदी सच है क्योंकि जीवन के लिए हर किस्म की रक्त-कोशिका बेहद ज़रूरी है।”
b नवंबर 2006 की हमारी राज्य सेवकाई का इंसर्ट और 15 जून, 2004 की प्रहरीदुर्ग के पेज 19-24 देखिए, जिन्हें यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
c कुछ बाइबलों में इस आयत का अनुवाद इस तरह किया गया है कि सिर्फ माँ की मौत होने पर ही चोट पहुँचानेवाले को मौत की सज़ा दी जाए। मगर बाइबल के शब्दों का अध्ययन करनेवाले कहते हैं कि इब्रानी पाठ में यह आयत जिस तरह से लिखी गयी है उससे “यह मतलब निकलना नामुमकिन है कि इसमें सिर्फ औरत को चोट लगने पर सज़ा देने की बात कही गयी है।” यह भी गौर कीजिए कि इस आयत के मुताबिक गर्भवती औरत को चोट पहुँचानेवाले की सज़ा इस बात से तय नहीं होती थी कि गर्भ कितने महीने का था। अगर जान ली गयी, तो बदले में जान देनी पड़ती थी।
d अध्याय 5 “दुनिया से अलग कैसे रहें” देखिए।
e ज़्यादा जानकारी के लिए “खून में से निकाले गए पदार्थ और इलाज के तरीके” नाम का अतिरिक्त लेख देखिए।