मसीह—परमेश्वर की शक्ति है
‘मसीह, परमेश्वर की शक्ति है।’—1 कुरिं. 1:24.
1. पौलुस क्यों कह सका कि ‘मसीह, परमेश्वर की शक्ति है’?
यहोवा ने अपनी शक्ति यीशु मसीह के ज़रिए कई अनोखे तरीकों से ज़ाहिर की। यीशु ने धरती पर रहते वक्त जो चमत्कार किए, उनमें से कुछ खुशखबरी की चार किताबों में दर्ज़ हैं। इन चमत्कारों के बारे में दी जानकारी पढ़कर हमारा विश्वास मज़बूत होता है। उसने ऐसे ही और भी कई चमत्कार किए थे। (मत्ती 9:35; लूका 9:11) जी हाँ, यहोवा ने यीशु को ज़बरदस्त शक्ति दी थी। इसी वजह से प्रेषित पौलुस उसके बारे में कह सका, ‘मसीह, परमेश्वर की शक्ति है।’ (1 कुरिं. 1:24) लेकिन यीशु के चमत्कारों का हमारी ज़िंदगी पर क्या असर हो सकता है?
2. हम यीशु के चमत्कारों से क्या सीख सकते हैं?
2 प्रेषित पतरस ने बताया कि यीशु ने “चमत्कार किए।” (प्रेषि. 2:22) धरती पर रहते वक्त यीशु ने जो चमत्कार किए उनसे हम क्या सीखते हैं? उनसे हम सीखते हैं कि यीशु अपनी हज़ार साल की हुकूमत में कैसे-कैसे काम करेगा। उस वक्त वह और भी बड़े-बड़े चमत्कार करेगा, जिनसे धरती पर रहनेवाले सभी इंसानों को फायदा होगा। यीशु के चमत्कारों से हम उसकी और उसके पिता की शख्सियत को और भी अच्छी तरह समझ पाते हैं। आइए अब हम यीशु के किए तीन चमत्कारों पर गौर करें और देखें कि ये आज और भविष्य में हमारी ज़िंदगी पर कैसे असर कर सकते हैं।
एक चमत्कार जो दरियादिली सिखाता है
3. (क) यीशु ने अपना पहला चमत्कार क्यों किया? (ख) काना में यीशु ने कैसे दरियादिली दिखायी?
3 यीशु ने अपना पहला चमत्कार गलील के काना नाम के एक कसबे में एक शादी में किया था। शायद शादी में उम्मीद से ज़्यादा मेहमान आए होंगे। बात चाहे जो भी हो, वहाँ दाख-मदिरा कम पड़ गयी थी। नए शादीशुदा जोड़े के लिए यह बहुत शर्म की बात थी क्योंकि शादी में आए मेहमानों को खिलाना-पिलाना उनका फर्ज़ था। इन मेहमानों में यीशु की माँ, मरियम भी थी। बेशक उसके बेटे के बारे में भविष्यवाणियों में जितने वादे किए गए थे, उन पर उसने कई सालों तक मनन किया होगा। वह जानती थी कि यीशु “परम-प्रधान का बेटा” कहलाएगा। (लूका 1:30-32; 2:52) क्या उसे लगता था कि उसके अंदर कुछ ऐसी शक्तियाँ हैं, जो अभी तक ज़ाहिर नहीं हुई हैं? हो सकता है, लेकिन एक बात तो पक्की है, वहाँ मरियम और यीशु उस नए जोड़े की मदद करना चाहते थे और उन्हें शर्मिंदा होते नहीं देखना चाहते थे। इसलिए यीशु ने 380 लीटर पानी को “बढ़िया दाख-मदिरा” में बदल दिया। (यूहन्ना 2:3, 6-11 पढ़िए।) क्या यह चमत्कार करना यीशु का फर्ज़ था? जी नहीं। उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसे लोगों की फिक्र थी और वह दरियादिली दिखाकर स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता की मिसाल पर चल रहा था।
4, 5. (क) यीशु के पहले चमत्कार से हम क्या सीख सकते हैं? (ख) काना में यीशु ने जो चमत्कार किया उससे भविष्य के बारे में क्या पता चलता है?
4 यीशु ने चमत्कार करके बहुत सारी बढ़िया दाख-मदिरा बनायी, जो एक बड़े समूह के लिए काफी थी। इस चमत्कार से हम क्या सीख सकते हैं? यही कि यहोवा और यीशु कंजूस नहीं हैं, बल्कि वे बहुत दरियादिल हैं। इससे हमें यह भी यकीन हो जाता है कि वे लोगों की भावनाएँ अच्छी तरह समझते हैं। इस चमत्कार से यह भी ज़ाहिर होता है कि यहोवा अपनी शक्ति से नयी दुनिया में “सब देशों के लोगों” को भरपूर खाना देगा।—यशायाह 25:6 पढ़िए।
5 ज़रा सोचिए बहुत जल्द ऐसा समय आएगा जब यहोवा सब लोगों को वह सारी चीज़ें देगा जिनकी उन्हें वाकई ज़रूरत होगी। हर किसी के पास बढ़िया घर और बढ़िया खाना होगा। जब हम यह सोचते हैं कि कैसे यहोवा फिरदौस बनी धरती पर हमें भरपूर आशीषें देगा तो हमारा दिल एहसान से उमड़ने लगता है!
6. (क) यीशु ने अपनी चमत्कार करने की शक्ति का हमेशा किसके लिए इस्तेमाल किया? (ख) इस मामले में हम कैसे यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं?
6 यीशु ने कभी-भी अपनी शक्ति का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए नहीं किया। ज़रा उस समय के बारे में सोचिए जब शैतान ने यीशु को फुसलाया कि वह चमत्कार करके पत्थरों को रोटियाँ बना दे। तब यीशु ने अपनी शक्ति का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने से साफ इनकार कर दिया। (मत्ती 4:2-4) लेकिन उसने दूसरों की ज़रूरत पूरी करने के लिए अपनी शक्ति का इस्तेमाल ज़रूर किया। हम कैसे यीशु की तरह दूसरों के लिए बिना किसी स्वार्थ के परवाह दिखा सकते हैं? यीशु ने हमें बढ़ावा दिया कि “दिया करो।” (लूका 6:38) यह हम कैसे कर सकते हैं? हम दूसरों को अपने घर खाने पर या आध्यात्मिक दावत का मज़ा लेने के लिए बुला सकते हैं। सभा के बाद हम उनके साथ थोड़ा समय बिता सकते हैं जिन्हें किसी मदद की ज़रूरत है। जैसे जब कोई भाई अपने भाषण का अभ्यास करता है तो हम सुन सकते हैं। हम प्रचार सेवा में भी भाई-बहनों को व्यवहारिक तरीकों से मदद दे सकते हैं और उन्हें कारगर सुझाव दे सकते हैं। हमसे जो भी हो सकता है या जैसे भी हो सकता है उस हिसाब से जब हम खुशी-खुशी दूसरों की मदद करते हैं, तो हम यीशु की तरह दरियादिली दिखा रहे होते हैं।
“सब लोगों ने भरपेट खाया”
7. जब तक शैतान की दुनिया है, तब तक कौन-सी समस्या रहेगी?
7 गरीबी कोई नयी समस्या नहीं है। यहोवा ने इसराएलियों से कहा था कि “देश में दरिद्र तो सदा पाए जाएँगे।” (व्यव. 15:11) सदियों बाद यीशु ने कहा, “गरीब तो हमेशा तुम्हारे साथ होंगे।” (मत्ती 26:11) क्या यीशु के कहने का मतलब था कि धरती पर हमेशा गरीब लोग होंगे? नहीं। दरअसल उसके कहने का मतलब था कि जब तक शैतान की दुनिया है, तब तक गरीबी रहेगी। नयी दुनिया में जीना कितना अलग होगा! उस वक्त गरीबी का नामो-निशान नहीं होगा। किसी को खाने की कोई कमी नहीं होगी और सब संतुष्ट होंगे!
8, 9. (क) यीशु ने हज़ारों लोगों को खाना क्यों खिलाया? (ख) इस चमत्कार के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?
8 भजनहार ने यहोवा के बारे में कहा, “तू अपनी मुट्ठी खोलकर, सब प्राणियों को आहार से तृप्त करता है।” (भज. 145:16) धरती पर रहते वक्त यीशु ने बिलकुल अपने पिता जैसे काम किए। उसने अकसर दूसरों की ज़रूरतें पूरी कीं। उसने ऐसा यह दिखाने के लिए नहीं किया कि वह कितना शक्तिशाली है बल्कि उसे सचमुच लोगों की परवाह थी। आइए हम मत्ती 14:14-21 (पढ़िए।) पर चर्चा करें। यीशु के पीछे भीड़-की-भीड़ शहरों से पैदल चलकर आयी थी। (मत्ती 14:13) शाम होते-होते चेलों को चिंता होने लगी कि लोग थके हुए और भूखे हैं। इसलिए उन्होंने यीशु से कहा कि वह भीड़ को विदा कर दे, ताकि वे आस-पास के गाँवों में जाकर खाने के लिए कुछ खरीद लें। इस पर यीशु ने क्या किया?
9 पाँच रोटियों और दो मछलियों से यीशु ने 5,000 आदमियों को और उनके अलावा औरतों और बच्चों को भी खाना खिलाया। यीशु ने यह चमत्कार क्यों किया? क्योंकि वह लोगों से सच्चा प्यार करता था और उनकी परवाह करता था। यीशु ने उन्हें ज़रूर भरपूर खाना दिया होगा क्योंकि भीड़ में “सब लोगों ने भरपेट खाया।” यीशु ने उन्हें सिर्फ खाना चखाया नहीं बल्कि पूरा खाना खिलाया ताकि उन्हें घर वापस जाने में लंबा सफर तय करने की ताकत मिल सके। (लूका 9:10-17) जब सबने भरपेट खा लिया इसके बाद चेलों ने बचा हुआ खाना जमा किया और उससे 12 टोकरियाँ भर गयीं!
10. बहुत जल्द गरीबी का क्या होगा?
10 लालची और भ्रष्ट शासकों की वजह से लाखों लोग गरीबी की मार झेल रहे हैं। यहाँ तक कि हमारे कुछ भाइयों के पास भी खाने की कमी है। लेकिन जो लोग यहोवा की आज्ञा मानते हैं वे जल्द ही एक ऐसी दुनिया में रहेंगे जहाँ न भ्रष्टाचार होगा और न गरीबी। यहोवा सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। इस नाते उसके पास हर व्यक्ति की ज़रूरतें पूरी करने की ताकत है और वह ऐसा करना चाहता भी है। वह वादा करता है कि वह जल्द ही सब दुख-तकलीफों का अंत कर देगा!—भजन 72:16 पढ़िए।
11. (क) आप क्यों यह यकीन रख सकते हैं कि जल्द ही यीशु पूरी धरती पर अपनी शक्ति का इस्तेमाल करेगा? (ख) इस वजह से आप क्या करना चाहेंगे?
11 जब यीशु धरती पर था, तो उसने एक छोटे-से इलाके में चमत्कार किए और वह भी सिर्फ साढ़े तीन साल के दौरान। (मत्ती 15:24) लेकिन एक राजा के तौर पर, यीशु अपनी हज़ार साल की हुकूमत में धरती के सभी इंसानों की मदद करेगा। (भज. 72:8) यीशु के चमत्कार दिखाते हैं कि वह अपनी शक्ति का इस्तेमाल हमारी भलाई के लिए करना चाहता है। हमारे पास तो चमत्कार करने की शक्ति नहीं है, तो फिर हम क्या कर सकते हैं? हम अपना समय और ताकत दूसरों को उस शानदार भविष्य के बारे में बताने में लगा सकते हैं जिसका बाइबल में वादा किया गया है। यहोवा के साक्षी होने के नाते ऐसा करना हमारी ज़िम्मेदारी है। (रोमि. 1:14, 15) जब हम इस बात पर मनन करेंगे कि यीशु जल्द ही क्या करेगा, तो हम इस बारे में दूसरों को बताने के लिए बेताब होंगे।—भज. 45:1; 49:3.
कुदरती शक्तियाँ यहोवा और यीशु के काबू में हैं
12. हम क्यों पूरे यकीन के साथ कह सकते हैं कि यीशु धरती के वातावरण से अच्छी तरह वाकिफ है?
12 जब परमेश्वर ने धरती और बाकी सारी चीज़ें बनायीं तब उसका इकलौता बेटा कुशल ‘कारीगर सा उसके पास था।’ (नीति. 8:22, 30, 31; कुलु. 1:15-17) इसलिए यीशु धरती के वातावरण से अच्छी तरह वाकिफ है। वह जानता है कि कुदरती शक्तियों का किस तरह इस्तेमाल करना और काबू में रखना है।
13, 14. एक उदाहरण देकर समझाइए कि यीशु कुदरती शक्तियों पर भी काबू पा सकता है।
13 जब यीशु धरती पर था, तब उसने कुदरती शक्तियों को काबू में करके दिखाया कि उसके पास परमेश्वर की शक्ति है। उदाहरण के लिए, सोचिए कि यीशु ने कैसे एक ज़ोरदार आँधी को काबू में किया। (मरकुस 4:37-39 पढ़िए।) बाइबल का एक विद्वान समझाता है कि मरकुस की किताब में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “ज़ोरदार आँधी” किया गया है, वह शब्द एक भयंकर तूफान या बवंडर के लिए इस्तेमाल होता है। इस शब्द से एक ऐसे तूफान की तसवीर सामने आती है जिसमें काले बादल, ज़ोरदार हवा की मार, बादलों की गड़गड़ाहट और मूसलाधार बारिश हो। ऐसे तूफान से जन-जीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है।
14 अब ज़रा कल्पना कीजिए। लहरें नाव से टकरा रही हैं और नाव में पानी भरता जा रहा है। तूफान का काफी शोर है और नाव डगमगाने लगी है। इस सबके बावजूद यीशु सो रहा है क्योंकि वह थका हुआ है। लेकिन चेले डरे हुए हैं इसलिए वे यीशु को जगाते हैं और उससे कहते हैं, “हम नाश होनेवाले हैं!” (मत्ती 8:25) इस पर यीशु क्या करता है? वह उठता है और आँधी और समुंदर से कहता है, “शश्श! खामोश हो जाओ!” (मर. 4:39) वह भयानक तूफान थम जाता है और वहाँ “बड़ा सन्नाटा” छा जाता है। कुदरती शक्तियों पर काबू पाने का यीशु ने क्या ही बेहतरीन सबूत दिया!
15. यहोवा ने कैसे दिखाया है कि वह कुदरती शक्तियों को काबू में कर सकता है?
15 यीशु को यहोवा ही शक्ति देता है, इसलिए हम जानते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कुदरती शक्तियों को काबू में कर सकता है। उदाहरण के लिए, जलप्रलय से पहले यहोवा ने कहा, “अब सात दिन और बीतने पर मैं पृथ्वी पर चालीस दिन और चालीस रात तक जल बरसाता रहूँगा।” (उत्प. 7:4) फिर निर्गमन 14:21 में हम पढ़ते हैं, “यहोवा ने . . . प्रचण्ड पुरवाई चलाई, और समुद्र को दो भाग” में बाँट दिया। योना 1:4 में हम पढ़ते हैं, “यहोवा ने समुद्र में एक प्रचण्ड आँधी चलाई, और समुद्र में बड़ी आँधी उठी, यहाँ तक कि जहाज़ टूटने पर था।” यह जानकर हमारा हौसला बढ़ता है कि यहोवा सभी कुदरती शक्तियों को काबू में कर सकता है। सच में धरती का भविष्य सही हाथों में है।
16. हमें यह जानकर क्यों दिलासा मिलता है कि यहोवा और यीशु कुदरती शक्तियों को काबू कर सकते हैं?
16 यह जानकर हमें कितना दिलासा मिलता है कि यहोवा और यीशु कुदरती शक्तियों को काबू कर सकते हैं। मसीह की हज़ार साल की हुकूमत में धरती पर रहनेवाला हर इंसान सुरक्षित होगा। कोई भी इंसान उस समय तूफान, सुनामी, ज्वालामुखी, भूकंप या ऐसी किसी भी कुदरती आफत का शिकार नहीं होगा। हमें किसी विपत्ति का डर या खौफ नहीं होगा क्योंकि “परमेश्वर का डेरा” इंसानों के बीच होगा। (प्रका. 21:3, 4) हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा, यीशु को हज़ार साल की हुकूमत के दौरान कुदरती शक्तियों पर काबू रखने की शक्ति ज़रूर देगा।
यहोवा और यीशु की मिसाल पर चलिए
17. एक तरीका क्या है, जिससे आज हम परमेश्वर और मसीह की मिसाल पर चल सकते हैं?
17 बेशक हम कुदरती आफतों को नहीं रोक सकते। ऐसा तो सिर्फ यहोवा और यीशु ही कर सकते हैं। लेकिन एक चीज़ हम ज़रूर कर सकते हैं। हम नीतिवचन 3:27 (पढ़िए।) लागू कर सकते हैं। जब हमारे भाई तकलीफों से गुज़रते हैं, तब हम उन्हें दिलासा दे सकते हैं। हम पैसों या दूसरी ज़रूरी चीज़ों से उनकी मदद कर सकते हैं, उनके साथ समय बिताकर उनका दर्द सुन सकते हैं और हौसला बढ़ानेवाली बातें कहकर उनकी हिम्मत बँधा सकते हैं। साथ ही, हम उपासना से जुड़े काम करने में उनकी मदद कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, जब हमारे भाई-बहन किसी कुदरती आफत के शिकार होते हैं तब हम इन तरीकों से उनकी मदद कर सकते हैं। एक भयंकर तूफान में एक विधवा बहन का घर टूटकर तहस-नहस हो गया था, वह कहती है, ‘मैं कितनी एहसानमंद हूँ कि मैं यहोवा के संगठन का एक हिस्सा हूँ। संगठन के भाई-बहनों ने न सिर्फ खाने-कपड़े जैसी चीज़ों से मेरी मदद की, बल्कि मुझे आध्यात्मिक तौर पर भी मदद दी।’ एक अविवाहित बहन का घर तूफान से काफी टूट गया था और इस वजह से वह निराश हो गयी थी। भाइयों ने उसके घर की मरम्मत करने में उसकी मदद की। वह कहती है, “मैं कैसा महसूस कर रही हूँ, यह मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती।” वह आगे कहती है, ‘यहोवा तेरा लाख-लाख शुक्रिया!’ हम कितने एहसानमंद हैं कि हमारे भाई-बहन सच में एक-दूसरे की ज़रूरतों का खयाल रखते हैं। इससे भी ज़्यादा, हम इस बात के एहसानमंद हैं कि यहोवा और यीशु हमारा खयाल रखते हैं।
18. यीशु ने जिस वजह से चमत्कार किए उसमें क्या बात आपको अच्छी लगती है?
18 अपनी सेवा के दौरान, यीशु ने दिखाया कि वह “परमेश्वर की शक्ति” है। लेकिन उसने कभी-भी अपनी शक्ति का इस्तेमाल, दूसरों की नज़रों में छाने के लिए या अपने फायदे के लिए नहीं किया। इसके बजाय, यीशु ने अपनी शक्ति से इसलिए चमत्कार किए क्योंकि वह सच में लोगों से प्यार करता है। इस बारे में हम अगले लेख में और ज़्यादा सीखेंगे।