अध्ययन लेख 2
नयी सोच पैदा कीजिए!
“नयी सोच पैदा करो ताकि तुम्हारी कायापलट होती जाए। तब तुम परखकर खुद के लिए मालूम करते रहोगे कि परमेश्वर की भली, उसे भानेवाली और उसकी परिपूर्ण इच्छा क्या है।”—रोमि. 12:2.
गीत 88 मुझे अपनी राहें सिखा
एक झलकa
1-2. बपतिस्मे के बाद भी हमें क्या करते रहना चाहिए? समझाइए।
आप कितनी बार अपने घर की सफाई करते हैं? जब आप पहली बार अपने घर में रहने के लिए आए होंगे, तो उससे पहले आपने इसकी अच्छी तरह सफाई की होगी। लेकिन एक बार सफाई करने के बाद अगर आप उसे यूँ ही छोड़ देते, तो क्या होता? घर बहुत जल्दी गंदा हो जाता और धूल-मिट्टी जमा हो जाती। अगर आप चाहते हैं कि आपका घर हमेशा अच्छा लगे, तो आपको इसे लगातार साफ करना होगा।
2 उसी तरह बपतिस्मा लेने से पहले हमने खुद में कई बदलाव किए थे। हमने अपने “तन और मन की हर गंदगी को दूर करके खुद को शुद्ध” किया था। (2 कुरिं. 7:1) लेकिन बस एक बार ऐसा करना काफी नहीं है। जैसा पौलुस ने कहा, बपतिस्मे के बाद भी हमें “अपनी सोच और अपने नज़रिए को नया बनाते जाना” होगा। (इफि. 4:23) पर ऐसा लगातार करना क्यों ज़रूरी है? क्योंकि अगर हम ऐसा ना करें, तो बहुत जल्द हमारी सोच इस दुनिया की सोच की तरह गंदी हो सकती है। इसलिए अगर हम चाहते हैं कि ऐसा ना हो और हमें देखकर यहोवा को अच्छा लगे, तो समय-समय पर हमें अपनी सोच, अपनी शख्सियत और अपनी इच्छाओं की जाँच करनी होगी।
‘नयी सोच पैदा करते रहिए’
3. ‘नयी सोच पैदा करने’ का क्या मतलब है? (रोमियों 12:2)
3 नयी सोच पैदा करने के लिए हमें क्या करना होगा? (रोमियों 12:2 पढ़िए।) जिन यूनानी शब्दों का अनुवाद “नयी सोच पैदा करो” किया गया है, उनका अनुवाद “अपनी सोच पूरी तरह बदलो” भी किया जा सकता है। जैसे अगर हमारे घर की हालत खराब हो जाती है, तो हम उसे सिर्फ ऊपर-ऊपर से नहीं सजाते। इसके बजाय हम उसकी अच्छी तरह मरम्मत करते हैं, पुराना माल निकालकर नया माल लगाते हैं और कई सारी चीज़ें बदल देते हैं। उसी तरह थोड़े-बहुत अच्छे काम करना काफी नहीं है। इसके बजाय हमें जाँच करनी होगी कि हम अंदर से कैसे हैं और फिर खुद को बदलना होगा ताकि हम यहोवा के स्तरों के हिसाब से जीएँ। और हमें ऐसा एक बार नहीं, बल्कि बार-बार करना होगा।
4. हम कैसे ध्यान रख सकते हैं कि हम दुनिया के लोगों की तरह ना सोचने लगें?
4 जब हम परिपूर्ण हो जाएँगे, तो हम हमेशा ऐसे काम कर पाएँगे जिनसे यहोवा खुश होगा। लेकिन तब तक हमें यहोवा को खुश करने के लिए लगातार मेहनत करनी होगी। ध्यान दीजिए कि रोमियों 12:2 में पौलुस ने बताया कि जब हम ‘नयी सोच पैदा करेंगे,’ तभी हम मालूम कर पाएँगे कि परमेश्वर की इच्छा क्या है। और यह बहुत ज़रूरी है कि हम खुद की जाँच करते रहें कि क्या हमारे लक्ष्य और फैसले यहोवा की इच्छा के मुताबिक हैं या नहीं। क्योंकि अगर हम ऐसा ना करें, तो हम बहुत आसानी से दुनिया के लोगों की तरह सोचने लग सकते हैं।
5. हम कैसे पता लगा सकते हैं कि हमारी सोच सही है और हम मानते हैं कि यहोवा का दिन बहुत जल्द आनेवाला है? (तसवीर देखें।)
5 हम खुद की जाँच कैसे कर सकते हैं? ज़रा एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। यहोवा चाहता है कि हम ‘यह बात हमेशा ध्यान में रखें कि उसका दिन बहुत जल्द आनेवाला है।’ (2 पत. 3:12) तो खुद से पूछिए, ‘मैं जिस तरह ज़िंदगी जी रहा हूँ, क्या उससे पता चलता है कि मैं मानता हूँ कि इस दुनिया का अंत बहुत करीब है? मैं जो फैसले लेता हूँ, फिर चाहे वे पढ़ाई-लिखाई के बारे में हों या नौकरी के बारे में, क्या उनसे पता चलता है कि यहोवा की सेवा मेरे लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है? क्या मुझे विश्वास है कि यहोवा मेरे परिवार की ज़रूरतें पूरी करेगा या मैं जब देखो इस बारे में चिंता करता रहता हूँ?’ जब हम छोटे-बड़े फैसले लेते वक्त इस बात का ध्यान रखेंगे कि यहोवा की इच्छा क्या है, तो सोचिए इससे यहोवा को कितनी खुशी होगी!—मत्ती 6:25-27, 33; फिलि. 4:12, 13.
6. हमें क्या करते रहना चाहिए?
6 हमें खुद की जाँच करते रहनी चाहिए कि क्या हमारी सोच यहोवा की इच्छा के मुताबिक है या नहीं। और अगर ऐसा नहीं है, तो हमें खुद में बदलाव करने चाहिए। पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों से कहा था, “खुद को जाँचते रहो कि तुम विश्वास में हो या नहीं। तुम क्या हो, इसका सबूत देते रहो।” (2 कुरिं. 13:5) ‘विश्वास में होने’ का सिर्फ यह मतलब नहीं है कि हम लगातार सभाओं में जाएँ और प्रचार करें, बल्कि हम जो सोचते हैं, हमारे मन में जो इच्छाएँ आती हैं और हम जिस इरादे से कोई काम करते हैं, उससे भी पता चलता है कि हम विश्वास में हैं या नहीं। तो “नयी सोच पैदा” करने के लिए हमें परमेश्वर के वचन को पढ़ना होगा, यह जानना होगा कि यहोवा किस तरह सोचता है और फिर उसकी इच्छा के मुताबिक जीने के लिए खुद को बदलना होगा।—1 कुरिं. 2:14-16.
‘नयी शख्सियत पहनिए’
7. इफिसियों 4:31, 32 के मुताबिक हमें और क्या करना होगा और ऐसा करना क्यों मुश्किल हो सकता है?
7 इफिसियों 4:31, 32 पढ़िए। अपनी सोच बदलने के साथ-साथ हमें “नयी शख्सियत” भी पहननी है। (इफि. 4:24) शायद हममें से कुछ के लिए ऐसा करना आसान ना हो और हमें बहुत मेहनत करनी पड़े। जैसै कुछ लोगों की शख्सियत ही ऐसी होती है कि उन्हें बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है या वे दूसरों से जलने लगते हैं। बाइबल में भी बताया गया है कि कुछ लोग “गुस्सैल” होते हैं और ‘बात-बात पर भड़क उठते हैं।’ (नीति. 29:22) शायद कुछ भाई-बहनों को भी ऐसी आदतों से लड़ना पड़ा हो। लेकिन इन्हें जड़ से निकालने के लिए बपतिस्मे के बाद भी उन्हें लगातार मेहनत करनी होगी। आइए एक भाई के बारे में जानें जिन्हें ऐसा ही करना पड़ा।
8-9. भाई स्टीवन के किस्से से कैसे पता चलता है कि हमें पुरानी शख्सियत उतारने के लिए लगातार मेहनत करनी होगी?
8 स्टीवन नाम के एक भाई पहले बहुत गुस्सैल थे। वे बताते हैं, “मेरा बपतिस्मा तो हो गया था, फिर भी कई बार मुझे बहुत गुस्सा आ जाता था और मैं खुद पर काबू नहीं कर पाता था। एक बार हम घर-घर प्रचार कर रहे थे और मैंने देखा कि एक चोर ने मेरी गाड़ी का रेडियो चुरा लिया। मैं तुरंत उसके पीछे भागने लगा और जैसे ही मैं उसे पकड़नेवाला था, वह रेडियो गिराकर भाग गया। बाद में जब मैं दूसरों को इस बारे में बता रहा था, तो मेरे समूह के एक प्राचीन ने मुझसे पूछा, ‘स्टीवन अगर तुम उसे पकड़ लेते, तो क्या करते?’ मैं समझ गया कि मुझे अपने गुस्से पर काबू करना होगा और दूसरों के साथ शांति बनाए रखने के लिए मेहनत करनी होगी।”b
9 हम भाई स्टीवन के किस्से से क्या सीखते हैं? हो सकता है, हमें लगे कि हमने कोई बुरी आदत या काम छोड़ दिया है, लेकिन फिर शायद अचानक कुछ ऐसा हो जाए कि हम दोबारा वही कर बैठें। अगर आपके साथ ऐसा होता है, तो निराश मत होइए। ऐसा मत सोचिए कि आप एक मसीही कहलाने के लायक नहीं हैं। पौलुस ने भी कहा था, “जब मैं अच्छा करना चाहता हूँ, तो अपने अंदर बुराई को ही पाता हूँ।” (रोमि. 7:21-23) हम सभी ने कोई-ना-कोई बुरी आदत छोड़ी है, लेकिन हम सब अपरिपूर्ण हैं इसलिए कई बार हम फिर से वही काम करने लग सकते हैं। बुरी आदतें बिलकुल धूल-मिट्टी की तरह हैं जो सफाई करने के बाद भी घर में आ जाती है। इसलिए इन्हें छोड़ने के लिए हमें लगातार मेहनत करनी होगी। हम यह कैसे कर सकते हैं?
10. हम बुरी आदतें छोड़ने के लिए क्या कर सकते हैं? (1 यूहन्ना 5:14, 15)
10 यहोवा से प्रार्थना कीजिए और उसे बताइए कि आप कौन-सी बुरी आदत छोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। यकीन रखिए कि वह आपकी सुनेगा और ज़रूर आपकी मदद करेगा। (1 यूहन्ना 5:14, 15 पढ़िए।) वह कोई चमत्कार करके उसे हटा तो नहीं देगा, लेकिन आपको उस पर काबू पाने की ताकत ज़रूर देगा। (1 पत. 5:10) प्रार्थना करने के साथ-साथ आपको खुद भी कुछ करना होगा। ऐसी चीज़ों से दूर रहिए जिनसे आप दोबारा वे काम करने लग सकते हैं जिन्हें छोड़ने की आप कोशिश कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, ऐसी फिल्में या टीवी कार्यक्रम मत देखिए, ना ही ऐसी कहानियाँ पढ़िए जिनमें उन कामों को इस तरह दिखाया गया हो कि वे इतने भी बुरे नहीं हैं। और अगर आपके मन में बुरे खयाल आ जाएँ, तो उनके बारे में सोचते मत रहिए।—फिलि. 4:8; कुलु. 3:2.
11. हम नयी शख्सियत पहने रहें, इसके लिए हमें क्या करना होगा?
11 हो सकता है कि आपने पुरानी शख्सियत तो उतार दी हो, लेकिन नयी शख्सियत पहनना भी बहुत ज़रूरी है। आप यह कैसे कर सकते हैं? जैसे-जैसे आप जानने लगते हैं कि यहोवा किस तरह का परमेश्वर है, उसमें कौन-कौन-से गुण हैं, तो उसकी तरह बनने की कोशिश कीजिए। (इफि. 5:1, 2) जैसे जब आप बाइबल में कोई ऐसा किस्सा पढ़ते है जिसमें बताया गया है कि यहोवा दिल खोलकर माफ करता है तो खुद से पूछिए, ‘क्या मैं दूसरों को माफ करता हूँ?’ या जब आप इस बारे में पढ़ रहे हों कि यहोवा ज़रूरतमंदों की परवाह करता है तो सोचिए, ‘क्या मैं भी यहोवा की तरह ऐसे भाई-बहनों की परवाह करता हूँ जो ज़रूरतमंद हैं और उनकी मदद करता हूँ?’ नयी शख्सियत पहनकर नयी सोच पैदा करते रहिए। लेकिन सब्र भी रखिए, खुद को बदलने में वक्त लगता है।
12. बाइबल की मदद से भाई स्टीवन खुद को कैसे बदल पाए?
12 भाई स्टीवन, जिनका पहले ज़िक्र किया गया था, धीरे-धीरे नयी शख्सियत पहन पाए। वे बताते हैं, “बपतिस्मे के बाद कई बार ऐसे हालात आए जब मैं भड़कने-वाला था, लेकिन मैंने अपने गुस्से पर काबू रखा। जब कोई मुझे भड़काने की कोशिश करता है, तो या तो मैं वहाँ से चला जाता हूँ या कुछ ऐसा करता हूँ जिससे बात और ना बिगड़े और वहीं-की-वहीं खत्म हो जाए। मेरी पत्नी और बहुत-से लोगों ने इस बात के लिए मेरी तारीफ की है। कई बार तो मैं खुद भी हैरान रह जाता हूँ कि मैं ऐसे हालात में भी शांत कैसे रह पाया। लेकिन यह सब मैं अपने दम पर नहीं कर पाया। बाइबल से मुझे बहुत मदद मिली। सच में, इससे लोगों की ज़िंदगी बदल सकती है!”
बुरी इच्छाओं से लड़ते रहिए
13. हम कैसे बुरी इच्छाओं से लड़ सकते हैं और अच्छी बातों के बारे में सोच सकते हैं? (गलातियों 5:16)
13 गलातियों 5:16 पढ़िए। बुरी इच्छाओं से लड़ने के लिए और सही काम करने के लिए यहोवा हमें अपनी पवित्र शक्ति देता है। जब हम परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं, तो हम पवित्र शक्ति को खुद पर काम करने देते हैं। सभाओं में भी हमें यहोवा की पवित्र शक्ति मिलती है। वहाँ हम ऐसे भाई-बहनों से मिलते हैं जो हमारी तरह सही काम करने की कोशिश कर रहे हैं और उनसे बात करके हमें बहुत हिम्मत मिलती है। (इब्रा. 10:24, 25; 13:7) हम पवित्र शक्ति के लिए यहोवा से प्रार्थना भी कर सकते हैं, उससे बिनती कर सकते हैं कि वह हमें अपनी कमज़ोरी पर काबू पाने में मदद दे। ऐसा नहीं है कि बाइबल पढ़ने से, सभाओं में जाने से और प्रार्थना करने से हमारे मन में बुरी इच्छाएँ नहीं आएँगी। लेकिन इन कामों में लगे रहने से ये हम पर हावी नहीं होंगी और हम कुछ गलत करने से खुद को रोक पाएँगे। गलातियों 5:16 में भी लिखा है कि जो ‘पवित्र शक्ति के मार्गदर्शन में चलते हैं, वे शरीर की इच्छाओं को हरगिज़ पूरा नहीं करते।’
14. अच्छी बातों के बारे में सोचते रहना क्यों बहुत ज़रूरी है?
14 एक बार जब हम ऐसे काम करने लगते हैं जिनसे यहोवा के साथ हमारा रिश्ता मज़बूत हो, तो हमें वे काम लगातार करते रहने चाहिए और अच्छी बातों के बारे में सोचते रहना चाहिए। वह इसलिए कि हमारी बुरी इच्छाएँ हम पर कभी-भी हावी हो सकती हैं। ये एक ऐसे दुश्मन की तरह हैं जो इस ताक में रहता है कि कब हमें धर-दबोचे। हो सकता है कि बपतिस्मे के बाद भी हमारे मन में बुरी इच्छाएँ आएँ और हमें ऐसी चीज़ें करने का मन करे जो हमने छोड़ दी थीं, जैसे जुआ खेलना, खूब शराब पीना या गंदी तसवीरें और वीडियो देखना। (इफि. 5:3, 4) एक जवान भाई बताता है, “अपनी एक इच्छा पर काबू पाना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। मुझे लड़के पसंद आते थे। मुझे लगा कि यह बस कुछ वक्त की बात है, आगे चलकर सबकुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन ऐसे खयाल अब भी मेरे मन में आ जाते हैं।” अगर आपके मन में भी कोई बुरी इच्छा आती है, तो आप क्या बात याद रख सकते हैं?
15. यह जानकर हमें क्यों हिम्मत मिलती है कि हम किसी “अनोखी परीक्षा” से नहीं गुज़र रहे? (तसवीर देखें।)
15 याद रखिए कि आप अकेले ऐसे इंसान नहीं हैं जो अपनी बुरी इच्छा से लड़ रहे हैं। बाइबल में भी लिखा है, “तुम पर ऐसी कोई अनोखी परीक्षा नहीं आयी जो दूसरे इंसानों पर न आयी हो।” (1 कुरिं. 10:13क) पौलुस ने यह बात कुरिंथ में रहनेवाले मसीही भाई-बहनों को लिखी थी। इनमें से कुछ लोग पहले नाजायज़ यौन-संबंध रखते थे, कुछ समलैंगिक थे और कुछ पियक्कड़ थे। (1 कुरिं. 6:9-11) क्या आपको लगता है कि बपतिस्मा लेने के बाद उनके मन में एक बार भी इस तरह की बुरी इच्छाएँ नहीं आयी होंगी? नहीं, ऐसा नहीं है। हालाँकि वे अभिषिक्त मसीही थे, लेकिन थे तो वे भी अपरिपूर्ण। कभी-ना-कभी उन्हें भी बुरी इच्छाओं से लड़ना पड़ा होगा। इस बात से हमें बहुत हिम्मत मिलती है, क्योंकि इससे पता चलता है कि आज चाहे हम किसी भी बुरी इच्छा से क्यों ना लड़ रहे हों, कोई-ना-कोई ऐसा भाई या बहन है जो उस बुरी इच्छा पर काबू कर पाया है। आप “विश्वास में मज़बूत” रह सकते हैं, क्योंकि आप जानते हैं कि ‘दुनिया-भर में फैली आपके भाइयों की पूरी बिरादरी ऐसी ही दुख-तकलीफें झेल रही है।’—1 पत. 5:9.
16. हमें क्या नहीं सोचना चाहिए और क्यों?
16 कभी ऐसा मत सोचिए कि आप जिस मुश्किल से गुज़र रहे हैं, उसे कोई नहीं समझ सकता। इस तरह सोचने से आप निराश हो जाएँगे और आपको लगने लगेगा कि आप अपनी बुरी इच्छा पर कभी काबू नहीं कर सकते। बाइबल में लिखा है, “परमेश्वर विश्वासयोग्य है और वह तुम्हें ऐसी किसी भी परीक्षा में नहीं पड़ने देगा जो तुम्हारी बरदाश्त के बाहर हो, मगर परीक्षा के साथ-साथ वह उससे निकलने का रास्ता भी निकालेगा ताकि तुम इसे सह सको।” (1 कुरिं. 10:13ख) जब आप पर कोई बुरी इच्छा हावी होने लगे, तब भी आप यहोवा के वफादार रह सकते हैं। उसकी मदद से आप गलत काम करने से खुद को रोक सकते हैं।
17. हम बुरी इच्छाओं को मन में आने से रोक तो नहीं सकते, लेकिन हम क्या कर सकते हैं?
17 याद रखिए, हम अपरिपूर्ण हैं इसलिए शायद हम बुरी इच्छाओं को अपने मन में आने से ना रोक पाएँ। लेकिन हम उन्हें अपने मन से निकाल ज़रूर सकते हैं और बुरे काम करने से खुद को रोक सकते हैं। यूसुफ ने भी ऐसा ही किया था। जब पोतीफर की पत्नी ने उससे कहा कि वह उसके साथ सोए, तो वह तुरंत वहाँ से भाग गया!—उत्प. 39:12.
लगातार मेहनत करते रहिए
18-19. समय-समय पर हमें खुद से क्या सवाल करने चाहिए?
18 नयी सोच पैदा करने का मतलब है कि हम हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि हमारी सोच और हमारे काम यहोवा की इच्छा के मुताबिक हों। इसलिए समय-समय पर हमें खुद की जाँच करनी चाहिए और सोचना चाहिए, ‘मैं जिस तरह ज़िंदगी जी रहा हूँ, क्या उससे पता चलता है कि मैं मानता हूँ कि अंत बहुत करीब है? क्या मैं नयी शख्सियत पहनने के लिए लगातार मेहनत कर रहा हूँ और अपने अंदर अच्छे गुण बढ़ा रहा हूँ? क्या मैं यहोवा की पवित्र शक्ति को खुद पर काम करने दे रहा हूँ ताकि बुरी इच्छाएँ मुझ पर हावी ना हों?’
19 जब आप खुद की जाँच करें, तो यह मत देखिए कि आपसे कितनी गलतियाँ हुई हैं, बल्कि यह देखिए कि आपने कितनी तरक्की की है। याद रखिए कि आप अपरिपूर्ण हैं, इसलिए आपसे गलतियाँ तो होंगी ही। ऐसे में निराश मत होइए, बल्कि फिलिप्पियों 3:16 में लिखी बात याद रखिए: “हमने जिस हद तक तरक्की की है, आओ हम इसी राह पर कायदे से चलते रहें।” अगर आप ऐसा करें, तो आप यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आपकी मेहनत पर आशीष देगा और आप नयी सोच पैदा कर पाएँगे।
गीत 36 दिल की हिफाज़त करें
a पौलुस ने पहली सदी के मसीहियों से कहा था कि वे दुनिया के लोगों की सोच को खुद पर हावी ना होने दें और उनके जैसे काम ना करें। हमें पौलुस की इस सलाह को ध्यान में रखना चाहिए, क्योंकि इस दुनिया की सोच का असर हम पर भी हो सकता है। हमें लगातार खुद की जाँच करनी चाहिए और अपनी सोच बदलते रहनी चाहिए ताकि वह परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक हो। इस लेख में हम जानेंगे कि हम यह कैसे कर सकते हैं।
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c तसवीर के बारे में: एक जवान भाई सोच रहा है कि उसे और ज़्यादा पढ़ाई करनी चाहिए या पूरे समय की सेवा।