सब प्रकार के आदमियों का आदर करें
“सब प्रकार के आदमियों का आदर करो, . . . परमेश्वर से डरो, राजा का सम्मान करो।”—१ पतरस २:१७, NW.
१. (अ) परमेश्वर और मसीह के अलावा और किनका उचित रूप से आदर किया जाता है? (ब) १ पतरस २:१७ के अनुसार किन-किन क्षेत्रों में मनुष्यों को सम्मान दिखाया जाना है?
हम ने देखा है कि हम यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह का सम्मान करने के लिए बाध्य हैं। ऐसा करना सही, अक़्लमन्द और प्रेममय है। फिर भी, परमेश्वर के वचन में यह भी दिखाया गया है कि हमें संगी मनुष्यों का आदर करना है। “सब प्रकार के आदमियों का आदर करो,” हमें बताया जाता है। (१ पतरस २:१७, NW) चूँकि यह वचन इस आदेश से समाप्त होता है, “राजा का सम्मान करो,” इस से यह सूचित होता है कि सम्मान ऐसे लोगों को दिया जाना चाहिए जिन्हें अपने पद की वजह से यह प्राप्त करने का अधिकार है। तो फिर, हमें उचित रूप से किस का आदर करना चाहिए? सम्मान के योग्य व्यक्तियों की संख्या में कुछ लोगों की कल्पना से भी ज़्यादा व्यक्ति शामिल होंगे। हम कह सकते हैं कि ऐसे चार क्षेत्र हैं जिन के अंतर्गत हमें दूसरे व्यक्तियों को आदर-सत्कार दिखाना है।
राजनीतिक शासकों का सम्मान करें
२. हम कैसे जानते हैं कि १ पतरस २:७ में ज़िक्र किया गया “राजा” किसी मानवीय राजा या राजनीतिक शासक का ज़िक्र करता है?
२ सबसे पहला क्षेत्र सांसारिक सरकारों से सम्बद्ध है। हमें राजनीतिक शासकों का सम्मान करना चाहिए। जब पतरस ने सलाह दी: “राजा का सम्मान करो,” हम क्यों कहते हैं कि पतरस राजनीतिक शासकों के बारे में सोच रहा था? इसलिए कि वह मसीही मण्डली के बाहर की स्थिति के बारे में बोल रहा है। वह अभी-अभी यह कह चुका था: “मनुष्यों के ठहराए हुए हर एक प्रबन्ध के आधीन में रहो, राजा के इसलिए कि वह सब पर प्रधान है। और हाकिमों के, क्योंकि वे . . . उसके भेजे हुए हैं।” इस बात पर भी ग़ौर करें कि पतरस परमेश्वर और “राजा” के बीच तुलना करता है, यह कहकर: “परमेश्वर से डरो, राजा का सम्मान करो” (१ पतरस २:१३, १४) सो, यह “राजा,” जिस को सम्मान देने के लिए पतरस हम से आग्रह करता है, मानवीय राजाओं और राजनीतिक शासकों का ज़िक्र करता है।
३. “प्रधान अधिकारी” कौन हैं, और उन्हें क्या हक़ है?
३ प्रेरित पौलुस उसी तरह आज्ञा देता है: “प्रधान अधिकारियों के आधीन रहे।” ये प्रधान अधिकारी यहोवा परमेश्वर या यीशु मसीह नहीं हैं, बल्कि वे राजनीतिक शासक हैं, सरकारी अधिकारी। इन को ध्यान में रखते हुए, पौलुस आगे यह कहता है: “इसलिए हर एक का हक़ चुकाया करो, . . . जिस का आदर करना चाहिए उसका आदर करो।” जी हाँ, ऐसे लोग, जिन्हें परमेश्वर की ओर से राजनीतिक शासन करने की अनुमति दी गयी है, आदर के हक़दार हैं।—रोमियों १३:१, ७.
४. (अ) राजनीतिक शासकों को सम्मान किस तरह दिखाया जा सकता है? (ब) प्रेरित पौलुस ने शासकों को सम्मान दिखाने में कैसा आदर्श प्रस्तुत किया?
४ हमें राजनीतिक शासकों को सम्मान किस तरह दिखाना चाहिए? उन से गहरे आदरभाव से बरताव करना एक तरीक़ा है। (१ पतरस ३:१५ से तुलना करें.) हालाँकि वे शायद बुरे लोग होंगे फिर भी उनके पद की वजह से ऐसा सम्मान उनका हक़ है। रोमी इतिहासकार टॅसिटस् ने हाकिम फेलिक्स का वर्णन एक ऐसे आदमी के तौर से किया जिस ने “सोचा कि वह दण्डाभाव से कोई भी बुरा काम कर सकता था।” फिर भी पौलुस ने फेलिक्स के सामने अपनी सफ़ाई आदरपूर्वक शुरू की। उसी तरह, पौलुस ने राजा हेरोद अग्रिप्पा II से आदरपूर्वक कहा: “आज तेरे सामने उनका उत्तर देने में मैं अपने को धन्य समझता हूँ,” हालाँकि पौलुस जानता था कि अग्रिप्पा कौटुम्बिक व्यभिचार में अपनी ज़िन्दगी बिता रहा था। उसी तरह, पौलुस ने हाकिम फेस्तुस को “महाप्रतापी” के तौर से संबोधित करते हुए, उसे सम्मान दिया, हालाँकि फेस्तुस प्रतिमाओं का उपासक था।—प्रेरितों २४:१०; २६:२, ३, २४, २५.
५. सरकारी अधिकारियों के प्रति सम्मान दिखाने का और कौनसा तरीक़ा है, और ऐसा करने में यहोवा के गवाह एक अच्छी मिसाल किस तरह पेश करते हैं?
५ सरकारी अधिकारियों को सम्मान दिखाने का एक और तरीक़ा प्रेरित पौलुस द्वारा सूचित किया गया, जब उस ने सरकारी अधिकारियों को उनके कर चुकाने के बारे में लिखा। उस ने कहा, “जिसे कर चाहिए, उसे कर दो; जिसे महसूल चाहिए, उसे महसूल दो।” (रोमियों १३:७) यहोवा के गवाह दुनिया के चाहे किसी भी देश में क्यों न रहते हों, ऐसे कर चुकाते हैं। इट्ली में अख़बार ला स्टाम्पा (La Stampa) ने ग़ौर किया: “वे सबसे वफ़ादार नागरिक हैं, जिन्हें पाने की इच्छा कोई भी करेगा: वे कर देने से कतराकर बच नहीं जाते और न ही अपने ही फ़ायदे के लिए असुविधाजनक क़ानूनों से बचने की कोशिश करते हैं।” और पाम बीच, फ्लोरिडा, यू.एस.ए., के द पोस्ट (The Post) अखबार ने यहोवा के गवाहों के बारे में ग़ौर किया: “वे अपने कर चुकाते हैं। ये लोग इस गणतंत्र के सबसे ईमानदार नागरिकों में से हैं।”
मालिकों को सम्मान दिखाएँ
६. प्रेरित पौलुस और पतरस के अनुसार सम्मान और किन किन को दिया जाना चाहिए?
६ दूसरा क्षेत्र जहाँ सम्मान दिखाना मुनासिब है, हमारी नौकरी के स्थान पर है। दोनों प्रेरित, पौलुस और पतरस ने मसीहियों का उन लोगों को सम्मान देने के महत्त्व पर ज़ोर दिया, जो एक कार्य-संबंधी रिश्ते में उन से ऊँचे पद पर रखे गए हैं। पौलुस ने लिखा: “जितने दास जूए के नीचे हैं, वे अपने अपने स्वामी को पूरे आदर के योग्य समझें, ताकि परमेश्वर के नाम और उपदेश की निन्दा कभी न हो। इसके अतिरिक्त जिन के स्वामी विश्वासी हैं, इन्हें वे भाई होने की वजह से तुच्छ न जानें। बल्कि और भी तैयारी से उनके दास बनें।” और पतरस ने कहा: “घर के नौकर हर प्रकार के भय के साथ अपने अपने स्वामियों के अधीन रहें, न सिर्फ़ भलों और समझदार के, पर उनके भी, जिन्हें खुश करना मुशिकल हो।”—१ तीमुथियुस ६:१, २; १ पतरस २:१८, NW; इफिसियों ६:५; कुलुस्सियों ३:२२, २३.
७. (अ) “स्वामियों” को सम्मान दिखाने के लिए “दासों” को दी बाइबल की सलाह आज उचित रूप से कैसे लागू की जा सकती है? (ब) जिन मसीही नौकरों के मसीही मालिक हैं, उन्हें किस बात का पालन करने में सावधानी बरतनी चाहिए?
७ बेशक, आज ग़ुलामी इतनी व्यापक नहीं है। लेकिन एक मालिक-दास रिश्ते में मसीहियों पर लागू होनेवाले सिद्धांत मालिक-कर्मचारी संबंध में भी लागू होते हैं। इस प्रकार, मसीही कर्मचारियों को ऐसे मालिकों को भी सम्मान दिखाने की ज़िम्मेदारी है, जिन्हें खुश करना मुश्किल है। और क्या होगा अगर मालिक एक संगी विश्वासी भी है? उस रिश्ते की वजह से ख़ास ख़याल दिखाए जाने की अपेक्षा करने के बजाय, कर्मचारी को अपने मसीही मालिक को और भी ज़्यादा तत्परता से, और कभी किसी भी रीति से उसका फ़ायदा उठाए बग़ैर सेवा करनी चाहिए।
परिवार में सम्मान
८, ९. (अ) बच्चे किस को सम्मानित करने के लिए बाध्य हैं? (ब) बच्चों को यह सम्मान क्यों दिखाना चाहिए, और वे यह किस तरह दिखा सकते हैं?
८ तीसरा क्षेत्र जहाँ सम्मान दिखाना मुनासिब है, परिवार में है। मिसाल के तौर पर, बच्चे अपने माता-पिता को आदर दिखाने के लिए बाध्य हैं। यह न सिर्फ़ मूसा को दिए नियम की एक आवश्यकता थी, लेकिन मसीहियों के लिए भी बाध्यता थी। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हे बालको, प्रभु में अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है। ‘अपनी माता और पिता का आदर कर।’”—इफिसियों ६:१, २; निर्गमन २०:१२.
९ बच्चों को अपने माता-पिता का आदर क्यों करना चाहिए? उन्हें उन का आदर उनके माता-पिता के परमेश्वर-प्रदत्त अधिकार की वजह से करना चाहिए और इस वजह से भी कि उनके जन्म का कारण बनकर और बचपन से लेकर उनका पालन-पोषण करके तथा उन्हें बड़ा करके, उनके माता-पिता ने क्या कुछ नहीं किया है। बच्चों को अपने माता-पिता का आदर किस तरह करना चाहिए? उन्हें ऐसा ख़ास तौर से उनके प्रति आज्ञाकारी होकर और अधीन रहकर करना चाहिए। (नीतिवचन २३:२२, २५, २६; कुलुस्सियों ३:२०) ऐसा आदर करने में शायद यह आवश्यक हो कि वयस्क बच्चे अपने बूढ़े माँ-बाप या दादा-दादी और नाना-नानी को अतिरिक्त भौतिक और साथ ही आध्यात्मिक सहायता दें। इसे बुद्धिमानपूर्वक अन्य ज़िम्मेदारियों से संतुलित किया जाना चाहिए, जैसा कि खुद अपने बच्चों की देख-भाल करना और मसीही संग-साथ तथा क्षेत्र-सेवकाई में पूर्ण रूप से हिस्सा लेना।—इफिसियों ५:१५-१७; १ तीमुथियुस ५:८; १ यूहन्ना ३:१७.
१०. पत्नियाँ किस का सम्मान करने के लिए बाध्य हैं, और वे यह किन रीतियों से कर सकते हैं?
१० फिर भी परिवार में बच्चे ही एकमात्र व्यक्ति नहीं जो आदर दिखाने के लिए बाध्य हैं। पत्नियों को अपने पति का आदर करना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने यह भी कहा कि “पत्नी को भी अपने पति के लिए गहरा आदरभाव होना चाहिए।” (इफिसियों ५:३३, NW; १ पतरस ३:१, २) पति को “गहरा आदरभाव” दिखाने में उन्हें सम्मान देना बेशक शामिल है। जब सारा ने अपने पति, इब्राहीम का ज़िक्र “स्वामी” के तौर से किया, उस ने उसका सम्मान किया। (१ पतरस ३:६) इसलिए, पत्नियो, सारा का अनुकरण करें। अपने पति के निर्णय स्वीकार करने और परिश्रम करके उनको सफल बनाने के द्वारा उनका सम्मान करें। अपने पति के बोझ को बढ़ाने के बजाय, उन्हें झेलने की मदद करने के लिए अपनी ओर से पूरी कोशिश करने के द्वारा आप उनका सम्मान करते हैं।
११. सम्मान दिखाने के सम्बन्ध में, पतियों पर कौनसी बाध्यता है, और क्यों?
११ पतियों के विषय में क्या? उन्हें परमेश्वर के वचन में आदेश दिया जाता है: “वैसे ही हे पतियो, तुम भी बुद्धिमानी से पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो और स्त्री को निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करो, यह समझकर कि हम दोनों जीवन के बरदान के वारिस हैं, जिस से तुम्हारी प्रार्थनाएँ रुक न जाएँ।” (१ पतरस ३:७) इस से हर एक पति को सोचने पर मजबूर होना चाहिए। यह मानो इस प्रकार है कि पत्नी पर एक लेबिल हो, जिस पर लिखा गया हो, “बेशक़ीमत। नाज़ुक। सावधानी बरतो! आदर दो!” इसलिए पति यह याद रखें कि अगर वे अपनी पत्नियों का मुनासिब लिहाज़ करके उनका सम्मान नहीं करेंगे, तो वे यहोवा परमेश्वर के साथ अपने सम्बन्ध को बिगाड़ेंगे, इसलिए कि उनकी प्रार्थनाओं में बाधा आएगी। सचमुच, परिवार के सदस्यों को एक दूसरे का आदर करना पारस्पारिक रूप से फ़ायदेमंद है।
मण्डली में
१२. (अ) मण्डली में सम्मान दिखाने की बाध्यता किन पर है? (ब) यीशु ने कैसे दिखाया कि सम्मान पाना उचित है?
१२ फिर मसीही मण्डली में सम्मान दिखानी की वह ज़िम्मेदारी भी है, जो सब पर है। हमें सलाह दी जाती है: “परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।” (रोमियों १२:१०) यीशु ने अपने एक दृष्टान्त में सूचित किया कि सम्मान स्वीकार करना उचित है। उस ने कहा कि जब हमें किसी जेवनार पर बुलाया जाता है, हमें सबसे नीची जगह लेनी चाहिए, क्योंकि तब हमारा मेज़बान हमें मुख्य जगह लेने को कहेगा, और हमारे सारे संगी मेहमानों के सामने हमारा सम्मान होगा। (लूका १४:१०) अब, चूँकि हम सब सम्मान दिए जाने की क़दर करते हैं, क्या हम में समानुभूति होनी और एक दूसरे को सम्मान दिखाना नहीं चाहिए? हम यह किस तरह कर सकते हैं?
१३. ऐसे कुछ तरीक़े क्या हैं जिन के ज़रिए हम मण्डली में दूसरों को सम्मान दिखा सकते हैं?
१३ अच्छी रीति से किए गए किसी काम के लिए क़दरदानी की अभिव्यक्तियाँ सम्मान देने के बराबर हैं। इसलिए शायद मण्डली में किसी के द्वारा प्रस्तुत भाषण या टिप्पणी के लिए सराहना देने के द्वारा हम एक दूसरे का सम्मान कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, हम अपने मसीही भाई-बहनों के प्रति गहरे आदरभाव से बरताव करके, अपनी कमर मन की दीनता से बान्धने के द्वारा एक दूसरे का सम्मान कर सकते हैं। (१ पतरस ५:५) हम इस प्रकार निदर्शित करते हैं कि यहोवा परमेश्वर के सम्मानीय संगी दासों के तौर से हम उनकी क़दर करते हैं।
१४. (अ) मण्डली के भाई बहनों को उचित सम्मान किस तरह दिखा सकते हैं? (ब) क्या दिखाता है कि उपहार देना सम्मान देने का एक तरीक़ा है?
१४ प्रेरित पौलुस ने जवान तीमुथियुस को सलाह दी कि वह बूढ़ी स्त्रियों को माता और जवान स्त्रियों को “पूरी पवित्रता से” बहन माने। जी हाँ, जब भाई अपनी मसीही बहनों से ग़ैर-मुनासिब बेतक़ल्लुफ़ी दिखाकर, धृष्टतापूर्वक आचरण नहीं करने के बारे में सावधानी बरतते हैं, वे उनका सम्मान कर रहे होते हैं। पौलुस ने आगे जाकर यह लिखा: “उन विधवाओं का जो सचमुच विधवा हैं आदर कर।” ग़रज़मंद विधवाओं का सम्मान करने का एक तरीक़ा भौतिक सहायता देने के द्वारा है। लेकिन इसके लायक़ होने के लिए, उसे “भले काम में सुनाम” होना चाहिए। (१ तीमुथियुस ५:२-१०) भौतिक उपहारों के सम्बन्ध में, लूका ने माल्टा द्वीप के लोगों के बारे में लिखा: “और उन्हों ने हमारा बहुत आदर किया, और जब हम चलने लगे, तो जो कुछ हमें अवश्य था, जहाज पर रख दिया।” (प्रेरितों २८:१०) इस प्रकार दूसरे को भौतिक उपहार देकर सम्मान दिखाया जा सकता है।
१५. (अ) हम पर किन को सम्मान दिखाने की ख़ास बाध्यता है? (ब) अगुआई करनेवालों के प्रति सम्मान दिखाने का एक तरीक़ा क्या है?
१५ तीमुथियुस को अपनी चिट्ठी जारी रखकर, पौलुस लिखता है: “जो [प्राचीन] अच्छा प्रबंध करते हैं, विशेष करके वे जो वचन सुनाने और सिखाने में परिश्रम करते हैं, दो गुने आदर के योग्य समझे जाएँ।” (१ तीमुथियुस ५:१७) हम किन रीतियों से प्राचीन, या अध्यक्षों का सम्मान कर सकते हैं? पौलुस ने कहा: “तुम मेरी सी चाल चलो जैसा मैं मसीह की सी चाल चलता हूँ।” (१ कुरिन्थियों ११:१) जब हम उसके अनुकरण करनेवाले बनने के लिए पौलुस के शब्दों पर अमल करते हैं, हम उसका सम्मान कर रहे होते हैं। यह उन लोगों पर भी लागू होगा जो आज हमारे बीच अगुआई कर रहे हैं। उनके आदर्श पर चलकर हम जिस हद तक उनका अनुकरण करते हैं, उस हद तक हम उनका सम्मान कर रहे होंगे।
१६. अगुआई करनेवालों को सम्मान दिखाने के अतिरिक्त तरीक़े क्या हैं?
१६ एक और तरीक़ा जिस से हम अध्यक्षों को सम्मान दिखाते हैं, इस प्रोत्साहन का पालन करने से है: “अपने अगुवों की मानो; और उन के आधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाईं तुम्हारे प्राणों के लिए जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा।” (इब्रानियों १३:१७) जिस रीति से बच्चे अपने माता-पिता का सम्मान उनके प्रति आज्ञाकारी रहकर करते हैं, उसी रीति से हम अपने मध्य अगुआई करनेवालों के प्रति आज्ञाकारी और उनके अधीन रहकर उनका सम्मान करते हैं। और, जैसे पौलुस और उसके साथी माल्टा के उन दयालु निवासियों द्वारा भौतिक उपहारों से सम्मानित किए गए, सोसाइटी के अनेक सफर करनेवाले प्रतिनिधि भी उसी रीति से बार-बार सम्मानित किए जा चुके हैं। पर, बेशक, उन्हें कभी ऐसे उपहार माँगना या यह संकेत देना नहीं चाहिए कि इनके लिए वे आभारी होंगे या कि उन्हें इनकी ज़रूरत है।
१७. जिन लोगों को अध्यक्षता के ख़ास अनुग्रह प्राप्त हैं, उन पर सम्मान दिखाने के सम्बन्ध में कौनसी बाध्यता है?
१७ दूसरी ओर, उन सभी लोगों पर, जो ईश्वरशासित संगठन में अध्यक्षता के पद पर हैं—चाहे ये स्थानीय मण्डली में, एक सफर करनेवाले अध्यक्ष के रूप में किसी सर्किट या ज़िला में, वॉच टावर सोसाइटी के किसी शाखा में, या फिर परिवार में हों—अपने आदेश के अधीन लोगों का आदर करने की बाध्यता है। इस से आवश्यक होता है कि उन में समानुभूति और साथ ही सहानुभूति हो। उन्हें हर समय मिलनसार रहना चाहिए, और जैसे यीशु मसीह ने कहा वह था, उसी रीति से नम्र और मन के दीन होना चाहिए।—मत्ती ११:२९, ३०.
एक दूसरे का सम्मान करने के लिए परिश्रम करो
१८. (अ) योग्य व्यक्तियों को सम्मान दिखाने से हमें क्या रोक सकता है? (ब) क्यों एक नकारात्मक और आलोचनात्मक मनोभाव के लिए कोई प्रतिवाद नहीं?
१८ हम सब को एक दूसरे का सम्मान करने के लिए कड़ा परिश्रम करना चाहिए, क्योंकि हमारा ऐसा करने में एक शक्तिशाली अड़चन है। वह अड़चन, या बाधा, हमारा अपरिपूर्ण हृदय है। “यद्यपि मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्न होता है सो बुरा ही होता है,” बाइबल कहती है। (उत्पत्ति ८:२१) शायद एक मानवीय प्रवृत्ति जो हमारा दूसरों को उचित सम्मान दिखाने में दख़ल देगी, एक नकारात्मक, आलोचनात्मक मनोभाव है। हम सब दुर्बल, अपरिपूर्ण इंसान हैं, जिन्हें यहोवा की करुणा और अनर्जित कृपा की ज़रूरत है। (रोमियों ३:२३, २४) इस बात की क़दरदानी करते हुए, हम अपने भाइयों की कमज़ोरियों पर देर तक बोलने या अपने भाइयों को संदेहास्पद प्रेरक हेतुओं का आरोप लगाने के बारे में सावधान रहें।
१९. किसी नकारात्मक रवैये को प्रभावहीन कर देने के लिए किस बात से हमारी मदद होगी?
१९ ऐसी किसी नकारात्मक प्रवृत्ति का प्रतिकारक है प्रेम और आत्म-संयम। हमें अपने भाइयों के बढ़िया गुणों पर ग़ौर करते हुए, उनके सम्बन्ध में एक सहानुभूतिशील, वफ़ादार, सकारात्मक मनोवृत्ति रखनी चाहिए। अगर ऐसा कुछ है जो हम समझ नहीं सकते, तो हम अपने भाइयों को संदेह-लाभ देने और पतरस की सलाह मानने के लिए हमेशा तैयार रहें: “और सब से श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो; क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढांप देता है।” (१ पतरस ४:८) हम में उस प्रकार का प्रेम होना चाहिए अगर हमें अपने भाइयों को वह सम्मान देना है जो उनका हक़ है।
२०, २१. (अ) एक दूसरे को सम्मान दिखाने में और कौनसी प्रवृत्ति है, जो शायद बाधा डाल सकती है? (ब) इस प्रवृत्ति को प्रभावहीन कर देने के लिए हमें किस बात से मदद होगी?
२० हमारा दूसरों को उचित सम्मान दिखाने में एक और गुण जो संभवतः दख़ल देगा, अतिभावुक, या अनुचित रूप से संवेदनशील होने की प्रवृत्ति है। संवेदनशीलता की अपनी जगह है। कलाकारों को अपने पेशे के एक हिस्से के तौर से आवाज़ों या रंगों के बारे में संवेदनशील रहना पड़ता है। लेकिन दूसरों के साथ अपने सम्बन्ध में अनुचित रूप से संवेदनशील, या अतिभावुक होना एक प्रकार का स्वार्थ है जो हमें अपनी शान्ति से वंचित कर सकता है और हमें दूसरों को सम्मान दिखाने से रोक सकता है।
२१ सभोपदेशक ७:९ में पाए गए शब्द हमें इस सम्बन्ध में अच्छी सलाह देते हैं: “अपने मन में उतावली से क्रोधित न हो, क्योंकि क्रोध मूर्खों ही के हृदय में रहता है।” इसलिए अनुचित रूप से संवेदनशील होने या तुरन्त नाराज़ होने से अक़्लमंदी और सद्विवेक, साथ ही प्रेम की कमी प्रकट होती है। हमें सतर्क रहना चाहिए कहीं हमारी पतित प्रवृत्तियाँ, जैसे नकारात्मक, बहुत ज़्यादा आलोचनात्मक, या अनुचित रूप से संवेदनशील होना, हमें उन सब को सम्मान दिखाने में जिनका यह हक़ है, बाधा न डालें।
२२. सम्मान दिखाने की हमारी बाध्यता किस तरह संक्षिप्त में बतायी जा सकती है?
२२ सचमुच, दूसरों को सम्मान दिखाने के लिए हमारे पास अनेक कारण हैं। और, जैसा कि हम ने देखा है, ऐसे अनेकों तरीक़े हैं, जिनके ज़रिए हम ऐसा सम्मान दिखा सकते हैं। हमें हर समय सावधान रहना चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि कोई स्वार्थी या नकारात्मक मनोवृत्ति हमारे सम्मान दिखाने में दख़ल दे। हमें ख़ास तौर से अपने परिवार के सदस्यों को सम्मान दिखाने, पति-पत्नी को एक दूसरे को सम्मान दिखाने और बच्चों को अपने माता-पिता को सम्मान दिखाने के बारे में सावधान रहना चाहिए। और मण्डली में, हमें संगी उपासकों को, और ख़ासकर, हमारे बीच अध्यक्षता के पद पर कड़ा परिश्रम करनेवालों को सम्मान दिखाने की बाध्यता है। इन सभी बातों में, ऊपरोक्त लोगों को उचित सम्मान देना हमारे फ़ायदे के लिए है, इसलिए कि, जैसा यीशु ने कहा: “लेने से देने में ज़्यादा ख़ुशी है।”—प्रेरितों २०:३५, NW.
आप किस तरह जवाब देंगे?
▫ क्यों और कैसे हमें सरकारी अधिकारियों का सम्मान करना है?
▫ नौकर और मालिक के रिश्ते में कौनसी बाइबल सलाह का अनुप्रयोग किया जा सकता है?
▫ परिवार में सम्मान किस तरह दिखाया जाना चाहिए?
▫ मण्डली में कौनसा ख़ास सम्मान दिखाया जाना चाहिए, और क्यों?
▫ दूसरों को सम्मान दिखाने में चूकने की मानवीय कमज़ोरियों पर किस तरह क़ाबू पाया जा सकता है?