भजन
दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत: यदूतून*+ का।
2 मैं गूँगा हो गया, कुछ नहीं बोला,+
अच्छी बातें कहने के लिए भी मैंने मुँह नहीं खोला,
मगर मेरा दर्द सहन से बाहर था।*
3 मेरा दिल सुलगने लगा,
मैं गहराई से सोचता रहा* और आग जलती रही।
फिर मैं बोल उठा,
4 “हे यहोवा, मुझे बता कि मेरा अंत कब होगा,
मेरे और कितने दिन रह गए हैं+
ताकि मैं जानूँ कि मेरी ज़िंदगी कितनी छोटी है।*
सच, हर इंसान बस एक साँस है,
फिर चाहे वह कितना ही सुरक्षित क्यों न दिखायी पड़े।+ (सेला )
6 सच, हर इंसान एक परछाईं जैसा है।
वह बेकार में दौड़-धूप* करता है।
दौलत का अंबार लगाता है, मगर नहीं जानता कि कौन उसका मज़ा लेगा।+
7 इसलिए हे यहोवा, मैं किस पर आशा रखूँ?
तू ही मेरी आशा है।
8 मुझे मेरे सब अपराधों से छुड़ा ले।+
मूर्खों को मेरी खिल्ली उड़ाने का मौका न दे।
10 तूने मुझ पर जो कहर ढाया, उसे हटा दे।
मैं तेरे हाथ की मार सहते-सहते पस्त हो गया हूँ।
11 तू आदमी को उसके किए की सज़ा देकर सुधारता है,+
वह जिन चीज़ों को खज़ाने की तरह सँभालकर रखता है,
उन्हें तू मिटा देता है जैसे कपड़-कीड़ा कपड़ा चट कर जाता है।
सच, हर इंसान बस एक साँस है।+ (सेला )
मेरे आँसुओं को अनदेखा न कर।
13 अपनी क्रोध-भरी नज़रें मुझसे फेर ले ताकि मेरी खुशी लौट आए,
इससे पहले कि मैं मरकर मिट जाऊँ।”