बुधवार, 11 जून
मुसीबत में मैंने यहोवा को पुकारा, मदद के लिए मैं अपने परमेश्वर को पुकारता रहा। अपने मंदिर से उसने मेरी सुनी।—भज. 18:6.
दाविद को एक-के-बाद-एक कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इसलिए वह कभी-कभी निराश हो जाता था। (भज. 18:4, 5) कई बार वह थककर चूर हो जाता था, अंदर से पूरी तरह टूट जाता था। ऐसे में भी यहोवा के प्यार और उसकी परवाह की वजह से उसने तरो-ताज़ा महसूस किया। यहोवा अपने इस दोस्त को मानो “हरे-भरे चरागाहों” में और “झील के किनारे आराम की जगह” ले गया। तब दाविद में मानो नयी जान आ गयी और वह खुशी से यहोवा की सेवा करता रहा। (भज. 18:28-32; 23:2) दाविद की तरह आज हम भी “यहोवा के अटल प्यार की वजह से ही” मुश्किलों में डटे रह पाते हैं। (विला. 3:22; कुलु. 1:11) दाविद के कई दुश्मन थे जो बहुत ताकतवर थे। और कई बार ऐसा हुआ जब उसकी जान पर बन आयी। लेकिन यहोवा दाविद से प्यार करता था, इसलिए वह सुरक्षित महसूस कर पाया। दाविद देख पाया कि यहोवा कैसे हर पल उसका साथ दे रहा है और इससे उसे बहुत तसल्ली मिली। इसलिए वह कह पाया, ‘यहोवा ने मेरा सारा डर दूर कर दिया।’ (भज. 34:4) कभी-कभी दाविद को डर तो लगता था, लेकिन वह जानता था कि यहोवा उससे प्यार करता है, इसलिए उसने डर को खुद पर हावी नहीं होने दिया। प्र24.01 पेज 29-30 पै 15-17
गुरुवार, 12 जून
उन पापियों की बातों में न आना, जो तुझे फुसलाते हैं।—नीति. 1:10.
यहोआश ने जो गलत फैसले किए, उनसे सबक सीखिए। महायाजक यहोयादा की मौत के बाद यहोआश बुरे लोगों से दोस्ती करने लगा। (2 इति. 24:17, 18) वह यहूदा के हाकिमों की सुनने लगा, जो यहोवा से प्यार नहीं करते थे। वे बहुत बुरे-बुरे काम करते थे। तो क्या आपको नहीं लगता कि यहोआश को ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए था? पर उसने उन्हीं की सुनी। फिर जब यहोआश की बुआ के बेटे जकरयाह ने उसे सुधारने की कोशिश की, तो उसने उसी को मरवा डाला। (2 इति. 24:20, 21; मत्ती 23:35) कितना बुरा हुआ! कितनी बेवकूफी की उसने! यहोआश ने शुरू में तो अच्छे काम किए, पर दुख की बात है, आगे चलकर वह झूठी उपासना करने लगा और एक कातिल बन गया। आखिर में उसके अपने ही सेवकों ने उसे मार डाला। (2 इति. 24:22-25) काश! यहोआश हमेशा यहोवा की सुनता और उन लोगों से दोस्ती करता, जो यहोवा से प्यार करते थे। तब उसकी ज़िंदगी कितनी अच्छी होती! प्र23.09 पेज 9 पै 6
शुक्रवार, 13 जून
मत डर।—लूका 5:10.
यीशु जानता था कि प्रेषित पतरस वफादार रह सकता है। इसलिए उसने पतरस से प्यार से कहा, “मत डर।” यीशु को पतरस पर जो भरोसा था, उसका उस पर बहुत गहरा असर हुआ। बाद में पतरस और उसके भाई अन्द्रियास ने मछली पकड़ने का अपना कारोबार छोड़ दिया और पूरे समय यीशु के साथ रहकर सेवा करने लगे। इस फैसले की वजह से यहोवा ने उन्हें ढेरों आशीषें दीं। (मर. 1:16-18) मसीह का चेला बनने की वजह से पतरस को बहुत-सी अनोखी आशीषें मिलीं। जब यीशु ने बीमार लोगों को ठीक किया, लोगों में से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाला, यहाँ तक कि जिनकी मौत हो गयी थी, उन्हें ज़िंदा किया, तो ये सारे चमत्कार पतरस ने अपनी आँखों से देखे। (मत्ती 8:14-17; मर. 5:37, 41, 42) पतरस ने एक दर्शन भी देखा। उसमें दिखाया गया था कि जब यीशु भविष्य में राजा बनेगा, तो उसकी कैसी महिमा होगी। यह दर्शन वह कभी नहीं भूल पाया होगा। (मर. 9:1-8; 2 पत. 1:16-18) सोचिए, यीशु का चेला बनने की वजह से पतरस को वे चीज़ें देखने का मौका मिला, जिनके बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं होगा। यह सोचकर पतरस को कितनी खुशी हुई होगी कि उसने अपनी भावनाओं को खुद पर हावी नहीं होने दिया, नहीं तो उसे ये आशीषें नहीं मिल पातीं। प्र23.09 पेज 21 पै 4-5