यशायाह
27 उस दिन यहोवा अपनी पैनी और डरावनी तलवार से,+
फुर्तीले लिव्यातान* पर वार करेगा,
उस बलखाते साँप लिव्यातान पर वार करेगा,
वह समुंदर में रहनेवाले उस बड़े जंतु को मार डालेगा।
2 उस दिन इस औरत* के लिए तुम यह गीत गाना:
“अंगूरों की बगिया में दाख-मदिरा बन रही है!*+
3 यहोवा कहता है, ‘मैं बगिया की हिफाज़त कर रहा हूँ,+
4 मैं अब उससे गुस्सा नहीं हूँ।+
अगर कोई मेरी बगिया में कँटीली झाड़ियाँ और जंगली पौधे बोएगा,
तो मैं उससे लड़ूँगा और उसी वक्त उन्हें कुचल दूँगा, भस्म कर दूँगा।
5 अगर वह नहीं चाहता कि ऐसा हो, तो उससे कह
कि वह मेरे मज़बूत गढ़ में आए और मेरे साथ शांति कायम करे,
हाँ, वह आकर शांति कायम करे।’”
6 आनेवाले दिनों में याकूब जड़ पकड़ेगा,
इसराएल में फूल खिलेंगे और कोपलें निकलेंगी,+
उसकी पैदावार से धरती भर जाएगी।+
7 उसे जिस सख्ती से मारा गया, क्या उतनी सख्ती से मारना चाहिए था?
उसे जैसी मौत मिली, क्या ऐसी मौत मिलनी चाहिए थी?
8 तू उस नगरी का सामना करेगा, चिल्लाकर उसे दूर भगा देगा।
तू मानो पूर्वी हवा के तेज़ झोंके से उसे उड़ा देगा।+
वह* वेदी के सब पत्थरों को चूना पत्थर की तरह चूर-चूर कर देगा।
एक भी पूजा-लाठ* या धूप-स्तंभ नहीं बचेगा।+
वहाँ बछड़ा चरेगा और आराम करेगा,
वह उसकी सारी टहनियाँ चट कर जाएगा।+
उन लोगों में कोई समझ नहीं,+
इसलिए उनका बनानेवाला उन पर दया नहीं करेगा,
उन्हें रचनेवाला उन पर कोई रहम नहीं खाएगा।+
12 हे इसराएल के लोगो, जैसे कोई पेड़ से एक-एक फल तोड़कर उन्हें इकट्ठा करता है, यहोवा भी महानदी* से लेकर मिस्र घाटी*+ तक के इलाकों से तुम्हें इकट्ठा करेगा।+ 13 उस दिन ज़ोर से नरसिंगा फूँका जाएगा+ और जो अश्शूर में मर-मरके जी रहे थे+ और जो मिस्र में तितर-बितर हो गए थे,+ वे यरूशलेम के पवित्र पहाड़ पर आएँगे और यहोवा के आगे दंडवत करेंगे।+