यशायाह
40 तुम्हारा परमेश्वर कहता है,
3 वीराने में कोई पुकार रहा है,
4 हरेक घाटी भर दी जाए,
हरेक पहाड़ और पहाड़ी नीची की जाए,
ऊँचे-नीचे रास्ते सपाट किए जाएँ
और ऊबड़-खाबड़ ज़मीन को मैदान बना दिया जाए।+
6 सुन, कोई कह रहा है, “आवाज़ लगा!”
दूसरे ने पूछा, “क्या आवाज़ लगाऊँ?”
“सब इंसान हरी घास के समान हैं,
उनका अटल प्यार मैदान के फूलों की तरह है।+
सच, लोग हरी घास के समान हैं।
हे यरूशलेम को खुशखबरी सुनानेवाली,
ऊँची आवाज़ में इसे सुना।
हाँ, ऊँची आवाज़ में सुना, डर मत।
यहूदा के शहरों में ऐलान कर, “वह रहा तुम्हारा परमेश्वर!”+
देख, परमेश्वर अपने साथ इनाम लेकर आ रहा है,
जो मज़दूरी वह देगा, वह उसके पास है।+
11 वह चरवाहे की तरह अपने झुंड की देखभाल करेगा,+
अपने हाथों से मेम्नों को इकट्ठा करेगा,
उन्हें अपनी गोद में* उठाएगा,
दूध पिलानेवाली भेड़ों को धीरे-धीरे ले चलेगा।+
12 किसने सागर का पानी अपने चुल्लू में नापा है?+
किसने आकाश को बित्ते* से नापा है?
किसने पृथ्वी की धूल को पैमाने में भरा है?+
किसने पहाड़ों को तराज़ू में
और पहाड़ियों को पलड़े में तौला है?
14 समझ पाने के लिए उसने किससे मशविरा किया?
या न्याय करना उसे किसने सिखाया?
किसने उसे ज्ञान दिया
या सच्ची समझ की राह दिखायी?+
15 देखो! सब राष्ट्र उसके सामने ऐसे हैं,
जैसे बाल्टी में पानी की एक बूँद हो,
जैसे तराज़ू के पलड़ों पर जमी धूल हो।+
वह द्वीपों को धूल के समान उठा लेता है।
16 लबानोन के सारे पेड़ भी उसकी वेदी के लिए कम पड़ेंगे,
वहाँ के जंगली जानवर भी होम-बलि के लिए कम पड़ेंगे।
17 सभी राष्ट्र उसके सामने ऐसे हैं मानो उनका कोई वजूद ही नहीं,+
उसकी नज़र में वे कुछ नहीं, उनका कोई मोल नहीं।+
18 तुम परमेश्वर की तुलना किससे करोगे?+
ऐसी कौन-सी चीज़ है जो दिखने में उसके जैसी है?+
20 या एक आदमी चढ़ावे के लिए ऐसा पेड़ चुनता है+ जिसमें कीड़े न लगें।
फिर वह जाकर एक कुशल कारीगर को ढूँढ़ लाता है
कि वह ऐसी मूरत बनाए जो मज़बूती से खड़ी रह सके।+
21 क्या तुम नहीं जानते? क्या तुमने नहीं सुना?
क्या तुम्हें शुरू से नहीं बताया गया?
क्या तुमने उस सबूत पर ध्यान नहीं दिया,
जो पृथ्वी की नींव डालने के समय से मौजूद है?+
22 यही कि परमेश्वर पृथ्वी के घेरे* के ऊपर विराजमान है,+
उसके सामने धरती के निवासी टिड्डियों जैसे हैं।
वह आसमान को महीन चादर की तरह फैलाए हुए है,
उसे तंबू की तरह ताने हुए है।+
24 अभी-अभी वे रोपे गए थे,
अभी-अभी वे बोए गए थे,
उनके तने ने मिट्टी में जड़ भी नहीं पकड़ी थी
कि उन पर फूँक मारी गयी और वे सूख गए,
आँधी आकर उन्हें भूसे की तरह उड़ा ले गयी।+
25 पवित्र परमेश्वर कहता है,
“तुम किससे मेरी तुलना करोगे? मुझे किसके बराबर ठहराओगे?
26 ज़रा अपनी आँखें उठाकर आसमान को देखो,
किसने इन तारों को बनाया?+
उसी ने जो गिन-गिनकर उनकी सेना को बुलाता है,
एक-एक का नाम लेकर उसे पुकारता है।+
उसकी ज़बरदस्त ताकत और विस्मयकारी शक्ति की वजह से,+
उनमें से एक भी उसके सामने गैर-हाज़िर नहीं रहता।
27 हे याकूब, तू क्यों यह कहता है,
हे इसराएल, तू क्यों ऐसा बोलता है,
‘मेरी राह यहोवा से छिपी हुई है,
परमेश्वर से मुझे कोई न्याय नहीं मिलता’?+
28 क्या तू नहीं जानता? क्या तूने नहीं सुना?
पृथ्वी की सब चीज़ों का बनानेवाला यहोवा, युग-युग का परमेश्वर है।+