अय्यूब
23 तब अय्यूब ने जवाब दिया,
3 काश! मुझे पता होता परमेश्वर कहाँ मिलेगा,+
तो मैं उसके निवास-स्थान में जाता।+
4 अपना मामला उसके सामने पेश करता,
अपनी सफाई में एक-के-बाद-एक दलीलें देता।
5 उसकी बातों को ध्यान से सुनता
और समझने की कोशिश करता।
6 क्या वह मुझसे लड़ने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देगा?
नहीं, नहीं, वह मेरी बात ज़रूर सुनेगा।+
7 तभी सीधा-सच्चा इंसान उसके साथ अपना मामला निपटा सकेगा।
इस तरह मेरा न्यायी मुझे हमेशा के लिए बाइज़्ज़त बरी कर देगा।
8 मगर जब मैं उसे ढूँढ़ने पूरब में जाता हूँ तो वह वहाँ नहीं मिलता,
पश्चिम में जाता हूँ तो वहाँ भी नहीं मिलता।
9 जब वह उत्तर में काम करता है तो मैं उसे नहीं देख पाता,
वह दक्षिण की ओर जाता है, तब भी वह मुझे नज़र नहीं आता।
10 पर वह अच्छी तरह जानता है, मैं किस राह पर चला हूँ।+
जब वह मुझे तपा लेगा, तब मैं खरे सोने जैसा हो जाऊँगा।+
12 उसके मुँह से निकली हर आज्ञा का मैंने पालन किया है,
जितना करना चाहिए था, उससे कहीं बढ़कर उसकी बात मानी है।+
13 एक बार जब वह ठान लेता है, तो कौन उसे रोक सकता है?+
जब उसे कुछ करना होता है, तो करके ही रहता है।+
14 मेरे साथ उसने जो-जो करने की ठानी है वह सब करेगा,
ऐसी बहुत-सी बातें हैं जो उसने सोच रखी हैं।
15 परमेश्वर के कारण मैं गहरी चिंता में हूँ,
उसके बारे में सोचकर मेरी श्रद्धा और बढ़ जाती है।
16 उसने मेरा मन कच्चा कर दिया है,
सर्वशक्तिमान ने मुझे डरा दिया है।