भजन
दाविद की रचना। मश्कील।*
32 सुखी है वह इंसान जिसका अपराध माफ किया गया है, जिसका पाप ढाँप दिया गया है।*+
3 जब मैं चुप रहा तो मैं दिन-भर कराहता रहा जिससे मेरी हड्डियाँ गलने लगीं।+
4 क्योंकि दिन-रात तेरा हाथ* मुझ पर भारी था।+
मेरा दमखम ऐसे खत्म हो गया* जैसे गरमियों की कड़ी धूप से पानी सूख जाता है। (सेला )
मैंने कहा, “मैं यहोवा के सामने अपने अपराध मान लूँगा।”+
तब तूने मेरे पाप, मेरे गुनाह माफ कर दिए।+ (सेला )
फिर सैलाब भी उस तक नहीं पहुँचेगा।
तू मुझे छुड़ाकर मेरे चारों ओर खुशियों का समाँ बाँध देगा।+ (सेला )
मैं तुझ पर हर पल नज़र रखकर तुझे सलाह दूँगा।+
9 तू घोड़े या खच्चर की तरह न बनना जिसमें समझ नहीं होती,+
जिसकी उमंग को लगाम या रस्सी से काबू करना पड़ता है,
तभी वह तेरे पास आएगा।”
11 नेक लोगो, यहोवा के कारण मगन हो, आनंद मनाओ,
सीधे-सच्चे मनवालो, सब खुशी से जयजयकार करो।