सभोपदेशक
11 अपनी रोटी नदी में डाल दे+ और बहुत दिनों बाद वह तुझे दोबारा मिलेगी।+ 2 जो तेरे पास है उसमें से कुछ, सात लोगों में बल्कि आठ लोगों में बाँट दे+ क्योंकि तू नहीं जानता कि धरती पर क्या मुसीबत आनेवाली है।
3 अगर बादल पानी से भरे हों तो वे धरती पर बरसेंगे ही। और पेड़ चाहे उत्तर में गिरे या दक्षिण में, वह जहाँ गिरेगा वहीं पड़ा रहेगा।
4 जो हवा का रुख देखता है वह बीज नहीं बोएगा और जो बादलों को ताकता है वह फसल नहीं काटेगा।+
5 जैसे तू यह नहीं जानता कि माँ के पेट में बच्चे की हड्डियाँ कैसे बनती हैं,*+ वैसे ही तू सच्चे परमेश्वर का काम नहीं जानता जो सबकुछ करता है।+
6 सुबह अपना बीज बो और शाम तक अपना हाथ मत रोक+ क्योंकि तू नहीं जानता कौन-सा बीज उगेगा, यहाँ वाला या वहाँ वाला, या फिर दोनों उगेंगे।
7 उजाला अच्छा लगता है और सूरज की रौशनी आँखों को सुख देती है। 8 अगर एक इंसान कई साल जीए, तो उसे हर दिन का मज़ा लेना चाहिए।+ मगर उसे याद रखना चाहिए कि जब विपत्ति के दिन आएँगे, तो वे लंबे समय तक चलेंगे। और आनेवाले वे दिन व्यर्थ हैं।+
9 हे नौजवान, अपनी जवानी में खुशियाँ मना और जवानी के दिनों में तेरा दिल खुश रहे। अपने दिल की सुन और तेरी आँखें तुझे जिधर ले जाएँ, उधर जा। मगर जान ले कि सच्चा परमेश्वर तेरे सभी कामों का तुझसे हिसाब लेगा।*+ 10 इसलिए अपने दिल से दुख देनेवाली बातें निकाल फेंक और अपने शरीर से नुकसान पहुँचानेवाली बातें दूर कर। क्योंकि लड़कपन और जवानी दोनों व्यर्थ हैं।+