24 बुरे लोगों से ईर्ष्या मत कर
और उनकी दोस्ती के लिए मत तरस।+
2 क्योंकि उनका मन हिंसा करने की सोचता रहता है
और उनके होंठ दुख देने की बातें करते हैं।
3 बुद्धि से घर बनता है+
और पैनी समझ से यह कायम रहता है।
4 ज्ञान की बदौलत इसके कमरे
तरह-तरह की कीमती और मनभावनी चीज़ों से भरे रहते हैं।+
5 बुद्धिमान इंसान के पास ताकत होती है,+
ज्ञान से वह और भी ताकत हासिल कर लेता है।
6 सही मार्गदर्शन लेकर अपनी जंग लड़,+
बहुतों की सलाह से तू जीत हासिल कर पाएगा।+
7 सच्ची बुद्धि मूर्ख की पहुँच से बाहर है,+
उसके पास शहर के फाटक पर कहने को कुछ नहीं होता।
8 जो बुराई करने के लिए साज़िश करता है,
कहा जाएगा कि वह साज़िश करने में उस्ताद है।+
9 मूर्ख की योजनाएँ पाप की ओर ले जाती हैं,
हँसी-ठट्ठा करनेवालों से लोग घिन करते हैं।+
10 मुश्किल घड़ी में अगर तू निराश हो जाए,
तो तुझमें बहुत कम ताकत रह जाएगी।
11 जिन्हें मौत की तरफ ले जाया जा रहा है उन्हें बचा ले,
जो विनाश की कगार पर हैं, उन्हें गिरने से रोक ले।+
12 अगर तू कहे, “मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता,”
तो क्या दिलों का जाँचनेवाला यह भाँप न लेगा?+
तुझ पर नज़र रखनेवाला सब जानता है,
वह हरेक को उसके कामों का फल देगा।+
13 हे मेरे बेटे, शहद खा क्योंकि यह बहुत अच्छा है,
छत्ते का शहद खाने में बड़ा मीठा लगता है।
14 इसी तरह, बुद्धि भी तेरे लिए अच्छी है,+
अगर तू इसे पा ले तो तेरा भविष्य सुनहरा होगा
और तेरी आशा नहीं मिटेगी।+
15 दुष्टों की तरह नेक जन के घर पर घात मत लगा,
उसके आशियाने को मत उजाड़।
16 नेक जन चाहे सात बार गिरे, तब भी उठ खड़ा होगा,+
लेकिन अगर दुष्ट मुसीबत की वजह से ठोकर खाए, तो वह नहीं उठेगा।+
17 जब तेरा दुश्मन गिरे तब खुश मत हो
और जब वह ठोकर खाकर उठ न पाए,
तो तेरा मन खुशी से फूल न उठे।+
18 नहीं तो यहोवा यह देखकर नाराज़ होगा
और अपना कहर उस पर से हटा लेगा।+
19 बुरे लोगों को देखकर मत कुढ़
और न ही दुष्टों से ईर्ष्या कर,
20 क्योंकि बुराई करनेवालों का कोई भविष्य नहीं,+
दुष्टों का दीपक बुझा दिया जाएगा।+
21 हे मेरे बेटे, यहोवा और राजा का डर मान,+
बगावत करनेवालों से दोस्ती मत कर,+
22 क्योंकि उन पर अचानक विपत्ति आ पड़ेगी।+
और कौन जाने वे दोनों उन पर कैसी विपत्ति लाएँ!+
23 बुद्धिमानों ने भी कहा है:
न्याय करते वक्त किसी का पक्ष लेना अच्छा नहीं।+
24 जो दुष्ट से कहता है, “तू नेक है,”+
देश-देश के लोग उसे शाप देंगे और राष्ट्र उसे धिक्कारेंगे।
25 लेकिन जो दुष्ट को डाँटता है, उसका भला होगा,+
उसे बढ़िया-बढ़िया आशीषें मिलेंगी।+
26 जो सच-सच बोलता है लोग उसका आदर करते हैं।+
27 पहले बाहर के कामों की योजना बना और अपना खेत तैयार कर,
फिर अपना घर बना।
28 बिना सबूत के अपने पड़ोसी के खिलाफ गवाही मत देना,+
दूसरों को धोखा देने के लिए झूठी बातें मत बोलना।+
29 यह मत कहना, “जैसा उसने मेरे साथ किया, मैं भी उसके साथ वैसा ही करूँगा।
गिन-गिनकर बदला लूँगा।”+
30 मैं आलसी+ के खेत के पास से जा रहा था,
उस इंसान के अंगूरों के बाग से, जिसमें समझ ही नहीं।
31 तब मैंने देखा वहाँ जंगली पौधे उग आए हैं,
ज़मीन बिच्छू-बूटी के पौधों से भर चुकी है
और पत्थर की दीवार टूटी पड़ी है।+
32 यह देखकर मैंने मन में गाँठ बाँध ली,
हाँ, मैंने देखकर यह सबक सीखा:
33 थोड़ी देर और सो ले, एक और झपकी ले ले,
हाथ बाँधकर थोड़ा सुस्ता ले,
34 तब गरीबी, लुटेरे की तरह तुझ पर टूट पड़ेगी,
तंगी, हथियारबंद आदमी की तरह हमला बोल देगी।+