अय्यूब
13 यह सब मैंने अपनी आँखों से देखा है,
अपने कानों से सुना और समझा है।
2 जितना तुम जानते हो, उतना मैं भी जानता हूँ,
मैं किसी तरह तुमसे कम नहीं।
6 अब ज़रा मेरी दलीलें सुनो,
मैं जो कहूँगा, उस पर ध्यान दो।
7 परमेश्वर की तरफ से क्या तुम टेढ़ी बातें कहोगे?
छल-कपट का सहारा लोगे?
8 सच्चे परमेश्वर का पक्ष लेकर मेरे खिलाफ लड़ोगे?
उसकी वकालत करोगे?
9 अगर उसने तुम्हें जाँच लिया तब क्या होगा?+
क्या तुम उसे झाँसा दे सकोगे, मानो वह कोई नश्वर इंसान हो?
10 अगर तुम ढोंग करने की कोशिश करो,
तो वह ज़रूर तुम्हें डाँटेगा।
11 क्या उसका गौरव देखकर तुम आतंक से न भर जाओगे?
क्या उसका खौफ तुम पर नहीं छा जाएगा?
13 खामोश रहो और मुझे बोलने दो,
फिर मेरे साथ जो होगा, देखा जाएगा।
17 मेरी बात पर कान लगाओ,
मेरा बयान ध्यान से सुनो।
18 अब मैं अपना मुकदमा लड़ने के लिए तैयार हूँ,
मैं जानता हूँ मैं बेगुनाह हूँ।
19 कौन मुझसे बहसबाज़ी करेगा?
अगर मैं चुप रहा तो मैं मर जाऊँगा।*
22 या तो तू बोल और मैं जवाब दूँगा,
या फिर मुझे बोलने दे और तू जवाब दे।
23 मुझसे क्या गलती हुई है, क्या पाप किया है मैंने?
मेरा अपराध तो बता, ऐसा क्या हुआ है मुझसे?
25 हवा में उड़ते पत्ते को तू क्या डराएगा?
तिनके के पीछे पड़कर तुझे क्या मिलेगा?
26 तूने मुझ पर लगे एक-एक इलज़ाम का हिसाब रखा है,
तू मेरी जवानी के पापों का लेखा अब मुझसे ले रहा है।
27 तूने मेरे पैर काठ में कस दिए हैं,
तू मेरी हर हरकत पर नज़र रखता है,
मेरे पैरों के निशान ढूँढ़-ढूँढ़कर मेरा पीछा करता है।