यशायाह
त्योहारों का उसका सिलसिला+ जारी रहे,
साल-दर-साल यह चलता रहे।
2 मगर मैं अरीएल पर आफत लाऊँगा,+
हर तरफ मातम और विलाप होगा,+
मेरे लिए यह नगरी वेदी का अग्नि-कुंड बन जाएगी।+
4 तुझे नीचे ज़मीन पर पटक दिया जाएगा,
तू वहाँ से बोलेगी, मगर तेरी आवाज़ धूल में दबी रह जाएगी।
ज़मीन से तेरी आवाज़ ऐसी लगेगी,+
मानो कोई मरे हुओं से संपर्क करनेवाला बोल रहा हो।
तेरी चहचहाहट मिट्टी से सुनायी देगी।
यह सब अचानक पलक झपकते ही होगा!+
6 मैं, सेनाओं का परमेश्वर यहोवा तुझे छुड़ाने के लिए कदम उठाऊँगा,
उस वक्त बादल गरजेंगे, भूकंप होगा, भयानक शोर सुनायी देगा,
ज़ोरदार आँधी-तूफान चलेगा और भस्म करनेवाली आग की लपटें उठेंगी।”+
7 तब राष्ट्रों की जो भीड़ अरीएल से युद्ध करेगी,+
जो लोग उससे लड़ेंगे,
उस पर हमला करने के लिए मीनारें खड़ी करेंगे,
उस पर मुसीबतें लाएँगे,
वे सब एक सपना बनकर रह जाएँगे, रात में देखा गया सपना।
8 यह ऐसा होगा मानो कोई भूखा इंसान सपने में खाना खा रहा हो,
मगर जागने पर उसका पेट खाली ही है।
जैसे कोई प्यासा सपने में पानी पी रहा हो,
मगर नींद खुलने पर वह प्यासा और थका-माँदा ही है।
यही हाल राष्ट्रों की उस भीड़ का होगा,
जो सिय्योन पहाड़ से लड़ेगी।+
वे नशे में हैं मगर दाख-मदिरा के नशे में नहीं,
वे लड़खड़ा रहे हैं, मगर शराब पीकर नहीं।
10 यहोवा ने तुम लोगों को मानो गहरी नींद में डाल दिया है,+
उसने तुम्हारी आँखों को, हाँ, भविष्यवक्ताओं को अंधा कर दिया है,+
उसने तुम्हारी अक्ल पर, हाँ, दर्शियों पर परदा डाल दिया है।+
11 हर दर्शन तुम्हारे लिए मुहरबंद किताब जैसा है।+ जब किसी पढ़े-लिखे को यह किताब देकर कहा जाएगा, “ज़रा इसे ज़ोर से पढ़ना,” तो वह कहेगा, “मैं कैसे पढ़ूँ, यह तो मुहरबंद है।” 12 और जब इसे किसी अनपढ़ को देकर कहा जाएगा, “ज़रा पढ़ना इसे,” तो वह कहेगा, “मुझे पढ़ना नहीं आता।”
13 यहोवा कहता है, “ये लोग अपने मुँह और होंठों से तो मेरा आदर करते हैं,+
मगर इनका दिल मुझसे कोसों दूर रहता है।
वे कहने को तो मेरा डर मानते हैं,
मगर इंसानों की आज्ञाओं पर चलते हैं।+
14 इसलिए मैं एक बार फिर इन लोगों के साथ कुछ अनोखा करूँगा,+
एक-से-एक अद्भुत काम करूँगा।
तब उनके बुद्धिमानों की बुद्धि खत्म हो जाएगी,
उनके समझदारों की समझ गायब हो जाएगी।”+
15 धिक्कार है उन पर, जो यहोवा से अपनी योजनाएँ छिपाने के लिए क्या-कुछ नहीं करते।+
वे अँधेरी जगहों में छिपकर काम करते हैं
और कहते हैं, “हमें कौन देख रहा है?
किसे पता हम क्या कर रहे हैं?”+
क्या मिट्टी कुम्हार के बराबर हो सकती है?+
क्या बनी हुई चीज़ अपने बनानेवाले के बारे में कह सकती है,
“उसने मुझे नहीं बनाया”?+
या रची गयी चीज़ अपने रचनेवाले के बारे में कह सकती है,
“उसमें कुछ समझ नहीं”?+
18 उस दिन बहरे भी उस किताब की बातें सुनेंगे,
अंधों की आँखों के सामने से धुँधलापन और अंधकार दूर हो जाएगा।+
19 दीन जन यहोवा के कारण फूले नहीं समाएँगे
और गरीब, इसराएल के पवित्र परमेश्वर के कारण खुशियाँ मनाएँगे।+
20 क्योंकि ज़ालिम नहीं रहेगा,
शेखी बघारनेवाला खत्म हो जाएगा
और दूसरों को नुकसान पहुँचाने की ताक में रहनेवाला मिट जाएगा।+
21 वे सभी मिट जाएँगे जो झूठ बोलकर दूसरों को दोषी ठहराते हैं,
जो शहर के फाटक पर न्याय के रखवाले के लिए फंदा बिछाते हैं+
और खोखली दलीलें देते हैं ताकि नेक जन को इंसाफ न मिले।+
22 अब्राहम का छुड़ानेवाला यहोवा,+ अब याकूब के घराने से कहता है,
23 क्योंकि जब वह अपने बच्चों को, जो मेरे हाथ की कारीगरी हैं,+
अपने आस-पास देखेगा,
तो उनके साथ मिलकर मेरे नाम का आदर करेगा,
हाँ, वे याकूब के पवित्र परमेश्वर का आदर करेंगे
और इसराएल के परमेश्वर के लिए श्रद्धा से भर जाएँगे।+
24 जिनके मन भटक गए थे वे समझ हासिल करेंगे
और जो शिकायत करते थे वे सीखने को तैयार होंगे।”