यशायाह
मैं तेरे वंश पर अपनी पवित्र शक्ति उँडेलूँगा+
और तेरे वंशजों पर आशीषों की बौछार करूँगा।
5 कोई कहेगा, “मैं यहोवा का हूँ।”+
कोई अपना नाम याकूब रखेगा,
कोई अपने हाथ पर लिखेगा, “मैं यहोवा का हूँ।”
तो कोई इसराएल का नाम अपनाएगा।’
‘मैं ही पहला और मैं ही आखिरी हूँ।+
मुझे छोड़ कोई परमेश्वर नहीं।+
अगर कोई है तो बताए, आकर मेरे सामने इसके सबूत पेश करे,+
वह करके दिखाए जो मैं अपने लोगों को अस्तित्व में लाने के समय से कर रहा हूँ।
क्या वह ऐसी बातें बता सकेगा जो बस होनेवाली हैं और जो आगे चलकर होंगी?
क्या मैंने पहले से नहीं बताया था, तुममें से हरेक को नहीं कहा था?
तुम मेरे साक्षी हो।+
क्या मेरे सिवा कोई परमेश्वर है?
नहीं! मुझे छोड़ दूसरी कोई चट्टान नहीं,+ मैं तो किसी को नहीं जानता।’”
उनके साक्षी बनकर वे* न तो कुछ देख सकते हैं न समझ सकते हैं,+
इसलिए इन मूरतों को बनानेवाले शर्मिंदा होंगे।+
11 देखो, उसके सभी साथी शर्मिंदा किए जाएँगे।+
मूरत बनानेवाले कारीगर तो इंसान हैं।
वे सब इकट्ठा हों और सामने आएँ,
वे सब खौफ खाएँगे और शर्मिंदा किए जाएँगे।
12 लोहार अपने औज़ार से लोहे को पकड़कर अंगारों पर रखता है,
अपने मज़बूत हाथों से हथौड़ा चलाता है और उसे आकार देता है।+
काम करते-करते उसे भूख लगती है और उसमें ताकत नहीं रहती,
वह पानी नहीं पीता और थककर चूर हो जाता है।
13 बढ़ई नापने की डोरी से लकड़ी नापता है,
लाल खड़िया से निशान लगाता है,
फिर छेनी से उसे तराशता है और परकार से उसे नापता रहता है,
उसे इंसान का आकार देता है,+
इंसान की तरह उसे सुंदर बनाता है कि वह मंदिर* में रखी जा सके।+
14 देवदार के पेड़ काटनेवाला,
एक खास किस्म का पेड़ चुनता है, बाँज का पेड़
और जंगल में उसे बाकी पेड़ों के बीच बढ़ने देता है।+
वह एक और पेड़* लगाता है, जो बारिश के पानी में बढ़ता रहता है।
15 फिर उसकी लकड़ी ईंधन के काम आती है।
वह उसे जलाकर आग तापता है, उस पर रोटी पकाता है,
फिर उसी लकड़ी से देवता बनाकर उसे पूजता है,
एक मूरत तराशकर उसके आगे दंडवत करता है।+
16 लकड़ी के आधे हिस्से से वह आग जलाता है,
फिर उसी पर गोश्त भूनता है, जी-भरकर खाता है
और आग सेंककर कहता है,
“वाह! इसकी गरमी अच्छी लग रही है।”
17 बची हुई लकड़ी से वह देवता की एक मूरत बनाता है,
उसके आगे झुककर उसकी पूजा करता है
और उससे प्रार्थना करता है,
“मुझे बचा ले क्योंकि तू ही मेरा ईश्वर है।”+
18 ऐसे लोग कुछ नहीं जानते, कुछ नहीं समझते,+
क्योंकि उनकी आँखें बंद हैं, वे कुछ नहीं देख सकते
और उनका मन अंदरूनी समझ से खाली है।
19 कोई अपने मन में नहीं सोचता,
न किसी में इतना ज्ञान और समझ है कि वह कहे,
“लकड़ी का आधा हिस्सा तो मैंने जला दिया,
उसके अंगारों पर रोटी पकायी और गोश्त भूनकर खाया।
अब क्या बाकी हिस्से से मैं घिनौनी चीज़ बनाऊँ?+
पेड़ के इस लट्ठे* को पूजूँ?”
20 वह मानो राख से अपना पेट भर रहा है,
उसका मन बहक गया है और उसे गुमराह कर रहा है।
वह खुद को नहीं बचा सकता, न वह यह कबूल करता है
कि “मेरे दाएँ हाथ में यह चीज़ एकदम बेकार है।”
21 “हे याकूब, हे इसराएल, मेरी इन बातों को याद रखना,
क्योंकि तू मेरा सेवक है।
तुझे मैंने रचा है और तू मेरा सेवक है।+
हे इसराएल, मैं तुझे नहीं भूलूँगा।+
मेरे पास लौट आ कि मैं तुझे छुड़ा लूँ।+
23 हे आकाश, खुशी से चिल्ला!
क्योंकि यहोवा ने यह काम किया है।
हे धरती की गहराइयो, जयजयकार करो!
हे पहाड़ो, खुशियाँ मनाओ!+
हे जंगल और उसके सब पेड़ो, खुशी से झूमो!
क्योंकि यहोवा ने याकूब को छुड़ा लिया है,
वह इसराएल में अपनी महिमा दिखाता है।”+
“मैं यहोवा हूँ, मैंने सबकुछ बनाया है।
मैंने आकाश को ताना है+ और धरती को फैलाया है।+
उस वक्त मेरे साथ कौन था?
25 मैं झूठे भविष्यवक्ताओं* की निशानियों को झूठा साबित करूँगा,
ज्योतिषियों का मज़ाक बना दूँगा।+
मैं बुद्धिमानों को उलझन में डाल दूँगा,
उनके ज्ञान को मूर्खता में बदल दूँगा।+
26 मैं अपने सेवक की बातों को सच साबित करूँगा,
अपने दूतों की भविष्यवाणियों को पूरा करूँगा।+
मैं यरूशलेम नगरी के बारे में कहता हूँ, ‘वह बसायी जाएगी।’+
यहूदा के शहरों के बारे में कहता हूँ, ‘उन्हें दोबारा खड़ा किया जाएगा।+
मैं उनके खंडहरों को फिर से बनाऊँगा।’+
27 मैं गहरे पानी से कहता हूँ, ‘भाप बनकर उड़ जा,
मैं तेरी सारी नदियों को सुखा दूँगा।’+
28 मैं कुसरू के बारे में कहता हूँ,+ ‘वह मेरा ठहराया हुआ चरवाहा है,
वह मेरी एक-एक मरज़ी पूरी करेगा।’+
यरूशलेम नगरी के बारे में कहता हूँ, ‘वह दोबारा बनायी जाएगी।’
और मंदिर के बारे में कहता हूँ ‘तेरी नींव डाली जाएगी।’”+