भजन
कोरह के वंशजों+ का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।
49 देश-देश के लोगो, सुनो।
4 मैं एक नीतिवचन पर ध्यान दूँगा,
सुरमंडल बजाकर अपनी पहेली का मतलब खुलकर समझाऊँगा।
5 जब मैं मुश्किल दौर से गुज़रूँ तो क्यों घबराऊँ?+
जब मैं उन लोगों की बुराई से घिर जाऊँ जो मुझे गिराना चाहते हैं तो क्यों डरूँ?
6 जो अपने धन पर भरोसा रखते हैं,+
अपनी दौलत के अंबार पर शेखी मारते हैं,+
7 उनमें से कोई भी अपने भाई को हरगिज़ नहीं छुड़ा सकता,
न ही उसके लिए परमेश्वर को फिरौती दे सकता है+
8 (उनकी जान की फिरौती* की कीमत इतनी ज़्यादा है
कि वे उसे कभी नहीं चुका सकते)
10 वे देखते हैं कि जैसे मूर्ख और नासमझ मिट जाते हैं,
वैसे ही अक्लमंद लोग भी मरते हैं+
और उन्हें अपनी दौलत दूसरों के लिए छोड़नी पड़ती है।+
11 उनकी दिली तमन्ना है कि उनके घर हमेशा टिके रहें,
उनके तंबू पीढ़ी-दर-पीढ़ी खड़े रहें।
वे अपनी जायदाद का नाम अपने नाम पर रखते हैं।
12 मगर इंसान का चाहे कितना ही मान-सम्मान क्यों न हो, वह हमेशा जीता न रहेगा,+
वह जानवरों से कुछ बढ़कर नहीं जो मिट जाते हैं।+
13 मूर्खों का यही अंजाम होता है+
और उनके रंग-ढंग अपनानेवालों और उनकी खोखली बातों से मज़ा लेनेवालों का भी यही हश्र होता है। (सेला )
14 जैसे भेड़ों को हलाल के लिए भेजा जाता है, वैसे ही उन्हें कब्र भेज दिया जाएगा।
मौत उन्हें हाँकती हुई ले जाएगी,
नया सवेरा होने पर सीधे-सच्चे लोग उन पर राज करेंगे,+
उनका नामो-निशान मिट जाएगा,+
16 किसी आदमी को मालामाल होते देख डरना मत,
उसके घर का वैभव बढ़ता देख घबराना मत,
17 क्योंकि मरने के बाद वह अपने साथ कुछ नहीं ले जा सकता,+
उसका ठाट-बाट उसके साथ नहीं जाएगा।+
18 सारी ज़िंदगी वह खुद पर गुमान करता है।+
(जब तेरे पास दौलत होती है, तो लोग तेरी वाह-वाही करते हैं।)+
19 मगर आखिर में वह अपने पुरखों की तरह मर जाता है।
वे फिर कभी उजाला नहीं देखेंगे।