लूका
अध्ययन नोट—अध्याय 10
इसके बाद: लूक 10:1 से 18:14 तक जो घटनाएँ दर्ज़ हैं वे खुशखबरी की दूसरी किताबों में नहीं पायी जातीं। लेकिन इन अध्यायों में जिन विषयों पर जानकारी दी गयी है उनमें से कुछ विषय खुशखबरी की दूसरी किताबों में पाए जाते हैं। मुमकिन है कि जब लेखकों ने यीशु की शुरूआती सेवा के बारे में ब्यौरा लिखा तो उन्होंने उसमें इन विषयों को शामिल किया। ऐसा लगता है कि लूका ने जिन घटनाओं के बारे में लिखा, वे ईसवी सन् 32 के पतझड़ में ‘डेरों (या छप्परों) के त्योहार’ के बाद घटी थीं। (अति. क7 देखें।) इस दौरान ज़ाहिर है कि यीशु ने इसराएल के दक्षिणी भाग में, यानी यरूशलेम और उसके आस-पास के इलाकों में, साथ ही यहूदिया और पेरिया ज़िलों में सेवा करने पर ध्यान दिया। उसने धरती पर आखिरी छ: महीने इन्हीं इलाकों में प्रचार किया।
70: कुछ शुरूआती हस्तलिपियों में यहाँ “72” लिखा है। इसलिए कुछ अनुवादों में यही संख्या लिखी है। लेकिन शुरू की कई अधिकृत हस्तलिपियों में “70” लिखा है। जैसे, चौथी सदी की कोडेक्स साइनाइटिकस और पाँचवीं सदी की कोडेक्स एलेक्ज़ैंड्रिनस और कोडेक्स एफ्रीमी सीरि रिसक्रिपटस। इस बारे में बाइबल के विद्वानों की अलग-अलग राय है, लेकिन संख्या के इतने छोटे फर्क से आयत का मतलब नहीं बदलता। बहुत-सी प्राचीन हस्तलिपियाँ और अनुवाद एक बात पर सहमत हैं, वह यह कि यीशु ने चेलों के बड़े समूह को दो-दो की जोड़ियों में बाँटकर प्रचार के लिए भेजा।
70 और चेले: ज़ाहिर है कि इनमें वे 12 प्रेषित शामिल नहीं थे, जिन्हें पहले ही प्रशिक्षण देकर प्रचार के लिए भेजा गया था।—लूक 9:1-6.
जूतियाँ: ऐसा मालूम होता है कि यीशु यहाँ एक और जोड़ी जूती की बात कर रहा था क्योंकि उसने चेलों से कहा कि अपने साथ . . . न ही जूतियाँ लेना। लंबे सफर में एक और जोड़ी जूती ले जाना आम था, क्योंकि अगर एक जोड़ी घिस गयी या फीते टूट गए तो दूसरी जोड़ी पहनी जा सकती थी। यीशु ने पहले जब इसी से मिलती-जुलती हिदायतें दी थीं, तब चेलों से कहा था कि उनके पास जो जूतियाँ हैं उन्हें वे “कस [या “पहन”] लें।” (मर 6:8, 9) और जैसे मत 10:9, 10 में लिखा है, उसने चेलों को यह भी हिदायत दी कि उनके पास जो एक जोड़ी जूती है उसके अलावा वे दूसरी जोड़ी न लें।
किसी को नमस्कार मत करना: या “किसी को नमस्कार करके गले न लगाना।” कुछ हालात में यूनानी शब्द आस्पाज़ोमाइ (“नमस्कार करना”) में “नमस्ते” या “कैसे हो” कहने के अलावा, गले मिलना और फिर लंबी बातचीत करना शामिल होता था, खासकर जब दो दोस्त मिलते थे। यीशु अपने चेलों को बेरुखी से पेश आने का बढ़ावा नहीं दे रहा था। इसके बजाय वह ज़ोर दे रहा था कि उन्हें ध्यान भटकानेवाली बातों से दूर रहना चाहिए और अपने समय का अच्छा इस्तेमाल करना चाहिए। प्राचीन समय में भविष्यवक्ता एलीशा ने भी अपने सेवक गेहजी को ऐसी ही हिदायत दी थी। (2रा 4:29) यीशु और एलीशा ने जो काम सौंपे थे उन्हें जल्द-से-जल्द किया जाना था, ज़रा भी देर नहीं की जानी थी।
शांति चाहनेवाला: शा., “शांति का बेटा।” हालाँकि यूनानी में ये शब्द लिखे हैं, लेकिन इनमें शायद एक इब्रानी मुहावरे की झलक है। उस मुहावरे का मतलब है, शांति-पसंद या शांत स्वभाव का इंसान। इस संदर्भ में ये शब्द उस इंसान के लिए इस्तेमाल हुए हैं जो परमेश्वर के साथ सुलह करना चाहता है और ‘शांति की खुशखबरी’ सुनकर अपनाता है। इस वजह से परमेश्वर के साथ उसका शांति-भरा रिश्ता होता है।—प्रेष 10:36.
अपने ठहरने के लिए घर-पर-घर बदलते मत रहना: एक बार पहले भी यीशु ने इससे मिलती-जुलती हिदायतें अपने 12 प्रेषितों को दी थीं। (मत 10:11; मर 6:10; लूक 9:4) अब वह 70 प्रचारकों को हिदायत दे रहा था कि जब वे किसी नगर में पहुँचें, तो जिस घर में उनकी मेहमान-नवाज़ी की जाती है, उन्हें उसी घर में रहना चाहिए। उन्हें घर-पर-घर बदलते नहीं रहना चाहिए, यानी ऐसे घर की तलाश नहीं करनी चाहिए जहाँ ज़्यादा सहूलियतें या मन-बहलाव के इंतज़ाम हों। अगर चेले यीशु की हिदायत मानते तो वे दिखाते कि उनके लिए आराम से ज़्यादा प्रचार काम मायने रखता है।
के हाल से ज़्यादा सहने लायक होगा: ज़ाहिर है कि यीशु ने यह बात अतिशयोक्ति अलंकार के तौर पर कही थी, जिसे शब्द-ब-शब्द नहीं लिया जाना था। (यीशु ने कुछ इसी तरह के और भी अतिशयोक्ति अलंकार इस्तेमाल किए। मत 5:18; लूक 16:17; 21:33 से तुलना करें।) जब यीशु ने कहा कि उस दिन यानी न्याय के दिन “सदोम का हाल उस शहर के हाल से ज़्यादा सहने लायक होगा” (मत 10:15; 11:22, 24; लूक 10:14), तो उसके कहने का यह मतलब नहीं था कि उस दिन सदोम के लोग मौजूद होंगे। (यहू 7 से तुलना करें।) इसके बजाय वह शायद इस बात पर ज़ोर दे रहा था कि खुराजीन, बैतसैदा और कफरनहूम जैसे शहरों के ज़्यादातर लोग कैसे यीशु का संदेश ठुकरा रहे थे और इस वजह से वे कितने दोषी थे। (लूक 10:13-15) गौर करनेवाली बात है कि प्राचीन सदोम का जो हश्र हुआ था, उस पर कहावत बन गयी थी और यह कहावत अकसर उस वक्त कही जाती थी, जब परमेश्वर का क्रोध भड़कता था और वह सज़ा देता था।—व्य 29:23; यश 1:9; विल 4:6.
सोर और सीदोन: फीनीके के गैर-यहूदी शहर, जो भूमध्य सागर के तट पर बसे थे।—अति. ख10 देखें।
कब्र: मत 11:23 का अध्ययन नोट देखें।
70: लूक 10:1 का अध्ययन नोट देखें।
मैं देख सकता हूँ कि शैतान बिजली की तरह आकाश से गिर चुका है: ज़ाहिर है कि यीशु यहाँ भविष्यवाणी कर रहा था कि शैतान को स्वर्ग से खदेड़ दिया जाएगा। मगर उसने यह बात ऐसे कही, मानो वह पूरी हो चुकी है। प्रक 12:7-9 के मुताबिक, भविष्य में स्वर्ग में युद्ध होगा और परमेश्वर के राज की शुरूआत होने पर शैतान को फेंक दिया जाएगा। यीशु यहाँ ज़ाहिर कर रहा था कि उस युद्ध में शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों की हार पक्की है, क्योंकि परमेश्वर ने अभी-अभी 70 चेलों, यानी अपरिपूर्ण इंसानों को दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालने की ताकत दी थी।—लूक 10:17.
साँपों और बिच्छुओं: इस संदर्भ में यीशु ने इन जीवों का ज़िक्र लाक्षणिक तौर पर किया, जिनका मतलब है नुकसान पहुँचानेवाली बातें।—यहे 2:6 से तुलना करें।
यहोवा: यहाँ व्य 6:5 की बात लिखी है। मूल इब्रानी पाठ में इस आयत में परमेश्वर के नाम के लिए चार इब्रानी व्यंजन (हिंदी में य-ह-व-ह) इस्तेमाल हुए हैं।—अति. ग देखें।
दिल . . . जान . . . ताकत . . . दिमाग: जो आदमी कानून का अच्छा जानकार था, वह यहाँ व्य 6:5 की बात कह रहा था। मूल इब्रानी पाठ में इस आयत में तीन शब्द इस्तेमाल हुए हैं, दिल, जान और ताकत। लेकिन यूनानी में लिखे लूका के ब्यौरे के मुताबिक, उस आदमी ने चार पहलू बताए: दिल, जान, ताकत और दिमाग। इससे पता चलता है कि यीशु के दिनों में माना जाता था कि व्य 6:5 के तीन इब्रानी शब्दों में यूनानी में बताए चारों पहलू शामिल हैं।—ज़्यादा जानने के लिए मर 12:30 का अध्ययन नोट देखें।
अपनी पूरी जान: शब्दावली में “जीवन” देखें।
अपने पड़ोसी: मत 22:39 का अध्ययन नोट देखें।
एक सामरी: आम तौर पर यहूदी सामरियों को तुच्छ समझते थे और उनसे कोई नाता नहीं रखते थे। (यूह 4:9) यहाँ तक कि कुछ यहूदी किसी का अपमान करने और उसे नीचा दिखाने के लिए उसे “सामरी” कहते थे। (यूह 8:48) मिशना के मुताबिक एक रब्बी ने कहा, “जो सामरियों की रोटी खाता है, वह मानो सूअर का गोश्त खाता है।” (शेबिथ 8:10) बहुत-से यहूदी, सामरी की गवाही पर यकीन नहीं करते थे और न ही उससे किसी तरह की मदद लेते थे। सामरियों के प्रति यहूदियों के इस रवैए के बारे में यीशु जानता था, इसलिए उसने इस मिसाल में एक ज़बरदस्त सीख दी। इस मिसाल को अकसर अच्छे सामरी या दयालु सामरी की मिसाल कहा जाता है।
उसके घावों पर तेल और दाख-मदिरा डालकर पट्टियाँ बाँधी: वैद्य लूका ने यीशु की मिसाल में बतायी कई बारीक बातों के बारे में लिखा। इस तरह लूका ने बताया कि उस ज़माने में मरहम-पट्टी कैसे की जाती थी। घाव पर तेल और दाख-मदिरा डालना घरेलू इलाज माना जाता था। कभी-कभी घाव नरम करने के लिए तेल डाला जाता था। (यश 1:6 से तुलना करें।) दाख-मदिरा में कुछ औषधीय गुण हैं और इसे हलका रोगाणु-नाशक माना जाता है। लूका ने यह भी बताया कि घावों पर पट्टियाँ बाँधी गयी थीं ताकि वे नासूर न हो जाएँ।
एक सराय: यूनानी शब्द का शाब्दिक मतलब है, “ऐसी जगह जहाँ सबका स्वागत किया जाता है या अंदर आने दिया जाता है।” सराय में मुसाफिरों और उनके जानवरों के रुकने का भी इंतज़ाम होता था। सरायवाला मुसाफिरों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी करता था। अगर उससे वहाँ किसी रुकनेवाले की देखभाल करने के लिए कहा जाए, तो वह शायद पैसा लेकर यह भी करता था।
दीनार: शब्दावली और अति. ख14 देखें।
वही जिसने उस पर दया की और उसकी मदद की: हो सकता है कि कानून के जानकार उस आदमी ने इस तरह जवाब इसलिए दिया हो क्योंकि वह “सामरी” कहने से झिझक रहा था। वजह चाहे जो भी हो, उसके जवाब और यीशु के आखिरी शब्दों से मिसाल की सीख साफ पता चलती है: सच्चा पड़ोसी वह होता है जो दया करता है।
एक गाँव: मुमकिन है कि यह बैतनियाह गाँव था, जो जैतून पहाड़ की दक्षिण-पूर्वी ढलान पर था और यरूशलेम से करीब 3 कि.मी. (2 मील) दूर था। (यूह 11:18 का अध्ययन नोट देखें।) इसी गाँव में मारथा, मरियम और लाज़र का घर था। जैसे गलील में सेवा करते वक्त यीशु कफरनहूम में रुकता था (मर 2:1), वैसे ही यहूदिया में सेवा करते वक्त वह बैतनियाह में रुकता था।
मारथा: यहाँ सिर्फ मारथा का ज़िक्र किया गया है कि उसने यीशु को अपने घर ठहराया। अकसर हर काम में मारथा ही पहल करती थी। (लूक 10:40; यूह 11:20) इससे पता चलता है कि वह शायद मरियम की बड़ी बहन थी।—लूक 10:39.
असल में थोड़ी ही चीज़ों की ज़रूरत है या बस एक ही काफी है: कुछ प्राचीन हस्तलिपियों में सिर्फ इतना लिखा है: “लेकिन एक ही चीज़ ज़रूरी है।” इसलिए बाइबल के कुछ अनुवादों में यही शब्द पाए जाते हैं। मगर नयी दुनिया अनुवाद में जो लिखा है, उसका ठोस आधार हस्तलिपियों में पाया जाता है। चाहे किसी भी हस्तलिपि के शब्द सही माने जाएँ, यीशु की सलाह का मतलब एक ही है। वह यह कि परमेश्वर से जुड़ी बातों को पहली जगह दी जानी चाहिए। यह कहने के बाद यीशु ने मरियम की तारीफ की कि उसने परमेश्वर से जुड़ी बातों को पहली जगह देकर “अच्छा भाग” चुना है।
अच्छा भाग: या “सबसे बढ़िया भाग।” “भाग” का यूनानी शब्द मैरिस, सेप्टुआजेंट में खाने के सिलसिले में (उत 43:34; व्य 18:8) और लाक्षणिक तौर पर भी इस्तेमाल हुआ है (भज 16:5; 119:57)। मरियम के मामले में ‘अच्छे भाग’ का मतलब था, परमेश्वर के बेटे से यहोवा के बारे में सीखना।