विज्ञापनों की भीड़ में गुम
“पापा, यह चाँद क्या एडवर्टाइज़ करता है?” कुछ ५० साल पहले, कार्ल सैंडबर्ग की कविता में यह अजीब प्रश्न एक बच्ची ने पूछा था। भविष्य में, ऐसा प्रश्न शायद अजीब न लगे। न्यू साइंटिस्ट पत्रिका के अनुसार, लंदन में दो विज्ञापन प्रबंधक सूरज के प्रकाश को चाँद की सतह पर प्रतिबिंबित करके विज्ञापन दिखाने की योजना बना रहे हैं।
चाँद को विज्ञापन-बोर्ड के रूप में इस्तेमाल करने की कल्पना कीजिए! दुनिया भर के दर्शकों के लिए एक ऐसा व्यापारिक संदेश का विज्ञापन करने के बारे में सोचिए, ऐसा संदेश जिसे दर्शक बंद नहीं कर सकते, नीचे नहीं रख सकते, कूड़ेदान में नहीं फेंक सकते अथवा रिमोट कंट्रोल से उसकी आवाज़ नहीं दबा सकते। इस विचार से आप शायद रोमांचित न हों, परंतु ऐसा हुआ तो दूसरों का सपना साकार हो जाएगा।
विज्ञापन अभी चाँद तक तो नहीं पहुँचा है, परंतु इसने पृथ्वी को अपने घेरे में ले लिया है। अधिकतर अमरीकी पत्र-पत्रिकाएँ अपने ६० प्रतिशत पन्ने विज्ञापनों के लिए अलग रखती हैं। द न्यू यॉर्क टाइम्स के रविवार संस्करण में ३५० पन्ने विज्ञापनों से भरे होते हैं। कुछ रेडियो स्टेशन हर घंटे ४० मिनट विज्ञापन देते हैं।
फिर टीवी भी है। एक अनुमान है कि अमरीकी युवा हर हफ्ते तीन घंटे टीवी विज्ञापन देखते हैं। हाई स्कूल पूरा करते-करते वे ३,६०,००० टीवी विज्ञापन देख चुके होंगे। टीवी विज्ञापन हवाई अड्डों, अस्पतालों के प्रतीक्षा-कक्षों और स्कूलों में दिखाये जाते हैं।
प्रमुख खेल कार्यक्रम अब बड़े विज्ञापन कार्यक्रम बन गये हैं। रेसिंग कारें तेज़-रफ्तार विज्ञापन-बोर्ड का काम करती हैं। कुछ खिलाड़ी अपना ज़्यादातर पैसा विज्ञापनदाताओं से कमाते हैं। एक प्रमुख बासकॆट-बॉल खिलाड़ी ने खेल से ३.९ मिलियन डॉलर कमाए। विज्ञापनदाताओं ने अपने उत्पादों का प्रचार करने के लिए उसे नौ गुना ज़्यादा पैसा दिया।
इनसे बचने का कोई रास्ता नहीं है। व्यापारिक विज्ञापन दीवारों, बसों और ट्रकों पर लगे होते हैं। कई देशों में वे टैक्सियों और भूमिगत ट्रेनों की शोभा बढ़ाते हैं—यहाँ तक कि जन शौचालयों के दरवाज़ों पर लगे होते हैं। सुपरबाज़ारों, दुकानों और लिफ्टों में—और फोन मिलने का इंतज़ार करते समय भी—विज्ञापन सुनाई पड़ते हैं। कुछ देशों में पत्रों के द्वारा इतने विज्ञापन आते हैं कि बहुत से लोग तो लॆटर-बॉक्स से सीधे कूड़ेदान की ओर जाते हैं और बेकार के पत्रों को फेंक देते हैं।
विश्वव्यापी विज्ञापन एजॆंसी, मकैन-ऎरिकसन द्वारा प्रकाशित इनसाइडर्स रिपोर्ट के अनुसार, अनुमान है कि दुनिया भर में १९९० में विज्ञापनों पर ११,०२० अरब रुपया खर्च किया गया था। तब से यह खर्च बहुत बढ़ गया है, १९९७ में १६,४६४ अरब रुपए खर्च हुए और १९९८ में १७,३७६ अरब खर्च होने का अनुमान है। इतना ज़्यादा पैसा!
इन सब का प्रभाव? एक विश्लेषक ने इस प्रकार कहा: “विज्ञापन आज संस्कृति में सामाजिक संपर्क का बहुत ही शक्तिशाली ज़रिया है। विज्ञापनों का काम सिर्फ उत्पाद बेचना नहीं। ये छवि, मूल्य, लक्ष्य, धारणाएँ बनाते हैं कि हम कौन हैं और हमें क्या होना चाहिए . . . ये हमारी मनोवृत्ति को ढालते हैं और हमारी मनोवृत्ति हमारे व्यवहार को ढालती है।”
क्योंकि आप विज्ञापनों की दुनिया से बच नहीं सकते, तो क्यों न यह पता लगाएँ कि यह कैसे काम करते हैं और कैसे यह आप पर असर कर सकते हैं?