परमेश्वर की सृष्टि से हम क्या सीख सकते हैं?
कबूतर उनके दिशाकोण को उनके सर और गर्दन में पाए जानेवाले चुम्बकीय मणिभों के गुच्छों का उपयोग करने के द्वारा जान लेते हैं। कुछ अमुक मछलियाँ विद्युत उत्पन्न करती हैं। पक्षियों के कई प्रकार उस समुद्र-जल से जो वे पीते हैं अतिरिक्त नमक निकालते हैं। कुछ शंख-मीन में गुहिकाएं हैं, जो या तो गोता लगाने के वक्त पानी से या तो ऊपर आने के समय गैस से भर दिया जा सकता है।
जी हाँ, चाहे एक मनुष्य यह समझे या ना समझे, जब भी वह एक कम्पास का उपयोग करता है, विद्युत उत्पन्न करता है, पनडुब्बी की रचना करता है, या समुद्र-जल से लवण को निकाल देता है, वह वास्तव में केवल परमेश्वर की सृष्टि का अनुकरण कर रहा है।
सचमुच, परमेश्वर की सृष्टि में मनुष्य के लिए इतने सारे पाठ हैं कि कभी-कभी उसे “प्रकृति की पुस्तक” कही गयी है। उदाहरणार्थ, जीव-परिस्थिति की विज्ञान की एक ऐसी शाखा है जो सृष्टि में पाए गए तन्त्रों का व्यावहारिक प्रयोग की ओर समर्पित है। इन में पक्षियों की विशेषताओं के साथ हवाई जहाज़ के पंख, सूँस के रूप में पनडुब्बी, और मानवीय हड्डियों के रूप में रचित ठोस संरचनाएं। लेकिन क्या “प्रकृति की पुस्तक” के पास देने के लिए केवल तकनीकी ज्ञान ही है?
जी नहीं, कभी-कभी वह एक नैतिक प्रकार के व्यावहारिक उपदेश भी प्रदान करती है। उदाहरणार्थ चींटी की कर्मिष्ठता का सहज-बोध की ओर संकेत करते हुए नीतिवचन की बाइबल पुस्तक फटकारती है: “हे आलसी, च्यूंटियों के पास जा; उनके काम पर ध्यान दे, और बुद्धिमान हो। उनके न तो कोई न्यायी होता है, न प्रधान, और न प्रभुता करनेवाला, तौभी वे अपना आहार धूपकाल में संचय करती हैं, और कटनी के समय अपनी भोजन वस्तु बटोरती है।—नीतिवचन ६:६-८.
किन्तु, आचार-शास्त्र की सीमाएं हैं, जो एक ऐसा विज्ञान है, जो प्राणी आचारण से शिक्षाएं प्राप्त करने का दावा करता है। मानवीय आचरण को ठीक वही श्रेणी में नहीं रखा जा सकता जो कि जानवरों की है। विचारणीय विशिष्टताएं जैसे भाषा और मनुष्य का एक अत्यधिक रूप से परिष्कृत चिन्तन प्रक्रिया, का लिहाज़ किया जाना चाहिए। जैसे एक वैज्ञानिक ने कहा: “हम केवल, अधिक सुव्यवस्थित बन्दर नहीं है।” हमारा मन “हमें जीवन के बाक़ी सभी प्रकारों से गुणात्मक रीति से असमान करते हैं।”
इसके अतिरिक्त, कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर केवल सृष्टि का एक निकट अध्ययन नहीं दे सकता। इन में ये अन्तर्गत है: क्या जीवन का एक उद्देश्य है? क्या परमेश्वर है, और अगर है, तो क्या वह हमारे बारे में चिन्तित है? चलो अब हम यह देखें कि ऐसे सवालों का उत्तर पाया जा सकता है या नहीं।
[पेज 8 पर बक्स/तसवीरें]
यह पहले सृष्टि के पास था: सोनार (प्रतिध्वनि-ग्रहण व्यवस्था)
चमगादड़ों में एक ऐसा तन्त्र है, जो कुछ-कुछ सोनार के समान है, जो ध्वनि तरंगों को भेजने और उनकी प्रतिध्वनि का विश्लेषण करने के द्वारा उन्हें उनके शिकार का स्थान निर्धारित करने और उनकी गतिविधियों का पीछा करने के योग्य बनाते हैं। लेकिन एक अमुक शलभ (डॉगबेन टाइगर) के पास एक जाम करनेवाला संकेत है जो ऐसी तरंगों को भेजता है जो उसके विरोधी के तरंगों के समान है। यह संकेत पाने पर, चमगादड़ के पास, यह कोई बाधा है या नहीं इसका विश्लेषण करने के लिए समय न होने के कारण, जान-बूझकर उस शलभ से दूर रहता है।
कैनड़ा में, टॉरन्टो यूनिवर्सिटी के प्रॉफेसर जेम्स फुल्लर्ड ने उनकी प्रशंसा व्यक्त करते हुए कहा: “इन चमगादड़ों और शलभों में की जानकारी संसाधन का परिमाण और एक बहुत सीमित संख्या के स्नायु कोशाणुओं का उपयोग करके कार्यान्तिव किए जानेवाले स्नायुवैज्ञानिक निर्णय चकित करनेवाली बात है। वे व्यवस्था और कृत्रिमता की एक ऐसा स्तर प्रस्तुत करते हैं जो मानवीय हवाई युद्धनीतिज्ञ के लिए ईर्ष्या का कारण बन सकता है।”
[पेज 9 पर बक्स/तसवीरें]
यह पहले सृष्टि के पास था: निमज्जन घंटा
लगभग सोलहवी सदी के आरम्भ में लियोनार्डो डा विन्सी ने निमज्जन उपकरण का आविष्कार किया। लेकिन एक अमुक मकड़ी ने जिसका नाम है अरगायरोनेटा अक्वेटिका, पानी के नीचे साँस लेने की पद्धति को परिष्कृत कर चुकी थी। जैसे ऑन्ड्रे टेट्री अपनी पुस्तक लेज़ अटिल्स शेज़ लेज़ एट्रस विवन्टस् (जीवधारियों द्वारा उपयोग किए गए साधन) में बताती है, यह मकड़ी मन्दगति से चलनेवाली नदियों के निमग्न पौधों के बीच लग जाती है और उन में एक महीन समतल जाली बुनती है जो ढीले रूप से ढेर सारे धागों के द्वारा सँभाली गयी है। ऊपर लौटने के बाद . . . एक आकस्मिक झटके के साथ मकड़ी अपने जल-विकर्षक उदरीय रोम में एक वायु-बुल्ला फँसाती है। . . . फिर मकड़ी वापस नीचे जाती है और उस रेशमी धागों की जाली के नीचे उस वायु-बुल्ला को मुक्त करती है। वह वायु-बुल्ला उठता है और उस जाली में एक हलका उभार उत्पन्न करता है।” पुनरावृत्त यात्राओं के द्वारा मकड़ी अपने घंटे के नीचे सम्पूर्ण दिन बिताने के लिए आवश्यक वायु का संचय करती है, जहाँ वह रात के दौरान पकड़े हुए शिकार को खाती है। इस विषय में टेट्री आगे कहती है: “अतः मनुष्य के निमज्जन उपकरण, इस प्रकृति में पाए गए अत्यधिक विशिष्ट प्रकारों के सदृष्य है।”