कौन दुष्ट आत्माओं में विश्वास करते हैं?
क्या आप विश्वास करते हैं कि अनदेखी आत्माएँ आपके जीवन को प्रभावित कर सकती हैं? कई लोग इसका जवाब ज़ोरदार नहीं से देंगे। जबकि वे परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, वे दुष्टता के अलौकिक कार्यकर्त्ताओं की धारणा का उपहास करते हैं।
पश्चिमी दुनिया में अदृश्य व्यक्तियों में व्यापक अविश्वास अंशतः मसीहीजगत के प्रभाव के कारण है, जिसने शताब्दियों तक सिखाया कि पृथ्वी विश्व-मण्डल का केन्द्र है, जो स्वर्ग और भूमिगत नरक के बीच स्थित है। इस शिक्षा के अनुसार, स्वर्गदूत स्वर्ग के सुख का मज़ा लेते हैं जबकि पिशाच नरक के कार्यों की देख-रेख करते हैं।
जब विज्ञान के आविष्कार विश्व-मण्डल की बनावट के बारे में लोगों द्वारा ग़लत विचारों के ठुकराए जाने का कारण बने, तब आत्मिक प्राणियों में विश्वास अप्रचलित हो गया। द न्यू एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका कहती है: “सोलवीं-शताब्दी की कोपरनिकीय क्रांति (पोलिश खगोलज्ञ कोपरनीकस के सिद्धान्तों पर आधारित) के बाद, जिसमें . . . पृथ्वी को अब विश्व-मण्डल के केन्द्र के तौर पर नहीं लेकिन, इसके विपरीत, सौर्य-मंडल के मात्र एक ग्रह के तौर पर देखा गया जो प्रत्यक्ष रूप से असीम विश्व-मण्डल की एक आकाशगंगा का एक बहुत ही छोटा हिस्सा है—स्वर्गदूतों और पिशाचों की धारणाएँ उचित प्रतीत नहीं होती थीं।”
जबकि अनेक लोग दुष्ट आत्माओं में विश्वास नहीं करते हैं, लाखों हैं जो करते हैं। अनेक प्राचीन और मौजूदा धर्मों में, पतित स्वर्गदूत एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। आध्यात्मिकता को भ्रष्ट करनेवालों की उनकी भूमिका के अलावा, इन बुरे स्वर्गदूतों को युद्ध, अकाल, और भूकम्पों जैसी विपत्तियों के अभिकर्ता और साथ ही बीमारी, मानसिक रोग, और मृत्यु के प्रवर्त्तक के तौर पर भी देखा जाता है।
मसीहियत और यहूदी धर्म की प्रमुख दुष्ट आत्मा, शैतान अर्थात् इब्लीस, को मुसलमान इब्लीस कहते हैं। प्राचीन फ़ारसी ज़रतुश्त-धर्म में वह अंग्र मिन्यू के रूप में है। गूढ़ज्ञानवादी धर्म में, जो सा.यु. दूसरी और तीसरी शताब्दियों में फला-फूला, उसे डेमीअर्ज में देखा गया, एक ईर्ष्यालु और निम्न ईश्वर को दिया गया नाम जिसे अधिकांश मानवजाति अनजाने ही उपासना देती है।
प्रमुख दुष्ट आत्मा की अधीनस्थ आत्माएँ पूर्वी धर्मों में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। हिन्दू विश्वास करते हैं कि असुर (पिशाच) देवों (ईश्वरों) का विरोध करते हैं। असुरों में विशेषकर राक्षसों का भय माना जाता है, भयंकर व्यक्ति जो कब्रिस्तानों में डेरा करते हैं।
बौद्ध-धर्म के लोग पिशाचों की कल्पना व्यक्तित्व-प्राप्त शक्तियों के तौर पर करते हैं जो मनुष्य को इच्छाओं की समाप्ति, निर्वाण, प्राप्त करने से रोकते हैं। उनमें से प्रमुख प्रलोभक है मारा, अपनी तीन बेटियों रति (इच्छा), राग (सुख), और तनहा (अधीरता) के साथ।
चीनी उपासक ग्वे या प्रकृति पिशाचों से सुरक्षित रहने के लिए उत्सवाग्नियों, मशालों और पटाखों का प्रयोग, करते हैं। जापान के धर्मों में भी यह माना जाता है कि अनेक पिशाच होते हैं, जिनमें भयानक तेनगू भी शामिल है, ऐसी आत्माएँ जो लोगों में वास करती हैं जब तक कि एक ओझा द्वारा झाड़-फूँक न की जाए।
एशिया, अफ्रीका और प्रशान्त महासागर के द्वीपों और अमरीका के निरक्षर धर्मों में यह विश्वास किया जाता है कि आत्मिक प्राणी परिस्थिति और अपनी प्रबल मनोदशा के अनुसार, सहायक या हानिकारक होते हैं। लोग संकट दूर करने और अनुग्रह प्राप्त करने के लिए इन आत्माओं की उपासना करते हैं।
जादू और भूतविद्या में व्यापक दिलचस्पी को इन सब के साथ जोड़िए, और यह स्पष्ट है कि दुष्ट आत्माओं में विश्वास का एक लंबा और व्यापक इतिहास है। लेकिन क्या यह विश्वास करना तर्कयुक्त है कि ऐसे प्राणी अस्तित्व में हैं? बाइबल कहती है कि वे अस्तित्व में हैं। तथापि, यदि वे अस्तित्व में हैं, तो परमेश्वर उन्हें मनुष्य को प्रभावित करने की अनुमति क्यों देता है जिससे स्वयं मनुष्य की हानि होती है?