एक समारोह जो आपके लिए मायने रखता है
जब यीशु धरती पर था, तब उसने एक ऐसे समारोह की शुरूआत की जिससे परमेश्वर की महिमा होती है। यीशु ने अपने चेलों को सिर्फ इसी धार्मिक समारोह को मनाने की आज्ञा दी थी। यह समारोह प्रभु का संध्या भोज था, जिसे आखिरी भोज भी कहा जाता है।
कल्पना कीजिए कि आप उस समारोह से पहले हुई घटनाओं को अपनी आँखों से देख रहे हैं। आप देखते हैं कि यीशु और उसके प्रेरित, फसह नाम का यहूदी पर्व मनाने के लिए यरूशलेम में एक ऊपरी कोठरी में इकट्ठे हुए हैं। वे फसह का पारंपरिक भोज मना रहे हैं, जिसमें वे मेमने का भुना हुआ गोश्त, कड़वी सब्ज़ी और अखमीरी रोटी खा रहे और लाल दाखमधु पी रहे हैं। इसके बाद, विश्वासघाती प्रेरित, यहूदा इस्करियोती को वहाँ से जाने के लिए कहा जाता है, जो जल्द ही अपने स्वामी को पकड़वानेवाला है। (मत्ती 26:17-25; यूहन्ना 13:21, 26-30) अब उस कोठरी में सिर्फ यीशु और उसके 11 वफादार प्रेरित रह जाते हैं। उनमें से एक मत्ती है।
मत्ती ने अपनी किताब में प्रभु के संध्या भोज का आँखों देखा हाल बताया है। उसके मुताबिक यीशु ने उस भोज की शुरूआत कुछ इस तरह की थी: “यीशु ने [अखमीरी] रोटी ली, और आशीष मांगकर तोड़ी, और चेलों को देकर कहा, लो, खाओ; यह मेरी देह है। फिर उस ने [दाखमधु का] कटोरा लेकर, धन्यवाद किया, और उन्हें देकर कहा, तुम सब इस में से पीओ। क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लोहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है।”—मत्ती 26:26-28.
यीशु ने प्रभु के संध्या भोज की शुरूआत क्यों की? इस भोज में उसने अखमीरी रोटी और लाल दाखमधु क्यों दिया? क्या मसीह के सभी चेलों को इस भोज में रोटी खानी थी और दाखमधु पीना था? यह भोज कब-कब मनाया जाना था? और क्या यह भोज आपके लिए सचमुच मायने रखता है?