क्या दिलचस्पी दोबारा उत्तेजित की जा सकती है?
“ख़ुश हैं वे जो अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के बारे में अवगत हैं।” (मत्ती ५:३, NW.) पर्वतीय उपदेश में कहे यीशु के वे शब्द अर्थगर्भित हैं। मानवजाति के अधिकतर लोग नहीं समझ पाते कि अपनी ज़िन्दगी को खुश और उद्देश्यपूर्ण करने के लिए उन्हें आध्यात्मिक चीज़ों की ज़रूरत होती है। ऐसे भी कुछ लोग हैं जिन्हें किसी समय आध्यात्मिक ज़रूरतों की चेतना थी पर अब इसे खो दिया है। आध्यात्मिक मामलों के सम्बन्ध में किसी बात के कारण वे उदासीन हो गए। उन्होंने एक ऐसी बात से अपना मुँह फेर लिया जो दरअसल उनके फ़ायदे के लिए था। पर सवाल यह है कि क्या ऐसे लोगों की दिलचस्पी दोबारा उत्तेजित की जा सकती है? खुशी की बात है कि कुछ लोगों के मामले में ऐसा किया जा सकता है।
२ आप शायद ऐसे किसी व्यक्ति को जानते होंगे जिन्होंने सालों पहले, शायद बचपन में, यहोवा के गवाहों के साथ बाइबल अध्ययन किया था, पर जिसने परमेश्वर के लोगों के साथ संग-साथ करना जारी नहीं रखा। फिर भी, बाइबल की कुछ शिक्षाएँ और सही सिद्धान्त उसके मन में बैठ गए होंगे जो उन्हें अब भी याद हैं। जैसे-जैसे दुनिया के हालात बिगड़ते जाते और ज़िन्दगी में परिस्थितियाँ बदलती जाती हैं, पहले सीखी गयी बातें याद आती हैं और शायद वह व्यक्ति परमेश्वर की ओर मुड़कर अतिरिक्त बाइबल ज्ञान लेने के लिए तैयार होगा। बाइबल अध्ययन फिर से शुरू करने के उद्देश्य से ऐसे लोगों से मुलाक़ात करना बहुत ही लाभदायक साबित हो सकता है।
३ बेशक समय-समय पर ऐसे लोगों से मुलाक़ात करने की कोशिश की जानी चाहिए जो स्मारक समारोह में उपस्थित हुए थे। उन पर यह ज़ाहिर होने दें कि आप उनके आध्यात्मिक हित के बारे में सचमुच ही परवाह करते हैं, और उनके सामने उनके साथ बाइबल अध्ययन करने का प्रस्ताव रखें। “ज्योति वाहक” ज़िला सम्मेलन में उपस्थित होनेवालों की मदद करने की ख़ास कोशिश की जानी चाहिए। कुछ मामलों में किसी दूसरे प्रचारक का एक ऐसे व्यक्ति से मुलाक़ात करना फ़ायदेमन्द होगा, जिसका अध्ययन प्रगति न करने की वजह से बन्द कर दिया गया था।
४ बेशक, जिन लोगों के साथ हम बाइबल अध्ययन करते हैं, उन से यह अपेक्षा की जाती है कि वे यहोवा की उपासना को गंभीरतापूर्वक लें और अपने बाइबल अध्ययन में काफ़ी अध्यवसाय दर्शाएँ। लेकिन जहाँ तक हमारा सवाल है, हम यह पक्का करना चाहते हैं कि हम ने मदद करने की पर्याप्त कोशिश की और कि हम दूसरों के बारे में उसी रीति से महसूस करते हैं जैसे पौलुस ने किया जब उसने कहा, “मैं सब के लोहू से निर्दोष हूँ।”—प्रेरितों २०:२६.