बाइबल का दृष्टिकोण
आपका बनाव-सिंगार—क्या इससे परमेश्वर को फर्क पड़ता है?
“जैसे विषय-सूची से पता चलता है कि पुस्तक के अंदर क्या है, . . . उसी तरह पुरुष या स्त्री के बाहरी बनाव-सिंगार से पता चलता है कि वह अंदर से क्या है।”—अंग्रेज़ नाटककार फिलिप मैसॆंजर।
सामान्य युग तीसरी सदी में चर्च लेखक टाइटस क्लॆमॆंस ने बनाव-सिंगार निर्धारित करने के लिए नियमों की एक लंबी सूची बनायी। गहने और महँगे अथवा चटकीले कपड़ों की मनाही थी। स्त्रियाँ अपने बाल नहीं रंग सकती थीं न ही “रूप के जाल में फँसानेवाली चीज़ों को अपने चेहरे पर थोप सकती थीं,” अर्थात “चेहरा पोतने” की मनाही थी। पुरुषों को आदेश दिया गया कि अपने सिर के बाल मूँड दें क्योंकि “सफाचट सिर . . . दिखाता है कि पुरुष गंभीर है,” लेकिन ठोड़ी के बालों को नहीं काटना था क्योंकि उससे “चेहरा गरिमावान् लगता और पितृवत् भय दिखायी पड़ता।”a
सदियों बाद प्रोटॆस्टॆंट नेता जॉन कैल्विन ने ऐसे नियम बनाए जिनमें निर्धारित किया गया था कि उसके अनुयायी किस रंग और ढंग के कपड़े पहन सकते हैं। गहनों और झालर को अच्छा नहीं समझा जाता था और उनके नियम के मुताबिक ठहराई गई “अनैतिक हद” तक बाल सँवारने के लिए एक स्त्री को कैद हो सकती थी।
कई सालों तक धार्मिक नेताओं ने ऐसे उग्र विचारों को बढ़ावा दिया। इससे अनेक निष्कपट लोगों के मन में विचार आया, ‘क्या परमेश्वर को सचमुच इससे फर्क पड़ता है कि मैं क्या पहनता हूँ? क्या वह अमुक फैशन या श्रृंगार को अस्वीकार करता है? बाइबल क्या सिखाती है?
व्यक्तिगत मामला
दिलचस्पी की बात है, यूहन्ना ८:३१, ३२ में अभिलिखित है कि यीशु ने अपने शिष्यों से कहा: “यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो . . . सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।” जी हाँ, यीशु ने जो सत्य सिखाया उसका उद्देश्य था परंपराओं और झूठी शिक्षाओं द्वारा लादे गये भारी बोझ से लोगों को मुक्त कराना। वह सत्य “परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो” को विश्राम देने के लिए था। (मत्ती ११:२८) न तो यीशु और न ही उसका पिता यहोवा परमेश्वर, लोगों के जीवन को इस हद तक नियंत्रित करने की इच्छा रखते हैं कि लोगों के पास अपने निजी मामलों में अपनी पसंद और समझ से फैसला करने की आज़ादी न हो। यहोवा चाहता है कि वे प्रौढ़ व्यक्ति बनें जिनके “ज्ञानेन्द्रिय अभ्यास करते करते, भले बुरे में भेद करने के लिये पक्के हो गए हैं।”—इब्रानियों ५:१४.
अतः बाइबल बनाव-सिंगार या सौंदर्य प्रसाधनों के इस्तेमाल के बारे में कोई विस्तृत नियम नहीं देती। सिर्फ इतना है कि मूसा की व्यवस्था में पहनावे के बारे में यहूदियों से कुछ निश्चित माँगें की गयी थीं जो बाइबल में दी गयी हैं। ये माँगें उन्हें आस-पास की जातियों और उनके अनैतिक प्रभाव से बचाने के उद्देश्य से की गयी थीं। (गिनती १५:३८-४१; व्यवस्थाविवरण २२:५) मसीही प्रबंध में बनाव-सिंगार मुख्यतः अपनी-अपनी पसंद का मामला है।
लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि परमेश्वर को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम क्या पहनते हैं या ‘कुछ भी चलता है।’ इसके विपरीत, बाइबल में उपयुक्त मार्गदर्शन दिया गया है जो पहिरावे और बनाव-सिंगार के बारे में परमेश्वर का दृष्टिकोण स्पष्ट करता है।
“संकोच और संयम के साथ”
प्रेरित पौलुस ने लिखा कि मसीही स्त्रियाँ “संकोच और संयम के साथ सुहावने वस्त्रों से अपने आप को संवारे; न कि बाल गूंथने, और सोने, और मोतियों, और बहुमोल कपड़ों से।” उसी तरह, पतरस सलाह देता है कि “तुम्हारा सिंगार दिखावटी न हो, अर्थात् बाल गूंथने, और सोने के गहने . . . पहिनना।”—१ तीमुथियुस २:९; १ पतरस ३:३.
क्या पतरस और पौलुस यह कह रहे हैं कि मसीही स्त्रियों और पुरुषों को अपना रूप नहीं सँवारना चाहिए? बिलकुल नहीं! असल में बाइबल ऐसे विश्वासी पुरुष और स्त्रियों का ज़िक्र करती है जो गहने पहनते थे अथवा प्रसाधन तेल और इत्र लगाते थे। क्षयर्ष राजा के सम्मुख जाने से पहले एस्तेर ने काफी समय तक सुगंधित तेल और लेप से अपना सौंदर्य निखारा। और यूसुफ बढ़िया मलमल के कपड़े और सोने की ज़ंजीर पहनता था।—उत्पत्ति ४१:४२; निर्गमन ३२:२, ३; एस्तेर २:७, १२, १५.
पौलुस ने “संयम” शब्द प्रयोग किया जो हमें उसकी सलाह को समझने में मदद देता है। इसका मौलिक यूनानी शब्द संतुलन और आत्म-नियंत्रण को सूचित करता है। वह अपने बारे में मर्यादित विचार रखता है, अपनी ओर ज़रूरत से ज़्यादा ध्यान नहीं खींचता। दूसरे बाइबल अनुवाद इस शब्द को “सूझ-बूझ से,” “समझदारी से,” “सभ्य,” या “आत्म-संयम के साथ” अनुवादित करते हैं। मसीही प्राचीनों के लिए यह गुण एक महत्त्वपूर्ण माँग है।—१ तीमुथियुस ३:२.
सो हमें यह बताने के द्वारा कि हमारा बनाव-सिंगार संयम के साथ और सुहावना होना चाहिए, शास्त्र हमें प्रोत्साहन देता है कि ऐसे अजीबोगरीब स्टाइल न अपनाएँ जिससे दूसरे नाराज़ होते हैं और हमारी एवं मसीही कलीसिया की प्रतिष्ठा पर आँच आती है। परमेश्वर की भक्ति करनेवालों को ऊपरी सजावट करके अपने रूप की ओर ध्यान खींचने के बजाय संयम दिखाना चाहिए और इस पर ज़ोर देना चाहिए कि “छिपा हुआ और गुप्त मनुष्यत्व, नम्रता और मन की दीनता की अविनाशी सजावट से सुसज्जित रहे।” पतरस अंत में कहता है कि “परमेश्वर की दृष्टि में इसका मूल्य बड़ा है।”—१ पतरस ३:४.
मसीही लोग “जगत . . . के लिये एक तमाशा” हैं। उन्हें यह देखना चाहिए कि वे दूसरों के मन में कैसी छवि बनाते हैं, खासकर यह ध्यान में रखते हुए कि उन्हें सुसमाचार प्रचार करने का आदेश दिया गया है। (१ कुरिन्थियों ४:९; मत्ती २४:१४) इसलिए वे नहीं चाहेंगे कि लोग उनकी किसी भी बात से, उनके बनाव-सिंगार से विकर्षित हों और इस अत्यावश्यक संदेश को न सुनें।—२ कुरिन्थियों ४:२.
स्टाइल तो अलग-अलग जगह पर बहुत अलग-अलग होते हैं। लेकिन बाइबल लोगों को स्पष्ट और उपयुक्त मार्गदर्शन देती है जो उन्हें बुद्धिमानी से चुनाव करने में समर्थ करता है। परमेश्वर प्रेम से सभी लोगों को अपनी पसंद का बनाव-सिंगार करने की खुली छूट देता है बशर्ते वे इन सिद्धांतों का पालन करें।
[फुटनोट]
a शास्त्रों को तोड़-मरोड़कर इन प्रतिबंधों को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया। जबकि बाइबल ऐसा नहीं कहती, प्रभावशाली धर्मविज्ञानी टर्टूलिअन ने सिखाया कि क्योंकि स्त्री ‘पहले पाप और मनुष्य के पतन’ का कारण थी, इसलिए स्त्रियों को “हव्वा की तरह शोक और पश्चाताप की मुद्रा में” चलना चाहिए। असल में उसने आग्रह किया कि स्वाभाविक रूप से सुंदर स्त्री को इतना तक करना चाहिए कि अपनी सुंदरता को छिपाए।—रोमियों ५:१२-१४; १ तीमुथियुस २:१३, १४ से तुलना कीजिए।