अध्ययन ८
मूल-विषय और मुख्य मुद्दों को विशिष्ट करना
१-४. एक भाषण के मूल-विषय का क्या अर्थ है?
हर भाषण को एक दिशा देने और उसके सब भागों को रोचक रीति से जोड़ने के लिए एक मूल-विषय की ज़रूरत होती है। आपका मूल-विषय चाहे जो भी हो, उसे पूरे भाषण के दौरान व्याप्त होना चाहिए। वह आपके भाषण का सारांश है; वह शायद एक ही वाक्य में बताया जा सकता है और फिर भी वह प्रस्तुत जानकारी के हर पहलू को शामिल करेगा। मूल-विषय श्रोतागण में सभी लोगों के लिए स्पष्ट होना चाहिए, और ऐसा होगा यदि उस पर सही ज़ोर दिया जाए।
२ भाषण का मूल-विषय, मात्र एक बड़ा विषय नहीं है, जैसे कि “विश्वास,” परन्तु यह वह विशिष्ट पहलू है जिससे उस विषय पर चर्चा की गई है। उदाहरण के लिए, शीर्षक शायद “आपका विश्वास—वह कहाँ तक पहुँचता है?” हो। या वह “परमेश्वर को ख़ुश करने के लिए विश्वास की ज़रूरत,” या “आपके विश्वास की नींव,” या “विश्वास में बढ़ते रहिए,” हो सकता है। हालाँकि ये सभी मूल-विषय विश्वास पर केन्द्रित हैं, वे विषय को भिन्न तरीक़ों से देखते हैं और पूर्णतः भिन्न तरीक़ों से उन्हें विकसित करने की ज़रूरत है।
३ कुछ अवसरों पर आपको शायद अपना मूल-विषय चुनने से पहले जानकारी को इकट्ठा करना पड़े। लेकिन भाषण की रूपरेखा की तैयारी शुरू करने से पहले या मुख्य मुद्दों को चुनने से पहले मूल-विषय स्पष्टतः निश्चित किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, हर गृह बाइबल अध्ययन के पश्चात् आप शायद यहोवा के साक्षियों के संगठन की चर्चा करना चाहें। यह एक बड़ा विषय है। यह निर्णय करने के लिए कि इस विषय पर आप क्या कहेंगे, आपको अपने श्रोतागण और अपने भाषण के उद्देश्य पर विचार करना चाहिए। इस आधार पर आप एक मूल-विषय चुनेंगे। यदि आप एक नए व्यक्ति को सेवा के लिए पहली बार ले जाने की कोशिश कर रहे हैं तो आप शायद यह दिखाने का निर्णय करें कि यहोवा के साक्षी घर-घर प्रचार करते हुए यीशु मसीह का अनुकरण करते हैं। वह आपका मूल-विषय होगा। आप जो कुछ भी कहेंगे वह उस बड़े विषय, यहोवा के साक्षी के उस पहलू को विकसित करने के लिए होगा।
४ आप अपने भाषण में मूल-विषय पर कैसे ज़ोर दे सकते हैं? पहले, आपको एक उपयुक्त मूल-विषय चुनना चाहिए, एक ऐसा मूल-विषय जो आपके उद्देश्य के लिए उचित है। इसके लिए पूर्वतैयारी की ज़रूरत है। एक बार जब मूल-विषय चुन लिया गया है और आपका भाषण उसके आधार पर विकसित किया गया है, तब उस पर अपने आप ही ज़ोर दिया जाएगा यदि आप उस रूपरेखा के अनुसार बात करते हैं जो आपने तैयार की है। लेकिन, वास्तविक प्रस्तुति में मूल-विषय के मुख्य शब्दों को या उसके मूल विचार को समय-समय पर दोहराना ज़्यादा आसानी से यह निश्चित करेगा कि मूल-विषय समझाया गया है।
५, ६. आप कैसे निर्धारित कर सकते हैं कि एक मूल-विषय उपयुक्त है या नहीं?
५ उपयुक्त मूल-विषय। ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल में अकसर उपयुक्त मूल-विषय का होना एक समस्या नहीं है, क्योंकि अधिकांश अवसरों पर यह आपको प्रदान किया जाता है। लेकिन जितने भाषण आपको देने के लिए कहे जाएँगे उन सब के बारे में यह सच नहीं है। सो मूल-विषय पर ध्यानपूर्वक विचार करना बुद्धिमानी की बात होगी।
६ क्या निश्चित करेगा कि एक मूल-विषय उपयुक्त है कि नहीं? कई बातें। आपको अपने श्रोतागण, अपना उद्देश्य, और प्रस्तुत करने के लिए यदि आपको जानकारी नियुक्त की गई है, तो उस पर विचार करना चाहिए। यदि आप पाते हैं कि आप ऐसे भाषण देते हैं जिनमें किसी मूल-विषय पर ज़ोर नहीं दिया गया है, तो यह शायद इस वजह से हो कि आप अपने भाषण को वास्तव में किसी केन्द्रीय विचार पर आधारित नहीं कर रहे हैं। आपने भाषण में शायद बहुत ज़्यादा ऐसे मुद्दे शामिल किए हों जो वास्तव में मूल-विषय को बढ़ावा नहीं देते।
७, ८. उन तरीक़ों के बारे में बताइए जिनसे एक व्यक्ति मूल-विषय को विशिष्ट कर सकता है।
७ मूल-विषय के शब्द या विचार दोहराए गए। एक तरीक़ा जिससे भाषण के सभी भागों में मूल-विषय विशिष्ट किया जा सकता है वह है, मूल-विषय में बताए गए मुख्य शब्दों को दोहराना या मूल-विषय के केन्द्रीय विचार को दोहराना। संगीत में, संगीत-विषय एक ऐसी धुन है जो पूरी रचना में इतनी दोहरायी जाती है कि वह उस सम्पूर्ण रचना की विशेषता बन जाती है। वास्तव में, साधारणतः मात्र कुछ भाग सुनने पर ही उस गीत को पहचाना जा सकता है। वह धुन हमेशा एक ही रीति से नहीं आती है। कभी-कभी उस धुन का मात्र एक या दो वाक्यांश ही होता है, कभी-कभी संगीत-विषय को थोड़ा-सा बदलकर इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन एक नहीं तो दूसरी रीति से, संगीतकार पूरी रचना में अपनी धुन को मिला देता है जब तक कि वह पूरी रचना में फैल नहीं जाती और उसकी विशेषता नहीं बन जाती।
८ भाषण के मूल-विषय के बारे में भी ऐसा ही होना चाहिए। दोहराए गए मुख्य शब्द या मूल-विषय विचार एक रचना की आवर्तक धुन की तरह है। इन शब्दों के समानार्थक शब्द या दूसरे शब्दों में कहा गया केन्द्रीय मूलविचार मूल-विषय के एक अलग रूप के तौर पर कार्य करता है। नीरस न होने के लिए पर्याप्त समझदारी से इस्तेमाल किए गए ऐसे तरीक़े मूल-विषय को पूरे भाषण की मुख्य अभिव्यक्ति बनाएँगे और वही मुख्य बात होगी जो आपके श्रोतागण याद रखेंगे।
९-१३. समझाइए कि भाषण के मुख्य मुद्दे क्या हैं। सचित्रित कीजिए।
९ अपने भाषण के मूल-विषय को चुनने के बाद, तैयारी में अगला क़दम होगा उसे विकसित करने में आप जिन मुख्य मुद्दों को इस्तेमाल करने की योजना बना रहे हैं उन्हें चुनना। आपकी भाषण सलाह परची पर इसे “मुख्य मुद्दे विशिष्ट किए गए” कहा गया है।
१० किसी भाषण में मुख्य मुद्दे कौन-से हैं? वे मात्र दिलचस्पी जगानेवाले विचार या मुद्दे नहीं हैं जिन्हें भाषण में संक्षिप्त रूप से बताया गया है। वे भाषण के मुख्य भाग हैं, वे विचार जिन्हें कुछ हद तक विकसित किया जाता है। वे किराने की दुकान में खानों के लेपल या चिन्हों की तरह हैं जो एक व्यक्ति को यह पहचानने में मदद देते हैं कि शैल्फ़ के उस भाग में क्या है और वे इस बात को निर्धारित करते हैं कि उस भाग में क्या रखा जाना चाहिए और क्या नहीं रखा जाना चाहिए। धान्य के लेपल के नीचे मुरब्बा और चटनी शामिल नहीं होगा और मात्र लोगों को उलझन में डालेगा। कॉफ़ी और चाय के चिन्ह के नीचे चावल नहीं रखा जाएगा। यदि बहुत ज़्यादा चीज़ों की वजह से खानों के लेपल छिप जाते हैं तो कोई भी चीज़ ढूँढ़ना मुश्किल है। लेकिन यदि चिन्ह स्पष्ट रूप से दिखते रहें तो एक व्यक्ति जल्द ही पहचान सकता है कि उसके सामने क्या है। ऐसा ही आपके भाषण के मुख्य मुद्दों के बारे में भी है। जब तक उन्हें समझा और याद रखा जा सकता है, आपकी समाप्ति तक आपकी बात को समझने के लिए आपके श्रोतागण को बहुत कम नोट्स की ज़रूरत होगी।
११ एक और तत्त्व। मुख्य मुद्दों का चुनाव और इस्तेमाल श्रोतागण और भाषण के उद्देश्य के अनुसार बदलेगा। इसी कारण, स्कूल ओवरसियर को विद्यार्थी के मुख्य मुद्दों के चुनाव को विद्यार्थी ने उन्हें जिस रीति से इस्तेमाल किया है उसके आधार पर आँकना चाहिए, सलाहकार ने जिन मुद्दों को व्यक्तिगत तौर पर पहले से चुना था उनके आधार पर नहीं।
१२ अपना चुनाव करने में मात्र ज़रूरी बातों को चुनिए। सो, पूछिए, कौन-सी बात किसी मुद्दे को ज़रूरी बनाती है? वह ज़रूरी है यदि आप उसके बिना अपने भाषण के उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, छुड़ौती के धर्मसिद्धांत से अपरिचित एक व्यक्ति से उसके बारे में एक चर्चा में, पृथ्वी पर यीशु के मनुष्यत्व को स्थापित करना ज़रूरी है, अन्यथा उसके बलिदान के अनुरूप मूल्य को समझाना असम्भव होगा। अतः आप इसे चर्चा का एक मुख्य मुद्दा मानेंगे। लेकिन यदि आपने उस व्यक्ति को यह साबित कर दिया था कि त्रियेक एक झूठी धारणा है, तब मनुष्य के रूप में यीशु का जो स्थान था उसकी चर्चा मात्र गौण होगी क्योंकि इसे पहले ही स्वीकार किया गया है। और इस कारण यीशु की छुड़ौती का अनुरूप मूल्य स्थापित करना तुलनात्मक रूप से आसान होगा। इस मामले में यीशु के मनुष्यत्व की चर्चा ज़रूरी नहीं होगी।
१३ सो अपने आप से पूछिए, मेरा श्रोतागण पहले से क्या जानता है? मुझे अपने उद्देश्य को पूरा करने में क्या स्थापित करने की ज़रूरत है? यदि आपको पहले सवाल का जवाब मालूम है तो आप दूसरे सवाल का जवाब अपनी जानकारी को इकट्ठा करने, थोड़ी देर के लिए ज्ञात सारी जानकारी को अलग रखने और बाक़ी बचे मुद्दों को यथासंभव कम समूहों में संगठित करने के द्वारा दे सकते हैं। ये समूह आपके पहचान चिन्ह बन जाते हैं कि आप कौन-सा आध्यात्मिक भोजन अपने श्रोतागण को प्रदान कर रहे हैं। ये लेपल या मुख्य मुद्दे कभी ढाँपे या छिपाए नहीं जाने चाहिए। वे आपके मुख्य मुद्दे हैं जिन्हें विशिष्ट होना चाहिए।
१४-१७. कारण बताइए कि क्यों हमारे बहुत ज़्यादा मुख्य मुद्दे नहीं होने चाहिए।
१४ बहुत ज़्यादा मुख्य मुद्दे नहीं। किसी भी विषय की कुछ ही ज़रूरी बातें होती हैं। अधिकांश मामलों में उन्हें एक हाथ पर गिना जा सकता है। यह सच है चाहे आपके पास उन्हें प्रस्तुत करने के लिए जितना भी समय हो। अनेक मुद्दों को विशिष्ट करने की कोशिश करने के सामान्य फन्दे में मत पड़िए। जब एक किराने की दुकान बहुत बड़ी हो जाती है और बहुत सारी वस्तुएँ होती हैं तो एक व्यक्ति को शायद निर्देशन के लिए पूछना पड़े। आपके श्रोतागण मात्र सीमित भिन्न विचारों को ही तर्कसंगत रूप से एक बार में समझ सकते हैं। और आपका भाषण जितना लम्बा है, उतना ही उसे सरल बनाया जाना चाहिए और आपके मुख्य मुद्दों को उतना ही मज़बूत और स्पष्ट होना चाहिए। अतः अपने श्रोतागण को बहुत सारी बातें याद कराने की कोशिश मत कीजिए। उन मुद्दों को चुनिए जिन्हें आपको लगता है कि याद रखना चाहिए और फिर अपना पूरा समय इनके बारे में बात करने में बिताइए।
१५ क्या निर्धारित करेगा कि बहुत सारे मुद्दे हैं कि नहीं? सरल शब्दों में कहें तो, यदि किसी विचार के छोड़े जाने पर भी भाषण का उद्देश्य पूरा किया जा सकता है, तो वह मुद्दा एक मुख्य मुद्दा नहीं है। भाषण को पूरा करने के लिए आप शायद उस मुद्दे को एक सम्बन्धक या एक अनुस्मारक के तौर पर शामिल करना चाहें, लेकिन उसे उन मुद्दों की तरह विशिष्ट नहीं होना चाहिए जैसे वे जो सम्भवतः छोड़े नहीं जा सकते थे।
१६ एक और बात, आपके पास हर मुद्दे को सफलतापूर्वक तथा निर्णायक रूप से विकसित करने के लिए पर्याप्त समय होना चाहिए। यदि थोड़े समय में बहुत कुछ कहा जाना है, तो जिन बातों को श्रोतागण जानते हैं उन्हें सबसे कम बताइए। अपरिचित बातों को छोड़ बाक़ी सब कुछ निकाल दीजिए और उन्हें इतना स्पष्ट बनाइए कि श्रोतागण के लिए उन्हें भूलना मुश्किल हो जाए।
१७ आख़िर में, आपके भाषण को सरलता का प्रभाव देना चाहिए। यह हमेशा प्रस्तुत की गई जानकारी की मात्रा पर निर्भर नहीं करता। यह शायद जिस तरह आपके मुद्दे संगठित हैं मात्र उसके कारण हो। उदाहरण के लिए, यदि आप एक ऐसी दुकान में जाते हैं जहाँ कमरे के बीच में सब चीज़ों का एक ढेर लगा हुआ हो तो यह घिच-पिच और बहुत ही उलझानेवाला दिखता। आपको कोई भी चीज़ ढूँढने में मुश्किल होती। लेकिन जब सब कुछ सही रीति से व्यवस्थित है और सब सम्बन्धित चीज़ें एक साथ इकट्ठी की गई हैं और एक विभाग चिन्ह से उनकी पहचान होती है तो प्रभाव बहुत ही आकर्षक होता है और किसी भी वस्तु को आसानी से ढूँढा जा सकता है। अपने भाषण को मात्र कुछ ही मुख्य विचारों में संगठित करने के द्वारा सरल बनाइए।
१८. मुख्य मुद्दों को कैसे विकसित किया जाना चाहिए?
१८ मुख्य विचारों को अलग-अलग विकसित किया गया। हर मुख्य विचार को अपने आप में अलग रहना चाहिए। हरेक को अलग-अलग विकसित किया जाना चाहिए। यह आपको भाषण की प्रस्तावना या समाप्ति में मुख्य शीर्षकों की एक संक्षिप्त रूपरेखा या सारांश देने से नहीं रोकता। लेकिन भाषण के मुख्य भाग में एक समय में आपको मात्र एक मुख्य विचार के बारे में बात करनी चाहिए, और ऐसे दोहराव या परावर्तनों को मात्र वहीं इस्तेमाल करना चाहिए जहाँ संयोजकों के तौर पर या ज़ोर देने के लिए उनकी ज़रूरत है। एक विषयात्मक रूपरेखा बनाना सीखना यह निर्धारित करने में बहुत मदद देगा कि क्या मुख्य मुद्दों को अलग-अलग विकसित किया गया है।
१९-२१. उप-मुद्दों को कैसे इस्तेमाल किया जाना चाहिए?
१९ उप-मुद्दे मुख्य विचारों की ओर ध्यान केन्द्रित करते हैं। सबूत के मुद्दे, शास्त्रवचन, या प्रस्तुत अन्य जानकारी को मुख्य विचार पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए और उसे विस्तृत करना चाहिए।
२० तैयारी में, सभी गौण मुद्दों पर विचार कीजिए और केवल उन्हीं को रखिए जो उस मुख्य मुद्दे में सीधे योग देते हैं, चाहे वे उन्हें स्पष्ट करने, उन्हें साबित करने या मुद्दे को विस्तृत करने के लिए हों। किसी भी अनावश्यक बात को निकाला जाना चाहिए। यह मात्र विषय को और जटिल करेगा।
२१ मुख्य विचार से सम्बन्धित किसी भी मुद्दे को आप जो कहते हैं उसके द्वारा उस विचार से सीधे सम्बन्धित होना चाहिए। उसका अनुप्रयोग करने के लिए उसे श्रोतागण पर मत छोड़िए। सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए। बताइए कि सम्बन्ध क्या है। जो बताया नहीं जाता वह सामान्यतः समझा नहीं जाता। ऐसा उन मुख्य शब्दों को दोहराने से जो मुख्य विचार को व्यक्त करते हैं या मुख्य मुद्दे के विचार को समय-समय पर दोहराने से किया जा सकता है। जब आप अपने सभी उप-मुद्दों को भाषण के मुख्य मुद्दों पर केन्द्रित करने और हरेक मुख्य मुद्दे को मूल-विषय के साथ जोड़ने की कला में प्रवीण हो जाते हैं तब आपके भाषणों में वह आनन्ददायक सरलता होगी जो उन्हें प्रस्तुत करने में आसान और भूलने में मुश्किल बनाएगी।