अध्याय ४
परमेश्वर—वह कौन है?
१. (क) किन ईश्वरों की लोग उपासना करते रहे हैं? (ख) बाइबल “परमेश्वर” और “ईश्वरों” के मध्य क्या भिन्नता बताती है?
संसारव्याप्त अनेक ईश्वरों की उपासना की जाती है। शिंटो धर्म, बौद्ध धर्म, हिन्दू धर्म और जनजातीय धर्मों में लाखों ईश्वर होते हैं। यीशु के प्रेरितों के दिनों में ज्यूस और हिरमेस नामक ईश्वरों की उपासना की जाती थी। (प्रेरितों के काम १४:११, १२) अतः बाइबल इस बात को मानती है कि “अनेक ‘ईश्वर’ हैं,” वह यह भी कहती है कि “वास्तव में हमारे लिये एक परमेश्वर है अर्थात् पिता, जिसकी ओर से सब वस्तुएं हैं।” (१ कुरिन्थियों ८:५, ६) यदि आपसे पूछा जाय, ‘यह परमेश्वर कौन है?’ तो आप क्या कहेंगे?
२. परमेश्वर के प्रति लोगों के क्या भिन्न दृष्टिकोण हैं?
२ अनेक यही जवाब देंगे कि ‘वह प्रभु है।’ अथवा वे यह भी कहें ‘वह स्वर्ग में एक आत्मा है।’ एक शब्दकोष परमेश्वर को “सर्वोच्च व्यक्ति” कहता है। जब यह पूछा जाता है: ‘परमेश्वर का नाम क्या है?’ तो कुछ व्यक्ति यह उत्तर देते हैं, ‘यीशु’। अन्य लोग परमेश्वर को एक व्यक्ति के रूप में नहीं मानते हैं, बल्कि वे उसे एक सामर्थ्यपूर्ण शक्ति के रूप में मानते हैं जो सर्वत्र विद्यमान है। और कुछ लोगों को इस बात पर सन्देह होता है कि क्या परमेश्वर है या नहीं। क्या हम निश्चित हो सकते हैं कि वह अस्तित्व में है?
वस्तुतः परमेश्वर का अस्तित्व है
३. कोई भवन कैसे अस्तित्व में आता है?
३ जब आप एक सुन्दर इमारत को देखते हैं तो क्या आपने कभी सोचा कि उसका निर्माता कौन था? यदि आपको किसी ने यह बताया कि इस इमारत की निर्माण किसी ने नहीं किया, बल्कि यह केवल अपने आप से अस्तित्व में आ गयी तो क्या आप विश्वास करेंगे? अवश्य नहीं! जैसा कि बाइबल के लेखक ने कहा है: “प्रत्येक भवन का कोई न कोई निर्माता है।” सभी यह बात जानते हैं। तब क्या हम बाइबल लेखक के इस तर्कसंगत निष्कर्ष को स्वीकार नहीं कर सकते हैं जिसने यह कहा: “वह जिसने सब कुछ बनाया, परमेश्वर है”?—इब्रानियों ३:४.
४. कई अरब सितारे अस्तित्व में कैसे आये?
४ इस विश्व को देखिये जिसमें अरबों सितारे हैं। फिर भी, सब के सब आकाश में उन नियमों के अनुसार गतिशील होते हैं, जिनसे वे एक दूसरे के साथ, पूर्ण सम्बन्ध में स्थिर रहते हैं। “किसने उनकी सृष्टि की?” यह प्रश्न बहुत समय पहले पूछा गया था। उसका जो उत्तर दिया गया, वह सार्थक है: “यह वह है जो इनके समूह को गिन गिन कर निकालता है और उन सबको नाम लेकर बुलाता है।” (यशायाह ४०:२६) निश्चय यह सोचना मूर्खता होगी कि इन अरबों सितारों ने स्वयं अपने आपको बनाया और बिना किसी व्यक्ति के निर्देश के महान ग्रहमंडल बने, जो अद्भुत क्रम तरीके से गतिशील होते हैं!—भजन संहिता १४:१.
५. किसी यंत्र के सब भागों के संयोग से स्वयं निर्माण की क्या संभावना है? (ख) यह बात हमारे विश्व के विषय में क्या प्रदर्शित करती है?
५ यह अत्यन्त सुव्यवस्थित विश्व स्वयं अस्तित्व में नहीं आ सकता था। इसके लिए एक बुद्धिमान और अति शक्तिमान सृष्टिकर्ता की आवश्यकता थी। (भजन संहिता १९:१, २) एक व्यापारी ने, जिससे यह पूछा गया था कि वह परमेश्वर में क्यों विश्वास करता था, यह व्याख्या दी, कि उसके कारखाने में एक व्यक्ति को यह सीखने में कि एक यंत्र के सत्रह भागों को जोड़कर उसे कैसे तैयारी किया जाय, दो दिन लगते हैं, उसने कहा: “मैं केवल एक मामूली यंत्र निर्माता हूँ, परन्तु मैं यह जानता हूँ, कि आप उस यंत्र के सत्रह भागों को किसी नाद में अगले सत्रह अरब वर्षों तक हिलाते रहिये, तो भी आप उनसे कभी यह यंत्र अपने आपसे बनकर तैयार होता हुआ नहीं देखेंगे।” यह विश्व जिसमें पृथ्वी के अनेक प्रकार के जीव सम्मिलित हैं, इस यंत्र से कहीं अधिक जटिल है। यदि इस प्रकार के यंत्र के लिये एक कुशल निर्माता की आवश्यकता है तो हम निश्चित हो सकते हैं इन तमाम वस्तुओं को सृष्ट करने के लिये एक सर्वशक्तिमान परमेश्वर की आवश्यकता थी। तो क्या इन सब कार्यों के लिए जो उसने बनाये हैं, उसकी प्रशंसा नहीं होनी चाहिए?—प्रकाशितवाक्य ४:११; प्रेरितों के काम १४:१५-१७; १७:२४-२६.
क्या परमेश्वर एक वास्तविक व्यक्ति है?
६. हम कैसे निश्चित हो सकते हैं कि परमेश्वर एक वास्तविक व्यक्ति है?
६ जबकि अधिकतर लोग यह कहते हैं कि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, अनेक लोग उसको एक वास्तविक व्यक्ति के रूप में नहीं समझते हैं। क्या वह वास्तव में एक व्यक्ति है? हाँ, यह हम समझ सकते हैं जहाँ बुद्धि है वहाँ मस्तिष्क का होना आवश्यक है। उदाहरणतया, हम यह कहें, ‘मैं अपने मन में निश्चय नहीं कर पा रहा हूँ।’ और हम जानते हैं कि जहाँ मन है तो वहाँ एक निश्चित आकार के शरीर में मस्तिष्क भी है। अतः तब वह महान बुद्धि जो इस सारी सृष्टि को अस्तित्व में लाने के लिये उत्तरदायी है, उस महान व्यक्ति अर्थात् सर्वशक्तिमान परमेश्वर की है। यद्यपि उसका एक भौतिक शरीर नहीं है, वह एक आत्मिक शरीर रखता है। क्या एक आत्मिक व्यक्ति का शरीर होता है? हाँ, बाइबल कहती है: “यदि जहाँ एक भौतिक देह है, तो वहाँ एक आत्मिक देह भी है।”—१ कुरिन्थियों १५:४४; यूहन्ना ४:२४.
७. (क) किससे यह प्रदर्शित होता है कि परमेश्वर को रहने का एक स्थान है? (ख) यह कैसे प्रदर्शित होता है कि उसकी एक देह है?
७ क्योंकि परमेश्वर एक व्यक्ति है जिसकी एक आत्मिक देह है तो उसके रहने के लिये एक निवास-स्थान का होना आवश्यक है। बाइबल हमें बताती है कि स्वर्ग परमेश्वर के वास करने का एक “स्थापित स्थान” है। (१ राजा ८:४३) इसके अतिरिक्त, हमें यह बताया गया है कि “मसीह ने स्वर्ग में प्रवेश किया ताकि वह हमारे लिये उस व्यक्ति परमेश्वर के सम्मुख प्रस्तुत हो।” (इब्रानियों ९:२४) कुछ व्यक्ति परमेश्वर के साथ स्वर्ग में जीवन का वरदान प्राप्त करेंगे और उस समय उनको आत्मिक देह मिलेगी। जैसा कि बाइबल कहती है वे तब परमेश्वर को देखेंगे और उसके समान भी होंगे। (१ यूहन्ना ३:२) इससे भी यही प्रदर्शित होता है कि परमेश्वर एक व्यक्ति है, और उसकी देह भी है।
८, ९. (क) एक विद्युत उत्पादक संयंत्र का उदाहरण परमेश्वर की दूरगामी शक्ति को कैसे प्रदर्शित कर सकता है? (ख) परमेश्वर की पवित्र आत्मा क्या है और वह क्या कर सकती है?
८ परन्तु कोई यह पूछे: ‘यदि परमेश्वर एक वास्तविक व्यक्ति है जो स्वर्ग में एक निश्चित स्थान में वास करता है, तो वह कैसे सब कुछ देख सकता है, जो हर जगह घटित होता है? विश्व के प्रत्येक भाग में उसकी सामर्थ्य को कैसा महसूस किया जा सकता है?’ (२ इतिहास १६:९) यह वास्तविकता कि परमेश्वर एक व्यक्ति है किसी तरीके से उसकी सामर्थ्य या महानता को सीमित नहीं करती है। न ही इससे उसके लिये हमारा आदर कम होना चाहिये। (१ इतिहास २९:११-१३) इसको समझने के लिये एक विद्युत उत्पादक संयंत्र के दूरगामी प्रभावों पर विचार कीजिये।
९ विद्युत संयंत्र एक नगर में या नगर के पास एक निश्चित स्थान पर स्थापित होता है। परन्तु उसकी बिजली उस सम्पूर्ण क्षेत्र में वितरित होती है, जिससे रोशनी और विद्युत शक्ति प्राप्त होती है। ऐसा ही परमेश्वर के साथ होता है। वह स्वर्ग में है। (यशायाह ५७:१५; भजन संहिता १२३:१) फिर भी उसकी पवित्र आत्मा जो उसकी अदृश्य सक्रिय शक्ति है सब जगह पूरे विश्व में महसूस की जा सकती है। अपनी पवित्र आत्मा के द्वारा परमेश्वर ने आकाश, पृथ्वी और सब जीवों को सृष्ट किया। (भजन संहिता ३३:६; उत्पत्ति १:२; भजन संहिता १०४:३०) इन सब जीवों को सृष्ट करने के लिये परमेश्वर को देह रूप में विद्यमान होने की आवश्यकता नहीं होती है। यद्यपि कि वह दूर स्थित है वह अपनी आत्मा, अपनी सक्रिय शक्ति को वह सब कुछ करने के लिये भेज सकता है जो वह करना चाहता है। क्या ही अद्भुत है यह परमेश्वर!—यिर्मयाह १०:१२; दानिय्येल ४:३५.
जिस प्रकार का व्यक्ति परमेश्वर है
१०. वह एक तरीका क्या है जिससे हमें परमेश्वर को जानने में सहायता मिलती है?
१० क्या परमेश्वर उस प्रकार का व्यक्ति है कि यदि हम उसे भली-भाँति जान लें तो हम उससे प्रेम करने लगेंगे? ‘शायद’ आप यही कहें, ‘परन्तु जब हम परमेश्वर को नहीं देख सकते हैं, तो हम कैसे उसके विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं?’ (यूहन्ना १:१८) बाइबल उसे जानने का एक तरीका बताती है जब वह यह कहती है: “उसके अदृश्य गुण अर्थात् उसकी सनातन सामर्थ्य और परमेश्वरत्व जगत की सृष्टि के समय से उसके कार्यों के द्वारा देखे जा सकते हैं।” (रोमियों १:२०) अतः यह सारी वस्तुएं जो परमेश्वर ने सृष्ट की हैं, यदि हम वास्तव में उनकी जाँच-पड़ताल करें और उनके विषय में सोचें तो हमें यह समझने में कि परमेश्वर किस प्रकार का व्यक्ति है, सहायता दे सकती हैं।
११. हम परमेश्वर के विषय में उन वस्तुओं से जो उसने बनायी हैं, क्या मालूम कर सकते हैं?
११ जैसा कि हम देख चुके हैं कि तारामय आकाश, हमें निश्चित रूप से परमेश्वर की महानता और उसकी विस्मयकारी शक्ति का वर्णन करता है! (भजन संहिता ८:३, ४; यशायाह ४०:२६) अब पृथ्वी को देखिये। परमेश्वर ने उसको आकाश में उस स्थान पर रखा है, जहाँ उसको सूर्य से सही मात्रा में गर्मी और रोशनी मिलती है। और जल चक्र पर विचार कीजिये। पृथ्वी को सींचने के लिए वर्षा होती है। पानी नदियों में बहता है जो सागर में मिल जाती हैं। सूर्य समुद्र से जल को भाप के रूप में ऊपर उठाता है जो पुनः ज़मीन को सींचने के लिये वर्षा के रूप में गिरता है। (सभोपदेशक १:७) यहाँ अनेक प्रकार के विस्मयकारी चक्र हैं, जिनको परमेश्वर भोजन, शरण और सब वस्तुएं पुराने के लिये जिनकी मनुष्य और पशुओं को आवश्यकता है, संचालित करता है! और ये सारी अद्भुत बातें हमें परमेश्वर के विषय में कि वह किस प्रकार का व्यक्ति है, क्या बताती है? यह कि वह एक महान बुद्धिमान परमेश्वर है और वह अत्यधिक उदार है और अपनी सृष्टि की परवाह करता है।—नीतिवचन ३:१९, २०; भजन संहिता १०४:१३-१५, २४, २५.
१२. आपकी अपनी देह परमेश्वर के बारे में आपको क्या बताती है?
१२ अपनी देह का विचार कीजिए। प्रत्यक्ष रूप से वह केवल जीवित रहने की अपेक्षा बहुत कुछ करने के लिये बनायी गयी थी। वह वास्तव में जीवन का आनन्द उठाने के लिये अद्भुत रूप से रची गयी थी। (भजन संहिता १३९:१४) हमारी आँखें केवल काले और सफ़ेद रंग में नहीं बल्कि सब रंगों में वस्तुएं देख सकती हैं और यह दुनिया विभिन्न रंगों की बहुतायत से परिपूर्ण है जिनसे हम आनन्दित होते हैं। हम सूंघ सकते हैं और चख सकते हैं। अतः भोजन करना केवल एक आवश्यक कार्य नहीं है; परन्तु वह आनन्दप्रद भी हो सकता है। इस प्रकार ये इन्द्रियाँ जीवन के लिये पूर्णतया आवश्यक नहीं हैं बल्कि वे प्रिय, उदार और विचारपूर्ण परमेश्वर की ओर से वरदान हैं।—उत्पत्ति २:९; १ यूहन्ना ४:८.
१३. मनुष्यों के प्रति परमेश्वर के व्यवहारों के तरीके की जानकारी से आप परमेश्वर के विषय में क्या मालूम करते हैं?
१३ मानवजाति के साथ परमेश्वर का जो व्यवहार है, उसे देखने से भी यह प्रदर्शित होता है कि वह किस प्रकार का परमेश्वर है। उसमें न्याय का तीव्र बोध है। वह विशेष प्रजाति जन के प्रति, पक्षपात का प्रदर्शन नहीं करता है। (प्रेरितों के काम १०:३४, ३५) वह दयालु और कृपालु है। इस्राएली राष्ट्र के साथ जो उसका व्यवहार रहा है जिसको उसने मिस्र की दासता से छुड़ाया था, उस विषय में बाइबल कहती है: “वह अनुग्रहपूर्ण था; . . . वह यही स्मरण करता रहा कि वे मनुष्य हैं।” फिर भी इस्राएली अक्सर आज्ञाओं का पालन नहीं करते थे जिससे परमेश्वर को दुःख होता था। जैसा कि बाइबल कहती है: “वे उसे दुःख पहुँचाते थे और इस्राएल के पवित्र को खेदित करते थे।” (भजन संहिता ७८:३८-४१; १०३:८, १३, १४) दूसरी ओर जब उसके सेवक उसके नियमों के प्रति आज्ञाकारी रहते हैं तो परमेश्वर प्रसन्न होता है। (नीतिवचन २७:११) इसके अतिरिक्त परमेश्वर वर्णन करता है कि उसे कैसा महसूस होता है जब उसके सेवकों को अनेक शत्रु दुःख पहुंचाते हैं: “वह जो तुमको छूता है वह मेरी आँख की पुतली को छूता है।” (जकर्याह २:८) क्या आप ऐसे परमेश्वर से प्रेम करने के लिये प्रेरित नहीं होते हैं, जो सब जातियों और राष्ट्रों के नम्र और तुच्छ मनुष्यों के प्रति इस प्रकार का स्नेह रखता है?—यशायाह ४०:२२; यूहन्ना ३:१६.
क्या परमेश्वर यीशु है या एक त्रियेक?
१४. त्रियेक की शिक्षा क्या है?
१४ यह अद्भुत परमेश्वर कौन है? कुछ लोग कहते हैं कि उसका नाम यीशु है। अन्य कहते हैं कि वह एक त्रियेक परमेश्वर है; यद्यपि कि वह शब्द ‘त्रियेक’ बाइबल में कहीं नज़र नहीं आता है। त्रियेक परमेश्वर की शिक्षा के अनुसार परमेश्वर में तीन व्यक्ति हैं अर्थात् “एक परमेश्वर के रूप में पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा।” अनेक धार्मिक संस्थाएं यही शिक्षा देती हैं, यद्यपि वे इस बात को स्वीकार करती हैं कि त्रियेक “एक रहस्य” है। क्या परमेश्वर के विषय में इस प्रकार के दृष्टिकोण सही हैं?
१५. बाइबल कैसे प्रदर्शित करती है कि परमेश्वर और यीशु दो अलग व्यक्ति हैं जो बराबर नहीं है?
१५ क्या यीशु ने कभी यह कहा था कि वह परमेश्वर है? नहीं, उसने कभी यह नहीं कहा। इसकी अपेक्षा बाइबल में वह “परमेश्वर का पुत्र” कहलाया गया है। और उसने कहा: “पिता मुझसे बड़ा है।” (यूहन्ना १०:३४-३६; १४:२८) यीशु ने यह भी व्याख्या दी कि कुछेक ऐसी बातें हैं जिन्हें न वह जानता है, और न स्वर्गदूत, बल्कि केवल परमेश्वर ही जानता है। (मरकुस १३:३२) इसके अतिरिक्त यीशु ने एक अवसर पर परमेश्वर से यह कहकर प्रार्थना की: “मेरी इच्छा नहीं बल्कि तेरी इच्छा पूरी हो। (लूका २२:४२) यदि यीशु सर्वशक्तिमान परमेश्वर होता तो वह स्वयं से यह प्रार्थना नहीं करता, क्या वह इस प्रकार प्रार्थना करता? वास्तविकता यह है कि यीशु की मृत्यु के बाद पवित्र शास्त्र यह कहता है “इस यीशु को परमेश्वर ने जी उठाया।” (प्रेरितों के काम २:३२) इस प्रकार सर्वशक्तिमान परमेश्वर और यीशु स्पष्ट रूप से दो अलग व्यक्ति हैं। अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान और स्वर्ग पर चढ़ने के बाद, यीशु फिर भी अपने पिता के बराबर नहीं हुआ।—१ कुरिन्थियों ११:३; १५:२८.
१६. यद्यपि यीशु को “परमेश्वर” बताया गया है, किस बात से प्रदर्शित होता है कि वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर नहीं है?
१६ ‘परन्तु क्या यीशु, बाइबल में ईश्वर नहीं कहलाया गया है?’ शायद कोई यह पूछे। यह सच है। शैतान भी ईश्वर कहलाया गया है। (२ कुरिन्थियों ४:४) यूहन्ना १:१ में, जहाँ यीशु को “वचन” बताया गया है, कुछ बाइबल अनुवाद यह कहते हैं: “आदि में वचन था और वचन परमेश्वर के साथ था और वचन परमेश्वर था।” परन्तु यहाँ गौर कीजिये कि पद २ यह कहता है कि वचन “आदि में परमेश्वर के साथ था।” और जबकि मनुष्यों ने यीशु को देखा है, पद १८ यह कहता है “परमेश्वर को किसी मनुष्य ने कभी नहीं देखा।” (ऑथराइज्ड़ या किंग जेम्स वर्शन) अतः हम देखते हैं कि पद १ के कुछ अनुवाद मूल-भाषा में दिये हुए विचार को सही रूप में प्रस्तुत करते हैं जब वे यह कहते हैं: “वचन परमेश्वर के साथ था और वचन दिव्य था,” या वह “एक ईश्वर” था, अर्थात् वचन एक सामर्थ्यपूर्ण ईश्वर समान व्यक्ति था। (एन अमेरिकन ट्रांसलेशन) स्पष्टतया, यीशु सर्वशक्तिमान परमेश्वर नहीं है। वास्तव में यीशु ने अपने पिता को “मेरा परमेश्वर” और “एक अद्वैत सच्चा परमेश्वर कहा है।”—यूहन्ना २०:१७; १७:३.
१७. पवित्र आत्मा का यीशु के अनुयायियों पर उंडेला जाना कैसे यह सिद्ध करता है कि पवित्र आत्मा एक व्यक्ति नहीं है?
१७ जहाँ तक “पवित्र आत्मा” का सम्बन्ध है जो त्रियेक परमेश्वर का तीसरा व्यक्ति है, हम यहाँ देख चुके हैं कि वह एक व्यक्ति नहीं बल्कि वह परमेश्वर की सक्रिय शक्ति है। यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने कहा था कि यीशु पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देगा जैसा कि यूहन्ना पानी से बपतिस्मा दे रहा था। अतः जिस तरीके से पानी एक व्यक्ति नहीं है पवित्र आत्मा भी एक व्यक्ति नहीं है। (मत्ती ३:११) जिस बात की यूहन्ना ने भविष्य सूचना दी थी, वह उस समय पूरी हुई जब यीशु की मृत्यु और उसके पुनरुत्थान के बाद पवित्र आत्मा यरूशलेम में इकट्ठे हुए उसके अनुयायियों पर डाली गयी थी। बाइबल कहती है: “वे सब पवित्र आत्मा से भर गये।” (प्रेरितों के काम २:४) क्या वे एक व्यक्ति से “भर गये थे?” नहीं, वे परमेश्वर की सक्रिय शक्ति से भर गये थे। इस प्रकार तथ्य इस बात को स्पष्ट करते हैं कि त्रियेक परमेश्वर की शिक्षा बाइबल शिक्षा नहीं है। वस्तुतः, यीशु ने पृथ्वी पर आने से बहुत पहले, प्राचीन मिस्र और बेबीलोन जैसे स्थानों में ईश्वर, तीन-तीन के समूह अर्थात् त्रियेकों के रूप में पूजे जाते थे।
परमेश्वर का नाम
१८. (क) क्या “परमेश्वर” सर्वशक्तिमान परमेश्वर का वैयक्तिक नाम है? (ख) उसका वैयक्तिक नाम क्या है?
१८ इसमें कोई सन्देह नहीं कि जिन व्यक्तियों को आप जानते हैं उन सबके अपने अपने नाम हैं। परमेश्वर का भी एक वैयक्तिक नाम है, जो उसको दूसरों से भिन्न करता है। शायद कोई पूछे कि ‘क्या “परमेश्वर” उसका नाम नहीं?’ नहीं, “परमेश्वर” केवल एक उपाधि है जिस प्रकार “राष्ट्रपति,” “राजा” और “न्यायाधीश” उपाधियाँ हैं। हम बाइबल से परमेश्वर का नाम मालूम करते हैं जहाँ वह लगभग ७००० बार आता है। उदाहरणतः किंग जेम्स वर्शन के भजन संहिता ८३:१८ में यह लिखा है: “जिससे मनुष्य जान ले कि केवल तू जिसका नाम यहोवा है सारी पृथ्वी पर परमप्रधान है।” इसके अतिरिक्त अधिकतर बाइबल अनुवादों में परमेश्वर का नाम प्रकाशितवाक्य १९:१-६ में इस वाक्यांश “एलीलूइया” अथवा “हल्लिलूजा” के रूप में दिया हुआ है। इसका अर्थ है “याह की स्तुति हो”, ‘याह’ यहोवा शब्द का संक्षिप्त रूप है।
१९. (क) कुछ लोग अपनी बाइबल में परमेश्वर का नाम देखकर क्यों आश्चर्य में पड़ जाते हैं? (ख) किंग जेम्स वर्शन में यह नाम कहाँ आता है?
१९ कुछ लोग अपनी बाइबल में परमेश्वर का नाम देखकर आश्चर्य करते हैं। यह अक्सर इसलिये होता है क्योंकि उसके बाइबल अनुवादों में परमेश्वर के नाम का प्रयोग कदाचित् ही होता है। उदाहरण के रूप में, किंग जेम्स वर्शन स्वयं “यहोवा” नाम का प्रयोग निर्गमन ६:३, भजन संहिता ८३:१८ और यशायाह १२:२ और २६:४ स्थानों में करता है। तथापि, जब यह बाइबल परमेश्वर के नाम का अनुवाद “प्रभु” या “परमेश्वर” की उपाधि द्वारा करती है तो वह हमेशा इस उपाधि को बड़े अक्षरों में लिखती है जो इसे छोटे अक्षरों में लिखे गये सामान्य शब्द “प्रभु” और “परमेश्वर” से अलग करती है। भजन संहिता ११०:१ पर ध्यान दीजिए।
२०. (क) परमेश्वर के नाम का प्रयोग अक्सर क्यों नहीं हुआ है? (ख) क्या उसका प्रयोग अक्सर होना चाहिये?
२० शायद आप यह पूछें कि ‘सब जगह परमेश्वर के नाम का प्रयोग’ क्यों नहीं हुआ है ‘जैसा कि वह बाइबल के मूल-पाठ में होता है? वहाँ उस स्थान पर सामान्य रूप से प्रभु और परमेश्वर की उपाधियों का प्रयोग क्यों हुआ है?’ अमेरिकन स्टेंडर्ड वर्शन की प्रस्तावना में इस बात की व्याख्या दी गयी है कि वह क्यों परमेश्वर के नाम यहोवा का प्रयोग करता है और क्यों एक बहुत दीर्घ समय से इस नाम का प्रयोग नहीं हुआ है: “अमेरिकन संशोधक ध्यानपूर्वक सोचविचार करने के बाद एक सर्वसम्मत दृढ़ निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह यहूदी अंधविश्वास का प्रभाव अंग्रेज़ी या किसी अन्य अनुवाद में अब नहीं होना चाहिये क्योंकि यह अन्धविश्वास दिव्य नाम को इतना पवित्र मानता था कि उसका उच्चारण नहीं करता था . . . यह वैयक्तिक नाम अपने प्रचुर पवित्र सम्बन्धों के साथ इस पवित्र मूल-पाठ में अपने स्थान पर अब पुनःस्थापित कर दिया है जिसका उस पर असंदिग्घ अधिकार है।” हाँ जिन व्यक्तियों ने उस बाइबल का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया, उन्हें यह महसूस हुआ कि जिन कारणों के लिये परमेश्वर का नाम हटा दिया गया था, वे उपयुक्त नहीं थे। अतः उन्होंने उस नाम को बाइबल में अपने न्यायसम्मत स्थानों पर पुनःस्थापित कर दिया।
२१. कैथोलिक डूवे वर्शन नाम यहोवा के विषय में क्या कहता है?
२१ तथापि वे लोग भी हैं जो इस बात पर तर्क करते हैं कि शब्द “यहोवा” का प्रयोग नहीं होना चाहिये क्योंकि वह वास्तव में परमेश्वर का नाम नहीं है। उदाहरणतया कैथोलिक डूवे वर्शन जो अपने मुख्य मूल-पाठ में परमेश्वर के नाम का प्रयोग नहीं करता है वह निर्गमन ६:३ से सम्बन्धित, पाद टिप्पणी में यह कहता है: “यहोवा के नाम का उच्चारण जिस रीति से होता है उसे कुछ आधुनिकों ने गढ़ा है . . . इब्रानी मूल-पाठ में दिये गये इस नाम का सही उच्चारण बहुत समय से प्रयोग में न होने से अब बिल्कुल खो गया है।”
२२. (क) इब्रानी भाषा में परमेश्वर के नाम को कैसे दर्शाया गया है? (ख) प्रारम्भ में परमेश्वर के नाम का उच्चारण कैसे होता था उस विषय जानने में क्यों समस्या उत्पन्न होती है?
२२ हाँ, जैसा कि कैथोलिक बाइबल यहाँ कहती है परमेश्वर का नाम इब्रानी मूल-पाठ में अवश्य आता है, क्योंकि इब्रानी ही वह भाषा थी जिसमें बाइबल की पहली ३९ पुस्तकें लिखी गयी थीं। वहाँ यह नाम चार इब्रानी अक्षरों YHWH (यहवह) से दर्शाया गया है। प्राचीन समय में इब्रानी भाषा में स्वरों का प्रयोग नहीं होता था अर्थात् प्राचीन समय में इब्रानी भाषा, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ जैसे स्वरों के बिना लिखी जाती थी जिसकी सहायता से शब्दों को उचित ध्वनि मिलती थी। इसलिये आज समस्या यह है कि हमें यथार्थ रूप से यह नहीं मालूम है कि इब्रानी लोग YHWH व्यंजनों के साथ किन स्वरों का प्रयोग करते थे।
२३. परमेश्वर के नाम के उच्चारण के विषय में जो समस्या है उसके समझने में building के लिए bldg की वर्तनी कैसे सहायता कर सकती है?
२३ इस समस्या को सुलझाने के लिये “building” शब्द पर गौर कीजिये। मान लीजिये कि वह हमेशा से ही “bldg” लिखा जाना शुरू हुआ और कुछ समय बाद उस शब्द का बोलचाल में कभी प्रयोग नहीं हुआ। तब कैसे एक व्यक्ति जो आज से १००० साल बाद मौजूद होगा जब “bldg” शब्द लिखा देखेगा तो उसे उसका कैसे उच्चारण करना मालूम होगा? क्योंकि उसने उसका उच्चारण कभी नहीं सुना और वह नहीं जानता है कि उस शब्द में किन स्वरों का प्रयोग हुआ था, तो निश्चित रूप से उसे उस शब्द के उच्चारण का बोध नहीं होगा। इसी प्रकार परमेश्वर के नाम के साथ हुआ। यथार्थ रूप से यह बात नहीं मालूम है कि उस समय उसका उच्चारण कैसे होता था यद्यपि कुछेक ज्ञानी शब्द “याहवे” को सही समझते हैं। तथापि शब्द का यह रूप “यहोवा” अनेक सदियों से प्रयोग में रहा है और सुप्रसिद्ध है।
२४. (क) सामंजस्य रखने के लिए परमेश्वर के नाम का प्रयोग क्यों उचित है? (ख) प्रेरितों के काम १५:१४ के आधार पर परमेश्वर के नाम का प्रयोग क्यों महत्वपूर्ण है?
२४ फिर भी क्या हमें परमेश्वर के नाम का प्रयोग करना चाहिये यद्यपि कि हम उसका उच्चारण यथार्थ रूप से नहीं करते हैं, जैसा कि आदि में उसका उच्चारण होता था? हम बाइबल में अन्य व्यक्तियों के नामों का उच्चारण करते हैं यद्यपि कि हम उन नामों का उच्चारण उस तरीके से नहीं करते हैं जैसा कि वे मूल इब्रानी भाषा में उच्चारित होते थे। उदाहरणतया यीशु के नाम का उच्चारण इब्रानी भाषा में “येशुआ” होता है। इसी प्रकार बाइबल में प्रकाशित परमेश्वर के नाम के प्रयोग उपयुक्त है, चाहे हम उसका उच्चारण “याहवे”, “यहोवा” या किसी अन्य रीति से करें जो हमारी भाषा में प्रचलित है। जो बात अनुचित है वह यह है कि हम उस नाम का प्रयोग ही न करें। ऐसा क्यों? इसलिये कि जो लोग इस नाम का प्रयोग नहीं करते हैं वे उन लोगों में नहीं गिने जाते हैं जिनको परमेश्वर “अपने नाम की प्रजा” होने के लिये अलग करता है। (प्रेरितों के काम १५:१४) हमें न केवल परमेश्वर के नाम की जानकारी होनी चाहिये बल्कि हमें दूसरों के सामने उसकी प्रशंसा भी करनी चाहिये जैसा कि यीशु ने किया जब वह पृथ्वी पर था।—मत्ती ६:९; यूहन्ना १७:६, २६.
उद्देश्य का एक परमेश्वर
२५. (क) परमेश्वर के विषय में वे कौनसी ऐसी बातें हैं जिनके समझने में हमें कठिनाई अनुभव हो सकती है? (ख) किस बात ने यहोवा को सृष्टि का आरंभ करने के लिए प्रेरित किया था?
२५ यद्यपि हमारे मस्तिष्कों के लिये इस बात को समझना कठिन है, कि यहोवा का न तो आरंभ हुआ और न ही उसका कभी अन्त होगा। लेकिन वास्तविकता यह है कि वह “अनन्त काल का राजा” है। (भजन संहिता ९०:२; १ तीमुथियुस १:१७) सृष्टि का प्रारम्भ करने से पहले यहोवा विश्वव्यापी अंतरिक्ष में बिल्कुल अकेला था। फिर भी वह अकेलापन महसूस नहीं करता होगा क्योंकि वह अपने आप में पूर्ण है और वह किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं करता है। यह केवल उसका प्रेम था जिसने उसे सृष्टि का प्रारम्भ करने अर्थात् दूसरों को जीवन देने के लिये प्रेरित किया, जिससे वे भी जीवन का आनन्द उठायें। परमेश्वर की पहली सृष्टि उसके समान आत्मिक व्यक्ति थे। मनुष्यों के लिये पृथ्वी को तैयार करने से बहुत पहले स्वर्गीय पुत्रों का एक महान संगठन उसके पास मौजूद था। उनके प्रति यहोवा का उद्देश्य यह था कि वे उस जीवन का और उस सेवा में जो उसने उनको करने को दी, महान आनन्द उठायें।—अय्यूब ३८:४, ७.
२६. हम क्यों निश्चित हो सकते हैं कि पृथ्वी के लिए परमेश्वर का उद्देश्य अवश्य पूरा होगा?
२६ जब पृथ्वी को तैयार किया गया तब यहोवा ने एक दम्पति आदम और हव्वा को पृथ्वी के उस भाग में रखा जिसे परादीस बनाया जा चुका था। उसका उद्देश्य यह था कि उनके बच्चे हों जो उसकी आज्ञा का पालन करें और उसकी उपासना करें और सारी पृथ्वी पर उस परादीस को विस्तृत करें। (उत्पत्ति १:२७, २८) तथापि जैसा कि हम सीख चुके हैं कि उस महान उद्देश्य में बाधा पड़ गयी। आदम और हव्वा ने परमेश्वर की आज्ञा न मानने को ठीक समझा जिससे उसके उद्देश्य की पूर्ति नहीं हुई है। परन्तु उसका उद्देश्य अवश्य पूरा होगा क्योंकि यहोवा के उद्देश्य की पूर्ति का न होना उसकी हार समझी जायेगी। और उसकी हार कभी नहीं हो सकती है! “वह सब कुछ जिसमें मेरी खुशी है मैं अवश्य पूरा करूँगा,” उसकी यह घोषणा है। “मैं ही ने यह बात कही है और उसे पूरा भी करूँगा।”—यशायाह ४६:१०, ११.
२७. (क) हम क्यों परमेश्वर के प्रति उत्तरदायी हैं? (ख) अतः वह प्रश्न क्या है जिसपर हमें गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिये?
२७ क्या आपको मालूम है कि परमेश्वर के उद्देश्य में आपको जगह कहाँ मिल सकती है? परमेश्वर की इच्छा क्या है उसे ध्यान में न रखते हुए आप वही करके जो आप करना चाहते हैं, आपको वह जगह नहीं मिल सकती है। यही था जो शैतान ने और आदम और हव्वा ने किया था। वे जानते थे कि परमेश्वर की इच्छा क्या थी परन्तु उन्होंने उसका पालन नहीं किया। और परमेश्वर ने उनको उनके कार्यों के प्रति उत्तरदायी ठहराया। क्या हम भी यहोवा के सम्मुख उत्तरदायी ठहरते हैं? जी हाँ, क्योंकि परमेश्वर हमारे जीवन का स्रोत है। और हमारा जीवन परमेश्वर पर निर्भर है। (भजन संहिता ३६:९; मत्ती ५:४५) तब हम कहाँ तक अपना जीवन परमेश्वर के उस उद्देश्य के सामंजस्य में व्यतीत करते हैं जो वह हमारे प्रति रखता है? हमें इस विषय में गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिये क्योंकि उसपर हमारे अनन्त जीवन प्राप्त करने का अवसर निर्भर है।
यहोवा की उपासना कैसे की जाय
२८. परमेश्वर की उपासना में कुछ लोगों ने किन सहायक वस्तुओं का प्रयोग किया है?
२८ हम यहोवा की उपासना कैसे करते हैं यह महत्वपूर्ण है। हमें उसकी उपासना उस रीति से करनी चाहिये जैसा वह कहता है, यद्यपि यह तरीका उस तरीके से भिन्न हो जिसकी हमें अब तक शिक्षा मिली है। उदाहरणतया कुछ लोगों का अपनी उपासना में मूर्तियों का प्रयोग करना प्रथा रही है। वे शायद यह कहें, कि वे मूर्ति की उपासना नहीं करते हैं परन्तु उसको देखने और छूने से उनको परमेश्वर की उपासना करने में सहायता मिलती है। फिर भी क्या परमेश्वर चाहता है कि हम उसकी उपासना मूर्तियों की सहायता से करें?
२९. बाइबल कैसे प्रदर्शित करती है कि उपासना में मूर्तियों का प्रयोग अनुचित है?
२९ नहीं, वह यह नहीं चाहता है। और इसी कारण से मूसा ने इस्राएलियों से यह कहा था कि परमेश्वर उनको कभी किसी प्रकार के दृश्य रूप में प्रकट नहीं हुआ। (व्यवस्थाविवरण ४:१५-१९) वास्तविकता यह है कि उन दस आज्ञाओं में एक आज्ञा यह कहती है: “तू अपने लिये खोदकर कोई मूर्ति न बनाना और न किसी की प्रतिमा बनाना . . . तू उनको दंडवत न करना और न उनकी उपासना करना।” (निर्गमन २०:४, ५, कैथोलिक जेरूसलम बाइबल) केवल यहोवा की उपासना होनी चाहिये। बाइबल बारम्बार यह प्रदर्शित करती है कि कोई मूर्ति बनाना या उसको दंडवत करना और यहोवा के अतिरिक्त किसी व्यक्ति या किसी वस्तु की उपासना करना अनुचित है।—यशायाह ४४:१४-२०; ४६:६, ७; भजन संहिता ११५:४-८.
३०. (क) यीशु और उसके प्रेरितों ने क्या कहा था जिससे यह प्रदर्शित होता है कि उपासना में मूर्तियों का प्रयोग गलत है? (ख) व्यवस्थाविवरण ७:२५ के अनुसार मूर्तियों को क्या करना चाहिये?
३० तब जैसा कि हमें प्रत्याशा थी कि यीशु ने उपासना में मूर्तियों का प्रयोग कभी नहीं किया। उसने यह व्याख्या की: “परमेश्वर आत्मा है और उसके उपासकों को आत्मा और सच्चाई से उसकी उपासना करनी चाहिये।” (यूहन्ना ४:२४) इस परामर्श का पालन करते हुए यीशु के प्रारंभिक अनुयायियों में से किसी ने भी कभी उपासना में मूर्तियों का सहायक के रूप में प्रयोग नहीं किया। वास्तव में, उसके प्रेरित पौलुस ने यह लिखा: “हम रूप को देखकर नहीं बल्कि विश्वास द्वारा चलते हैं।” (२ कुरिन्थियों ५:७) और उसके प्रेरित यूहन्ना ने इस बात की चेतावनी दी: “अपने आप को मूर्तियों से बचाए रखो।” (१ यूहन्ना ५:२१) अपने घर में चारों ओर दृष्टि डालिये और स्वयं से पूछिये कि क्या आप इस परामर्श के अनुसार कर रहे हैं?—व्यवस्थाविवरण ७:२५.
३१. (क) यद्यपि हम परमेश्वर के किसी नियम के होने का कारण नहीं समझते हों तो वह क्या है जो हमें उसका पालन करने के लिए प्रेरित करेगा? (ख) हमें क्या करने की कोशिश करनी चाहिए, और हमें किस निमंत्रण को स्वीकार करना चाहिए?
३१ जिस रीति से हमारा सृष्टिकर्ता यहोवा अपनी उपासना चाहता है उस रीति का पालन करने से हमें सच्ची खुशी मिलेगी। (यिर्मयाह १४:२२) बाइबल प्रदर्शित करती है कि हमारे अनन्त कल्याण को ध्यान रखते हुए उसकी शर्तें हमारी भलाई के लिये हैं। यह सच है, कि कई बार ऐसा होता है कि हम अपने सीमित ज्ञान और अनुभव के कारण इस बात का पूर्ण रूप से मूल्यांकन नहीं करते हैं कि क्यों परमेश्वर द्वारा दिया हुआ एक निश्चित नियम इतना महत्वपूर्ण है या वह कैसे वास्तव में हमारी भलाई के लिये क्रियान्वित होता है। परन्तु हमारे इस दृढ़ विश्वास का, कि परमेश्वर हमसे अधिक ज्ञान रखता है हमें उसकी आज्ञा का पालन पूर्ण हृदय से करने के लिये प्रेरित करना चाहिये। (भजन संहिता १९:७-११) आइये हम यहोवा के विषय में सब कुछ सीखने के लिये पूरी कोशिश करें और उसके इस निमंत्रण को स्वीकार करें: “आओ हम झुककर दंडवत करें, और अपने निर्माता यहोवा के सामने घुटने टेकें। क्योंकि वही हमारा परमेश्वर है और हम उसकी चराई की प्रजा और उसके हाथ की भेड़ें हैं।”—भजन संहिता ९५:६, ७.
[पेज ४२ पर बक्स]
ये चार स्थान जहाँ परमेश्वर का नाम किंग जेम्स वर्शन के अंग्रेज़ी अनुवाद में प्रकट होता है, यहाँ दिखाये गये हैं
3 And I appeared unto Abraham, unto Isaac, and unto Jacob by the name of God Almighty, but by my name JEHOVAH was I not known to them.
18 That men may know that thou, whose name alone is JEHOVAH, art the most high over all the earth.
2 Behold, God is my salvation; I will trust and not be afraid: for the LORD JEHOVAH is my strength and my song; he also is become my salvation.
4 Trust ye in the LORD for ever: for in the LORD JEHOVAH is everlasting strength:
[पेज ३४, ३५ पर तसवीरें]
यदि घर का कोई निर्माता है, . . . निश्चय इस अधिक जटिल विश्व का भी एक निर्माता अवश्य होना चाहिये
[पेज ३९ पर तसवीर]
क्योंकि यीशु ने परमेश्वर से प्रार्थना की, और कहा कि उसकी नहीं बल्कि परमेश्वर की इच्छा पूरी हो, वे दोनों एक व्यक्ति नहीं हो सकते थे
[पेज ४०, ४१ पर तसवीरें]
पवित्र आत्मा कैसे एक व्यक्ति हो सकती है जब लगभग १२० शिष्य उसी समय उससे भर गये थे?
[पेज ४२ पर तसवीर]
क्या उपासना में मूर्तियों का प्रयोग उचित है?