उन्नतीसवाँ अध्याय
एक राजा को उसके विश्वास का प्रतिफल मिला
1, 2. हिजकिय्याह कैसे आहाज से अच्छा राजा साबित हुआ?
हिजकिय्याह जब यहूदा का राजा बना तब वह 25 साल का था। वह कैसा राजा साबित होगा? क्या वह अपने पिता, राजा आहाज के नक्शेकदम पर चलेगा और अपनी प्रजा से झूठे देवताओं की पूजा करवाएगा? या क्या वह अपने पूर्वज, राजा दाऊद की तरह, यहोवा की उपासना करके अपनी प्रजा के लिए अच्छी मिसाल कायम करेगा?—2 राजा 16:2.
2 हिजकिय्याह के राजा बनने के कुछ ही समय बाद, यह ज़ाहिर हो गया कि वह सिर्फ वही काम करना चाहता था “जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है।” (2 राजा 18:2,3) अपने राज के पहले साल में, उसने यहोवा के मंदिर की मरम्मत करवायी और उसमें की जानेवाली सेवाओं को दोबारा शुरू करवाया। (2 इतिहास 29:3,7,11) फिर उसने बड़े पैमाने पर फसह का पर्व मनाने का शानदार इंतज़ाम किया और उत्तर के इस्राएल के दस गोत्रों के राज्य को भी इस पर्व में आने का न्यौता भेजा। वह क्या ही यादगार भोज था! राजा सुलैमान के दिनों के बाद से ऐसा फसह कभी नहीं हुआ था।—2 इतिहास 30:1,25,26.
3. (क) हिजकिय्याह ने जिस फसह के पर्व का इंतज़ाम किया था, उसमें आए इस्राएल और यहूदा के लोगों ने क्या कदम उठाए? (ख) फसह के उस पर्व में आनेवालों ने जो ज़बरदस्त कदम उठाया, उससे मसीही आज क्या सबक सीखते हैं?
3 फसह के पर्व के खत्म होने पर, इसमें आए लोग इस कदर प्रेरित हुए कि उन्होंने अपने झूठे देवताओं के खंभों को काट डाला, उनकी लाठों को तोड़ दिया, ऊँचे स्थानों और वेदियों को गिरा दिया। इसके बाद वे इस संकल्प के साथ अपने-अपने नगरों को लौटे कि वे अब से सच्चे परमेश्वर की ही उपासना करेंगे। (2 इतिहास 31:1) उपासना के बारे में पहले उनका रवैया कितना अलग था, लेकिन फसह के बाद देखिए उनमें कितना भारी बदलाव आया! इस घटना से आज के सच्चे मसीही सबक सीख सकते हैं कि ‘एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ना’ कितना ज़रूरी है। चाहे कलीसिया की सभाओं में हाज़िर होने की बात हो या बड़े सम्मेलनों और अधिवेशनों में, इकट्ठा होने से हमें हौसला मिलता है। इतना ही नहीं, हमारे भाईचारे और परमेश्वर की आत्मा की मदद से “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये” ये सम्मेलन बहुत अहम भूमिका निभाते हैं।—इब्रानियों 10:23-25.
विश्वास परखा गया
4, 5. (क) हिजकिय्याह ने कैसे दिखाया कि वह अश्शूर के अधीन नहीं है? (ख) सन्हेरीब ने यहूदा के खिलाफ क्या फौजी कार्यवाही की है, और यरूशलेम पर तुरंत धावा ना हो इसके लिए हिजकिय्याह क्या-क्या कदम उठाता है? (ग) यरूशलेम को अश्शूरियों से बचाने के लिए हिजकिय्याह कैसी तैयारियाँ करता है?
4 इस वक्त, यरूशलेम पर भयंकर परीक्षाएँ आनेवाली हैं। हिजकिय्याह के विश्वासघाती पिता आहाज ने अश्शूरियों के साथ जो संधि की थी उसे हिजकिय्याह ने तोड़ दिया है। उसने अश्शूर के साथी, पलिश्ती को भी हरा दिया है। (2 राजा 18:7,8) यह देखकर अश्शूर के राजा का गुस्सा भड़क उठा है। इसलिए, हम पढ़ते हैं: “हिजकिय्याह राजा के चौदहवें वर्ष में, अश्शूर के राजा सन्हेरीब ने यहूदा के सब गढ़वाले नगरों पर चढ़ाई करके उनको ले लिया।” (यशायाह 36:1) यह सोचकर कि अश्शूर की बढ़ती चली आ रही निर्दयी सेना कहीं यरूशलेम पर भी तुरंत धावा न बोल दे, हिजकिय्याह सन्हेरीब को नज़राने के तौर पर 300 किक्कार चाँदी और 30 किक्कार सोना देने के लिए तैयार हो जाता है, जो कि बहुत बड़ी रकम थी।a—2 राजा 18:14.
5 शाही खज़ाने में इतना सोना-चाँदी नहीं है, इसलिए हिजकिय्याह, यहोवा के मंदिर से जो भी कीमती चीज़ें इकट्ठी कर पाता है, वह सब लेकर नज़राने के तौर पर भेज देता है। वह सोने से मढ़े मंदिर के दरवाज़ों को भी तुड़वाकर सन्हेरीब के पास भेज देता है। यह नज़राना देखकर अश्शूर का राजा कुछ देर के लिए शांत हो जाता है। (2 राजा 18:15,16) मगर हिजकिय्याह को इस बात का एहसास हो गया कि अश्शूरी ज़्यादा समय तक यरूशलेम को नहीं बख्शेंगे। इसलिए उसे तैयारियाँ करनी होंगी। उसके लोग पानी के उन सोतों को बंद कर देते हैं जिससे हमला करनेवाले अश्शूरियों को पानी मिल सकता था। इसके अलावा हिजकिय्याह यरूशलेम की शहरपनाह को और मज़बूत करता है और बड़ी संख्या में हथियार भी बनवाता है जिनमें “बहुत से तीर और ढालें भी” थीं।—2 इतिहास 32:4,5.
6. हिजकिय्याह किस पर भरोसा करता है?
6 लेकिन हिजकिय्याह का भरोसा, न तो अपनी कुशल रणनीतियों पर है ना ही शहरपनाहों की मज़बूती पर। उसका भरोसा तो सेनाओं के यहोवा पर है। वह अपने फौजी अफसरों को हिदायत देता है: “हियाव बान्धो और दृढ़ हो तुम न तो अश्शूर के राजा से डरो और न उसके संग की सारी भीड़ से, और न तुम्हारा मन कच्चा हो; क्योंकि जो हमारे साथ है, वह उसके संगियों से बड़ा है। अर्थात् उसका सहारा तो मनुष्य [मांस की बाह, फुटनोट] ही है; परन्तु हमारे साथ, हमारी सहायता और हमारी ओर से युद्ध करने को हमारा परमेश्वर यहोवा है।” यह सुनकर “प्रजा के लोग यहूदा के राजा हिजकिय्याह की बातों पर भरोसा किए रहे।” (2 इतिहास 32:7,8) अब जैसे-जैसे हम यशायाह की भविष्यवाणी के 36 से 39 अध्यायों पर चर्चा करते हैं तो उनमें बतायी गई हैरतअंगेज़ घटनाओं की कल्पना करने की कोशिश कीजिए।
रबशाके अपनी दलीलें पेश करता है
7. रबशाके कौन है, और उसे यरूशलेम क्यों भेजा गया है?
7 सन्हेरीब, रबशाके (यह किसी का नाम नहीं है बल्कि एक फौजी उपाधि है) के साथ अपने दो और खास अफसरों को यरूशलेम भेजता है ताकि वे लोगों से आत्म-समर्पण करने की माँग करें। (2 राजा 18:17) हिजकिय्याह के तीन दूत नगर की दीवार के बाहर इन अफसरों से मिलते हैं। ये तीन दूत थे, एल्याकीम जो हिजकिय्याह के घराने पर नियुक्त था, शेबना जो मंत्री था और आसाप का पुत्र योआह जो इतिहास लिखता था।—यशायाह 36:2,3.
8. मुकाबला करने के लिए तैयार यरूशलेम के निवासियों की हिम्मत तोड़ने के लिए रबशाके क्या करता है?
8 रबशाके का एक ही मकसद है, यरूशलेम के लोगों को समझाना कि लड़ने की बात छोड़ दें और हथियार नीचे डाल दें। इब्रानी भाषा में बात करते हुए वह पहले पुकार लगाता है: “तू किसका भरोसा किए बैठा है? . . . तू किस पर भरोसा रखता है कि तू ने मुझ से बलवा किया है?” (यशायाह 36:4,5) तब रबशाके डरे हुए यहूदियों को ताने मारता है, और उनसे कहता है कि वे बिलकुल बेसहारा हैं। वे सहारे के लिए किसके पास जाएँगे? उस “कुचले हुए नरकट” मिस्र के पास? (यशायाह 36:6) इस वक्त, मिस्र वाकई एक कुचले हुए नरकट जैसा है; दरअसल, एक ज़माने में विश्वशक्ति रह चुके मिस्र पर अब कुछ समय से कूश का राज है और इस वक्त मिस्र का फिरौन राजा तिर्हाका मिस्री नहीं बल्कि एक कूशी है। और वह भी अश्शूर के हाथों हारने ही वाला है। (2 राजा 19:8,9) जब मिस्र खुद अपना बचाव नहीं कर सकता तो वह यहूदा की मदद क्या करेगा।
9. रबशाके शायद इस नतीजे पर क्यों पहुँचता है कि यहोवा अपने लोगों को त्याग देगा, मगर असल में सच्चाई क्या है?
9 रबशाके अब यह दलील देता है कि यहोवा अपने लोगों के लिए नहीं लड़ेगा क्योंकि वह उनसे खफा है। वह कहता है: “फिर यदि तू मुझ से कहे, हमारा भरोसा अपने परमेश्वर यहोवा पर है, तो क्या वह वही नहीं है जिसके ऊंचे स्थानों और वेदियों को . . . हिजकिय्याह ने [ढा दिया है]?” (यशायाह 36:7) दरअसल, देश से ऊँचे स्थानों और वेदियों को हटाकर यहूदियों ने यहोवा को ठुकराया नहीं बल्कि वे तो यहोवा के पास लौट आए हैं।
10. यहूदा के लिए लड़नेवालों की ज़्यादा या कम गिनती कोई मायने क्यों नहीं रखती?
10 इसके बाद रबशाके यहूदियों को याद दिलाता है कि अश्शूर के सामने उनकी फौज तो बहुत ही घटिया दर्जे की है। घमंड से चूर वह यहूदियों को यह चुनौती देता है: “यदि तू अपनी ओर से उन पर सवार चढ़ा सके तो मैं तुझे दो हज़ार घोड़े दूंगा।” (यशायाह 36:8, NHT) लेकिन, क्या वाकई इस बात से कोई फर्क पड़ता है कि यहूदा में काबिल घुड़सवारों की कितनी बड़ी फौज है? बिलकुल नहीं, क्योंकि यहूदा का उद्धार बढ़िया फौजी ताकत पर निर्भर नहीं करता। नीतिवचन 21:31 में इसे यूँ समझाया गया है: “युद्ध के दिन के लिये घोड़ा तैयार तो होता है, परन्तु जय यहोवा ही से मिलती है।” अब रबशाके दावा करता है कि यहोवा की आशीष अश्शूरियों पर है, यहूदियों पर नहीं। वह दलील देता है कि अगर ऐसा न होता तो अश्शूरी यहूदा के इलाके में इतनी दूर तक भला कैसे आ सकते थे।—यशायाह 36:9,10.
11, 12. (क) रबशाके “यहूदी भाषा” में बोलने की ज़िद पर क्यों अड़ा रहता है, और वह सुननेवाले यहूदियों को कैसे ललचाने की कोशिश करता है? (ख) रबशाके की बातों का यहूदियों पर शायद क्या असर हुआ होगा?
11 हिजकिय्याह के दूतों को यह चिंता सता रही है कि उन आदमियों पर रबशाके की दलीलों का क्या असर पड़ेगा जो शहरपनाह के ऊपर खड़े उसकी बातें सुन सकते हैं। इसलिए वे उससे दरख्वास्त करते हैं: “अपने दासों से अरामी भाषा में बात कर क्योंकि हम उसे समझते हैं; हम से यहूदी भाषा में शहरपनाह पर बैठे हुए लोगों के सुनते बातें न कर।” (यशायाह 36:11) मगर अरामी भाषा में बात करने का रबशाके का कोई इरादा नहीं है। दरअसल वह तो यही चाहता है कि यहूदियों के दिल में शक और डर इस कदर समा जाए कि वे आत्म-समर्पण कर दें और अश्शूर को यरूशलेम पर जीत हासिल करने के लिए हथियार उठाने ही ना पड़ें! (यशायाह 36:12) इसलिए यह अश्शूरी फिर से “यहूदी भाषा” में बात करता है। वह यरूशलेम के लोगों को खबरदार करता है: “हिजकिय्याह तुम को धोखा न दे, क्योंकि वह तुम्हें बचा न सकेगा।” इसके बाद, वह सुननेवालों को ललचाने की कोशिश करते हुए कहता है कि अगर वे अश्शूर की हुकूमत के अधीन आ जाएँगे तो ज़िंदगी के मज़े लूटेंगे: “भेंट भेजकर मुझे प्रसन्न करो और मेरे पास निकल आओ; तब तुम अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष के फल खा पाओगे, और अपने अपने कुण्ड का पानी पिया करोगे; जब तक मैं आकर तुम को ऐसे देश में न ले जाऊं जो तुम्हारे देश के समान अनाज और नये दाखमधु का देश और रोटी और दाख की बारियों का देश है।”—यशायाह 36:13-17.
12 इस साल यहूदी कटनी नहीं कर सकेंगे, क्योंकि अश्शूर के हमले की वजह से उन्होंने बीज ही नहीं बोये। रसीले अंगूर खाने और ठंडा-ठंडा पानी पीने की बात सुनकर, शहरपनाह पर खड़े पुरुषों का जी ज़रूर ललचाया होगा। मगर यहूदियों की हिम्मत तोड़ने के लिए रबशाके की बातें अभी खत्म नहीं हुईं।
13, 14. रबशाके की दलीलों के बावजूद, शोमरोन के साथ जो हुआ उससे यहूदा की हालत की तुलना क्यों नहीं की जा सकती?
13 अपनी दलीलों से रबशाके अब एक और वार करता है। वह यहूदियों को चेतावनी देता है कि अगर हिजकिय्याह कहे कि “यहोवा हम को बचाएगा,” तो उस पर यकीन न करें। रबशाके यहूदियों को याद दिलाता है कि जब इस्राएल के दस गोत्रों को अश्शूरियों ने जीत लिया तो शोमरोन के देवता कुछ न कर सके थे। और दूसरे देशों के देवता कहाँ थे जब अश्शूर ने इन देशों को रौंद डाला? वह जवाब माँगता है: “हमात और अर्पाद के देवता कहां रहे? सपर्वैम के देवता कहां रहे? क्या उन्हों ने शोमरोन को मेरे हाथ से बचाया?”—यशायाह 36:18-20.
14 बेशक, झूठे देवताओं को पूजनेवाले रबशाके को यह नहीं समझ आता कि धर्मत्यागी शोमरोन या सामरिया में और हिजकिय्याह के अधीन यरूशलेम में ज़मीन-आसमान का फर्क है। शोमरोन के झूठे देवताओं के पास दस गोत्रों के उस राज्य को बचाने की ताकत नहीं थी। (2 राजा 17:7,17,18) दूसरी तरफ, हिजकिय्याह के राज में यरूशलेम ने झूठे देवताओं को छोड़ दिया है और अब वे यहोवा की सेवा करने लगे हैं। मगर, हिजकिय्याह के तीनों दूत रबशाके को यह सब समझाने की कोशिश नहीं करते। “वे चुप रहे और उसके उत्तर में एक बात भी न कही, क्योंकि राजा की ऐसी आज्ञा थी कि उसको उत्तर न देना।” (यशायाह 36:21) एल्याकीम, शेब्ना और योआह लौटकर हिजकिय्याह के पास आते हैं और वे रबशाके की कही एक-एक बात की रिपोर्ट पेश करते हैं।—यशायाह 36:22.
हिजकिय्याह फैसला करता है
15. (क) हिजकिय्याह को अब क्या फैसला करना है? (ख) यहोवा अपने लोगों को कैसे आश्वासन देता है?
15 अब राजा हिजकिय्याह को एक फैसला करना है। क्या यरूशलेम अश्शूरियों के सामने झुक जाए? या मिस्र के साथ मिल जाए? या फिर डटकर मुकाबला करे? हिजकिय्याह बहुत भारी दबाव में है। वह खुद यहोवा के मंदिर में जाता है, मगर साथ ही एल्याकीम, शेबना और याजकों के पुरनियों को यशायाह भविष्यवक्ता के पास भेजता है ताकि यहोवा से पूछे कि उन्हें क्या करना चाहिए। (यशायाह 37:1,2) टाट ओढ़े हुए राजा के दूत यशायाह के पास जाकर यह कहते हैं: “आज का दिन संकट, निन्दा और तिरस्कार का दिन है; . . . सम्भव है कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने रबशाके की बातें सुनी होंगी जिसे उसके स्वामी अश्शूर के राजा ने जीवते परमेश्वर की निन्दा करने को भेजा था तथा जिन बातों को यहोवा परमेश्वर ने सुना है उनके लिए उसे झिड़के।” (यशायाह 37:3-5, NHT) जी हाँ, अश्शूरी जीवते परमेश्वर को चुनौती दे रहे हैं! क्या यहोवा उनकी निंदा पर ध्यान देगा? यशायाह के ज़रिए यहोवा, यहूदियों को आश्वासन देता है: “जो वचन तू ने सुने हैं जिनके द्वारा अश्शूर के राजा के जनों ने मेरी निन्दा की है, उनके कारण मत डर। सुन, मैं उसके मन में प्रेरणा करूंगा जिस से वह कुछ समाचार सुनकर अपने देश को लौट जाए; और मैं उसको उसी के देश में तलवार से मरवा डालूंगा।”—यशायाह 37:6,7.
16. सन्हेरीब कैसी चिट्ठियाँ भेजता है?
16 इस बीच, रबशाके को लिब्ना में युद्ध के दौरान राजा सन्हेरीब का साथ देने के लिए वापस बुला लिया जाता है। सन्हेरीब यरूशलेम से बाद में निपट लेगा। (यशायाह 37:8) फिर भी रबशाके के जाने के बाद हिजकिय्याह को चैन नहीं मिलता। सन्हेरीब धमकी भरी चिट्ठियाँ भेजकर यह बताता है कि अगर यरूशलेम के निवासी आत्म-समर्पण नहीं करेंगे तो उनका क्या हश्र किया जाएगा। “देख, तू ने सुना है कि अश्शूर के राजाओं ने सब देशों से कैसा व्यवहार किया कि उन्हें सत्यानाश ही कर दिया। फिर क्या तू बच जाएगा? . . . जिन जातियों को . . . मेरे पुरखाओं ने नाश किया, क्या उनके देवताओं ने उन्हें बचा लिया? हमात का राजा, अर्पाद का राजा, सपर्वैम नगर का राजा, और हेना और इव्वा के राजा, ये सब कहां गए?” (यशायाह 37:9-13) तो अश्शूरी यही कह रहे हैं कि उनका विरोध करना नादानी है, विरोध करने का मतलब होगा और ज़्यादा मुसीबत मोल लेना!
17, 18. (क) हिजकिय्याह किस इरादे से यहोवा से हिफाज़त की भीख माँगता है? (ख) यशायाह के ज़रिए, यहोवा अश्शूरी को कैसे जवाब देता है?
17 हिजकिय्याह अब इस चिंता में डूबा हुआ है कि उसे जो फैसला करना है, उसका अंजाम क्या होगा। इसी चिंता में वह सन्हेरीब की चिट्ठियों को लेकर यहोवा के मंदिर में उसके सामने फैलाकर रख देता है। (यशायाह 37:14) दिल की गहराइयों से बिनती करते हुए वह यहोवा के सामने गिड़गिड़ाता है और अश्शूर की धमकियों पर ध्यान देने की भीख माँगता है। अपनी प्रार्थना को वह इन शब्दों से खत्म करता है: “अब हे हमारे परमेश्वर यहोवा, तू हमें उसके हाथ से बचा जिस से पृथ्वी के राज्य राज्य के लोग जान लें कि केवल तू ही यहोवा है।” (यशायाह 37:15-20) इससे साफ ज़ाहिर है कि हिजकिय्याह की सबसे बड़ी चिंता अपनी जान बचाना नहीं है, मगर उसे यह चिंता खाए जा रही है कि अगर अश्शूर ने यरूशलेम पर कब्ज़ा कर लिया तो यहोवा के नाम की कितनी निंदा की जाएगी।
18 यहोवा, यशायाह के ज़रिए हिजकिय्याह की प्रार्थना का जवाब देता है। यरूशलेम को अश्शूर के सामने समर्पण करने की ज़रूरत नहीं; उसे डटे रहना चाहिए। यशायाह मानो सन्हेरीब से ही बोल रहा हो। वह निधड़क होकर इस अश्शूरी के खिलाफ यहोवा का संदेश सुनाता है: “सिय्योन की कुमारी कन्या तुझे तुच्छ जानती है और ठट्ठों में उड़ाती है; यरूशलेम की पुत्री [चिढ़ाते हुए] तुझ पर सिर हिलाती है।” (यशायाह 37:21,22) फिर, यहोवा मानो खुद उससे कहता है: ‘इस्राएल के पवित्र के विरुद्ध निंदा करनेवाला तू होता कौन है? मैं तेरे कामों को जानता हूँ। तू ऊँचे-ऊँचे इरादे रखता है; तू बड़ी-बड़ी डींगें मारता है। तुझे अपनी फौजी ताकत पर बहुत भरोसा है और तू ने बहुत से देशों को जीत लिया है। मगर ऐसा नहीं कि तुझे कोई नहीं हरा सकता। मैं तेरी योजनाओं को चौपट कर दूँगा। मैं तुझे हराऊँगा। और तेरे साथ वही करूँगा जो तू ने दूसरों के साथ किया है। मैं तेरी नाक में नकेल डालकर तुझे वापस अश्शूर पहुँचा दूँगा!’—यशायाह 37:23-29.
“तुझे एक संकेत दूँगा”
19. यहोवा हिजकिय्याह को कौन-सा संकेत देता है, और इसका क्या मतलब है?
19 लेकिन हिजकिय्याह के पास इस बात की क्या गारंटी है कि यशायाह की भविष्यवाणी पूरी होगी? यहोवा खुद जवाब देता है: “मैं तुझे एक संकेत दूँगा। इस वर्ष तू खाने के लिए कोई अनाज नहीं बोयेगा। सो इस वर्ष तू पिछले वर्ष की फसल से यूँ ही उग आये अनाज को खायेगा। अगले वर्ष भी ऐसा ही होगा किन्तु तीसरे वर्ष तू उस अनाज को खायेगा जिसे तूने उगाया होगा। तू अपनी फसलों को काटेगा। तेरे पास खाने को भरपूर होगा। तू अँगूर की बेलें रोपेगा और उनके फल खायेगा।” (यशायाह 37:30, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) यहोवा यरूशलेम में फँसे यहूदियों के लिए खाने का इंतज़ाम ज़रूर करेगा। हालाँकि यहूदी अश्शूर की चढ़ाई की वजह से बीज नहीं बो सके हैं, मगर वे पिछले साल की कटनी में ज़मीन पर गिरी या छोड़ी हुई बालों की उपज से अपना पेट ज़रूर भर पाएँगे। इसके बाद का साल, जो कि सब्त का साल है उन्हें तंग हालात के बावजूद अपने खेतों को परता ही छोड़ देना है यानी उनमें कुछ नहीं बोना। (निर्गमन 23:11) यहोवा वादा करता है कि अगर लोग उसकी सुनेंगे तो खेतों में अपने आप ही इतना अन्न उगेगा जितना उनके लिए काफी होगा। फिर, इसके बाद के साल में जैसे आम तौर पर होता आया है, वे बीज बोएँगे और अपनी मेहनत से मिले फल का आनंद भी लेंगे।
20. अश्शूर के हमले से बचनेवाले किस तरह “जड़ पकड़ेंगे और फूलें-फलेंगे”?
20 यहोवा अब अपने लोगों की तुलना एक ऐसे पौधे से करता है जिसे जड़ से उखाड़ना इतना आसान नहीं है: “यहूदा के घराने के . . . लोग फिर जड़ पकड़ेंगे और फूलें-फलेंगे।” (यशायाह 37:31,32) जी हाँ, जो लोग यहोवा पर भरोसा करते हैं, उन्हें किसी भी बात से डरने की ज़रूरत नहीं। वे और उनकी संतान, देश में मज़बूती से टिके रहेंगे।
21, 22. (क) सन्हेरीब के बारे में क्या भविष्यवाणी की गयी? (ख) उसके बारे में यहोवा के वचन कैसे और कब पूरे हुए?
21 मगर अश्शूरियों ने यरूशलेम को जो धमकियाँ दी हैं, उनका क्या? यहोवा जवाब देता है: “वह इस नगर में प्रवेश करने, वरन इस पर एक तीर भी मारने न पाएगा; और न वह ढाल लेकर इसके साम्हने आने वा इसके विरुद्ध दमदमा बान्धने पाएगा। जिस मार्ग से वह आया है उसी से वह लौट भी जाएगा और इस नगर में प्रवेश न करने पाएगा।” (यशायाह 37:33,34) अश्शूर और यरूशलेम के बीच कोई जंग नहीं होगी। हैरानी की बात तो यह है कि यहूदियों के बजाय खुद अश्शूरी बिना लड़ाई के हराए गए।
22 यहोवा ने जो कहा वही किया। उसने अपना एक स्वर्गदूत भेजा जिसने सन्हेरीब की फौज के 1,85,000 सबसे बढ़िया सैनिकों, जी हाँ शूरवीरों को मौत के घाट उतार दिया। ऐसा लगता है कि यह सब लिब्ना में हुआ और सन्हेरीब जब नींद से जागा तो देखा कि उसकी फौज के सरदार, प्रधान और शूरवीर मरे पड़े हैं। शर्म के मारे वह नीनवे लौट जाता है, मगर ऐसी करारी हार के बाद भी वह अपने झूठे देवता निस्रोक का कट्टर भक्त बना रहा। कुछ साल बाद, जब सन्हेरीब निस्रोक के मंदिर में पूजा कर रहा था, तब उसके अपने ही दो बेटों ने उसका कत्ल कर दिया। एक बार फिर, बेजान निस्रोक देवता उसे बचाने के लिए कुछ न कर सका।—यशायाह 37:35-38.
हिजकिय्याह का विश्वास और भी मज़बूत होता है
23. जब सन्हेरीब पहली बार यहूदा के खिलाफ चढ़ाई करता है तब हिजकिय्याह किस संकट में है, और इस संकट का अंजाम क्या-क्या हो सकता है?
23 जब सन्हेरीब पहली बार यहूदा के खिलाफ चढ़ाई करता है, उसी वक्त के आसपास हिजकिय्याह बहुत ही गंभीर रूप से बीमार पड़ जाता है। यशायाह उससे कहता है कि वह मरनेवाला है। (यशायाह 38:1) यह सुनकर राजा पर कहर टूट पड़ता है। उसकी उम्र 39 साल है और उसे सिर्फ अपने ही भले की चिंता नहीं है, मगर वह अपनी प्रजा के भविष्य के बारे में भी चिंतित है। यरूशलेम और यहूदा के सिर पर अश्शूरियों की तलवार लटक रही है। अगर हिजकिय्याह की मौत हो गयी तो लड़ाई में अगुवाई कौन करेगा? और उस वक्त, हिजकिय्याह का कोई बेटा भी न था जो उसके बाद राजगद्दी को सँभाल सके। इसलिए वह सच्चे दिल से प्रार्थना करते हुए यहोवा से दया की भीख माँगता है।—यशायाह 38:2,3.
24, 25. (क) यहोवा, हिजकिय्याह पर दया दिखाकर उसकी प्रार्थना का जवाब कैसे देता है? (ख) यशायाह 38:7,8 में जैसे बताया गया है, यहोवा क्या चमत्कार करता है?
24 यशायाह अभी राजा के महल के आंगन से बाहर निकल भी नहीं पाता कि यहोवा, उसे वापस भेजता है ताकि वह बिस्तर पर पीड़ा से तड़प रहे राजा के पास एक और संदेश लेकर जाए। “मैं ने तेरी प्रार्थना सुनी और तेरे आंसू देखे हैं; सुन, मैं तेरी आयु पन्द्रह वर्ष और बढ़ा दूंगा। अश्शूर के राजा के हाथ से मैं तेरी और इस नगर की रक्षा करके बचाऊंगा।” (यशायाह 38:4-6; 2 राजा 20:4,5) यहोवा अपने इस वादे के पूरा होने की गारंटी एक अनोखे चिन्ह से देगा। “धूप की छाया जो आहाज की धूपघड़ी में ढल गई है, मैं दस अंश पीछे की ओर लौटा दूंगा।”—यशायाह 38:7,8क.
25 यहूदी इतिहासकार जोसीफस के मुताबिक, राजा के महल के अंदर एक सीढ़ी थी और उसके पास ही शायद एक खंभा था। जब सूरज की किरणें इस खंभे पर पड़ती थीं, तो इससे सीढ़ी पर उसकी छाया पड़ती थी। दिन के वक्त सीढ़ियों पर पड़ रही खंभे की छाया को देखकर लोग बता सकते थे कि समय क्या हुआ है। अब यहोवा एक चमत्कार करेगा। हर दिन की तरह छाया सीढ़ियों पर ढलती जाती है, लेकिन अब इसके बाद यह दस कदम पीछे लौट जाती है। क्या किसी ने कभी ऐसी बात सुनी होगी? बाइबल कहती है: “सो वह छाया जो दस अंश ढल चुकी थी लौट गई।” (यशायाह 38:8ख) इसके कुछ ही समय बाद, हिजकिय्याह अपनी बीमारी से ठीक हो जाता है। इस बात की खबर दूर-दूर तक, बाबुल तक भी फैल जाती है। जब बाबुल का राजा यह सुनता है, तो वह अपने दूतों को यरूशलेम भेजता है ताकि वे इस बारे में सही-सही जानकारी हासिल कर सकें।
26. हिजकिय्याह की ज़िंदगी के बढ़ने का एक नतीजा क्या निकला?
26 हिजकिय्याह के अद्भुत तरीके से ठीक होने के लगभग तीन साल बाद, उसके पहले बेटे मनश्शे का जन्म होता है। जब मनश्शे बड़ा होता है, वह परमेश्वर की करुणा के लिए ज़रा भी कदरदानी नहीं दिखाता। जबकि अगर यह करुणा न दिखायी जाती तो वह पैदा ही ना होता! इसके बजाय, लगभग अपनी सारी ज़िंदगी मनश्शे ने बड़े पैमाने पर वही किया जो यहोवा की नज़र में बुरा था।—2 इतिहास 32:24; 33:1-6.
एक गलत फैसला
27. हिजकिय्याह किन तरीकों से यहोवा के लिए कदरदानी दिखाता है?
27 अपने पूर्वज दाऊद की तरह, हिजकिय्याह को भी परमेश्वर पर पक्का विश्वास है। वह परमेश्वर के वचन को दिल से लगाए रहता है। नीतिवचन 25:1 के मुताबिक उसने नीतिवचन के 25 से 29 अध्यायों में पायी जानेवाली जानकारी का संकलन करवाने का भी इंतज़ाम करवाया था। कुछ लोग मानते हैं कि भजन 119 भी उसी ने लिखा था। बीमारी से उठने के बाद, हिजकिय्याह ने परमेश्वर का धन्यवाद करने के लिए जो दिल छू लेनेवाला गीत लिखा, उससे भी ज़ाहिर होता है कि उसके मन में परमेश्वर के लिए गहरी श्रद्धा थी। वह आखिर में कहता है कि ज़िंदगी में सबसे अहम बात यही है कि “जीवन भर” यहोवा के मंदिर में रहकर उसकी स्तुति करते रहना। (यशायाह 38:9-20) आइए हम सभी शुद्ध उपासना के बारे में ऐसी ही भावनाएँ रखें!
28. चमत्कार से चंगा होने के कुछ समय बाद हिजकिय्याह क्या गलत फैसला करता है?
28 वफादार होने पर भी, हिजकिय्याह असिद्ध है। यहोवा के उसे चंगा करने के कुछ ही समय बाद वह एक बहुत ही गलत फैसला कर बैठता है। यशायाह समझाता है: “उस समय बलदान का पुत्र मरोदक बलदान, जो बाबुल का राजा था, उस ने हिजकिय्याह के रोगी होने और फिर चंगे हो जाने की चर्चा सुनकर उसके पास पत्री और भेंट भेजी। इन से हिजकिय्याह ने प्रसन्न होकर अपने अनमोल पदार्थों का भण्डार और चान्दी, सोना, सुगन्ध द्रव्य, उत्तम तेल और अपने हथियारों का सब घर और अपने भण्डारों में जो जो वस्तुएं थी, वे सब उनको दिखलाईं। हिजकिय्याह के भवन और राज्य भर में कोई ऐसी वस्तु नहीं रह गई जो उस ने उन्हें न दिखाई हो।”—यशायाह 39:1,2.b
29. (क) बाबुल से आए दूतों को अपनी दौलत दिखाने में हिजकिय्याह का शायद क्या मकसद रहा होगा? (ख) हिजकिय्याह के इस गलत फैसले का अंजाम क्या होगा?
29 अश्शूर ने यहोवा के स्वर्गदूत के हाथों करारी मात पायी। मगर फिर भी, अश्शूर दूसरे कई देशों के लिए, और बाबुल के लिए भी अब तक एक खतरा बना हुआ है। तो शायद हिजकिय्याह, बाबुल के राजा पर अपनी धाक जमाना चाहता था ताकि भविष्य में उनके देश एक-दूसरे की मदद करें। मगर, यहोवा नहीं चाहता कि यहूदा के लोग अपने दुश्मनों के साथ हाथ मिला लें; यहोवा चाहता है कि वे पूरी तरह उस पर भरोसा रखें! इसलिए भविष्यवक्ता यशायाह के ज़रिए, यहोवा हिजकिय्याह को बताता है कि भविष्य में क्या होगा: “ऐसे दिन आनेवाले हैं, जिन में जो कुछ तेरे भवन में है और जो कुछ आज के दिन तक तेरे पुरखाओं का रखा हुआ तेरे भण्डारों में है, वह सब बाबुल को उठ जाएगा; . . . कोई वस्तु न बचेगी। और जो पुत्र तेरे वंश में उत्पन्न हों, उन में से भी कितनों को वे बंधुआई में ले जाएंगे; और वे खोजे बनकर बाबुल के राजभवन में रहेंगे।” (यशायाह 39:3-7) जी हाँ, जिस देश पर हिजकिय्याह अपनी धाक जमाना चाहता था वही आखिरकार यरूशलेम के खज़ाने को लूटकर ले जाएगा और उसके लोगों को गुलाम बना लेगा। हिजकिय्याह ने बाबुलियों को अपना खज़ाना दिखाकर मानो खूँखार शेर को खून चखा दिया है।
30. हिजकिय्याह ने कैसे एक अच्छा रवैया अपनाया?
30 दूसरा इतिहास 32:26 (NHT) में लिखे शब्द शायद इसी घटना का ज़िक्र कर रहे हैं जब हिजकिय्याह ने बाबुलियों को अपना खज़ाना दिखाया था। वहाँ लिखा है: “हिजकिय्याह और यरूशलेम के निवासी दोनों अपने मन के घमंड से पछता कर दीन हुए जिस से कि यहोवा का कोप हिजकिय्याह के दिनों में उन पर न भड़का।”
31. हिजकिय्याह को आखिर में क्या हासिल हुआ और इससे हम क्या सीखते हैं?
31 असिद्धता के बावजूद, हिजकिय्याह, विश्वास की एक मिसाल था। वह जानता था कि उसके परमेश्वर यहोवा का अस्तित्त्व सच्चा है और उसमें भावनाएँ भी हैं। जब हिजकिय्याह पर दबाव आया, तब उसने गिड़गिड़ाकर यहोवा से प्रार्थना की और यहोवा ने उसकी प्रार्थना का जवाब दिया। यहोवा परमेश्वर ने उसे ज़िंदगी के बाकी दिनों में शांति की आशीष दी और हिजकिय्याह इसके लिए यहोवा का एहसानमंद था। (यशायाह 39:8) हमारे लिए भी यहोवा का अस्तित्त्व उतना ही सच्चा होना चाहिए जितना हिजकिय्याह के लिए था। जब मुश्किलें आती हैं तो हम भी हिजकिय्याह की तरह यहोवा से बुद्धि के लिए और समस्याओं का हल ढूँढ़ने के लिए मदद माँगें क्योंकि यहोवा ऐसी मदद “बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है।” (याकूब 1:5) अगर हम धीरज धरते रहें और यहोवा पर विश्वास करते रहें, तो हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि वह आज और भविष्य में “अपने खोजनेवालों को प्रतिफल” ज़रूर देगा।—इब्रानियों 11:6.
[फुटनोट]
a आज के हिसाब से यह 95 लाख (अमरीकी) डॉलर से भी ज़्यादा है।
b सन्हेरीब की हार के बाद, आसपास के देशों ने हिजकिय्याह के पास सोने, चाँदी और दूसरी कीमती चीज़ों के तोहफे भेजे। दूसरा इतिहास 32:22,23,27 में लिखा है कि “हिजकिय्याह को बहुत ही धन और विभव मिला” और “वह सब जातियों की दृष्टि में महान ठहरा।” इन तोहफों की वजह से, हिजकिय्याह का जो खज़ाना अश्शूरियों को नज़राना देते वक्त खाली हो गया था, वह फिर से भर गया होगा।
[पेज 383 पर तसवीर]
अश्शूर की ताकत का सामना करते वक्त राजा हिजकिय्याह यहोवा पर भरोसा रखता है
[पेज 384 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]
[पेज 389 पर तसवीर]
राजा ने यहोवा से मार्गदर्शन पाने के लिए यशायाह के पास दूत भेजे
[पेज 390 पर तसवीर]
हिजकिय्याह प्रार्थना करता है कि अश्शूर की हार से यहोवा के नाम की महिमा हो
[पेज 393 पर तसवीर]
यहोवा का स्वर्गदूत 1,85,000 अश्शूरियों को मौत के घाट उतार देता है