अध्याय 18
बाइबल से जवाब देना
जब लोग हमारे विश्वास, जीने के तरीके, आए दिन होनेवाली घटनाओं के बारे में हमारा नज़रिया, भविष्य की हमारी आशा, इन सबके बारे में सवाल करते हैं, तो हम उन्हें बाइबल से जवाब देने की कोशिश करते हैं। क्यों? क्योंकि बाइबल, परमेश्वर का वचन है। हमारे हर विश्वास का आधार बाइबल ही तो है। इसकी रोशनी में हम दुनिया में होनेवाली घटनाओं की सही समझ पाते हैं। और हमारे भविष्य की दृढ़ आशा की बुनियाद वे वादे हैं जो परमेश्वर ने अपने वचन, बाइबल में लिखवाए हैं।—2 तीमु. 3:16, 17.
हमारे नाम के साथ जो ज़िम्मेदारी आती है, उसे हम अच्छी तरह समझते हैं। हम यहोवा के साक्षी हैं। (यशा. 43:12) इसलिए हमसे जो सवाल किए जाते हैं उनके जवाब हम इंसानों के तत्त्वज्ञान के मुताबिक नहीं देते, बल्कि यहोवा ने अपने प्रेरित वचन में जो कहा है, उसके हिसाब से देते हैं। माना कि अलग-अलग मामलों में हम सब की अपनी-अपनी राय है, मगर हम अपने सोच-विचार को परमेश्वर के वचन के मुताबिक ढलने देते हैं, क्योंकि हमें पक्का विश्वास है कि यही वचन सच्चा है। बेशक, बाइबल कई मामलों में हमें अपनी मरज़ी के मुताबिक काम करने या चुनाव करने की छूट देती है। और हमें भी दूसरों को चुनने की यह आज़ादी देनी चाहिए। इसलिए उन पर अपनी मरज़ी थोपने के बजाय, हम चाहते हैं कि उन्हें बाइबल में दिए सिद्धांतों के बारे में सिखाएँ। प्रेरित पौलुस की तरह हम भी यही चाहते हैं कि “वे विश्वास से आज्ञा माननेवाले” बन जाएँ।—रोमि. 16:26.
यीशु मसीह को प्रकाशितवाक्य 3:14 में “विश्वासयोग्य, और सच्चा गवाह” कहा गया है। तो फिर जब वह धरती पर था और उससे सवाल पूछे जाते थे, तो उनका जवाब वह कैसे देता था? उसने उन परिस्थितियों का सामना कैसे किया जो अचानक सामने आ खड़ी होती थीं? वह कभी-कभी ऐसे दृष्टांत बताता था जिससे लोग सोचने पर मजबूर हो जाते थे। कई बार वह सवाल करनेवाले से पूछता था कि शास्त्र के बारे में उसकी समझ क्या कहती है। मगर कई बार वह शास्त्र के वचनों से हवाला देता था, उनका मतलब बताता या उनका ज़िक्र करता था। (मत्ती 4:3-10; 12:1-8; लूका 10:25-28; 17:32) पहली सदी में, शास्त्रवचन के चर्मपत्र आम तौर पर आराधनालय में रखे जाते थे। इसका कोई सबूत नहीं है कि खुद यीशु के पास इनकी कॉपियाँ थीं या नहीं, फिर भी वह शास्त्रवचन को इतनी अच्छी तरह से जानता था कि दूसरों को सिखाते वक्त बार-बार इनका हवाला देता था। (लूका 24:27, 44-47) इसलिए वह पूरी सच्चाई के साथ कह सका कि वह जो कुछ सिखाता है, वह अपनी ओर से नहीं सिखाता, बल्कि वही कहता है जो उसने अपने पिता से सुना था।—यूह. 8:26.
हम भी यीशु के नक्शेकदम पर चलना चाहते हैं। यीशु की तरह हमने यहोवा को बात करते हुए नहीं सुना, फिर भी हमारे पास उसका वचन, बाइबल है। जब हम इसे इस्तेमाल करके जवाब देते हैं, तब हम लोगों का ध्यान अपनी तरफ नहीं बल्कि परमेश्वर की तरफ खींचते हैं। इससे हम दिखाते हैं कि किसी असिद्ध इंसान की राय बयान करने के बजाय, हमने ठान लिया है कि हम वही कहेंगे जो परमेश्वर कहता है कि सच है।—यूह. 7:18; रोमि. 3:4.
लेकिन हम सिर्फ बाइबल इस्तेमाल ही नहीं करना चाहते बल्कि इस तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं जिससे कि हमारे सुननेवालों को ज़्यादा-से-ज़्यादा लाभ पहुँचे। हम चाहते हैं कि वे खुले-दिमाग से हमारी बात सुनें। सुननेवाला जैसा रवैया दिखाता है, उसके मुताबिक आप उसका ध्यान बाइबल की तरफ दिलाते हुए कह सकते हैं: “क्या आपको नहीं लगता कि इस बारे में परमेश्वर की राय जानना ज़रूरी है?” या आप यह कह सकते हैं: “क्या आप जानते हैं कि बाइबल इसी सवाल के बारे में चर्चा करती है?” अगर आप किसी ऐसे आदमी से बात कर रहे हैं जो बाइबल का आदर नहीं करता, तो आपको दूसरे तरीके से बात शुरू करनी होगी। आप कह सकते हैं: “मैं आपको इस प्राचीन भविष्यवाणी के बारे में पढ़कर सुनाना चाहता हूँ।” या आप यह कह सकते हैं: “दुनिया में सबसे ज़्यादा बाँटी गयी किताब कहती है . . ।”
कुछ मामलों में, आप शायद बाइबल की आयत अपने शब्दों में बता दें। मगर जहाँ मुमकिन हो, सीधे बाइबल से पढ़कर सुनाना अच्छा होगा। आप जिससे बात करते हैं अगर उसके पास बाइबल है, तो जहाँ मुनासिब लगे आप उसी की बाइबल में से आयत दिखा सकते हैं। इस तरह बाइबल से खुद पढ़ने का लोगों पर बहुत ज़बरदस्त असर होता है।—इब्रा. 4:12.
मसीही प्राचीनों की यह खास ज़िम्मेदारी बनती है कि वे सवालों के जवाब देते वक्त बाइबल का इस्तेमाल करें। प्राचीन बनने की एक माँग है कि भाई, “सिखाने की कला में विश्वासयोग्य वचन को दृढ़ता से थामे रहे।” (तीतु. 1:9, NW) हो सकता है कि एक प्राचीन से सलाह पाकर कलीसिया का एक सदस्य अपनी ज़िंदगी का सबसे गंभीर फैसला करे। इसलिए कितना ज़रूरी है कि दी गयी सलाह पूरी तरह से बाइबल के मुताबिक हो! जब एक प्राचीन सलाह देते वक्त या सिखाते वक्त बाइबल का इस्तेमाल करने की अच्छी मिसाल रखता है, तो दूसरे भी उसकी मिसाल पर चलते हुए अपने सिखाने के तरीके में सुधार लाते हैं।