चौथा अध्याय
जिसकी सब भविष्यवक्ताओं ने गवाही दी
1. धरती पर जन्म लेने से पहले की यीशु की ज़िंदगी के बारे में जो जानकारी दी गयी है, उससे यहोवा के साथ उसके रिश्ते के बारे में क्या पता चलता है?
“पिता पुत्र से प्रीति रखता है और जो जो काम वह आप करता है, वह सब उसे दिखाता है।” (यूहन्ना 5:20) वाकई, अपने पिता यहोवा के साथ पुत्र का क्या ही प्यार-भरा रिश्ता था! यह करीबी रिश्ता तब शुरू हुआ जब पुत्र की सृष्टि की गयी, यानी इंसान के तौर पर उसके जन्म लेने से अनगिनित युगों पहले। वह परमेश्वर का एकलौता पुत्र था यानी वही अकेला ऐसा था जिसकी सृष्टि खुद यहोवा ने की। स्वर्ग और पृथ्वी की बाकी सभी चीज़ों को, परमेश्वर ने अपने इस पहिलौठे और अज़ीज़ बेटे के ज़रिए बनाया। (कुलुस्सियों 1:15,16) वह परमेश्वर का वचन या प्रवक्ता भी बना और उसी के ज़रिए परमेश्वर ने अपना मकसद दूसरों पर ज़ाहिर किया। परमेश्वर का यह पुत्र, जिससे वह बेहद प्यार करता था, यीशु मसीह के रूप में इंसान बनकर आया।—नीतिवचन 8:22-30; यूहन्ना 1:14,18; 12:49,50.
2. बाइबल में यीशु के बारे में कितनी भविष्यवाणियाँ दर्ज़ हैं?
2 इससे पहले कि परमेश्वर के पहिलौठे पुत्र का जीवन, चमत्कार से एक कुँवारी के गर्भ में पड़ता, उसके बारे में ईश्वर-प्रेरणा से ढेरों भविष्यवाणियाँ दर्ज़ की गयीं। इस बारे में प्रेरित पतरस ने कुरनेलियुस को साक्षी दी: “उस की सब भविष्यद्वक्ता गवाही देते हैं।” (प्रेरितों 10:43) बाइबल में यीशु की भूमिका पर इतना ज़ोर दिया गया है कि एक स्वर्गदूत ने प्रेरित यूहन्ना से कहा: “यीशु की गवाही भविष्यद्वाणी की आत्मा है।” (प्रकाशितवाक्य 19:10) उन भविष्यवाणियों से यह साफ-साफ ज़ाहिर हुआ कि यीशु ही मसीहा है। उनमें यह बताया गया कि परमेश्वर के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए यीशु कौन-सी अलग-अलग भूमिकाएँ अदा करेगा। यीशु से संबंधित इन सभी बातों में आज हमें गहरी दिलचस्पी लेनी चाहिए।
भविष्यवाणियों में क्या बताया गया
3. (क) उत्पत्ति 3:15 की भविष्यवाणी में बताया गया सर्प, “स्त्री” और ‘सर्प का वंश’ कौन हैं? (ख) ‘सर्प का सिर कुचल देने’ की बात यहोवा के सेवकों के लिए क्यों खास मायने रखती है?
3 यीशु के बारे में सबसे पहली भविष्यवाणी, अदन में हुई बगावत के बाद की गयी। यहोवा ने सर्प से कहा: “मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करुंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।” (उत्पत्ति 3:15) सर्प, शैतान को दर्शाता है, इसलिए यह भविष्यवाणी दरअसल शैतान से कही गयी थी। “स्त्री” यहोवा का वफादार स्वर्गीय संगठन है, जो उसके लिए एक वफादार पत्नी की तरह है। ‘सर्प का वंश’ उन सभी स्वर्गदूतों और इंसानों को दर्शाता है जो शैतान के जैसा रवैया दिखाते हुए यहोवा और उसके लोगों का विरोध करते हैं। ‘सर्प का सिर कुचल डालने’ का मतलब है कि आखिर में विद्रोही शैतान का नाश होगा, जिसने यहोवा की निंदा की और जिसकी वजह से इंसान की ज़िंदगी पर मुसीबतों का कहर टूट पड़ा। लेकिन “वंश” का वह प्रमुख भाग कौन है जो सर्प के सिर को कुचल डालेगा? यह बात कई सदियों तक एक “पवित्र भेद” (NW) बनी रही।—रोमियों 16:20,25,26.
4. यीशु की वंशावली से यह कैसे साबित हुआ कि वही वादा किया गया वंश है?
4 इंसान की शुरूआत के करीब 2,000 साल बाद यहोवा ने इस भविष्यवाणी को समझने के लिए कुछ और जानकारी दी। उसने बताया कि स्त्री का वंश, इब्राहीम के खानदान से आएगा। (उत्पत्ति 22:15-18) लेकिन वंश ठीक किस परिवार से आता, यह वंशावली पर नहीं बल्कि परमेश्वर के चुनाव पर निर्भर था। मसलन, इब्राहीम को हाजिरा से पैदा हुए अपने बेटे इश्माएल से बहुत प्यार था। फिर भी, यहोवा ने इब्राहीम से कहा: “मैं अपनी वाचा इसहाक ही के साथ बान्धूगा जो सारा से . . . उत्पन्न होगा।” (उत्पत्ति 17:18-21) बाद में, यहोवा ने यह वाचा इसहाक के पहिलौठे, एसाव के बजाय याकूब से बाँधी, जिससे इस्राएल के 12 गोत्र निकले। (उत्पत्ति 28:10-14) फिर समय के गुज़रते यह बताया गया कि वंश, यहूदा के गोत्र यानी दाऊद के घराने में पैदा होगा।—उत्पत्ति 49:10; 1 इतिहास 17:3,4,11-14.
5. जब यीशु ने धरती पर अपनी सेवा शुरू की, तो यह कैसे ज़ाहिर हुआ कि वही मसीहा है?
5 वंश को पहचानने के लिए और क्या-क्या जानकारी दी गयी? वादा किए हुए वंश के धरती पर जन्म लेने के करीब 700 साल पहले बाइबल में बताया गया कि वह बेतलेहेम में पैदा होगा। यह भी बताया गया कि वंश “अनादि काल से” यानी जब से स्वर्ग में उसकी सृष्टि की गयी, तब से वजूद में है। (मीका 5:2) मसीहा के रूप में वह धरती पर ठीक कब प्रकट होगा, इसके बारे में भविष्यवक्ता दानिय्येल ने भविष्यवाणी की थी। (दानिय्येल 9:24-26) और जब पवित्र आत्मा से यीशु का अभिषेक किया गया और वह यहोवा का अभिषिक्त जन बना, तब खुद परमेश्वर ने स्वर्ग से बोलकर साफ-साफ पहचान करायी कि वह उसका पुत्र है। (मत्ती 3:16,17) इस तरह, वंश प्रकट हो गया! तभी तो फिलिप्पुस, पूरे यकीन के साथ कह सका: ‘जिस का वर्णन मूसा ने व्यवस्था में और भविष्यद्वक्ताओं ने किया है, वह हम को मिल गया; वह यीशु है।’—यूहन्ना 1:45.
6. (क) लूका 24:27 के मुताबिक, यीशु के चेलों ने क्या जाना? (ख) ‘स्त्री के वंश’ का मुख्य भाग कौन है, और उसके ज़रिए सर्प का सिर कुचल डालने का क्या मतलब है?
6 उसके बाद से यीशु के चेलों ने जाना कि ईश्वर-प्रेरणा से लिखे शास्त्र में मसीहा के बारे में सचमुच ढेरों भविष्यवाणियाँ दर्ज़ हैं। (लूका 24:27) वे इस बात को और भी अच्छी तरह समझ पाए कि यीशु, ‘स्त्री के वंश’ का मुख्य भाग है जो सर्प का सिर कुचल देगा यानी शैतान का नामो-निशान मिटा देगा। इंसानों से किए परमेश्वर के सभी वादे, यीशु के ज़रिए पूरे होंगे और इस तरह हमारी सारी हसरतें पूरी होंगी।—2 कुरिन्थियों 1:20.
7. भविष्यवाणियों में बताए वंश को पहचानने के अलावा, और क्या समझना हमारे लिए फायदेमंद होगा?
7 इन सारी बातों की जानकारी का हम पर क्या असर होना चाहिए? बाइबल एक कूशी खोजे के बारे में बताती है जिसने उद्धारकर्त्ता और मसीहा के आने के बारे में कुछ भविष्यवाणियाँ पढ़ी थी। मगर उसे इनका मतलब नहीं समझ आया, इसलिए उसने प्रचारक फिलिप्पुस से पूछा: “यह बता कि भविष्यद्वक्ता यह किस के विषय में कहता है?” फिर जब फिलिप्पुस ने खोजे को मतलब समझाया तो वह बस खुश होकर अपने रास्ते नहीं चल पड़ा। उसने फिलिप्पुस की बात ध्यान से सुनी थी और उसे एहसास हुआ कि मसीहा के बारे में पूरी हुई भविष्यवाणी को समझने और उसकी कदर करने के बाद उसे कुछ कदम उठाना है। वह समझ गया कि उसे बपतिस्मा लेने की ज़रूरत है। (प्रेरितों 8:32-38; यशायाह 53:3-9) क्या हम भी भविष्यवाणियों की समझ पाने पर उनके मुताबिक ज़रूरी कदम उठाते हैं?
8. (क) इसहाक की बलि चढ़ाने के लिए इब्राहीम का आगे बढ़ना किस बात की झलक थी? (ख) किस कारण से यहोवा ने इब्राहीम से कहा कि वंश के ज़रिए सारी जातियाँ अपने को धन्य मानेंगी और इससे हम क्या सीखते हैं?
8 इसके अलावा, इब्राहीम के उस दिल छू जानेवाले किस्से पर भी गौर कीजिए कि कैसे वह सारा से हुए अपने एकलौते बेटे की बलि चढ़ाने के लिए आगे बढ़ा। (उत्पत्ति 22:1-18) यह घटना इस बात की एक झलक थी कि यहोवा अपने एकलौते बेटे को बलिदान के तौर पर अर्पित कर देगा: “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” (यूहन्ना 3:16) यह हमें भरोसा दिलाता है कि यहोवा ने अपना मकसद पूरा करने के लिए जिस तरह अपने एकलौते बेटे को दे दिया, उसी तरह वह दिल खोलकर “हमें और सब कुछ देगा।” (रोमियों 8:32) लेकिन हमारी क्या ज़िम्मेदारी बनती है? उत्पत्ति 22:18 में, यहोवा ने इब्राहीम से कहा कि वंश के कारण सारी जातियाँ अपने को धन्य मानेंगी “क्योंकि [इब्राहीम] ने [परमेश्वर की] बात मानी।” आज हमें भी यहोवा और उसके बेटे की बात माननी है: “जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है; परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है।”—यूहन्ना 3:36.
9. यीशु के बलिदान की बदौलत मिली अनंत जीवन की आशा के लिए अगर हम एहसानमंद हैं, तो हम क्या करेंगे?
9 यीशु के बलिदान की बदौलत मिली अनंत जीवन की आशा के लिए अगर हम एहसानमंद हैं, तो हम यहोवा की उन आज्ञाओं को मानेंगे जो उसने यीशु के ज़रिए हमें दी है। इन आज्ञाओं को मानने के लिए हमें परमेश्वर और पड़ोसियों से प्रेम होना ज़रूरी है। (मत्ती 22:37-39) यीशु ने दिखाया कि यहोवा के लिए प्रेम हमें उकसाएगा कि हम दूसरों को ‘वह सब बातें सिखाएँ जो यीशु ने हमें आज्ञा दी हैं।’ (मत्ती 28:19,20) और हम यहोवा के बाकी सेवकों के साथ नियमित तौर पर “इकट्ठा” होने के ज़रिए उनके लिए भी प्रेम दिखाना चाहेंगे। (इब्रानियों 10:25; गलतियों 6:10) लेकिन परमेश्वर और उसके बेटे की बात सुनने का मतलब हमें यह नहीं समझना चाहिए कि वे हमसे माँग करते हैं कि हम कभी कोई गलती न करें। इब्रानियों 4:15 (हिन्दुस्तानी बाइबल) कहता है कि यीशु हमारे महायाजक की हैसियत से “हमारी कमज़ोरियों में हमारा हमदर्द” है। इस बात से हमें कितना हौसला मिलता है, खासकर तब जब हम मसीह के ज़रिए परमेश्वर से बिनती करते हैं कि वह हमें अपनी कमज़ोरियों पर काबू पाने में मदद दे!—मत्ती 6:12.
मसीह पर विश्वास दिखाइए
10. यीशु मसीह को छोड़ किसी और के ज़रिए उद्धार क्यों नहीं मिल सकता?
10 प्रेरित पतरस ने यरूशलेम की यहूदी महासभा को बताया कि बाइबल की भविष्यवाणियाँ यीशु में पूरी हो चुकी हैं। फिर अपनी बात खत्म करते हुए उसने बड़े ज़बरदस्त शब्दों में कहा: “किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें।” (प्रेरितों 4:12) आदम की सभी संतान पापी हैं इसलिए अगर वे अपनी जान भी कुरबान कर दें, तो उससे किसी के लिए छुड़ौती की कीमत नहीं दी जा सकती। मगर यीशु सिद्ध था और उसकी ज़िंदगी में छुड़ौती की कीमत थी। (भजन 49:6-9; इब्रानियों 2:9) उसने परमेश्वर को वह छुड़ौती अर्पित की जिसकी कीमत आदम की खोयी गयी सिद्ध ज़िंदगी के बिलकुल बराबर थी। (1 तीमुथियुस 2:5,6) इस छुड़ौती से हमारे लिए परमेश्वर की नयी दुनिया में अनंत जीवन पाने का रास्ता खुल गया।
11. समझाइए कि यीशु के बलिदान से कैसे हमें बहुत फायदा हो सकता है।
11 इस छुड़ौती से आज भी हमें कुछ फायदे मिलते हैं। मिसाल के लिए, पापी होने के बावजूद हम एक शुद्ध विवेक रख पाते हैं क्योंकि यीशु के बलिदान की बिनाह पर हमें अपने पापों की माफी मिलती है। यह आशीष, मूसा की व्यवस्था के तहत जानवरों के बलिदानों से हुए फायदे से कई गुना बढ़कर है। (प्रेरितों 13:38,39; इब्रानियों 9:13,14; 10:22) लेकिन पापों की माफी पाने के लिए हमें सच्चे दिल से कबूल करना है कि हम पापी हैं और हमें मसीह के बलिदान की सख्त ज़रूरत है: “यदि हम कहें, कि हम में कुछ भी पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैं: और हम में सत्य नहीं। यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है।”—1 यूहन्ना 1:8,9.
12. परमेश्वर की नज़र में शुद्ध विवेक बनाए रखने के लिए पानी में बपतिस्मा लेना क्यों ज़रूरी है?
12 पापी इंसान, मसीह और उसके बलिदान में विश्वास कैसे दिखा सकते हैं? पहली सदी में जो लोग विश्वासी बने उन्होंने अपने विश्वास को सबके सामने ज़ाहिर किया। कैसे? बपतिस्मा लेकर। लेकिन बपतिस्मा लेकर ही क्यों? क्योंकि यीशु ने आज्ञा दी कि उसके सभी चेलों को बपतिस्मा लेना चाहिए। (मत्ती 28:19,20; प्रेरितों 8:12; 18:8) जब एक इंसान का दिल एहसान से भर जाता है कि यहोवा ने यीशु के ज़रिए कितना प्यार-भरा इंतज़ाम किया है, तो वह उसके मुताबिक कदम उठाने से कभी पीछे नहीं हटेगा। वह अपनी ज़िंदगी में ज़रूरी बदलाव करेगा, प्रार्थना में अपनी ज़िंदगी परमेश्वर को समर्पित करेगा और अपना समर्पण ज़ाहिर करने के लिए पानी में डुबकी लेकर बपतिस्मा लेगा। इस तरह अपना विश्वास दिखाकर दरअसल वह एक “शुद्ध अन्त:करण के लिए परमेश्वर से विनती” करता है।—1 पतरस 3:21, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।
13. अगर हमने कोई पाप किया है तो हमें क्या करना चाहिए, और क्यों?
13 बेशक, पापी होने की वजह से बपतिस्मा लेने के बाद भी हमसे गलतियाँ होंगी। ऐसे में क्या किया जा सकता है? प्रेरित यूहन्ना ने कहा: “मैं ये बातें तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि तुम पाप न करो; और यदि कोई पाप करे, तो पिता के पास हमारा एक सहायक है, अर्थात् धार्मिक यीशु मसीह। और वही हमारे पापों का प्रायश्चित्त है।” (1 यूहन्ना 2:1,2) लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि चाहे हम जो भी पाप करें, परमेश्वर से प्रार्थना करके माफी माँग लेने से सब ठीक हो जाएगा? हम ऐसा नहीं कह सकते। पापों की माफी के लिए सबसे ज़रूरी है, सच्चा पश्चाताप। और माफी पाने के लिए शायद मसीही कलीसिया के बुज़ुर्ग और तजुर्बेकार लोगों की मदद की भी ज़रूरत पड़े। हमें यह समझना और कबूल करना होगा कि हमने जो किया वह गलत है और फिर सच्चे मन से गहरा अफसोस करना होगा। तब हम वही पाप फिर से न दोहराने की पूरी सावधानी बरतेंगे। (प्रेरितों 3:19; याकूब 5:13-16) अगर हम ऐसा करेंगे, तो यीशु ज़रूर हमारी मदद करेगा और हम दोबारा यहोवा का अनुग्रह पाएँगे।
14. (क) समझाइए कि किस खास तरीके से यीशु के बलिदान ने हमें फायदा पहुँचाया है। (ख) अगर हमारे अंदर सचमुच विश्वास है, तो हम क्या करेंगे?
14 यीशु के बलिदान से “छोटे झुण्ड” के लिए स्वर्ग में अनंत जीवन पाने का रास्ता खुला है। यह समूह उत्पत्ति 3:15 में ज़िक्र किए गए वंश का दूसरा भाग है। (लूका 12:32; गलतियों 3:26-29) इस बलिदान से अरबों लोगों के लिए धरती पर फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी पाने का भी रास्ता खुला है। (भजन 37:29; प्रकाशितवाक्य 20:11,12; 21:3,4) अनंत जीवन एक “बरदान” है जो “[परमेश्वर,] हमारे प्रभु मसीह यीशु” के ज़रिए हमें देता है। (रोमियों 6:23; इफिसियों 2:8-10) अगर उस वरदान में हमें विश्वास है और हम कदर करते हैं कि इसे कितने अद्भुत तरीके से हमारे लिए मुहैया कराया गया, तो हम अपने विश्वास और कदरदानी को ज़ाहिर करेंगे। यह समझने पर कि यहोवा ने अपनी मरज़ी पूरी करवाने के लिए यीशु को कितने लाजवाब तरीके से इस्तेमाल किया और कि हम सभी को यीशु के नक्शे-कदम पर चलने की भरसक कोशिश करनी चाहिए, हम मसीही सेवा को अपनी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत देंगे। हमारा विश्वास इस बात से भी ज़ाहिर होगा कि हम परमेश्वर के इस शानदार तोहफे के बारे में दूसरों को पूरे यकीन के साथ बताएँ।—प्रेरितों 20:24.
15. यीशु मसीह में विश्वास करने से एकता कैसे कायम होती है?
15 यीशु मसीह पर विश्वास करने से क्या ही शानदार एकता कायम होती है! इस विश्वास के ज़रिए हम यहोवा और उसके बेटे के करीब आते हैं और मसीही कलीसिया में हमारा आपसी बँधन मज़बूत होता है। (1 यूहन्ना 3:23,24) यह हमारे लिए आनंद का कारण है कि यहोवा ने बड़े प्यार से अपने पुत्र को “वह नाम दिया जो [परमेश्वर के नाम के सिवाय] सब नामों में श्रेष्ठ है। कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे हैं; वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें। और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।”—फिलिप्पियों 2:9-11.
आइए याद करें
• जब मसीहा प्रकट हुआ तो उन लोगों के लिए उसे पहचानना कैसे आसान हुआ जो परमेश्वर के वचन पर सचमुच यकीन करते थे?
• ऐसे कुछ काम क्या हैं जिनके ज़रिए हमें यीशु के बलिदान के लिए कदरदानी दिखानी चाहिए?
• यीशु के बलिदान से आज भी हमें क्या-क्या लाभ मिलते हैं? यहोवा से अपने पापों की माफी माँगने में यीशु का बलिदान हमारे लिए कैसे मददगार होता है?
[पेज 36 पर तसवीर]
यीशु ने अपने चेलों से कहा कि वे लोगों को परमेश्वर की आज्ञाएँ मानना सिखाएँ