अध्याय 1
“मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले”—यीशु के कहने का क्या मतलब था?
1, 2. वह सबसे बढ़िया न्यौता क्या है जो एक इंसान को मिल सकता है? हमें खुद से कौन-सा सवाल पूछना चाहिए?
क्या आपको कभी ऐसा न्यौता मिला है जिससे आपकी खुशी का ठिकाना न रहा हो? शायद वह न्यौता ऐसे दो लोगों की शादी का हो, जो आपके दिल के बहुत करीब हैं। या शायद आपको कोई बड़ी ज़िम्मेदारी उठाने का बुलावा मिला हो। बेशक यह न्यौता पाकर आप रोमांचित हो उठे होंगे। और-तो-और आपने सोचा होगा कि यह न्यौता मेरे लिए किसी सम्मान से कम नहीं। लेकिन सच तो यह है कि आपको इससे कहीं बढ़कर एक न्यौता मिला है। दरअसल हममें से हरेक को यह न्यौता दिया गया है। हम इसे कबूल करेंगे या नहीं, उसका हम पर गहरा असर होगा। बल्कि कहा जाए तो यह हमारी ज़िंदगी का सबसे ज़रूरी फैसला होगा।
2 आखिर यह कौन-सा न्यौता है? यह न्यौता यीशु मसीह ने दिया है, जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर यहोवा का इकलौता बेटा है। यह बुलावा बाइबल में मरकुस 10:21 में दर्ज़ है, जहाँ यीशु ने कहा: “मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले।” हालाँकि यीशु ने यह न्यौता एक ही व्यक्ति को दिया था, लेकिन आज यह हममें से हरेक के लिए है। इसलिए हमें खुद से पूछना चाहिए: ‘क्या मैं इस न्यौते को कबूल करूँगा?’ हो सकता है आप सोचें, भला इतना शानदार न्यौता कौन ठुकरा सकता है? आपको शायद ताज्जुब हो मगर ज़्यादातर लोग इसे कबूल करने से इनकार कर देते हैं। वह क्यों?
3, 4. (क) यीशु से सवाल पूछनेवाले व्यक्ति के पास ऐसी कौन-सी चीज़ें थीं, जिसे पाने की ख्वाहिश हर कोई रखता है? (ख) उस अमीर अधिकारी में यीशु ने कौन-से अच्छे गुण देखे होंगे?
3 इसे समझने के लिए उस व्यक्ति पर गौर कीजिए जिसे खुद यीशु ने यह न्यौता दिया था। करीब 2,000 साल पहले की बात है। वह व्यक्ति अपने समाज का बहुत इज़्ज़तदार आदमी था। उसके पास ऐसी तीन चीज़ें थीं जिसे पाने की ख्वाहिश हर कोई रखता है—जवानी, दौलत और अधिकार। बाइबल उस आदमी के बारे में बताती है कि वह “नौजवान” था, “बहुत अमीर” था और एक “अधिकारी” था। (मत्ती 19:20; लूका 18:18, 23) लेकिन उसमें कुछ अहम गुण भी थे, जो इन चीज़ों से कहीं ज़्यादा मायने रखते हैं।
4 उस ज़माने के बहुत-से अधिकारी, यीशु को वह सम्मान नहीं देते थे जिसका वह हकदार था। (यूहन्ना 7:48; 12:42) लेकिन यह अधिकारी ऐसा नहीं था। उसने महान शिक्षक यीशु के बारे में जो कुछ सुना था उसे अच्छा लगा। बाइबल बताती है कि उसने क्या किया: “जब [यीशु] निकलकर अपने रास्ते जा रहा था, तो एक आदमी दौड़कर आया और उसके सामने घुटनों के बल गिरा और उससे यह सवाल किया: ‘अच्छे गुरु, हमेशा की ज़िंदगी का वारिस बनने के लिए मैं क्या काम करूँ?’” (मरकुस 10:17) क्या आपने ध्यान दिया कि यह आदमी, यीशु से बात करने के लिए कैसा बेताब था! वह गरीब और मामूली लोगों की तरह यीशु के पास दौड़ा-दौड़ा आया। उसने यह परवाह नहीं की कि लोग क्या सोचेंगे। इतना ही नहीं, उसने यीशु के आगे घुटनों के बल गिरकर उसे आदर दिया। यह दिखाता है कि उसमें नम्रता और परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने की भूख थी। यीशु की नज़रों में इन गुणों का बड़ा मोल है। (मत्ती 5:3; 18:4) इसलिए इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि “यीशु ने प्यार से उसकी तरफ देखा।” (मरकुस 10:21) मगर यीशु ने उस नौजवान के सवाल का क्या जवाब दिया?
ज़िंदगी का सबसे बेहतरीन न्यौता
5. यीशु ने उस अमीर नौजवान के सवाल का क्या जवाब दिया? हम कैसे जानते हैं कि उसमें जिस “एक चीज़” की कमी थी, वह गरीबी नहीं हो सकती? (फुटनोट भी देखिए।)
5 यीशु ने दिखाया कि उसके पिता ने पहले ही इस अहम सवाल का जवाब दिया था कि हमेशा की ज़िंदगी कैसे पायी जा सकती है। उसने उस नौजवान का ध्यान शास्त्र की तरफ खींचा। नौजवान ने हामी भरी कि वह मूसा के कानून को पूरी वफादारी से मानता है। लेकिन यीशु के पास एक अनोखी काबिलीयत है। वह एक इंसान के मन में झाँककर देख सकता है कि वह अंदर से कैसा है। (यूहन्ना 2:25) उसे इस अधिकारी में एक खामी नज़र आयी, जो परमेश्वर के साथ उसके रिश्ते पर बुरा असर कर रही थी। इसलिए यीशु ने कहा: “तुझमें एक चीज़ की कमी है: जा और जो कुछ तेरे पास है उसे बेचकर कंगालों को दे दे।” (मरकुस 10:21) क्या यीशु का मतलब था कि अपनी धन-संपत्ति बेचने के बाद ही एक व्यक्ति परमेश्वर की सेवा कर सकता है? जी नहीं।a दरअसल यीशु ने एक अहम बात समझाने के लिए ऐसा कहा।
6. यीशु ने उस अमीर अधिकारी को क्या न्यौता दिया? उस नौजवान ने जो रवैया दिखाया, उससे उसके दिल के बारे में क्या पता चलता है?
6 उस आदमी में किस चीज़ की कमी है, यह समझाने के लिए यीशु ने उसे एक सुनहरा मौका दिया: “मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले।” ज़रा सोचिए, परमप्रधान परमेश्वर का बेटा खुद उसे बुला रहा था कि वह उसके पीछे हो ले! यीशु ने एक ऐसे इनाम का भी वादा किया जिसकी उस व्यक्ति ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। यीशु ने कहा: “तुझे स्वर्ग में खज़ाना मिलेगा।” क्या उस अमीर अधिकारी ने इस शानदार न्यौते को कबूल किया? बाइबल बताती है: “इस बात पर वह उदास हो गया और दुःखी होकर चला गया, क्योंकि उसके पास बहुत धन-संपत्ति थी।” (मरकुस 10:21, 22) यीशु की बातों ने खुलासा किया कि उस नौजवान में क्या खामी थी। उसे अपनी धन-दौलत से और उससे मिलनेवाले अधिकार और रुतबे से बहुत लगाव था। इतना कि उसके दिल में यीशु से ज़्यादा इन चीज़ों के लिए प्यार था। तो फिर उसमें जिस “एक चीज़” की कमी थी वह है, यीशु और यहोवा के लिए प्यार। ऐसा प्यार जो सच्चे दिल से किया जाता है और जो दूसरों की खातिर त्याग करने के लिए तैयार रहता है। उस नौजवान में इसी प्यार की कमी थी, इसलिए उसने यीशु का लाजवाब न्यौता ठुकरा दिया। लेकिन यह न्यौता आपके लिए क्या मायने रखता है?
7. हम क्यों कह सकते हैं कि यीशु का न्यौता आज हमारे लिए भी है?
7 यीशु का न्यौता सिर्फ उस नौजवान के लिए नहीं था, न ही यह इक्का-दुक्का लोगों को दिया गया था। यीशु ने कहा: “अगर कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह . . . लगातार मेरे पीछे चलता रहे।” (लूका 9:23) गौर कीजिए कि “कोई” भी मसीह का चेला बन सकता है, बशर्ते वह सचमुच ऐसा “चाहता” हो। परमेश्वर ऐसे नेकदिल लोगों को अपने बेटे की तरफ खींचता है। (यूहन्ना 6:44) यीशु का यह न्यौता सिर्फ अमीर, गरीब, किसी एक जाति या राष्ट्र या सिर्फ उसके ज़माने के लोगों को नहीं दिया गया था बल्कि यह न्यौता सभी के लिए है। इसलिए यीशु के ये शब्द, “मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले,” आप पर भी लागू होते हैं। लेकिन सवाल है कि आपको मसीह के पीछे क्यों हो लेना चाहिए? मसीह के पीछे हो लेने में क्या शामिल है?
मसीह का चेला क्यों बनें?
8. सभी इंसानों की क्या ज़रूरत है? और क्यों?
8 हमें इस सच्चाई को कबूल करना चाहिए कि इंसानों को एक अच्छे अगुवे की ज़रूरत है। हालाँकि हर कोई इस बात को नहीं मानता लेकिन इसे झुठलाया नहीं जा सकता। यहोवा ने अपने भविष्यवक्ता यिर्मयाह को यह अटल सत्य दर्ज़ करने के लिए उभारा: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।” (यिर्मयाह 10:23) इंसानों के पास न तो हुकूमत करने की काबिलीयत है न ही अधिकार। देखा जाए तो इंसानी इतिहास इस बात का सबूत है कि इंसान हुकूमत करने में बुरी तरह नाकाम रहा है। (सभोपदेशक 8:9) यीशु के दिनों के धर्म-अधिकारी, लोगों पर ज़ुल्म ढाते और उन्हें गुमराह करते थे। लोगों की हालत देखकर यीशु ने बिलकुल सही पहचाना कि वे “उन भेड़ों की तरह थे जिनका कोई चरवाहा न हो।” (मरकुस 6:34) आज भी यह बात सच है। इसलिए एक समूह के नाते और निजी तौर पर, हमें एक ऐसे अगुवे की ज़रूरत है जिस पर हम भरोसा कर सकें और जिसको आदर दे सकें। क्या यीशु यह ज़रूरत पूरी कर सकता है? बिलकुल कर सकता है। आइए इसकी बहुत-सी वजहों पर गौर करें।
9. यीशु किस मायने में इंसानी नेताओं से अलग है?
9 पहली वजह, यीशु को खुद यहोवा परमेश्वर ने चुना था। दुनिया के ज़्यादातर नेता असिद्ध इंसानों द्वारा चुने जाते हैं जो अकसर बहकाए जाते हैं या गलत लोगों को नेता बना बैठते हैं। यीशु इंसानी नेताओं से बिलकुल अलग है। उसकी उपाधि से ही यह बात पता चल जाती है। “मसीह” का मतलब है “अभिषिक्त जन।” जी हाँ, यीशु का अभिषेक करनेवाला खुद इस जहान का महाराजाधिराज यहोवा था और उसी ने यीशु को खास ज़िम्मेदारी के लिए चुना था। यहोवा ने अपने बेटे के बारे में कहा: “देखो! मेरा सेवक जिसे मैंने चुना है, मेरा प्यारा, जिसे मैंने दिल से मंज़ूर किया है! मैं उस पर अपनी पवित्र शक्ति डालूँगा।” (मत्ती 12:18) हमारे सृष्टिकर्ता से बेहतर और कोई नहीं जानता कि हमें किस तरह के अगुवे की ज़रूरत है। यहोवा में अपार बुद्धि है, इसलिए हमें उसकी पसंद पर पूरा भरोसा करना चाहिए।—नीतिवचन 3:5, 6.
10. यीशु इंसानों के लिए एक बढ़िया आदर्श क्यों है?
10 दूसरी वजह, यीशु ने हमारे लिए एक बढ़िया आदर्श रखा और अपनी मिसाल पर चलने की प्रेरणा दी। एक बेहतरीन अगुवे में ऐसे गुण होते हैं जो उसके लोगों को भा जाएँ और जिन्हें वे अपने अंदर बढ़ाने की कोशिश करें। वह दूसरों के सामने एक अच्छा उदाहरण रखता है और उन्हें बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देता है। एक अगुवे में आप कौन-से गुण देखना पसंद करेंगे? हिम्मत? बुद्धि? करुणा? या मुश्किलों के बावजूद हार न मानने का जज़्बा? जैसे-जैसे आप यीशु की ज़िंदगी के बारे में अध्ययन करते जाएँगे, आप पाएँगे कि उसमें इन गुणों के अलावा और भी बहुत-से गुण हैं। यीशु हू-ब-हू अपने पिता जैसा है और उसमें अपने पिता के हर गुण पूरी तरह समाए हुए हैं। वह हर मायने में एक परिपूर्ण इंसान था। इसलिए उसने जो कुछ कहा, जो कुछ किया और जो भी जज़बात दिखाए, उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। बाइबल कहती है कि वह “तुम्हारे लिए एक आदर्श छोड़ गया ताकि तुम उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलो।”—1 पतरस 2:21.
11. यीशु एक “अच्छा चरवाहा” कैसे साबित हुआ?
11 तीसरी वजह, यीशु अपनी इस बात पर खरा उतरा: “अच्छा चरवाहा मैं हूँ।” (यूहन्ना 10:14) इस अलंकार से पुराने ज़माने के लोग अच्छी तरह वाकिफ थे। उन्हें पता था कि चरवाहा अपनी भेड़ों की देखभाल करने के लिए दिन-रात एक कर देता है। एक “अच्छा चरवाहा” अपनी जान की बाज़ी लगाकर अपने झुंड की हिफाज़त करता है। यीशु के पूर्वज, दाविद का ही उदाहरण लीजिए। जब वह छोटा था तब वह भेड़ों की देखभाल करता था और उसने एक-से-ज़्यादा बार, अपनी जान पर खेलकर उन्हें खूँखार जंगली जानवरों से बचाया। (1 शमूएल 17:34-36) लेकिन यीशु ने इससे भी बढ़कर किया। उसने अपने चेलों की खातिर अपनी जान कुरबान कर दी। (यूहन्ना 10:15) क्या दुनिया में ऐसा कोई भी नेता है, जो अपने लोगों के लिए इतनी बड़ी कुरबानी दे सके?
12, 13. (क) किस मायने में एक चरवाहा अपनी भेड़ों को जानता है? किस तरह भेड़ें अपने चरवाहे को जानती हैं? (ख) किस वजह से आप अच्छे चरवाहे यीशु के अधीन रहना चाहते हैं?
12 यीशु एक और मायने में “अच्छा चरवाहा” था। उसने कहा: “मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं।” (यूहन्ना 10:14) ज़रा यीशु के इन शब्दों पर ध्यान दीजिए। शायद एक आम व्यक्ति की नज़र में भेड़ का झुंड महज़ रूई का गोला हो। लेकिन एक चरवाहे की नज़र में उसकी हर भेड़ अनमोल है, वह एक-एक को अच्छी तरह जानता है। उसे पता होता है कि कौन-सी भेड़ जन्म देनेवाली है और उसे देखभाल की ज़्यादा ज़रूरत है, किस मेम्ने को गोद में उठाना है क्योंकि वह चलने के लिए अभी बहुत छोटा और कमज़ोर है और कौन-सी भेड़ घायल या बीमार है। यही नहीं, भेड़ें भी अपने चरवाहे को अच्छी तरह जानती हैं। वे उसकी आवाज़ खूब पहचानती हैं, इसलिए किसी दूसरे चरवाहे के पीछे नहीं चल पड़तीं। जब उनका चरवाहा खतरा देखकर उन्हें आवाज़ लगाता है तो वे फौरन उसका हुक्म मानती हैं। जहाँ चरवाहा जाता है, भेड़ें उसके पीछे-पीछे चलती हैं। और चरवाहा जानता है कि उन्हें कहाँ ले जाना है। वह उन्हें वहाँ ले चलता है जहाँ हरी-भरी चराइयाँ हैं, साफ और शुद्ध पानी की धारा बहती है और जहाँ उन्हें कोई खतरा नहीं होगा। जब भेड़ें चर रही होती हैं और चरवाहा उनकी निगरानी करता है, तब वे सुरक्षित महसूस करती हैं।—भजन 23.
13 क्या आप ऐसे अगुवे की हुकूमत नहीं चाहते, जो इसी तरह हमारी परवाह करे और हमें सही राह दिखाए? अच्छे चरवाहे यीशु ने अपने चेलों की देखभाल इसी तरह की। वह वादा करता है कि वह आपको ऐसी राह दिखाएगा जो न सिर्फ आज आपकी ज़िंदगी को खुशियों से भर देगी बल्कि आगे चलकर हमेशा की ज़िंदगी भी देगी। (यूहन्ना 10:10, 11; प्रकाशितवाक्य 7:16, 17) तो फिर हमें जानने की ज़रूरत है कि मसीह के पीछे हो लेने में क्या शामिल है?
मसीह का चेला बनने का क्या मतलब है
14, 15. यीशु का चेला बनने के लिए, सिर्फ मसीही होने का दावा करना या उससे लगाव रखना काफी क्यों नहीं है?
14 आज दुनिया में लाखों-करोड़ों लोगों को लगता है कि उन्होंने यीशु का न्यौता कबूल किया है। वे खुद को ईसाई भी कहते हैं। शायद वे उस चर्च के सदस्य हों जहाँ उनके माता-पिता ने उनका बपतिस्मा करवाया था। या शायद वे कहें कि उन्हें यीशु से बहुत लगाव है और वे यीशु को अपना उद्धारकर्त्ता मानते हैं। मगर क्या इस बिनाह पर उन्हें मसीह का चेला कहा जा सकता है? क्या यीशु के मुताबिक उसके पीछे हो लेने का यही मतलब है? जी नहीं, मसीह का चेला बनने में और भी कुछ शामिल है।
15 ईसाईजगत यानी उन देशों की बात लीजिए जिनके ज़्यादातर लोग मसीह के चेले होने का दावा करते हैं। क्या वे सचमुच यीशु मसीह की शिक्षाओं पर चलते हैं? या क्या हम इन देशों में वही नफरत, ज़ुल्म, अपराध और अन्याय देखते हैं जो दुनिया के बाकी देशों में तबाही मचा रहा है? जाने-माने हिंदू नेता मोहनदास गाँधी ने एक बार कहा: “मेरी नज़र में यीशु ने जितना इंसानों के लिए किया है, उतना शायद ही किसी ने किया हो। दरअसल मसीहियत में कोई खोट नहीं है। खोट तो तुम ईसाइयों में है, क्योंकि तुम जो सिखाते हो, उस पर खुद नहीं चलते।”
16, 17. मसीही होने का दावा करनेवालों में किस चीज़ की कमी है? मसीह के सच्चे चेले कैसे पहचाने जाते हैं?
16 यीशु ने कहा कि उसके सच्चे चेले सिर्फ इस बात से नहीं पहचाने जाएँगे कि वे क्या दावा करते हैं या खुद को क्या बुलाते हैं बल्कि खास तौर पर अपने कामों से जाने जाएँगे। उदाहरण के लिए, यीशु ने कहा: “जो मुझे ‘हे प्रभु, हे प्रभु’ कहते हैं, उनमें से हर कोई स्वर्ग के राज में दाखिल नहीं होगा, मगर जो मेरे स्वर्गीय पिता की मरज़ी पूरी कर रहा है, वही दाखिल होगा।” (मत्ती 7:21) यीशु को अपना प्रभु माननेवाले ज़्यादातर लोग, उसके पिता की मरज़ी पूरी करने से क्यों चूक जाते हैं? क्या आपको वह अमीर अधिकारी याद है? उसकी तरह इन लोगों में भी अकसर “एक चीज़ की कमी [होती] है।” वे यीशु और उसके भेजनेवाले यहोवा को दिलो-जान से प्यार नहीं करते।
17 मगर ऐसा कैसे हो सकता है? क्या खुद को ईसाई कहलानेवाले लाखों लोग यीशु से प्यार करने का दावा नहीं करते? बेशक करते हैं। लेकिन सिर्फ कहने-भर से बात नहीं बनती, यीशु और यहोवा को प्यार करने में बहुत कुछ शामिल है। यीशु ने बताया: “अगर कोई मुझसे प्यार करता है, तो वह मेरे वचन पर चलेगा।” (यूहन्ना 14:23) और एक चरवाहे के नाते उसने कहा: “मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ सुनती हैं और मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं।” (यूहन्ना 10:27) इसमें कोई शक नहीं कि यीशु के लिए हमारे प्यार की असली परख हमारे कामों से होती है, न कि इससे कि हम क्या दावा करते हैं या हममें यीशु के लिए कैसी भावनाएँ हैं।
18, 19. (क) यीशु के बारे में ज्ञान लेने से हम पर क्या असर होगा? (ख) यह किताब किस मकसद से तैयार की गयी है? यह उन लोगों की कैसे मदद करेगी जिन्हें लगता है कि वे लंबे अरसे से मसीह की दिखायी राह पर चल रहे हैं?
18 हमारे कामों से ज़ाहिर होता है कि हमारा दिल कैसा है यानी हम अंदर से कैसे इंसान हैं। हमें अपने अंदर के इसी इंसान को निखारना है। यीशु ने कहा: “हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए ज़रूरी है कि वे तुझ एकमात्र सच्चे परमेश्वर का और यीशु मसीह का, जिसे तू ने भेजा है, ज्ञान लेते रहें।” (यूहन्ना 17:3) अगर हम यीशु के बारे में सही ज्ञान लें और उस पर मनन करें, तो इसका हम पर गहरा असर होगा। हम यीशु से और ज़्यादा प्यार करने लगेंगे। हमारे अंदर यह इच्छा ज़ोर पकड़ती जाएगी कि हम दिन-ब-दिन उसके पीछे चलते रहें।
19 इसी मकसद से यह किताब तैयार की गयी है। हालाँकि यह किताब यीशु की ज़िंदगी और सेवा के बारे में हर बात तो नहीं बताती। मगर यह जानने में ज़रूर मदद देती है कि हम मसीह के पीछे और अच्छी तरह कैसे चल सकते हैं।b यह इस तरह तैयार की गयी है कि हम परमेश्वर के वचन की मदद से खुद की जाँच करें कि ‘क्या मैं वाकई यीशु के पीछे चल रहा हूँ?’ (याकूब 1:23-25) शायद आपको लगे कि आप लंबे अरसे से अच्छे चरवाहे यीशु की दिखायी राह पर चल रहे हैं। लेकिन क्या आप इस बात से सहमत नहीं होंगे कि हम सबको कहीं-न-कहीं सुधार करने की ज़रूरत है? बाइबल हमें उकसाती है: “खुद को जाँचते रहो कि तुम विश्वास में हो या नहीं। तुम खुद क्या हो, इसका सबूत देते रहो।” (2 कुरिंथियों 13:5) यह जाँचते रहने की हमें हर मुमकिन कोशिश करनी चाहिए कि हम अपने प्यारे चरवाहे यीशु के पीछे चल रहे हैं या नहीं, जिसे खुद यहोवा ने हमारी अगुवाई करने के लिए चुना है। यकीन मानिए ऐसा करने की हमारी मेहनत बेकार नहीं जाएगी!
20. अगले अध्याय में किस बारे में चर्चा की जाएगी?
20 हमारी दुआ है कि इस किताब का अध्ययन करने से यीशु और यहोवा के लिए आपका प्यार और मज़बूत हो जाए। जैसे-जैसे यह प्यार आपको राह दिखाएगा, आप उस हद तक शांति और सुकून पाएँगे जितना इस पुरानी दुनिया में मुमकिन है। साथ ही, आप इस बात के लिए सदा तक यहोवा की महिमा कर सकेंगे कि उसने हमें एक अच्छा चरवाहा दिया। लेकिन इन सबके लिए ज़रूरी है कि मसीह के बारे में हमारा ज्ञान सही बुनियाद पर टिका हो। यही बात ध्यान में रखते हुए, अध्याय 2 बताएगा कि यहोवा के मकसद में यीशु की क्या भूमिका है।
a यीशु ने अपने हर चेले से नहीं कहा कि वह अपनी ज़मीन-जायदाद बेच दे। यह सच है कि उसने बताया कि पैसेवालों के लिए परमेश्वर के राज में दाखिल होना बहुत मुश्किल है, मगर उसने यह भी कहा: “परमेश्वर के लिए सबकुछ मुमकिन है।” (मरकुस 10:23, 27) आगे चलकर कुछ अमीर लोग भी यीशु के चेले बने। हालाँकि उन्हें रुपये-पैसों के बारे में सही नज़रिया रखने की सलाह दी गयी। लेकिन उन्हें अपना धन गरीबों में बाँटने के लिए नहीं कहा गया।—1 तीमुथियुस 6:17.
b यीशु की ज़िंदगी और सेवा की सिलसिलेवार जानकारी पाने के लिए वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा किताब देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।