गीत 34
ऊँचा हमेशा करें तेरा नाम!
1. याह तू प्र-ता-पी, अ-नंत, अ-वि-ना-शी
सा-गर तू प्यार का, बुद्-धि है अ-पार।
न्याय का ख-रा, तू म-हा-श-क्ति-शा-ली
तू ही ह-मा-रा है पर-वर-दि-गार।
राज की ख़-बर हम ख़ु-शी से फै-ला-एँ
पू-रब से पच्-छिम तक दे के पै-ग़ाम।
(कोरस)
नाज़ है ह-में कि हम सा-क्षी हैं ते-रे
ऊँ-चा ह-मे-शा क-रें ते-रा नाम!
2. से-वा क-रें गर हम एक मन के हो-के
आ-पस में प्यार तब ह-मा-रा ब-ढ़े।
बीज राज के हम जब दि-लों में हैं बो-ते
मन में ख़ु-शी की त-रं-गें उ-ठें।
नाम अप-ना दे-कर ह-में है न-वा-ज़ा
तू-ने दि-या ह-में क्या ही सम्-मान!
(कोरस)
नाज़ है ह-में कि हम सा-क्षी हैं ते-रे
ऊँ-चा ह-मे-शा क-रें ते-रा नाम!
(व्यव. 32:4; भज. 43:3; दानि. 2:20, 21 भी देखिए।)