अध्याय ग्यारह
वह चौकन्ना रहा और इंतज़ार करता रहा
1, 2. (क) एलियाह को कौन-सा मुश्किल काम करना था? (ख) एलियाह और अहाब में क्या फर्क था?
एलियाह स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता से अकेले में बात करने के लिए तरस रहा था। मगर लोगों की एक भीड़ ने उसे घेर रखा था क्योंकि उन्होंने अभी-अभी देखा था कि इस सच्चे भविष्यवक्ता के कहने पर कैसे स्वर्ग से आग गिरी। उनमें से कई लोग उसकी खुशामद करना चाहते थे। इससे पहले कि एलियाह करमेल पहाड़ पर चढ़कर यहोवा से अकेले में प्रार्थना करे उसे एक और काम करना था जो इतना आसान नहीं था। उसे राजा अहाब से बात करनी थी।
2 अहाब और एलियाह के बीच ज़मीन-आसमान का फर्क था। अहाब शाही लिबास पहने हुए दमक रहा था, जबकि एलियाह भविष्यवक्ता की सादी पोशाक पहने था। यह पोशाक शायद जानवर की खाल या ऊँट या बकरी के बालों की बनी थी। अहाब एक लालची और डाँवाँडोल इंसान था और सच्ची उपासना से मुकर गया था, मगर एलियाह बड़ा हिम्मतवाला और वफादार इंसान था और उसका विश्वास बहुत मज़बूत था। उस दिन हुई घटनाओं से साफ ज़ाहिर हो गया कि वे दोनों आदमी एक-दूसरे से कितने अलग थे।
3, 4. (क) अहाब और बाल की पूजा करनेवाले दूसरे लोगों को क्यों शर्मिंदा होना पड़ा? (ख) हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?
3 अहाब को और बाल की पूजा करनेवाले दूसरे लोगों को उस दिन बहुत शर्मिंदा होना पड़ा था। अहाब और उसकी पत्नी इज़ेबेल ने इसराएल के दस गोत्रोंवाले राज्य में जो झूठा धर्म फैला दिया था, उसे हार का मुँह देखना पड़ा था। बाल का परदाफाश हो गया कि वह कोई देवता नहीं बल्कि एक धोखा है। उसके भविष्यवक्ता पागलों की तरह चीख-चीखकर उसे पुकारते रहे, नाचते रहे और अपने रस्म के मुताबिक खुद को लहू-लुहान कर लिया, फिर भी वह बेजान देवता उनकी पुकार सुनकर आग की चिंगारी तक नहीं जला सका। और जब उन 450 भविष्यवक्ताओं को उनकी करतूतों के लिए मौत की सज़ा मिली तो बाल उन्हें बचा न सका। वह झूठा देवता एक और काम में चूक गया और उसकी यह नाकामी बहुत जल्द सामने आनेवाली थी। बाल के भविष्यवक्ता तीन साल से भी ज़्यादा समय से उससे मिन्नतें कर रहे थे कि वह देश में पड़े सूखे का अंत कर दे, मगर बाल ऐसा नहीं कर पाया था। मगर बहुत जल्द यहोवा सूखे का अंत करके दिखानेवाला था कि वही सच्चा परमेश्वर है।—1 राजा 16:30–17:1; 18:1-40.
4 लेकिन यहोवा ऐसा कब करता? तब तक एलियाह क्या करता? हम उसके विश्वास से क्या सीख सकते हैं? आइए इस ब्यौरे पर ध्यान दें।—1 राजा 18:41-46 पढ़िए।
वह प्रार्थना करता रहा
5. (क) एलियाह ने अहाब से क्या कहा? (ख) क्या अहाब ने कोई सबक सीखा?
5 एलियाह ने अहाब के पास जाकर उससे कहा, “तू ऊपर जा और कुछ खा-पी ले क्योंकि मूसलाधार बारिश की आवाज़ सुनायी दे रही है।” क्या उस दुष्ट राजा ने उस दिन की घटनाओं से कुछ सबक सीखा? बाइबल में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है कि उसने पश्चाताप किया या भविष्यवक्ता से बिनती की कि वह उसकी तरफ से यहोवा से माफी माँगे। बस इतना कहा गया है कि “अहाब खाने-पीने के लिए ऊपर गया।” (1 राजा 18:41, 42) इससे पता चलता है कि उसने अपनी गलती नहीं मानी। मगर एलियाह ने क्या किया?
6, 7. एलियाह ने क्या प्रार्थना की और क्यों?
6 “एलियाह करमेल पहाड़ की चोटी पर गया। वह ज़मीन पर घुटनों के बल झुका और उसने अपना मुँह घुटनों के बीच रखा।” अहाब अपना पेट भरने चला गया, मगर एलियाह ने देखा कि यह एक अच्छा मौका है अपने पिता यहोवा से प्रार्थना करने का। गौर कीजिए कि वह किस तरह झुका। वह ज़मीन पर घुटनों के बल इतना झुक गया कि उसका मुँह घुटनों के बीच था। वह क्या कर रहा था? हमें अटकलें लगाने की ज़रूरत नहीं। याकूब 5:18 में लिखा है कि एलियाह ने प्रार्थना की कि सूखे का अंत हो जाए। शायद यह प्रार्थना उसने करमेल पहाड़ की चोटी पर की होगी।
7 कुछ समय पहले यहोवा ने कहा था, “अब मैं देश की ज़मीन पर पानी बरसाऊँगा।” (1 राजा 18:1) इसलिए एलियाह ने प्रार्थना की कि यहोवा की यह मरज़ी पूरी हो। एलियाह के समय के करीब 1,000 साल बाद यीशु ने भी अपने चेलों को सिखाया था कि वे यहोवा की मरज़ी पूरी होने के बारे में प्रार्थना करें।—मत्ती 6:9, 10.
8. हम एलियाह से प्रार्थना के बारे में क्या सीखते हैं?
8 एलियाह से हम प्रार्थना के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं। वह यह देखने के लिए बेताब था कि परमेश्वर की मरज़ी पूरी हो। जब हम प्रार्थना करते हैं तो हमें यह बात याद रखनी चाहिए: “हम उसकी मरज़ी के मुताबिक चाहे जो भी माँगें वह हमारी सुनता है।” (1 यूह. 5:14) परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक प्रार्थना करने के लिए सबसे पहले हमें उसकी मरज़ी जाननी होगी। और उसकी मरज़ी जानने के लिए हमें नियमित तौर पर बाइबल का अध्ययन करना होगा। एलियाह सूखे का अंत इसलिए भी देखना चाहता था क्योंकि उसके देश के लोगों ने बहुत तकलीफें झेली थीं। इसके अलावा, उस दिन यहोवा ने जो चमत्कार किया था उसकी वजह से उसका दिल ज़रूर एहसान से भर गया होगा। उसी तरह, हमें भी दूसरों के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और यहोवा का धन्यवाद करना चाहिए।—2 कुरिंथियों 1:11; फिलिप्पियों 4:6 पढ़िए।
उसे पक्का यकीन था और वह चौकन्ना रहा
9. (क) एलियाह ने अपने सेवक से क्या करने को कहा? (ख) हम एलियाह से कौन-सी दो बातें सीखते हैं?
9 एलियाह को यकीन था कि यहोवा ज़रूर सूखे का अंत करेगा, मगर वह यह नहीं जानता था कि परमेश्वर ऐसा कब करेगा। तो उस वक्त तक उसने क्या किया? ध्यान दीजिए कि ब्यौरे में क्या लिखा है, “उसने अपने सेवक से कहा, ‘ज़रा ऊपर जा और समुंदर की तरफ देखकर आ।’ सेवक ने ऊपर जाकर देखा और कहा, ‘कुछ नहीं दिखायी दे रहा।’ एलियाह ने सात बार उससे कहा, ‘जाकर देख।’” (1 राजा 18:43) एलियाह से हम कम-से-कम दो बातें सीखते हैं। एक, उसे यहोवा के वादे पर पक्का यकीन था और दूसरी, वह चौकन्ना रहा।
एलियाह ऐसी कोई निशानी देखने के लिए चौकन्ना रहा जिससे पता चले कि अब यहोवा बारिश कराएगा
10, 11. (क) एलियाह ने कैसे दिखाया कि उसे यहोवा के वादे पर पक्का यकीन था? (ख) हम भी क्यों ऐसा पक्का यकीन रख सकते हैं?
10 यहोवा के वादे पर पक्का यकीन होने की वजह से एलियाह ऐसी कोई निशानी देखने के लिए चौकन्ना रहा जिससे पता चले कि यहोवा अब बारिश कराएगा। उसने अपने सेवक को पहाड़ की चोटी पर भेजा ताकि वह वहाँ से देख सके कि क्या बारिश होने के कोई आसार हैं। जब सेवक वापस आया तो उसने निराश होकर एलियाह से कहा, “कुछ नहीं दिखायी दे रहा।” क्षितिज साफ था और ज़ाहिर है कि आसमान में कोई बादल नहीं था। तो फिर कुछ देर पहले एलियाह ने राजा अहाब से यह क्यों कहा कि उसे “मूसलाधार बारिश की आवाज़ सुनायी दे रही है”?
11 एलियाह यहोवा के वादे के बारे में जानता था। वह यहोवा का भविष्यवक्ता था और उसकी तरफ से बोलता था, इसलिए उसे यकीन था कि परमेश्वर अपना वादा ज़रूर पूरा करेगा। उसका यकीन इतना पक्का था कि उसे पहले ही मूसलाधार बारिश की आवाज़ सुनायी देने लगी। इससे हमें शायद मूसा की याद आए जिसके बारे में बाइबल बताती है, “वह उस अदृश्य परमेश्वर को मानो देखता हुआ डटा रहा।” क्या परमेश्वर आपके लिए भी उतना ही असल है? यहोवा ने हमें ढेरों सबूत दिए हैं जिससे हम उस पर और उसके वादों पर ऐसा अटूट विश्वास रख सकते हैं।—इब्रा. 11:1, 27.
12. (क) एलियाह कैसे चौकन्ना रहा? (ख) जब उसे बताया गया कि एक छोटा बादल दिखायी दे रहा है तो उसने क्या किया?
12 अब आइए देखें कि एलियाह कैसे चौकन्ना रहा। उसने अपने सेवक को एक बार नहीं, दो बार नहीं बल्कि सात बार वापस भेजा! हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि सेवक कैसे बार-बार जाता और लौट आता था। वह कितना थक गया होगा। फिर भी एलियाह निशानी देखने के लिए बेताब था और उसने हार नहीं मानी। सेवक जब सातवीं बार देखने गया तो उसने लौटकर कहा, “देख, समुंदर पर से आदमी की हथेली जितना छोटा बादल ऊपर उठ रहा है!” कल्पना कीजिए, सेवक कैसे इशारों से एलियाह को बताता है कि एक हथेली जितना छोटा बादल महासागर से ऊपर उठ रहा है। सेवक को यह कोई बड़ी बात नहीं लगी होगी। मगर एलियाह के लिए यह बहुत बड़ी बात थी। उसने सेवक से फौरन कहा, “अहाब के पास जा और उससे कहना, ‘रथ तैयार करवाकर यहाँ से फौरन नीचे चला जा! वरना तू मूसलाधार बारिश में फँस जाएगा।’”—1 राजा 18:44.
13, 14. (क) हम कैसे एलियाह की तरह चौकन्ने रह सकते हैं? (ख) कम वक्त में यहोवा की सेवा ज़्यादा करने के लिए हमारे पास क्या वजह हैं?
13 इस मामले में भी एलियाह हमारे लिए क्या ही बढ़िया मिसाल है! हम भी ऐसे वक्त में जी रहे हैं जब यहोवा परमेश्वर बहुत जल्द अपना मकसद पूरा करेगा। जैसे एलियाह ने सूखे के अंत का इंतज़ार किया था, वैसे ही आज परमेश्वर के सेवक इस बुरी दुनिया के अंत का इंतज़ार कर रहे हैं। (1 यूह. 2:17) यहोवा के कार्रवाई करने के समय तक हमें एलियाह की तरह हमेशा चौकन्ना रहना चाहिए। परमेश्वर के बेटे यीशु ने अपने चेलों को यह सलाह दी थी, “इसलिए जागते रहो क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आ रहा है।” (मत्ती 24:42) क्या यीशु के कहने का यह मतलब था कि उसके चेलों को ज़रा भी अंदाज़ा नहीं होगा कि अंत कब आएगा? ऐसी बात नहीं है। उसने उन्हें काफी जानकारी दी थी कि अंत से पहले दुनिया की कैसी हालत होगी। उसने “दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त” को पहचानने की ऐसी निशानी दी थी जिसके कई पहलू हैं और आज हम उस निशानी को पूरा होते देख सकते हैं।—मत्ती 24:3-7 पढ़िए।
एलियाह को यह यकीन दिलाने के लिए कि यहोवा कदम उठानेवाला है, एक छोटा-सा बादल काफी था। उसी तरह, आखिरी दिनों की निशानी हमें यहोवा की सेवा ज़्यादा करने के लिए उभारती है
14 उस निशानी का हर पहलू इस बात का ज़बरदस्त सबूत है कि अंत करीब है। क्या यह सबूत हमारे लिए काफी नहीं और क्या इसे देखकर हमें बढ़ावा नहीं मिलता कि हम यहोवा की सेवा ज़्यादा करें क्योंकि वक्त बहुत कम है? एलियाह को यह यकीन दिलाने के लिए कि यहोवा कदम उठानेवाला है, एक छोटा-सा बादल काफी था। क्या इस वफादार भविष्यवक्ता को निराश होना पड़ा?
यहोवा राहत और आशीषें देता है
15, 16. (क) कौन-सी घटनाएँ तेज़ी से घटने लगीं? (ख) एलियाह ने अहाब के बारे में क्या सोचा होगा?
15 बाइबल बताती है, “इस बीच आसमान काले बादलों से ढक गया, तेज़ हवाएँ चलने लगीं और मूसलाधार बारिश होने लगी। अहाब रथ पर सवार होकर यिजरेल की तरफ भागता गया।” (1 राजा 18:45) इसके बाद बड़ी तेज़ी से एक-के-बाद-एक घटनाएँ घटने लगीं। एलियाह का सेवक उसका संदेश अहाब को सुना ही रहा था कि तभी उस छोटे-से बादल से काली घटाएँ बन गयीं और पूरा आसमान काला हो गया। तेज़ हवाएँ चलने लगीं। आखिरकार साढ़े तीन साल के लंबे इंतज़ार के बाद, इसराएल की ज़मीन पर बारिश की बूँदें गिरने लगीं। वहाँ की तपती ज़मीन ने बूँदें पड़ते ही उन्हें सोख लिया। धीरे-धीरे ऐसी मूसलाधार बारिश होने लगी कि कीशोन नदी उमड़ने लगी। इससे बाल के उन भविष्यवक्ताओं का खून धुल गया होगा जिन्हें मार डाला गया था। बागी इसराएलियों को भी मौका मिला कि वे देश से बाल की उपासना का घिनौना दाग मिटा दें।
16 एलियाह ने उम्मीद की होगी कि लोग ऐसा करेंगे! उसने शायद अहाब के बारे में सोचा कि ऐसी हैरतअंगेज़ घटनाएँ देखने के बाद वह क्या करेगा? क्या वह पश्चाताप करेगा और बाल की अशुद्ध उपासना छोड़ देगा? उस दिन इतना कुछ हुआ था कि उसे ज़रूर अपनी ज़िंदगी में बदलाव करने थे। हम नहीं जानते कि यह सब देखने के बाद अहाब के दिमाग में क्या चल रहा था। बाइबल सिर्फ इतना बताती है कि राजा “रथ पर सवार होकर यिजरेल की तरफ भागता गया।” क्या उसने कोई सबक सीखा? क्या उसने ठान लिया कि वह अपना तौर-तरीका बदल देगा? आगे की घटनाएँ दिखाती हैं कि उस पर कोई असर नहीं हुआ। लेकिन उस दिन अहाब और एलियाह के साथ और भी बहुत कुछ होना बाकी था।
17, 18. (क) यिजरेल जानेवाले रास्ते पर एलियाह के साथ क्या हुआ? (ख) करमेल से यिजरेल तक एलियाह जिस तरह से दौड़ा वह क्यों देखने लायक था? (फुटनोट भी देखें।)
17 यहोवा का भविष्यवक्ता उसी रास्ते पर जाने लगा जहाँ से अहाब गया था। रास्ता काफी लंबा था, चारों तरफ अँधेरा था और बारिश ज़ोरों पर थी। मगर तभी एक अनोखी घटना घटती है।
18 “यहोवा ने एलियाह को शक्ति दी और एलियाह ने अपने कपड़े से अपनी कमर कसी और दौड़ने लगा। वह इतनी तेज़ दौड़ा कि अहाब से आगे निकल गया और यिजरेल तक दौड़ता गया।” (1 राजा 18:46) यिजरेल, करमेल से 30 किलोमीटर दूर था और एलियाह उस वक्त कोई जवान लड़का नहीं था।a ‘यहोवा की दी हुई शक्ति’ से एलियाह यह कमाल कर सका। कल्पना कीजिए, भविष्यवक्ता अपनी लंबी पोशाक को कमर पर कस लेता है ताकि दौड़ते वक्त उसे दिक्कत न हो। फिर वह उस रास्ते पर दौड़ने लगता है जहाँ पानी-ही-पानी है। वह इतना तेज़ दौड़ता है कि अहाब के शाही रथ तक पहुँच जाता है और फिर उससे आगे निकल जाता है!
19. (क) परमेश्वर ने एलियाह में जो जोश और दमखम भर दिया, उससे हमें कौन-सी भविष्यवाणियाँ याद आती हैं? (ख) जब एलियाह दौड़कर यिजरेल जा रहा था तो उसने क्या महसूस किया होगा?
19 एलियाह को क्या ही अनोखी आशीष मिली! बुढ़ापे में इतना जोश और दमखम महसूस करना उसके लिए बहुत ही रोमांचक रहा होगा! उसने शायद अपनी जवानी में भी ऐसा दमखम महसूस नहीं किया होगा। उस घटना से हमें शायद वे भविष्यवाणियाँ याद आएँ जिनमें लिखा है कि जब यह धरती फिरदौस बन जाएगी तो वफादार लोग जवानी का दमखम और बढ़िया सेहत पाएँगे। (यशायाह 35:6 पढ़िए; लूका 23:43) जब एलियाह बारिश में उस रास्ते पर दौड़ा जा रहा था तो उसने महसूस किया होगा कि उसका पिता यहोवा, जो अकेला सच्चा परमेश्वर है, उससे खुश है!
20. हम यहोवा से आशीषें पाने के लिए क्या कर सकते हैं?
20 आज यहोवा हमें भी आशीषें देना चाहता है। उसकी आशीषें अनमोल हैं, इसलिए उन्हें पाने के लिए आइए हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करें। एलियाह की तरह हमें चौकन्ने रहना चाहिए और उन सबूतों को ध्यान से जाँचना चाहिए जो दिखाते हैं कि हम एक खतरनाक समय में जी रहे हैं और यहोवा बहुत जल्द कदम उठानेवाला है। एलियाह की तरह हमारे पास सबूतों की कोई कमी नहीं, इसलिए हम यहोवा के वादों पर पक्का यकीन रख सकते हैं जो ‘सच्चाई का परमेश्वर’ है।—भज. 31:5.
a इसके कुछ ही समय बाद यहोवा ने एलियाह से कहा कि वह एलीशा को सिखाए। आगे चलकर एलीशा की पहचान इस तरह हुई कि वह “एलियाह के हाथ धुलाने के लिए पानी डालता था।” (2 राजा 3:11) एलीशा, एलियाह का सेवक बना और ज़ाहिर है कि वह बूढ़े एलियाह को ज़रूरी मदद देता था।