गीत 145
याह का संदेश देने की तैयारी
बी-ती रात,
भोर हो ग-यी!
सं-देश दे-ना है याह का।
पर घ-टा छा-ई!
लो, अब बा-रिश हु-ई!
क्या बु-रा हो-गा, रुक जा-एँ घर,
हम अ-गर?
(कोरस)
बद-लें गर सोच, क-रें तै-या-री,
जा-गे उ-मंग दिल में!
माँ-गें दु-आ य-हो-वा से तो,
हौस-ला ब-ढ़े;
हम ना अ-के-ले, हैं फ-रि-श्ते,
दे-ते वो काम में साथ।
फिर अप-ने संग भी दोस्त हैं सच्-चे,
छो-ड़ें ना हाथ।
मेह-नत ना
जा-ए बे-कार,
जल्-दी मा-नें गर ना हार।
कि भ-ला है याह
है उ-से सब प-ता,
भू-ले-गा ना वो ह-मा-रा काम,
दे इ-नाम।
(कोरस)
बद-लें गर सोच, क-रें तै-या-री,
जा-गे उ-मंग दिल में!
माँ-गें दु-आ य-हो-वा से तो,
हौस-ला ब-ढ़े;
हम ना अ-के-ले, हैं फ-रि-श्ते,
दे-ते वो काम में साथ।
फिर अप-ने संग भी दोस्त हैं सच्-चे,
छो-ड़ें ना हाथ।
(सभो. 11:4; मत्ती 10:5, 7; लूका 10:1; तीतु. 2:14 भी देखिए।)