अध्याय 15
मुखियापन के इंतज़ाम के अधीन रहकर फायदा पाइए
पूरे विश्व के महाराजाधिराज यहोवा के अधीन रहकर ही हम उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए संगठित हो सकते हैं। हम इस बात को कबूल करते हैं कि उसका बेटा, मसीही मंडली का मुखिया है। साथ ही, हम ज़िंदगी के दूसरे पहलुओं में भी उसके मुखियापन का सिद्धांत मानते हैं। इस तरह परमेश्वर के अधीन रहने से हरेक को फायदा होता है।
2 अधीन रहने का सिद्धांत इंसान को सबसे पहले अदन के बाग में बताया गया था। यह सिद्धांत उत्पत्ति 1:28 और 2:16, 17 में दी परमेश्वर की आज्ञाओं से साफ पता चलता है। पशु-पक्षियों को इंसानों के अधीन रहना था, जबकि आदम और हव्वा को परमेश्वर की मरज़ी और अधिकार के अधीन रहना था। परमेश्वर के अधीन रहने से दुनिया में शांति और अच्छी व्यवस्था कायम रहती। मुखियापन के इस उसूल के बारे में, बाद में 1 कुरिंथियों 11:3 में भी बताया गया। वहाँ प्रेषित पौलुस ने लिखा, “मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि हर आदमी का सिर मसीह है और औरत का सिर आदमी है और मसीह का सिर परमेश्वर है।” इसका मतलब, मुखियापन के इस पूरे इंतज़ाम में यहोवा को छोड़ बाकी सभी किसी-न-किसी के अधीन हैं।
3 आज ज़्यादातर लोगों को मुखियापन के सिद्धांत की न तो कोई कदर है और न ही वे उस पर चलते हैं। ऐसा क्यों? दरअसल अदन के बाग में हमारे पहले माता-पिता ने जानबूझकर अपने मुखिया परमेश्वर के अधीन न रहने का फैसला किया। तभी से इंसानों में ऐसी फितरत पायी जाती है। (उत्प. 3:4, 5) लेकिन बगावत करने से आदम और हव्वा को पहले से ज़्यादा आज़ादी नहीं मिली। इसके बजाय, वे दुष्ट स्वर्गदूत शैतान के अधीन हो गए। इस पहली बगावत से इंसान परमेश्वर से दूर हो गए। (कुलु. 1:21) नतीजा, आज दुनिया के ज़्यादातर लोग उसी दुष्ट शैतान के कब्ज़े में पड़े हुए हैं।—1 यूह. 5:19.
4 सच्चाई सीखने और उसके मुताबिक जीने की वजह से हम शैतान के कब्ज़े से छूट पाए हैं। हमने समर्पण करके और बपतिस्मा लेकर यह ज़ाहिर किया कि हम यहोवा को अपनी ज़िंदगी का मालिक मानते हैं। राजा दाविद की तरह हम मानते हैं कि यहोवा “परम-प्रधान” है। (1 इति. 29:11) हम पूरी नम्रता से यह कबूल करते हैं: “जान लो कि यहोवा ही परमेश्वर है। उसी ने हमें बनाया है और हम उसके हैं। हम उसके लोग हैं, उसके चरागाह की भेड़ें हैं।” (भज. 100:3) यहोवा ने सारी चीज़ें रची हैं, इसलिए हम मानते हैं कि वह सबसे महान है और उसका हक बनता है कि हम पूरी तरह उसके अधीन रहें। (प्रका. 4:11) सच्चे परमेश्वर के सेवक होने के नाते, हम यीशु मसीह के नक्शे-कदम पर चलते हैं, जिसने परमेश्वर के अधीन रहने में सबसे बेहतरीन मिसाल रखी है।
5 धरती पर रहते वक्त यीशु ने जो दुख सहे, उस सबसे क्या सीखा? इसका जवाब हमें इब्रानियों 5:8 में मिलता है, “परमेश्वर का बेटा होते हुए भी उसने कई दुख सहकर आज्ञा माननी सीखी।” जी हाँ, यीशु मुश्किलों के वक्त भी अपने पिता के अधीन रहा और उसका वफादार रहा। इसके अलावा, यीशु ने अपनी मरज़ी से कोई काम नहीं किया। उसने अपनी मरज़ी से न तो कुछ सिखाया और न ही अपनी महिमा चाही। (यूह. 5:19, 30; 6:38; 7:16-18) उसने खुशी-खुशी अपने पिता की मरज़ी पूरी की, इसके बावजूद कि उसे विरोध और ज़ुल्म सहने पड़े। (यूह. 15:20) वह परमेश्वर के अधीन रहा। उसने “खुद को नम्र किया” और “यातना के काठ पर मौत भी सह ली।” यीशु पूरी तरह यहोवा के अधीन रहा और इसके कई फायदे हुए। जैसे, इंसानों को हमेशा के लिए उद्धार मिला, खुद यीशु को पहले से भी ज़्यादा महान किया गया और उसके पिता की महिमा हुई।—फिलि. 2:5-11; इब्रा. 5:9.
किन मामलों में अधीन रहना ज़रूरी है?
6 जब लोग यहोवा की हुकूमत के अधीन नहीं रहते, तो उन्हें कई चिंताएँ आ घेरती हैं। इसके उलट जब हम परमेश्वर की मरज़ी पूरी करके उसके अधीन रहते हैं, तो हम ऐसी चिंताओं से बच पाते हैं। हमारा दुश्मन शैतान लगातार इस ताक में रहता है कि कब हमें फाड़ खाए। लेकिन अगर हम उसके सामने डटे रहें और यहोवा के अधीन होने के लिए खुद को नम्र करें, तो हम शैतान की गिरफ्त में नहीं आएँगे।—मत्ती 6:10, 13; 1 पत. 5:6-9.
7 हम मानते हैं कि मसीही मंडली का मुखिया यीशु मसीह है और उसने मंडली को निर्देश देने का अधिकार “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को दिया है। इस बात का असर हमारे रवैए और दूसरों के साथ हमारे व्यवहार पर पड़ता है। जब हम मंडली में परमेश्वर के अधिकार के लिए अधीनता दिखाते हैं, तो हमारा दिल हमें उभारता है कि हम उपासना के हर पहलू में परमेश्वर के वचन के मुताबिक काम करें। इसमें प्रचार करना, सभाओं में हाज़िर होना और उनमें हिस्सा लेना, संगठन के इंतज़ामों में सहयोग देना और प्राचीनों की बात मानना शामिल है।—मत्ती 24:45-47; 28:19, 20; इब्रा. 10:24, 25; 13:7, 17.
8 परमेश्वर के अधीन रहने से हम मसीही मंडली में शांति और सुरक्षा का माहौल बनाए रख पाते हैं और इसमें अच्छी व्यवस्था रहती है। यहोवा के गुण उसके सेवकों में साफ देखे जा सकते हैं। (1 कुरिं. 14:33, 40) यहोवा के संगठन में हमारा जो अनुभव रहा है, उसकी वजह से हमारा मन हमें वही कहने के लिए उभारता है, जो राजा दाविद ने कहा था। दाविद ने जब देखा कि यहोवा के सेवकों और दुष्टों में कितना फर्क है, तो उसने खुशी से कहा, “सुखी हैं वे लोग जिनका परमेश्वर यहोवा है!”—भज. 144:15.
9 शादीशुदा ज़िंदगी और परिवार में “औरत का सिर आदमी है।” वहीं आदमियों को मसीह के अधीन रहना है और मसीह को परमेश्वर के। (1 कुरिं. 11:3) पत्नियों को अपने-अपने पति के अधीन रहना है और बच्चों को अपने माता-पिता के। (इफि. 5:22-24; 6:1) अगर परिवार का हर सदस्य मुखियापन का सिद्धांत मानकर चले, तो उनके बीच शांति होगी।
10 भले ही पति को मुखिया होने का अधिकार दिया गया है, फिर भी उसे अपनी पत्नी और बच्चों से प्यार से पेश आना है, ठीक जैसे मसीह मंडली से प्यार से पेश आता था। (इफि. 5:25-29) अगर पति अपनी ज़िम्मेदारी समझे और अपने अधिकार का सही इस्तेमाल करे, तो उसकी पत्नी और बच्चों को उसके अधीन रहने में खुशी होगी। पत्नी को पति का मददगार बनाया गया है, ऐसा साथी जो उससे मेल खाए। (उत्प. 2:18) उसे सब्र रखते हुए अपने पति का साथ देना चाहिए और उसका आदर करना चाहिए। ऐसा करने से वह अपने पति का दिल जीत सकती है और इससे परमेश्वर की महिमा भी होगी। (1 पत. 3:1-4) अगर पति-पत्नी मुखियापन के बारे में बाइबल की सलाह मानें, तो उन्हें देखकर उनके बच्चे भी परमेश्वर के अधीन रहना सीखेंगे।
हमारी ज़िंदगी के हर पहलू से झलकना चाहिए कि हम परमेश्वर के अधीन रहते हैं
11 परमेश्वर के अधीन रहने का यह भी मतलब है कि हम “ऊँचे अधिकारियों” के बारे में सही सोच रखें, जिन्हें “परमेश्वर ने अपने अधीन अलग-अलग पद पर ठहराया है।” (रोमि. 13:1-7) मसीही, देश के कायदे-कानून माननेवाले नागरिक होते हैं, इसलिए वे अपना कर चुकाते हैं। इस तरह वे ‘जो सम्राट का है वह सम्राट को चुकाते हैं, मगर जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को।’ (मत्ती 22:21) इसके अलावा, पूरे इलाके में प्रचार करने के लिए ऐसे इंतज़ाम किए जाते हैं, जो डेटा सुरक्षा नियमों के मुताबिक होते हैं। हम ऐसे हर मामले में अधिकारियों के अधीन रहते हैं और उनकी आज्ञा मानते हैं, जिसमें यहोवा के कानून का उल्लंघन नहीं होता। इस वजह से हम जी-जान से प्रचार काम कर पाते हैं।—मर. 13:10; प्रेषि. 5:29.
12 हमारी ज़िंदगी के हर पहलू से झलकना चाहिए कि हम परमेश्वर के अधीन रहते हैं। हम विश्वास की आँखों से वह दिन देख सकते हैं, जब दुनिया का हर इंसान यहोवा परमेश्वर के अधीन होगा। (1 कुरिं. 15:27, 28) जो लोग खुशी से यहोवा की महान हुकूमत कबूल करते हैं और उसके अधीन रहते हैं, उन्हें बेशुमार आशीषें मिलेंगी और उन पर हमेशा यहोवा की मंज़ूरी रहेगी!