यीशु का जीवन और सेवकाई
अधिक शिक्षण से आशीर्वाद-प्राप्त
चेलों ने अभी अभी बीज बोनेवाले के दृष्टान्त की व्याख्या पायी है। लेकिन अब वे ज़्यादा सीखना चाहते हैं। “खेत के जंगली दाने का दृष्टान्त हमें समझा दे,” वे बिनती करते हैं।
चेलों का रवैया समुद्र तट पर बाक़ी के लोगों से कितना भिन्न है! दृष्टान्त की मात्र रूप-रेखा से संतुष्ट होकर, वे लोग दृष्टान्त के पीछे का सही मतलब सीखने की सच्ची इच्छा से रहित हैं। उस समुद्र-तटीय श्रोतागण और अपने जिज्ञासु चेलों में वैषम्य दिखलाते हुए, यीशु कहता है:
“जिस नाप से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जाएगा, और तुम को अधिक दिया जाएगा।” चेले यीशु को सच्ची दिलचस्पी और ध्यान नाप रहे हैं और इसलिए अधिक शिक्षण पाने से आशीर्वाद-प्राप्त किए जा रहे हैं। इस प्रकार, अपने चेलों के प्रश्न के उत्तर में, यीशु समझाता है:
“अच्छे बीज का बोनेवाला मनुष्य का पुत्र है। खेत संसार है, अच्छा बीज राज्य के सन्तान, और जंगली बीज दुष्ट के सन्तान हैं। जिस बैरी ने उन को बोया वह इब्लीस है। कटनी जगत का अन्त है और काटनेवाले स्वर्गदूत हैं।”
अपने दृष्टान्त की हर एक विशेषता की पहचान कराने के बाद, यीशु उसके परिणाम का विवरण देता है। इस रीति-व्यवस्था के अन्त में, वह कहता है, “काटनेवाले,” या स्वर्गदूत, जंगली बीज-जैसे नक़ली मसीहियों को “राज्य के” असली “सन्तान” से अलग करेंगे। “दुष्ट के सन्तान” फिर विनाश के लिए नियत होंगे, लेकिन परमेश्वर के राज्य के सन्तान, “धर्मी,” अपने पिता के राज्य में सूर्य की नाईं चमकेंगे।
उसके बाद यीशु अपने जिज्ञासु चेलों को तीन और दृष्टान्त देकर आशीर्वाद-प्राप्त करता है। पहले, वह कहता है: “स्वर्ग का राज्य खेत में छिपे हुए धन के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने पाकर छिपा दिया, और मारे आनन्द के जाकर और अपना सब कुछ बेचकर उस खेत को मोल लिया।”
“फिर,” वह आगे कहता है, “स्वर्ग का राज्य एक व्यापारी के समान है, जो अच्छे मोतियों की खोज में था। जब उसे एक बहुमूल्य मोती मिला तो उस ने जाकर अपना सब कुछ बेच डाला और उसे मोल ले लिया।”
खुद यीशु उस आदमी के जैसे है जिसे छिपा हुआ धन मिला और उस व्यापारी के जैसे है जिसे बहुमूल्य मोती मिलता है। स्वर्ग में एक सम्मानीय पद त्यागकर, एक अवर मानव बनने के लिए उसने मानो सब कुछ बेच डाला। फिर, पृथ्वी पर एक आदमी के रूप में, वह निन्दा और घृणित उत्पीड़न सहकर परमेश्वर के राज्य का शासक बनने के क़ाबिल साबित होता है।
यीशु के अनुगामियों के सामने भी चुनौती रखी गयी है कि वे या तो मसीह के साथ सह-शासक बनने या राज्य की पार्थीव प्रजा बनने का शानदार प्रतिफल हासिल करने के उद्देश्य से सब कुछ बेच डाले। क्या हम परमेश्वर के राज्य में हिस्सा लेना ज़िन्दगी में बाक़ी किसी भी चीज़ से ज़्यादा मूल्यवान, अमूल्य धन के समान या बहुमूल्य मोती के समान, समझेंगे?
आख़िर, यीशु “स्वर्ग के राज्य” की तुलना उस जाल से करता है जो हर प्रकार की मछलियाँ समेट लेता है। जब मछलियों को छाँट दिया जाता है, तब अनुपयुक्त मछलियाँ फेंक दिए जाते हैं पर अच्छी मछलियों को रखा जाता है। वैसे ही, यीशु कहता है, इस रीति-व्यवस्था के अन्त में होगा; स्वर्गदूत दुष्टों को सर्वनाश के लिए बचाकर, उन्हें धर्मियों से अलग करेंगे।
खुद यीशु अपने पहले चेलों को “मनुष्यों के पकड़नेवाले” बनने के लिए बुलाकर इस मछुवाही योजना शुरू करता है। स्वर्गदूतीय निगरानी में, यह मछुवाही कार्य सदियों से अब तक चलता है। आख़िर “जाल” को खींचने का समय भी आता है, जो पृथ्वी पर मसीही होने का दावा करनेवाले संगठनों का प्रतीक है।
हालाँकि अनुपयुक्त मछलियाँ विनाश में फेंक दिए जाते हैं, अच्छा है कि हम उन ‘अच्छी मछलियों’ में गिने जा सकते हैं जिन्हें रखा जाता है। ज़्यादा ज्ञान और समझ के लिए वही सच्ची इच्छा प्रदर्शित करके जो यीशु के चेलों ने प्रदर्शित की, हम न सिर्फ़ अधिक शिक्षण से बल्कि अनन्त जीवन की परमेश्वर की आशीष से आशीर्वाद-प्राप्त कियें जाएँगें। मत्ती १३:३६-५२; ४:१९; मरकुस ४:२४, २५.
◆ चेले समुद्र-तट पर की भीड़ से किस तरह भिन्न हैं?
◆ कौन या क्या बीज बोनेवाले, खेत, अच्छे बीज, दुश्मन, कटनी, और काटनेवालों को चित्रित करता है?
◆ यीशु ने कौनसे तीन और दृष्टान्त दिए, और हम उन से क्या सीख सकते हैं?