यीशु का जीवन और सेवकाई
मसीह की राज्य महिमा का पूर्वदर्शन
यीशु कफरनहूम फिलिप्पी जाते-जाते रास्ते में रुक गए हैं, और वह अपने प्रेरितों के साथ-साथ एक भीड़ को सिखा रहे हैं। वह उन से यह आश्चर्यजनक घोषणा करते हैं: “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो यहाँ खड़े हैं, उन में से कितने ऐसे हैं, कि जब तक मनुष्य के पुत्र को उसके राज्य में आते हुए न देख लेंगे, तब तक मृत्यु का स्वाद कभी न चखेंगे।”
‘यीशु का मतलब क्या हो सकता है?’ शिष्य अवश्य सोच रहे होंगे। क़रीब एक हफ़्ते बाद, यीशु पतरस, याकूब और यूहन्ना को अपने साथ ले जाते हैं और वे एक ऊँचे पहाड़ पर चले जाते हैं। संभवतः रात हो गयी है, इसलिए कि शिष्यों को नींद आ रही है। जब यीशु प्रार्थना कर रहे होते हैं, वह उनके सामने रूपान्तरित होते हैं। उनका चेहरा सूरज के जैसे चमकने लगता है, और उसके कपड़े ज्योति के जैसे उजले हो जाते हैं।
फिर, दो मानव-आकृतियाँ, जिनकी पहचान “मूसा और एलिय्याह” के तौर से की जाती है, प्रकट होती हैं और यीशु के साथ ‘उसके विदा होने की चर्चा करने लगते हैं, जो यरूशलेम में होनेवाला है।’ वह विदाई प्रत्यक्षतः यीशु की मृत्यु और उसके पश्चात् पुनरुत्थान के विषय में ज़िक्र है। इस प्रकार, इस बातचीत से यह साबित होता है कि उसकी अपमानजनक मौत एक ऐसी बात नहीं जिसे टालना चाहिए, जैसे कि पतरस ने चाहा था।
अब वे पूरी तरह से जाग गए हैं, और शिष्य ताज्जुब से देखते और सुनते हैं। हालाँकि यह एक दर्शन है, यह इतना वास्तविक लगता है कि पतरस यह कहकर इस दृश्य में हिस्सा लेने लगता है कि: “हे प्रभु, हमारा यहाँ रहना अच्छा है; इच्छा हो तो यहाँ तीन मण्डप बनाऊँ; एक तेरे लिए, एक मूसा के लिए, और एक एलिय्याह के लिए।”
जब पतरस बोल ही रहा है, एक उजला बादल उन्हें छा लेता है और बादल से एक आवाज़ निकलती है: “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं प्रसन्न हूँ: इस की सुनो।” इस आवाज़ को सुनते ही, शिष्य मुँह के बल गिर जाते हैं। लेकिन यीशु कहते हैं: “उठो; डरो मत।” जब वे ऐसा करते हैं, वे यीशु के अलावा और किसी को नहीं देखते।
अगले दिन पहाड़ से उतरते समय, यीशु आज्ञा देते हैं: “जब तक मनुष्य का पुत्र मरे हुओं में से न जी उठे, तब तक जो कुछ तुम ने देखा है किसी से न कहना।” दर्शन में एलिय्याह की उपस्थिति से शिष्यों के मन में एक सवाल उठता है। वे पूछते हैं, “फिर शास्त्री क्यों कहते हैं कि एलिय्याह का पहले आना अवश्य है?”
“एलिय्याह आ चुका,” यीशु उत्तर देते हैं, “और उन्होंने उसे नहीं पहचाना।” परन्तु, यीशु बपतिस्मा देनेवाले यूहन्ना के बारे में बोल रहे थे, जिसने एलिय्याह के समान भूमिका पूरा की। यूहन्ना ने मसीह के आने के लिए मार्ग तैयार किया, उसी तरह जैसे एलिय्याह ने एलिशा के लिए किया।
यह दर्शन दोनों यीशु और शिष्यों के लिए कितना शक्तिप्रद साबित होता है! यह दर्शन, मानो, मसीह की राज्य महिमा का पूर्वदर्शन है। शिष्यों ने, मानो, “मनुष्य के पुत्र को राज्य में आते हुए” देखा, उसी तरह जैसे यीशु ने एक हफ़्ते पहले वादा किया था। यीशु की मृत्यु के बाद, पतरस ने लिखा कि उन्होंने ‘खुद उसके प्रताप को देखा था जब वे उसके साथ पवित्र पहाड़ पर थे।’
फरीसियों ने यीशु से एक चिह्न माँगा था, यह साबित करने के लिए कि वह वही था जिसके बारे में शास्त्रों में प्रतिज्ञा की गयी थी कि यह परमेश्वर का चुना हुआ राजा होगा। उन्हें ऐसा कोई चिह्न नहीं दिया गया। दूसरी ओर, यीशु के आत्मीय शिष्यों को राज्य भविष्यवाणियों की पुष्ठीकरण के रूप में यीशु के रूपान्तरण को देखने दिया जाता है। इस प्रकार, पतरस ने बाद में लिखा: “फलतः हमारे पास जो भविष्यद्वक्ताओं के वचन हैं, वे इस घटना से दृढ़ ठहराए जाते हैं।” मत्ती १६:२८-१७:१३; मरकुस ९:१-१३; लूका ९:२७-३७; २ पतरस १:१६-१९, न्यू.व.
◆ कुछ लोगों ने मृत्यु चखने से पहले मसीह को अपने राज्य में आते हुए किस तरह देखा?
◆ उस दर्शन में, यीशु के साथ मूसा और एलिय्याह ने किस विषय में बातचीत की?
◆ यह दर्शन शिष्यों के लिए एक शक्तिप्रद सहायक क्यों था?
[पेज 9 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]