यहोवा मेरा सहायक है
“साहसी बनो और कहो: ‘यहोवा मेरा सहायक है; मैं न डरूँगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?’”—इब्रानियों १३:६, न्यू. व.
१, २. (अ) दोनों भजनहारा और प्रेरित पौलुस ने यहोवा में कौन-सा विश्वास प्रकट किया? (ब) कौन-से सवाल उठते हैं?
यहोवा परमेश्वर सहायता का एक विश्वसनीय स्रोत है। भजनहारा यह बात अनुभव से जानता था और इसलिए कह सकता था: “यहोवा मेरी ओर है, मैं न डरुँगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?” (भजन ११८:६) जब पौलुस ने इब्रानी मसीहियों के लिए अपना दैवी रूप से प्रेरित पत्र लिखा तब समान भावनाएं व्यक्त की गयी थीं।
२ स्पष्टतः, पौलुस युनानी सेप्टुआजेन्ट से भजनहारा के शब्दों का उद्धरण करते हुए अपने इब्रानी सह-विश्वासियों से कहता हे: “साहसी बनो और कहो: ‘यहोवा मेरा सहायक है; मैं न डरुगाँ। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?’” (इब्रानियों १३:६, न्यू.व.) प्रेरित ने इस प्रकार क्यों लिखा? और इस सन्दर्भ से हम क्या सीख सकते हैं?
यहोवा की सहायता की आवश्यकता
३. (अ) किन किन परिस्थितियों में यहोवा पौलुस का सहायक सिद्ध हुआ? (ब) इब्रानी मसीहियों को विशेष रूप से यहोवा की सहायता की क्या आवश्यकता थी?
३ पौलुस एक आत्मत्यागी गवाह था जिसके पास यह प्रमाण था कि यहोवा उसका सहायक था। कई सताहटों के समय परमेश्वर ने प्रेरित की मदद की थी। पौलुस को गिरफ्तार किया गया था, पीटा गया था, और पत्थर से मारा गया था। एक मसीही सेवक के रूप में उनकी यात्राओं मे उन्होंने पोतभंग और कई अन्य खतरों का अनुभव किया था। वह थकाऊ काम, विनिद्र रातों, भूख, प्यास, और नंगापन तक से अच्छी तरह परिचित था। वह कहता है, “और और बातों को छोड़कर जिन का वर्णन मैं नहीं करता सब कलीसियाओं की चिन्ता प्रतिदिन मुझे दबाती है।” (२ कुरिन्थियों ११:२४-२९) पौलुस को इब्रानी मसीहियों के लिए इस प्रकार की चिन्ता थी। यरूशलेम के दिन गिने गए थे, और यहूदिया में के प्रेरित के यहूदी भाई और बहन विश्वास की बड़ी परीक्षाओं का सामना करनेवाले थे। (दानियेल ९:२४-२७; लूका २१:५-२४) इसलिए उन्हें यहोवा को उनके सहायक के रूप में आवश्यक था।
४. इब्रानियों के लिए लिखी गयी चिट्ठी में कौन-सा बुनियादी प्रभोधन प्रस्तुत किया गया है?
४ इब्रानी मसीहियों को अपने पत्र की शुरुआत करते हुए, पौलुस ने दिखाया कि दैवी मदद केवल तब अनुभव की जाएगी अगर वे परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह की ओर ध्यान देगें। (इब्रानियों १:१, २) उस पत्र में इस मुद्दे को विकसित किया गया था। उदाहरणार्थ, इस सलाह को प्रोत्साहित करने के लिए, प्रेरित ने उसके पाठकों को स्मरण दिलाया कि इस्राएलियों को विराने में आज्ञाभंग के कारण सज़ा दी गयी थी। तो फिर इब्रानी मसीही आसानी से सज़ा से बच नहीं निकलेंगे अगर वे उसका अस्वीकार करेंगे जो परमेश्वर उनसे, यीशु के द्वारा, कहता है और मसीह के बलिदान के द्वारा मूसा का जो नियम रद्द किया गया था उससे लगे रहने के द्वारा धर्मत्यागी बन जाएँगे!—इब्रानियों १२:२४-२७.
भातृत्व प्रेम क्रिया में
५. (अ) इब्रानियों के लिखे गए उस पत्र में कौन-सा अन्य सलाह दिया गया? (ब) पौलुस ने प्रेम के बारे में क्या कहा?
५ इब्रनियों के लिए लिखी गयी यह चिट्ठी ने स्वर्गीय राज्य के भावी उत्तराधिकारियों को यह सालाह दी कि कैसे वे उनका आदर्श, यीशु मसीह, का अनुकरण कर सकते हैं, ‘भक्ति और भय सहित परमेश्वर की आराधना कर सकेंगे,’ और यहोवा को उनके सहायक के रूप में कैसे बना सकेंगे। (इब्रानियों १२:१-४, २८, २९) पौलुस ने अपने सह-विश्वासियों को नियमित रूप से मिलने के लिए उकसाया और ‘एक दूसरे को प्रेम और भले कामों में उस्काते रहने’ के लिए प्रोत्साहित किया। (इब्रानियों १०: २४, २५) अब उसने सलाह दिया: “भाईचारे की प्रीति बनी रहे।”—इब्रानियों १३:१.
६. किस अर्थ में यीशु ने उसके शिष्यों को प्रेम के सम्बन्ध में एक “नयी आज्ञा” दी?
६ यीशु अपने अनुयायियों से ऐसे प्रेम की अपेक्षा करता क्योंकि उसने कहा: “मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो, जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दुसरे से प्रेम रखो। यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्ना १३:३४, ३५) यह एक “नई आज्ञा” इसलिए थी क्योंकि उसमें मूसा के नियम से भी अधिक बात अन्तर्गत थी जो यह थी: “एक दूसरे [या पड़ोसी] से अपने ही समान प्रेम रखना।” (लैव्यव्यवस्था १९:१८) यह “नई आज्ञा” इससे अधिक की अपेक्षा की, कि एक व्यक्ति अपने पड़ोसी से वैसे प्रेम करें जैसे कि वह अपने आप से प्रेम करता है। इसका अर्थ था कि किसी के लिए इतना आत्म-त्यगी प्रेम होना कि उसके लिए अपनी जान भी दे सकें। यीशु का जीवन और मरण इस तरह के प्रेम का उदाहरण था। तरतूलियन ने इस पहचान देनेवाले चिन्ह की ओर संकेत किया जब उन्होंने मसीहियों के बारे में सांसारिक लोगों के विचारों को उद्धरित किया और कहा: “‘देखो’, वे कहते हैं, ‘वे एक दूसरे से कैसे प्रेम करते हैं . . . और एक दूसरे के लिए मरने के लिए कितने तैयार हैं।’”—अपॉलॉजि, अध्याय XXXIX, ७.
७. सा.यू. पन्तेकुस्त ३३ के बाद कैसे भ्रातृत्व प्रेम प्रत्यक्ष हो गया?
७ सामान्य युग पिन्तकुस्त ३३ के बाद यीशु के शिष्यों के बीच भातृत्व प्रेम प्रत्यक्ष था। ताकि दूर देशों के कई बपतिस्मा पाए हुए विश्वासियों को यरूशलेम में उनका वास बढ़ा सके और यीशु के द्वारा परमेश्वर का, उद्धार के प्रबन्ध के बारें में ज़्यादा सीख सके, “और वे सब विश्वास करनेवाले इकट्ठे रहते थे, और उन की सब वस्तुएं साझे की थी। और वे अपनी अपनी सम्पत्ति और सामान बेच बेचकर जैसी जिस की आवश्यकता होती थी बांट दिया करते थे।”—प्रेरित २:४३-४७; ४:३२-३७.
८. क्या प्रमाण है कि यहोवा के गवाहों के बीच में भ्रातृव्त प्रेम है?
८ ऐसा भातृत्व प्रम हमारे समय में यहोवा के गवाहों के बीच मौजूद है। उदाहरणार्थ, दूसरे विश्व युद्ध के बाद, ऐसा प्रेम ने परमेश्वर के लोगों को एक ढ़ाई वर्षीय राहत कार्य सम्पादित करने के लिए प्रेरित किया। कॅनडा, स्वीडन, स्वीट्ज़रलैण्ड, और अमरीका के संयुक्त राज्य और अन्य देशों मे के गवाहों ने युद्ध से ग्रस्त ऑस्ट्रीय, बेलजियम, बलगेरिया, चीन, चेकोस्लवाकिया, डेन्मार्क, इंग्लैण्ड, फिनलैण्ड, फ्रान्स, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, इटली, नेदरलैण्ड, नॉर्वे, फिलिप्पीन्स, पोलण्ड, और रोमेनिया जैसे राष्ट्रों के सह-विश्वासियों को भोजन खरीदने के लिए पैसा और वस्त्रों का दान किया। यह केवल एक उदाहरण है, क्योंकि हाल ही में यहोवा के सेवकों ने परू और मेक्सिको के भूकम्प पीड़ितों, जमाइका के तूफानों से पीड़ित और अन्य जगहों के, समान विपत्तियों से पीड़ित मसीहियों की ओर ऐसा प्रेम दिखाया। यह और कई अन्य तरीकों में यहोवा के लोगों ने ‘भाईचारे की प्रीति बनायी रखी है।’
सत्कारशील बनो
९. (अ) इब्रानियों १३:२ में किस परमेश्वरीय गुण का उल्लेख किया गया है? (ब) किस प्रकार कुछों ने अनजाने में ‘स्वर्गदूतों की पहुनाई’ की?
९ पौलुस ने फिर एक अन्य गुण का उल्लेख किया जो मसीह का अनुकरण करनवाले, ‘परमेश्वरीय भक्ति और भय के साथ पवित्र सेवा करना’ और यहोवा को उनके सहायक के रूप में मानना, यह प्रदर्शित करते है। उन्होंने उसकाया: “पहुनाई करना न भूलना, क्योंकि इस के द्वारा कितनों ने अनजाने स्वर्गदूतों की पहुनाई की है।” (इब्रनियों १३:२) किस ने अनजाने में “स्वर्गदूतों की पहुनाई” की? कुलपिता इब्राहिम तीन स्वर्गदूतों का आतिथेय बना। (उत्पत्ति १८:१-२२) उन में से दो चले गए और उनका भतीजा लूत ने ठीक इन्हीं अजनबियों को सदोम में अपने घर में आमन्त्रित किया। लेकिन, सोने से पहले लूत के घर को “जवानों से लेकर बूढ़ों तक” एक भीड़ ने घेर लिया। उन्होंने यह माँग की कि लूत अपने मेहमानों को अनैतिक उद्देश्यों के लिए सौंप दें, लेकिन उन्होंने साफ इनकार किया। यद्यपि लूत यह पहले जानता नहीं था, उन्होंने स्वर्गदूतों की पहुनाई की थी, जिन्होंने फिर उन्हें और उनकी बेटियों को मृत्यु से बच निकलने के लिए मदद की जब ‘यहोवा ने स्वर्ग से सदोम और अमोराह पर आग और गन्धक बरसाया।’—उत्पत्ति १९:१-२६.
१०. सत्कारशील मसीही कौन-से आशिषों का आनन्द उठाते हैं?
१० सत्कारशील मसीही बहुत आशिषों का आनन्द उठाते हैं। वे उनके महमानों द्वारा बताये गए प्रोत्साहनदायक अनुभवों को सुनते हैं और उनके आध्यात्मिक रूप से लाभप्रद साहचर्य से फायदा पाते हैं। सत्कारशील रूप से सह-विश्वासियों का “जो परदेशियाँ भी थे” स्वीकार करने के कारण गयुस की प्रशंसा की गयी थी, जैसे कि आज कई यहोवा के गवाह यात्राशील ओवरसियरों की पहुनाई करते हैं। (३ यूहन्ना १, ५-८) सत्कारशील होना एक प्राचीन की नियुक्ति के लिए एक योग्यता भी है। (१ तीमुथियूस ३:२; तीतुस १:७, ८) यह भी उल्लेखनिय है कि यीशु ने उन भेड़ समान व्यक्तियों के लिए राज्य आशिषों की प्रतिज्ञा की है जिन्होंने सत्कारशील रूप से उसके अभिषिक्त भाइयों की भलाई की थी।—मत्ती २५:३४-४०.
उत्पीड़ित किए जानेवालों का स्मरण करो
११. इब्रानियों १३:३ की सलाह क्यों उचित था?
११ वे जो यहोवा की मदद और ‘परमेश्वरीय भक्ति और भय के साथ पवित्र सेवा करना’ चाहते हैं उन सहविश्वासियों को नहीं भूलना है जो दुःख भोग रहे हैं। पौलुस ने उन मसीहियों द्वारा अनुभव किए गए कष्टों को समझता था जिनके साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा था। कुछ समय पूर्व, शिष्य उत्पीड़न के कारण तित्तर बित्तर किए गए थे, और उसके सहकर्मी तीमुथियूस को हाल ही में कैदखाने से रिहा किया गया था। (इब्रानियों १३:२३; प्रेरितों के काम ११:१९-२१) मसीही मिशनरी भी नयी मण्डलियाँ को स्थापित कर रहे थे या जो थे उन्हें आध्यात्मिक रूप से प्रोत्साहित करने के लिए यात्रा कर रहे थे। इसलिए कि कई भाई उस वक्त गैर-यहूदी थे, कुछ इब्रानी मसीही उन के बारे में पर्याप्त रूप से चिन्तित नहीं थे। इसलिए उस वक्त यह उचित था: “कैदियों की ऐसी सुधि लो, कि मानो उन के साथ तुम भी कैद हो; और जिन के साथ बुरा बर्ताव किया जाता है, उन की भी यह यमझकर सुधि लिया करो, कि हमारी भी देह है।”—इब्रनियों १३:३.
१२. उत्पीड़ित सह विश्वासियों पर विचार करते हुए हम इस सलाह को कैसे लागू करेंगे?
१२ इब्रानियों ने “कैदियों के दुख में भी दुखी हुए” लेकिन उन्हें उन विश्वासी सह विश्वासियों को भूलना नहीं था, चाहे वे यहूदी हो या गैर-यहूदी हो। (इब्रानियों १०:३४) लेकिन हमारे बारे में क्या? हम कैसे दिखा सकेंगे कि हम दुख उठानेवाले मसीहियों का स्मरण कर रहे हैं? कुछ घटनाओं में हमारा सरकारी अधिकारियों से चिट्ठी के द्वारा निवेदन करना उचित होगा, इस उद्देश्य से कि उन देशों में जहाँ यह राज्य प्रचार कार्य बन्ध किया गया है गिरफ्तार किये गये सह विश्वासियों की मदद की जा सके। विशेष रूप से हमें उन्हें हमारी प्रार्थनाओं मे याद करनी चाहिए अगर सम्भव हो तो उनका नाम से उल्लेख करने के द्वारा। उनका उत्पीड़न हम पर गहरी रीति से असर करता है, और यहोवा उनके पक्ष में हमारी प्रार्थनाएं सुनता है। (भजन ६५:२; इफीसियों ६:१७-२०) जब कि हम वही कैदखाने में नहीं है, यह ऐसा है मानो हम उन से बँधे हुए हैं और प्रोत्साहन और मदद प्रदान कर सकते हैं। आत्मा से अभिषिक्त मसीही अवश्य उन अभिषिक्त व्यक्तियों से सहानुभूति रखते हैं जिनके साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है। (१ कुरन्थियों १२:१९-२६ से तुलना करें) उन्हें, उनके उन साथियों से भी हमदर्दी है जिनकी पार्थिव आशाएं हैं और जो उत्पीड़कों के हाथों कई तरह के दुर्व्यवहार सहन कर रहे हैं। ऐसी सहानुभूति उचित है, क्योंकि हम सब एकही मानवीय शरीर में हैं और यहोवा के गवाहों के रूप में दुःख और उत्पीड़न सहने की सम्भावना है।—१ पतरस ५:६-११.
विवाह आदरनीय होना चाहिए
१३. विशेष रूप से, पौलुस ने इब्रानियों १३:४ में क्या कहा?
१३ मसीह के उदाहरण का अनुकरण करना और ‘परमेश्वरीय भय और भक्ति के साथ यहोवा की पवित्र सेवा करना’ हमें कई तरहों से दूसरों की ओर हमारी चिन्ता पर प्रभाव डालना चाहिए। यह कहने के बाद कि “हमारी भी देह” है पौलुस ने एक ऐसे सम्बन्ध का उल्लेख किया जिसका एक देही, या शारीरिक पहलु है जो दूसरों को सही सम्मान देने का अवसर प्रदान किया। (इब्रानियों १३:३) वह इब्रानी मसीहियों को यह प्रोत्साहन दिया: “विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और बिछौना निष्कलंक रहे; क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा।” (इब्रानियों १३:४) यह सलाह कितना उचित है क्योंकि रोमी साम्राज्य में लैंगिक अनैतिकता प्रचलित था! आधुनिक समय के मसीहियों को भी संसार के गिरे हुए नैतिक स्तरों को देखकर और इस बात को भी मन में रखते हुए कि हर साल लैंगिक अनैतिकता के कारण मण्डली से हज़ारों को बहिष्कृत किया जा रहा है, इन शब्दों की ओर ध्यान देना आवश्यक है।
१४. आप क्यों कहेंगे कि विवाह आदरनीय है?
१४ पौलुस के समय में विवाह की ओर उँचा सम्मान न देनेवाले एस्सीन लोग थे। वे साधारणतः अविवाहित थे, जैसे कि आज के कुछ पादरी गुटों में हैं जो गलत रूप से अविवाहित जीवन को विवाहित जीवन से भी अधिक पवित्र मानते हैं। किन्तु पौलुस ने इब्रानी मसीहियों से जो कहा, उस में उन्होंने यह स्पष्ट रूप से सूचित किया कि विवाह आदरणीय है। उसके लिए उच्च सम्मान प्रत्यक्ष था जब नओमी ने अपनी विधवा बहुओं, रुत और ओर्पा, के लिए यह इच्छा व्यक्त की: “यहोवा ऐसा करें कि तुम फिर पति करके उनके घरों में विश्राम पाओ।” (रूत १:९) कहीं और, पौलुस खुद ने यह सूचित किया कि ‘आनेवाले समयों में कितने विश्वास से बहक जाएंगे, और ब्याह करने से रोकेंगे।’—१ तीमुथियूस ४:१-५.
१५. इब्रानियों १३:५ में परगामियों ओर व्यभिचारियों के रूप में किन्हें निर्दिष्ट किया गया, और परमेश्वर उनका कैसे न्याय करेगा?
१५ वे इब्रानी जो किसी समय नियम के अधीन थे लेकिन अब नये वाचा में लिए गए थे यह आज्ञा जानते थे: “तू व्यभिचार न करना।” (निर्गमन २०:१४) लेकिन वे एक अनैतिक संसार में थे और उन्हें इस चेतावनी की आवश्यकता थी: “विवाह . . . का बिछौना निष्कलंक रहे, क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा।” व्यभिचारी (अंग्रेजी में फॉर्निकेटर) में वे भी हैं जो अविवाहित होने पर भी लैंगिक सम्बन्ध में भाग ले रहे हैं। परगामी (अंग्रेजी में अडल्टरर) विशेष रूप से वे हैं जो विवाहित हैं और जो उनसे सम्बन्ध रखते हैं जो उनके साथी नहीं है जिसके द्वारा वे अपने ही विवाह के बिछौने को अपवित्र कर रहे हैं। इसलिए कि परगामन और व्यभिचार के पश्चातापहीन हिस्सेदार परमेश्वर के प्रतिकूल न्याय के योग्य हैं, उन्हें न स्वर्गीय नयी यरूशलेम में और ना ही राज्य शासन के नीचे पृथ्वी पर अनन्त जीवन का आनन्द लेने के लिए प्रवेश दिया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य २१:१, २, ८; १ कुरिन्थियों ६:९, १०) विवाह के बिछौने को अपवित्र न करने की यह चेतावनी विवाहित मसीहियों को भी उनके साथियों के साथ लैंगिक आचरण को अपवित्र नहीं करने देगी, यद्यपि विवाह के अन्दर उचित शारीरिक घनिष्ठता में कोई अशुद्धता नहीं है।—द वॉचटावर, मार्च १५, १९८३, पृष्ठ २७-३१ देखें।
वर्तमान वस्तुओं से सतुंष्ट
१६, १७. इब्रानियों १३:५ में क्या कहा गया था, और इब्रानियों को इस सलाह की क्या आवश्यकता थी?
१६ हम तुष्टि पाएंगे अगर हम हमारे आदर्श का अनुकरण करेंगे और ‘परमेश्वरीय भक्ति और भय के साथ पवित्र सेवा करेंगे’ इस दृढ़ विश्वास के साथ कि यहोवा हमारा सहायक है। भौतिक लक्ष्यों में गहरी रीति से सम्बद्ध होना ऐसा एक प्रलोभन हो सकता है। लेकिन मसीहियों को इसके सामने नहीं झुक जाना है। इब्रानियों से यह कहा गया था: “तुम्हारा स्वभाव लोभरहित हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर सन्तोष करो; क्योंकि उसने आप ही कहा है, मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा।” (इब्रानियों १३:५) इब्रानियों को इस सलाह की क्या ज़रूरत थी?
१७ शायद इब्रानी पैसे के बारे में आवश्यकता से अधिक चिन्तित थे क्योंकि वे क्लॉडियस कैसर के समय के “बड़े अकाल” का स्मरण कर रहे थे। (सा. यू.४१-५४)। यह अकाल इतना बुरा था कि यहूदिया के उनके भाइयों के लिए अन्य जगहों के मसीहियों ने राहत सामग्रियों का प्रबन्ध किया। (प्रेरित. ११:२८, २९) यहूदी इतिहासकार जोसीफस के अनुसार, यह अकाल तीन या उससे अधिक वर्षों तक रहा जो यहूदिया और यरूशलेम में कष्टकर गरीबी का कारण बन गया।—अन्टीक्यूटिस ऑफ द ज्यूस, XX, २, ५; ५, २.
१८. इब्रानियों १३:५ में दी गयी सलाह हमारे लिए कौन-सी सीख देती है?
१८ क्या यहाँ हमारे लिए कोई सीख है? जी हाँ, इसके बावजूद कि हम कितने भी गरीब हैं, हम ने पैसों से प्रेम नहीं करना चाहिए या उसके बारे में आवश्यकता से अधिक चिन्तित नहीं होनी चाहिए। भौतिक सुरक्षा के बारे में चिन्तित होने के बजाय, शायद लालची भी बनने के द्वारा, हमें “वर्तमान वस्तुओं से सतुंष्ट” होना चाहिए। यीशु ने कहा: “इसलिए पहिले तुम उसके राज्य और (परमेश्वर के) धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।” (मत्ती ६:२५-३४) उसने यह भी दिखाया कि हमें इस पर ध्यान देना चाहिए कि हम “परमेश्वर की दृष्टी में धनी” बनें क्योंकि ‘किसी का जीवन उसकी संपत्ति की बहुतायत से नहीं होता।’ (लूका १२:१३-२१) अगर पैसों की ओर हमारा प्रेम हमारी आध्यात्मिकता को धमकी दे रहा है तो फिर हम इब्रानियों के लिए पौलुस की सलाह का पालन करेंगे और यह भी याद रखेंगे कि “सन्तोष सहित भक्ति बड़ी कमाई है”—१ तीमुथियूस ६:६-८.
परमेश्वर में भरोसा रखो
१९. यहोशू को परमेश्वर ने कौन-सा आश्वासन दिया, ओर यह हम पर कैसे प्रभाव करना चाहिए?
१९ यीशु के शिष्यों के रूप में जो ‘परमेश्वरीय भक्ति और भय के साथ पवित्र सेवा करना’ चाहते हैं, हमने हमारा भरोसा पैसों में नही बल्कि हमारे स्वर्गीय पिता में रखना चाहिए, जिसकी सहायता अत्यवश्यक है। चाहे हमें जो भी समस्याओं का सामना करना पड़ें हम उसके इस आश्वासन को स्मरण करेंगे: “मैं तुझे कभी न छोड़ूगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा।” (इब्रानियों १३:५) यहाँ पौलुस ने यहोशू से कहे परमेश्वर के शब्दों की ओर संकेत करता है: “न तो मैं तुझे धोखा दूंगा, और न तुझ को छोड़ूगा।” (यहोशू १:५; व्यवस्थाविवरण ३१:६, ८ से तुलना करें।) यहोवा ने यहोशु को कभी त्याग नहीं दिया और वह हमें भी नहीं छोड़ेगा अगर हम उस पर हमारा भरोसा रखेंगे।
२०. (अ) १९९० का वार्षिक वचन क्या है? (ब) बिना भय से हम ने क्या करते रहना चाहिए?
२० परमेश्वर की अनन्त सहायता पर, आनेवाले महिनों मे यहोवा के गवाहों मे विशेष बल दिया जाएगा, क्योंकि उनका १९९० वार्षिक वचन कहता है: “साहसी बनो और कहो: ‘यहोवा मेरा सहायक है।’” ये शब्द इब्रानियों १३:६ में पाए गए हैं, जहाँ पौलुस ने भजनहारे का उद्धरण किया और इब्रानियों से कहा: “ताकि हम साहसी होकर कह सकते हैं: ‘यहोवा मेरा सहायक है; मैं न ड़रूँगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?’” (भजन ११८:६) उत्पीड़ित किए जाने पर भी हम ड़रेंगे नही क्योंकि मानव उससे अधिक नहीं कर सकता जिससे अधिक परमेश्वर अनुमति नहीं देता। (भजन २७:१) अगर हमें खराई रखनेवालों के रूप में मरना भी पड़े, हमारे पास पुनरूत्थान की आशा है। (प्रेरितों के काम २४:१५) इसलिए चलो हम इस दृढ़ विश्वास के साथ कि यहोवा हमारा सहायक है हम ‘परमेश्वरीय भक्ति और भय के साथ पवित्र सेवा करने’ में हमारे आदर्श का अनुकरण करते रहें।
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ इब्रानी मसीहियों को विशेष रूप से परमेश्वर की सहायता क्यों ज़रूरी था?
◻ यहोवा के लोगों ने कैसे ‘उनके भ्रातृत्व प्रेम को बने रहने दिया’?
◻ सत्कारशील क्यों बनना है?
◻ यह दिखाने के लिए कि हम उन सह विश्वासियों की ओर, जिनके साथ दुर्व्यवहार किया गया है, याद करते हैं, क्या कर सकते हैं?
◻ विवाह को आदरनीय क्यों रखना चाहिए?