बपतिस्मा पाए हुए मसीहियों के रूप में ईश्वरीय भक्ति का पीछा करो
“पर हे परमेश्वर के जन, . . . धार्मिकता, ईश्वरीय भक्ति का पीछा कर।”—१ तीमुथियुस ६:११, न्यू.व.
१. आपकी ज़िन्दगी का सबसे महत्त्वपूर्ण दिन कौनसा है, इस प्रश्न का उत्तर आप कैसे देंगे? आप यह उत्तर क्यों दे रहे हैं?
आपकी ज़िन्दगी का सब से महत्त्वपूर्ण दिन कौनसा है? अगर आप बपतिस्मा पाए हुए यहोवा के एक गवाह हैं तो आप बेशक यह जवाब देंगे, ‘अजी, जिस दिन मैंने बपतिस्मा लिया!’ निश्चय ही, बपतिस्मा आपके जीवन का एक सबसे महत्त्वपूर्ण क़दम है। यह उस विषय का एक बाहरी प्रतीक है कि आपने यहोवा की ओर उसकी इच्छा करने के लिए एक सम्पूर्ण और स्पष्ट समर्पण किया है। आपका बपतिस्मा वह तिथि सूचित करता है, जब आपको सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर, यहोवा के एक सेवक के रूप में ठहराया गया था।
२. (अ) उदाहरण द्वारा यह कैसे चित्रित किया जा सकेगा कि बपतिस्मा मसीही जीवन में आपका आख़री कदम नहीं? (ब) बपतिस्मा लेने से पहले आपने कौनसे महत्त्वपूर्ण प्राथमिक क़दम लिए?
२ किन्तु क्या बपतिस्मा आपके मसीही मार्ग का आख़री क़दम है? बिल्कुल नहीं! उदाहरण के लिए: कई देशों में एक वैवाहिक समारोह, योजना और तैयारी (और साधारणतः प्रेमालाप) की एक कालावधि की समाप्ति सूचित करता है। उसी वक्त यह एक दूसरे के साथ एक विवाहित दम्पती के रूप में ज़िन्दगी की शुरुआत सूचित करता है। वैसी ही, आपका बपतिस्मा तैयारी की एक कालावधि की पराकाष्ठा है, जिसके दौरान आपने कई महत्त्वपूर्ण प्राथमिक क़दम लिए थे। आपने परमेश्वर और मसीह के बारे में ज्ञान प्राप्त किया। (यूहन्ना १७:३) आप यहोवा में अपने सच्चे परमेश्वर के रूप में, मसीह में अपने उद्धारक के रूप में, और बाइबल में परमेश्वर के वचन के रूप में विश्वास करने लगे। (प्रेरितों के काम ४:१२; १ थिस्सलुनीकियों २:१३; इब्रानियों ११:६) अपने भूतपूर्व जीवन-क्रम पर पश्चाताप करने और एक धार्मिक मार्ग में प्रवेश करने के द्वारा आपने वह विश्वास प्रदर्शित किया। (प्रेरितों के काम ३:१९) आपने फिर यहोवा की इच्छा करने के लक्ष्य से अपने आपको उसके लिए समर्पित करने का निर्णय लिया। (मत्ती १६:२४) अन्त में, आपको बपतिस्मा दिया गया।—मत्ती २८:१९, २०.
३. (अ) हम यह कैसे प्रदर्शित कर सकते हैं कि हमारा बपतिस्मा परमेश्वर के लिए समर्पित सेवा के एक जीवन की शुरुआत सूचित करता है? (ब) कौनसे प्रश्न उठते हैं, और इनके उत्तर में हमें बहुत रुचि क्यों होनी चाहिए?
३ किन्तु, आपका बपतिस्मा परमेश्वर के लिए समर्पित, पवित्र सेवा की एक ज़िन्दगी का अन्त नहीं बल्कि शुरुआत है। जैसे कि एक बाइबल विद्वान ने बताया, मसीही जीवन ‘एक प्राथमिक लहर’ नहीं होनी चाहिए, ‘जिसके बाद चिरकालिक अक्रियता’ हो। तो फिर आप यह अपने विषय में कैसे प्रदर्शित कर सकते हैं, कि आपका बपतिस्मा केवल एक ‘प्राथमिक लहर’ सूचित नहीं करता? आप ईश्वरीय भक्ति के एक आजीवन मार्ग का पीछा करने के द्वारा यह कर सकते हैं। यह ईश्वरीय भक्ति क्या है? उसका पीछा करना क्यों ज़रूरी है? आप अपने जीवन में इसे अधिक पूर्ण रूप से कैसे विकसित कर सकेंगे? अगर हमें यहोवा के आनेवाले न्याय के दिन से जीवित निकलना हो, तो हमें इनके जवाबों में काफ़ी रुचि होनी चाहिए, क्योंकि हमें ऐसे लोग बनना है जिनकी पहचान “ईश्वरीय भक्ति के कार्यों” के द्वारा की जाती है।—२ पतरस ३:११, १२, न्यू.व।
ईश्वरीय भक्ति का अर्थ
४. पौलुस ने तीमुथियुस को क्या करने की सलाह दी, और उस वक्त तीमुथियुस के बारे में क्या सच था?
४ सामान्य युग ६१ से ६४ के बीच किसी वक्त, प्रेरित पौलुस ने मसीही शिष्य तीमुथियुस को अपनी पहली प्रेरित चिट्ठी लिखी। उन ख़तरों का वर्णन करने के बाद, जो धन से प्रेम रखने के कारण उत्पन्न हो सकते हैं, पौलुस ने लिखा: “पर हे परमेश्वर के जन, तू इन बातों से भाग। और ईश्वरीय भक्ति . . . का पीछा कर।” (१ तीमुथियुस ६:९-११, न्यू.व.) दिलचस्पी की बात यह है, कि उस वक्त तीमुथियुस की उमर ३० से ३५ के बीच थी। उसने पौलुस के साथ व्यापक रूप से यात्रा की थी और उसे मण्डलियों में अध्यक्ष और सहायक सेवक नियुक्त करने का अधिकार दिया गया था। (प्रेरितों के काम १६:३; १ तीमुथियुस ५:२२) फिर भी, पौलुस ने इस समर्पित और बपतिस्मा पाए हुए, प्रौढ़ मसीही पुरुष को ईश्वरीय भक्ति का पीछा करने की सलाह दी।
५. “ईश्वरीय भक्ति,” इस अभिव्यक्ति का अर्थ क्या है?
५ “ईश्वरीय भक्ति,” इस अभिव्यक्ति से पौलुस का क्या मतलब था? मूल यूनानी शब्द यू·सेʹबि·या का शाब्दिक भाषान्तर “अच्छी श्रद्धा रखना” है। उसके अर्थ के बारे में हम पढ़ते हैं: “समसामयिक अभिलेखों में यह शब्द यूसेबिया कभी-कभी एक ऐसे भावार्थ में पाया जाता है, जो व्यक्तिगत धार्मिक भक्ति सूचित करता है . . . किन्तु रोमी कालावधि के लोकप्रचलित यूनानी भाषा में उसका अधिक सामान्य अर्थ ‘वफ़ादारी’ था। . . . मसीहियों के लिए यूसेबिया परमेश्वर की ओर उनकी भक्ति का सर्वश्रेष्ठ प्रकार है। (नायजेल टर्नर द्वारा लिखित, क्रिस्चियन वर्डस्) इसलिए जैसे शास्त्रों में उपयोग किया गया है, “ईश्वरीय भक्ति,” यह अभिव्यक्ति, यहोवा परमेश्वर की ओर व्यक्तिगत रूप से वफ़ादारी के साथ-साथ श्रद्धा या भक्ति सूचित करती है।
६. एक मसीही अपनी ईश्वरीय भक्ति का प्रमाण कैसे देता है?
६ किन्तु, यह ईश्वरीय भक्ति केवल एक श्रद्धास्पद भावना नहीं है। जैसे “विश्वास कर्म बिना मरा हुआ है,” वैसे ही ईश्वरीय भक्ति का हमारी ज़िन्दगी में अभिव्यक्त होना ज़रूरी है। (याकूब २:२६) न्यू टेस्टामेन्ट वर्डस् में विलियम बार्कले ने लिखा: “[यू·सेʹबि·या और सम्बन्धित शब्द] न केवल भय और श्रद्धा व्यक्त करते हैं, बल्कि वे एक ऐसी उपासना, जो उस भय के योग्य है, और क्रियाशील आज्ञाकारिता का एक ऐसा जीवन, जो उस श्रद्धा के योग्य है, भी संकेत करते हैं।” इसके अतिरिक्त, यू·सेʹबि·या को “जीवन के हर पहलू में परमेश्वर के बारे में एक बहुत ही व्यावहारिक बोध” के तौर से भी परिभाषित किया गया है। (मायकल ग्रीन द्वारा लिखित, द सेकण्ड एपिसिल जेनरल ऑफ पीटर ॲन्ड द जेनरल एपिसिल ऑफ जूड) तो फिर, जिस रीति से एक मसीही अपनी ज़िन्दगी जीता है, उसके द्वारा उसे यहोवा की ओर अपना व्यक्तिगत लगाव प्रमाणित करना चाहिए।—१ तीमुथियुस २:२; २ पतरस ३:११.
सख़्त परिश्रम आवश्यक
७. जब पौलुस ने बपतिस्मा पाए हुए तीमुथियुस को ईश्वरीय भक्ति का “पीछा” करने के लिए उकसाया, उसका क्या मतलब था?
७ तो फिर, ईश्वरीय भक्ति विकसित और प्रदर्शित करने में क्या शामिल है? क्या यह केवल बपतिस्मा लेने की बात है? स्मरण कीजिए, कि तीमुथियुस को, बपतिस्मा पाने के बावजूद, उसका “पीछा [अक्षरशः, ‘पीछा करते रहो’] करने” के लिए कहा गया था।a (१ तीमुथियुस ६:११, किंगडम इन्टरलिनियर) प्रत्यक्षतः, पौलुस यह सूचित नहीं कर रहा था कि तीमुथियुस में ईश्वरीय भक्ति की कमी थी। किन्तु, वह गाम्भीर्य और जोश के साथ उसका पीछा करते रहने की आवश्यकता पर ज़ोर दे रहा था। (फिलिप्पियों ३:१४ से तुलना करें।) स्पष्टतः, इसे एक आजीवन लक्ष्य होना था। सभी बपतिस्मा पाए हुए मसीहियों की तरह, तीमुथियुस ईश्वरीय भक्ति प्रदर्शित करने में प्रगति करते रह सकता था।
८. पतरस ने कैसे दिखाया कि एक समर्पित बपतिस्मा पाए हुए मसीही को ईश्वरीय भक्ति का पीछा करने के लिए सख़्त परिश्रम की आवश्यकता है?
८ ईश्वरीय भक्ति का पीछा करने के लिए एक समर्पित, बपतिस्मा पाए हुए मसीही को सख़्त परिश्रम की आवश्यकता है। उन बपतिस्मा पाए हुए मसीहियों को लिखते वक्त, जिन्हें ‘स्वर्गीय स्वभाव के समभागी’ होने की आशा थी, प्रेरित पतरस ने कहा: “और इसी कारण तुम सब प्रकार का यत्न करके, अपने विश्वास को सद्गुण, और सद्गुण को समझ, और समझ को संयम, और संयम को धीरज, और धीरज को ईश्वरीय भक्ति प्रदान करते जाओ।” (२ पतरस १:४-६, न्यू.व.) स्पष्टतः, बपतिस्मा के लिए अपने आप को पेश करने के लिए विश्वास की कुछ मात्रा ज़रूरी है। किन्तु, बपतिस्मा के बाद हम केवल नाममात्र की मसीहियत से सन्तुष्ट होकर, बेमतलब नहीं चल सकते। बल्कि, जैसे हम मसीही जीवन-चर्या में प्रगति करेंगे, हमें अन्य उत्कृष्ट गुणों को विकसित करने की आवश्यकता है, जिन में ईश्वरीय भक्ति भी शामिल है, जो कि हमारे विश्वास को जोड़ा जा सकता है। पतरस कहता है कि इस से हमारी ओर से गम्भीर परिश्रम आवश्यक होती है।
९. (अ) “प्रदान” के लिए उपयोग किया गया यूनानी शब्द ईश्वरीय भक्ति विकसित करने के लिए आवश्यक परिश्रम की मात्रा कैसे चित्रित करता है? (ब) पतरस हमें क्या करने के लिए उकसाता है?
९ पतरस “प्रदान” के लिए जिस यूनानी शब्द का उपयोग करता है, उस शब्द (ए·पि·खो·रे·जिʹयो) का एक दिलचस्प पार्श्व है, और यह परिश्रम की वह मात्रा चित्रित करता है, जो आवश्यक है। यह शब्द एक संज्ञा (खो·रे·गॉसʹ) से आता है, जिसका अर्थ अक्षरशः “एक गायक-दल का अगुआ” है। यह एक ऐसे व्यक्ति का ज़िक्र करता था, जो एक नाटक आयोजित करने में गायक-दल को प्रशिक्षित करने और उनका भरण-पोषण करने का सभी खर्च उठाता है। ऐसे मनुष्य अपने शहर के प्रेम की ख़ातिर स्वेच्छा से यह ज़िम्मेदारी लेते थे और पूरा ख़र्च अपनी जेब से पूरा करते थे। एक प्रभावशाली प्रदर्शन के लिए आवश्यक सभी चीज़ें प्रदान करना ऐसे पुरुषों के लिए गर्व की बात थी। इस शब्द के अर्थ ने बढ़कर “प्रचुरता से प्रदान या उपलब्ध कराने” का अर्थ ले लिया। (२ पतरस १:११ से तुलना करें।) इसलिए पतरस हमें उकसाता है कि हम अपने आप को, ईश्वरीय भक्ति की केवल कुछ ही मात्रा नहीं, बल्कि इस बहुमूल्य गुण की सबसे अधिक सम्भव अभिव्यक्ति प्रदान करें।
१०, ११. (अ) ईश्वरीय भक्ति विकसित और प्रदर्शित करने के लिए प्रयास की ज़रूरत क्यों है? (ब) हम इस संघर्ष पर विजय कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
१० किन्तु, ईश्वरीय भक्ति विकसित और प्रदर्शित करने के लिए ऐसे प्रयास की आवश्यकता क्यों है? एक बात तो यह है कि, पतित शरीर के विरुद्ध का संघर्ष मौजूद है। चूँकि “मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्न होता है सो बुरा ही होता है,” परमेश्वर की ओर सक्रिय आज्ञाकारिता का जीवन बिताना आसान नहीं है। (उत्पत्ति ८:२१; रोमियों ७:२१-२३) प्रेरित पौलुस कहता है: “जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सभी सताए जाएंगे”। (२ तीमुथियुस ३:१२) जी हाँ, जो मसीही परमेश्वर को प्रसन्न करनेवाली रीति से जीने की कोशिश करता है, उसे इस संसार से विभिन्न होना ही चाहिए। उसके मानदण्ड विभिन्न हैं, और उसके विभिन्न उद्देश्य हैं। जैसे यीशु ने चिताया था, इस बात से इस दुष्ट संसार का द्वेष भड़क उठता है।—यूहन्ना १५:१९; १ पतरस ४:४.
११ फिर भी, हम इस संघर्ष पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि, “यहोवा भक्तों को परीक्षा में से निकाल लेना जानता है।” (२ पतरस २:९, न्यू.व.) किन्तु, हमें ईश्वरीय भक्ति का पीछा करते रहने के द्वारा हमारा कर्तव्य पूरा करना चाहिए।
ईश्वरीय भक्ति विकसित करना
१२. अधिक मात्रा में ईश्वरीय भक्ति को विकसित करने के लिए क्या आवश्यक है, यह पतरस कैसे सूचित करता है?
१२ तो फिर, आप इस ईश्वरीय भक्ति को अधिक मात्रा में कैसे विकसित कर सकते हैं? प्रेरित पतरस एक संकेत देता है। २ पतरस १:५, ६ में हमारे विश्वास के साथ जोड़ने के लिए आवश्यक गुणों को सूचीबद्ध करते समय, वह ज्ञान को ईश्वरीय भक्ति से पहले सूचीबद्ध करता है। उसी अध्याय के पहले भाग में उसने लिखा: “उसके ईश्वरीय सामर्थ ने सब कुछ, जो जीवन और भक्ति से सम्बन्ध रखता है, हमें उसी के यथार्थ ज्ञान के द्वारा दिया है, जिस ने हमें बुलाया है।” (२ पतरस १:३, न्यू.व.) इस तरह पतरस ईश्वरीय भक्ति को यहोवा के यथार्थ ज्ञान से संबद्ध करता है।
१३. ईश्वरीय भक्ति विकसित करने में यथार्थ ज्ञान क्यों आवश्यक है?
१३ वास्तव में, यथार्थ ज्ञान के बिना ईश्वरीय भक्ति विकसित करना असम्भव है। क्यों? स्मरण कीजिए कि ईश्वरीय भक्ति वैयक्तिक रूप से यहोवा की ओर है और हम जिस रीति से हमारा जीवन जीते हैं, उसके द्वारा प्रमाणित होता है। इसलिए यथार्थ ज्ञान ज़रूरी है क्योंकि इस में, उन्हें व्यक्तिगत, घनिष्ट रीति से जानना, उनके गुणों और मार्गों से अच्छी तरह परिचित होना भी शामिल है। इससे अधिक, इसमें उनका अनुकरण करने के लिए प्रयास करना भी सम्बद्ध है। (इफिसियों ५:१) यहोवा के बारे में सीखने और उनके मार्गों और गुणों को हमारे जीवन में प्रकट करने में हम जितनी अधिक प्रगति करेंगे, हम उन्हें उतना ही अधिक बेहतर जानेंगे। (२ कुरिन्थियों ३:१८; १ यूहन्ना २:३-६ से तुलना करें।) पारी से, इसके परिणामस्वरूप ईश्वरीय भक्ति की एक अधिक मात्रा, यहोवा के अमूल्य गूणों के लिए अधिक गहरी क़दर उत्पन्न होती है।
१४. यथार्थ ज्ञान पाने के लिए हमारे व्यक्तिगत अभ्यास कार्यक्रम में क्या शामिल होना चाहिए, और क्यों?
१४ ऐसा यथार्थ ज्ञान आप कैसे प्राप्त करेंगे? कोई सरल उपाय नहीं है। यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें परमेश्वर के वचन का और बाइबल आधारित प्रकाशनों का अध्ययन करने में अध्यवसायी बनना चाहिए। ऐसे व्यक्तिगत अभ्यास में बाइबल पठन का एक नियमित कार्यक्रम होना चाहिए, जैसे कि थियोक्रेटिक मिनिस्ट्री स्कूल के सम्बन्ध में अनुसूचित किया गया है। (भजन १:२) चूँकि बाइबल यहोवा की ओर से एक उपहार है, व्यक्तिगत बाइबल अध्ययन के रूप में हम जो कुछ भी करते हैं, वह इस बात की अभिव्यक्ति है कि हम इस उपहार की कितनी क़दर करते हैं। आपकी व्यक्तिगत अध्ययन आदतें, यहोवा के आध्यात्मिक प्रबन्धों के लिए आपकी क़दर की गहराई के बारे में क्या प्रकट करती हैं?—भजन ११९:९७.
१५, १६. (अ) वैयक्तिक बाइबल अध्ययन के लिए एक आध्यात्मिक भूख विकसित करने के लिए हमें किस बात से मदद होगी? (ब) अगर वैयक्तिक बाइबल अध्ययन से ईश्वरीय भक्ति का विकास होना है, तो परमेश्वर के वचन से कोई भाग पढ़ते समय क्या किया जाना चाहिए?
१५ यह सच है कि पढ़ना और अध्ययन करना कुछों के लिए आसान नहीं। लेकिन समय और परिश्रम के साथ आप व्यक्तिगत बाइबल अध्ययन के लिए आध्यात्मिक रुचि विकसित कर सकते हैं। (१ पतरस २:२) जब आप क़दर के साथ उन सब बातों पर, जो यहोवा ने किया है, कर रहे हैं, और आगे भी आपके लिए करनेवाले हैं, विचार करते हैं, तब आपका दिल आपको उनके बारे में जो भी सीखा जा सकता है, सीखने के लिए प्रेरित करेगा।—भजन २५:४.
१६ किन्तु अगर ऐसे व्यक्तिगत अध्ययन के परिणामस्वरूप ईश्वरीय भक्ति विकसित होनी है, तो आपका उद्देश्य केवल पृष्ठों को पूर्ण करना या आपके मन को जानकारी से भरना नहीं हो सकता। इसके बजाय, जब आप परमेश्वर के वचन का एक भाग पढ़ते हैं, आपको उस विषय पर विचार करने के लिए समय निकालना चाहिए, और अपने आप से ऐसे सवाल पूछने चाहिए: ‘यह यहोवा के कोमल गुणों और मार्गों के बारे में मुझे क्या सिखाता है? इन सब विषयों में, मैं यहोवा के ज़्यादा समान कैसे बन सकता हूँ?’
१७. (अ) होशे की पुस्तक से हम यहोवा की कृपा के बारे में क्या सीखते हैं? (ब) यहोवा की कृपा पर विचार करने से हम पर क्या प्रभाव होना चाहिए?
१७ एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। कुछ समय पहले थियोक्रेटिक मिनिस्ट्री स्कूल में, हमारे लिए नियत बाइबल पठन ने हमें होशे की पुस्तक की ओर ले गया। उस बाइबल पुस्तक को पढ़ने के बाद आप अपने आप से शायद पूछ सकते हैं: ‘मैं इस किताब से—एक व्यक्ति के रूप में यहोवा के बारे में—उसके गुणों और उसके मार्गों के बारे में—क्या सीख रहा हूँ?’ बाद के बाइबल लेखकों द्वारा जिस रीति से उसका उल्लेख किया गया है, यह सूचित करता है, कि होशे की पुस्तक से हम यहोवा की कृपा के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं। (मत्ती ९:१३ को होशे ६:६ के साथ और रोमियों ९:२२-२६ को होशे १:१० और २:२१-२३ के साथ तुलना करें।) अपनी पत्नी गोमर के साथ होशे का व्यवहार, इस्राएल की ओर कृपा दिखाने में यहोवा की इच्छा चित्रित करता है। (होशे १:२; ३:१-५) यद्यपि रक्तपात, चोरी, व्यभिचार और मूर्तिपूजा इस्राएल में प्रचलित था, यहोवा ने ‘इस्राएल के दिल से बात की।’ (होशे २:१३, १४; ४:२) यहोवा ऐसी कृपा दिखाने के लिए बाध्य नहीं था लेकिन “अपनी स्वेच्छा” से ऐसा करता, बशर्ते कि वे इस्राएली आन्तरिक पश्चाताप प्रकट करते और उनके पापमय मार्ग से मुड़ जाते। (होशे १४:४; होशे ३:३ से तुलना करें।) जैसे आप यहोवा की असाधारण कृपा पर इस तरह विचार करेंगे, यह आपके दिल को प्रभावित करेगा और उसकी ओर आपके व्यक्तिगत लगाव को मज़बूत करेगा।
१८. जैसे होशे की पुस्तक में ज़ोर देकर बतायी गयी यहोवा की कृपा पर विचार करने के बाद, आप अपने आप से क्या पूछ सकते हैं?
१८ किन्तु, इससे अधिक ज़रूरी है। यीशु ने कहा था, “धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी।” (मत्ती ५:७) इसलिए, जैसे होशे की पुस्तक में ज़ोर देकर बतायी गयी यहोवा की करुणा पर विचार करने के बाद, अपने आप से पूछिए: ‘मैं दूसरों के साथ अपने व्यवहार में बेहतर रीति से यहोवा की कृपा का अनुकरण कैसे कर सकता हूँ? अगर कोई भाई या बहन, जिसने मेरे विरुद्ध पाप किया है, या मुझे नाराज़ किया है, मुझसे माफ़ी माँगे, क्या मैं “हर्ष से” उसे माफ़ करता हूँ?’ (रोमियों १२:८; इफिसियों ४:३२) अगर आप मण्डली में एक नियुक्त प्राचीन के रूप में कार्य करते हैं, आप अपने आप से पूछ सकते हैं: ‘न्यायिक विषयों को निपटते वक्त, मैं बेहतर रीति से यहोवा का अनुकरण कैसे कर सकता हूँ, जो “माफ़ करने के लिए तैयार रहता है”, खासकर तब जब एक अपराधी आन्तरिक पश्चाताप का सच्चा प्रमाण देता है?’ (भजन संहिता ८६:५, न्यू.व.; नीतिवचन २८:१३) ‘कृपा दिखाने के लिए एक आधार के रूप में मुझे किस बात को खोजना है?’—होशे ५:४ और ७:१४ से तुलना करें।
१९, २०. (अ) जब बाइबल अध्ययन सम्पूर्ण रीति से किया जाए, तब क्या परिणाम निकलता है? (ब) ईश्वरीय भक्ति उत्पन्न करने में और क्या सहायक है, और अगले लेख में किस बात पर चर्चा होगी?
१९ आपका बाइबल अध्ययन कितना लाभप्रद बन जाता है जब उसे ऐसे सम्पूर्ण रीति से किया जाता है! यहोवा के अमूल्य गुणों के लिए क़दर के साथ आपका दिल फूल उठेगा। और लगातार आपके जीवन में इन गुणों का अनुकरण करने का प्रयास करने से, आप उसके लिए अपना वैयक्तिक लगाव मज़बूत करेंगे। इस तरह आप यहोवा के एक समर्पित, बपतिस्मा पाए हुए सेवक के रूप में ईश्वरीय भक्ति का पीछा करते होंगे।—१ तीमुथियुस ६:११.
२० इस अमूल्य गुण को विकसित करने के लिए एक और मदद यीशु मसीह में पाया जा सकता है—ईश्वरीय भक्ति का एक परिपूर्ण उदाहरण। यीशु के उदाहरण का अनुसरण करना, ईश्वरीय भक्ति दोनों, विकसित करने और प्रकट करने में आपकी कैसे मदद करेगा? अगले लेख में इस पर और सम्बन्धित प्रश्नों पर चर्चा की जाएगी।
[फुटनोट]
a डाय·ओʹको (“पीछा करना”), इस यूनानी शब्द के बारे में, द न्यू इन्टरनॅशनल डिक्शनरी ऑफ न्यू टेस्टामेन्ट थिऑलॉजि में बताया गया है कि प्राचीन साहित्यों में इस शब्द का “अर्थ आक्षरशः पीछे पड़ना, पीछा करना, पीछे दौड़ना है, . . . और इसका प्रतीकात्मक अर्थ किसी चीज़ का जोश से पीछा करना, कोई कार्य पूरा करने की कोशिश करना, पाने की कोशिश करना है।”
आप कैसे जवाब देगें?
◻ बपतिस्मा आपके मसीही मार्ग का आख़री क़दम क्यों नहीं है?
◻ “ईश्वरीय भक्ति” का अर्थ क्या है, और आप उसका प्रमाण कैसे देते हैं?
◻ ईश्वरीय भक्ति विकसित करने के लिए सख़्त परिश्रम की ज़रूरत क्यों है?
◻ आप अधिक मात्रा में ईश्वरीय भक्ति कैसे विकसित कर सकते हैं?