परमेश्वर का वचन सत्य है
“सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर; तेरा वचन सत्य है।”—यूहन्ना १७:१७.
१. बाइबल के बारे में इब्रानी भजनकार का क्या विचार था, पर आज कई लोग इसका कैसे विचार करते हैं?
“तेरा वचन मेरे पाँव के लिए दीपक, और मेरे मार्ग के लिए उजियाला है।” (भजन संहिता ११९:१०५) यों इब्रानी भजनकार ने कहा। आज केवल एक अल्पसंख्या ही परमेश्वर के वचन के प्रति उस तरह का आदर करती है। इस २०वीं शताब्दी में, परमेश्वर का वचन लिखित रूप में पवित्र बाइबल के तौर से अस्तित्व रखता है। इसका अनुवाद इतिहास में किसी भी अन्य पुस्तक की तुलना में ज़्यादा भाषाओं में किया गया है और इसे ज़्यादा व्यापक रूप से वितरित किया गया है। फिर भी, अधिकांश लोग इसे अपने पाँवों के लिए एक दीपक के तौर से अस्वीकृत करते हैं। जो मसीही होने का दावा करते हैं, अधिकांशतः वे भी, बाइबल को अपने मार्ग का उजियाला बनने देने के बजाय अपनी ही धारणाओं का अनुसरण करना पसन्द करते हैं।—२ तीमुथियुस ३:५.
२, ३. यहोवा के गवाह बाइबल के बारे में कैसा विचार करते हैं, और इस से उन्हें कौनसे लाभ पहुँचे हैं?
२ इसके स्पष्ट वैषम्य में, हम जो यहोवा के गवाह हैं, भजनकार से सहमत हैं। हमारे लिए, बाइबल एक ईश्वर-प्रदत्त पथप्रदर्शक है। हम जानते हैं कि “सारा पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म में शिक्षा देने के लिए लाभदायक है।” (२ तीमुथियुस ३:१६, न्यू.व.) आज अनेकों से विपरीत, हम नैतिकता और आचरण के मामलों में प्रयोग करना नहीं चाहते। हम जानते हैं क्या सही है, इसलिए कि बाइबल हमें बताती है।
३ इस से हमें बड़े लाभ पहुँचे हैं। हम यहोवा से परिचित हुए हैं, और हम ने इस पृथ्वी और मानवजाति के लिए उनके शानदार उद्देश्यों के बारे में सीखा है, इसलिए हमें पूरा यक़ीन है कि हमारे लिए और अपने परिवारों के लिए एक उज्ज्वल भविष्य संभव है। हम पूरे मन से उस भजनकार से सहमत हैं, जिसने कहा: “अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसा प्रीति रखता हूँ! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है। तू अपनी आज्ञाओं के द्वारा मुझे अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान करता है, क्योंकि वे सदा मेरे मन में रहती हैं।”—भजन संहिता ११९:९७, ९८.
आचरण से गवाही देना
४. बाइबल को परमेश्वर के वचन के तौर से स्वीकार करने से हम पर कैसा दायित्व आ जाता है?
४ इसलिए, हमें यीशु के अपने पिता से संबोधित शब्दों से सहमत होने का हर कारण है: “तेरा वचन सत्य है।” (यूहन्ना १७:१७) लेकिन इस तथ्य को स्वीकार करने से हम पर एक दायित्व आ जाता है। हमें दूसरों को यह समझने की मदद करनी चाहिए कि परमेश्वर का वचन सत्य है। इस तरह वे भी उन आशिषों का आनन्द उठा सकेंगे जो हम अनुभव करते हैं। हम कैसे उन्हें उस तरह मदद कर सकते हैं? एक बात तो यह है, कि हमें अपने रोज़मर्रा के जीवन में बाइबल सिद्धान्तों पर अमल करने की हर कोशिश करनी चाहिए। उस तरह, नेक दिलवाले देखेंगे कि बाइबल का मार्ग सचमुच सबसे बेहतर है।
५. पतरस ने हमारे चाल-चलन के द्वारा गवाही देने के बारे में क्या सलाह दी?
५ यही प्रेरित पतरस की मसीही औरतों को दी सलाह का सारांश था, जिसके पति अविश्वासी थे। उसने उन्हें कहा: “हे पत्नियों, तुम भी अपने पति के अधीन रहो। इसलिए कि यदि इन में से कोई ऐसे हों जो वचन को न मानते हों, तौभी . . . , अपनी अपनी पत्नी के चाल-चलन के द्वारा खिंच जाए।” (१ पतरस ३:१, २) यह सभी मसीही—पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों को दी उसकी सलाह के पीछे का सिद्धान्त था, जब उसने कहा: “अन्यजातियों में तुम्हारा चाल-चलन भला हो; इसलिए कि जिन जिन बातों में वे तुम्हें कुकर्मी जानकर बदनाम करते हैं, वे तुम्हारे भले कामों को देखकर, उन्हीं के कारण कृपा दृष्टि के दिन परमेश्वर की महिमा करें।”—१ पतरस २:१२; ३:१६.
बाइबल की श्रेष्ठ बुद्धि
६. पतरस हमें यह देखने की मदद कैसे करता है कि हमें दूसरों को बाइबल की क़दर करने में सहायता करनी चाहिए?
६ इसके अतिरिक्त, मसीही दूसरों को बाइबल की क़दर करने की मदद कर सकते हैं, यदि वे उस तरह करेंगे जैसा पतरस सलाह देता है: “पर मसीह को प्रभु जानकर अपने अपने मन में पवित्र समझो, और जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, तो उसे उत्तर देने के लिए सर्वदा तैयार रहो, पर नम्रता और गहरे आदर के साथ।” (१ पतरस ३:१५, न्यू.व.) मसीही प्रचारकों को बाइबल की सफ़ाई दे सकनी चाहिए और दूसरों को यह समझा सकना चाहिए कि यह परमेश्वर का वचन है। वह ऐसा किस तरह कर सकते हैं?
७. बाइबल के बारे में कौनसा तथ्य दर्शाता है कि यह परमेश्वर का वचन ही होगा?
७ एक प्रत्ययकारी तर्कणा नीतिवचन की किताब में पायी जाती है। वहाँ हम पढ़ते हैं: “हे मेरे पुत्र, यदि तू मेरे वचन ग्रहण करे, और मेरी आज्ञाओं को अपने हृदय में रख छोड़े, और बुद्धि की बात ध्यान से सुने . . . , तो तू यहोवा के भय को समझेगा, और परमेश्वर का ज्ञान तुझे प्राप्त होगा। क्योंकि बुद्धि यहोवा ही देता है; ज्ञान और समझ की बातें उसी के मुँह से निकलती हैं।” (नीतिवचन २:१-६) परमेश्वर की निज बुद्धि बाइबल के पन्नों पर पायी जाती है। जब कोई निष्कपट व्यक्ति उस गहन बुद्धि को देखता है, तब वह यह समझने से नहीं रह जाएगा कि बाइबल मात्र मनुष्य का वचन होने से ज़्यादा है।
८, ९. धन-संपत्ति हासिल करने के विषय में एक संतुलित दृष्टिकोण रखने के बारे में बाइबल की सलाह किस तरह सही प्रमाणित हुई है?
८ कुछ उदाहरणों पर ग़ौर करें। आज, जीवन में क़ामयाबी आम तौर से आर्थिक रूप से मापी जाती है। कोई व्यक्ति जितना ज़्यादा कमाता है, वह उतना ही ज़्यादा क़ामयाब समझा जाता है। फिर भी, बाइबल भौतिक वस्तुओं पर बहुत अधिक महत्त्व रखने के विरुद्ध सावधान करती है। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं, जो मनुष्य को बिगाड़ देती हैं और विनाश के समुद्र में डूबा देती हैं। क्योंकि रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्वास से भटककर अपने आप को नाना प्रकर के दुःखों से छलनी बना लिया है।”—१ तीमुथियुस ६:९, १०; मत्ती ६:२४ से तुलना करें।
९ अनुभव से यह दिख चुका है कि यह चेतावनी कितनी उपयुक्त है। एक नैदानिक मनोवैज्ञानी ग़ौर करता है: “अव्वल नम्बर और अमीर होने से आप परितुष्ट, संतुष्ट और वास्तविक रूप से सम्मानीय या प्रिय महसूस नहीं करेंगे।” जी हाँ, जो लोग अपनी सारी शक्ति धन-संपत्ति का पीछा करने में लगाते हैं, वे अकसर कटु महसूस करते हैं और उनका दिल मसोसकर रह जाता है। पैसों की क़ीमत को क़बूल करके भी, पवित्रशास्त्र में एक ऐसी बात की ओर संकेत किया गया है, जो कहीं ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है: “बुद्धि की आड़ रुपये की आड़ का काम देता है; परन्तु ज्ञान की श्रेष्ठता यह है कि बुद्धि से उसके रखनेवालों के प्राण की रक्षा होती है।”—सभोपदेशक ७:१२.
१०. हमें अपनी संगति में सावधानी बरतने के बारे बाइबल की सलाह पर क्यों ध्यान देना चाहिए?
१० बाइबल में ऐसे कई नीतिवचन हैं। एक और यह है: “जो बुद्धिमानों के साथ चलता है, वह बुद्धिमान बन जाएगा, परन्तु मूर्खों से व्यवहार रखनेवाले बुरी तरह विफल होंगे।” (नीतिवचन १३:२०, न्यू.व.) यह भी अनुभव से सच साबित हुआ है। समवयस्कों के दबाव के परिणामस्वरूप युवजन नशाख़ोरी, ड्रग्स का दुरुपयोग और अनैतिकता करने लगे हैं। जो कोई गन्दी भाषा बोलनेवालों से मेल-जोल रखते हैं, अन्त में खुद को समान विभत्स भाषा इस्तेमाल करते हुए पाते हैं। अनेक लोग अपने मालिकों से चोरी करते हैं, क्योंकि ‘हर कोई ऐसा कर रहे हैं।’ सचमुच, जैसा कि बाइबल साथ ही कहती है: “बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।”—१ कुरिन्थियों १५:३३.
११. एक मनोवैज्ञानिक परिशीलन ने सुनहरे नियम का पालन करने की बुद्धिमानी कैसे दर्शायी?
११ बाइबल में सबसे सुप्रसिद्ध सलाहों में से एक है, तथाकथित सुनहरा नियम: “इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करे, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो।” (मत्ती ७:१२) अगर मानवजाति इस नियम का पालन करती, तो यह दुनिया स्पष्ट रीति से एक बेहतर जगह होती। लेकिन यदि आम तौर से मनुष्य उस नियम का पालन नहीं भी करते हैं, तो भी व्यक्तिगत रूप से आपके लिए ऐसा करना बेहतर होगा। क्यों? क्योंकि हम सब एक दूसरे की परवाह करने और उनकी चिन्ती करने के लिए बनाए गए थे। (प्रेरितों के काम २०:३५) यह पता लगाने कि लोगों ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी जब उन्होंने दूसरों की मदद की, संयुक्त राज्य अमरीका में संचालित एक मनोवैज्ञानिक परिशीलन इस निष्कर्ष पर पहुँचा: “तो फिर, ऐसा प्रतीत होता है कि दूसरों की परवाह करना मानव स्वभाव का उतना ही भाग है जितना कि अपने आप की परवाह करना मानव स्वभाव का एक हिस्सा है।”—मत्ती २२:३९.
बाइबल की सलाह—अतुलनीय रूप से बुद्धिमान
१२. वह एक बात क्या है जो बाइबल को अतुलनीय बनाती है?
१२ निश्चय ही, आज बाइबल के बाहर सलाह के कई स्रोत हैं। अख़बारों में सलाह-स्तंभ प्रकाशित होते हैं, और किताबों की दुकानें स्व-सहायता पुस्तकों से भरे हैं। इसके अतिरिक्त, मनोवैज्ञानी, पेशेवर सलाहकार और अन्य लोग हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में सलाह देते हैं। लेकिन बाइबल कम से कम तीन पहलुओं में अद्वितीय है। सर्वप्रथम, उसकी सलाह हमेशा लाभदायक है। यह कभी भी मात्र परिकल्पना नहीं, और उससे कभी हमारा नुक़सान नहीं होता। जो कोई बाइबल की सलाह पर अमल करता है, उसे भजनकार से सहमत होना ही पड़ता है, जब उसने प्रार्थना में परमेश्वर से कहा: “तेरी चेतौनियाँ अति विश्वासयोग्य साबित हुई हैं।”—भजन संहिता ९३:५, न्यू.व.
१३. क्या दिखाता है कि मानवी बुद्धि के स्रोतों की तुलना में बाइबल कहीं अधिक श्रेष्ठ है?
१३ दूसरी बात, बाइबल समय की कसौटी पर खरा उतरी है। (१ पतरस १:२५; यशायाह ४०:८) मानवी स्रोतों से पायी सलाह विख्यात रूप से परिवर्तनशील है, और जो एक वर्ष फ़ैशन में है, अकसर अगले वर्ष उसकी आलोचना की जाती है। बहरहाल, हालाँकि बाइबल लगभग २,००० वर्ष पहले पूरा की गयी, इस में अब भी उपलब्ध सलाह में से सबसे बुद्धिमान सलाह है, और इसके वचन विश्वव्याप्त रूप से उपयोज्य हैं। चाहे हम अफ्रीका में, एशिया में, दक्षिण या उत्तर अमरीका में, यूरोप में या समुन्दर के द्वीपों पर रहते हैं, ये उतने ही प्रभावकारिता से लागू हैं।
१४. परमेश्वर के वचन की सलाह किस रीति से अत्युत्तम है?
१४ अन्त में, बाइबल सलाह की सुविस्तृत पहुँच बेजोड़ है। एक बाइबल कहावत कहती है: “बुद्धि यहोवा ही देता है,” और हमारे सामने चाहे जो भी समस्या या निर्णय हो, बाइबल में ऐसी बुद्धि है जिस की मदद से हम उसका समाधान कर सकते हैं। (नीतिवचन २:६) बच्चें, किशोर-किशोरियाँ, माता-पिता, बड़े-बूढ़े, मालिक, नौकर, अधिकारी, सभी पाते हैं कि बाइबल की बुद्धि उन पर लागू होती है। (नीतिवचन ४:११) उस समय भी जब हम ऐसी स्थितियों का सामना करते हैं, जिनके बारे यीशु और उनके प्रेरितों के समय में मालूम न था, बाइबल हमें सलाह देती है जिसके प्रयोग से सफलता हासिल होती है। उदाहरणार्थ, पहली शताब्दी में, मध्य-पूर्व में तम्बाकू फूँकने के बारे में कुछ भी जानकारी न थी। फिर भी, जो कोई “किसी बात के अधीन [या उसके द्वारा नियंत्रित] होने” से बचे रहने और “शरीर और आत्मा की सब मलिनता” से शुद्ध रहने की बाइबल सलाह पर ध्यान देता है, वह इस आदत से बचा रहेगा, जो कि स्वास्थ्य के लिए दोनों व्यसोत्पादक तथा विनाशक है।—१ कुरिन्थियों ६:१२; २ कुरिन्थियों ७:१.
हमारे दीर्घकालीन भलाई के लिए
१५. अनेक यह दावा क्यों करते हैं कि बाइबल दिनातीत है?
१५ यह सच है, अनेक लोग कहते हैं कि इस २०वीं शताब्दी में बाइबल दिनातीत और अप्रासंगिक है। तथापि, कारण संभवतः यह है कि बाइबल वह बातें नहीं कहती, जो वे सुनना चाहते हैं। धर्मशास्त्रीय सलाह का अनुसरण करने से हमें दीर्घकालीन लाभ प्राप्त होता है, लेकिन अकसर इस में सहनशक्ति, अनुशासन और स्वार्थत्याग की ज़रूरत होती है—वे गुण जो एक ऐसी दुनिया में लोकप्रिय नहीं, जिस में हमें तात्क्षणिक तुष्टीकरण पाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।—नीतिवचन १:१-३.
१६, १७. बाइबल लैंगिक नैतिकता के कौनसे उच्च मानक निश्चित करती है, और आधुनिक समय में उनकी उपेक्षा कैसे हुई है?
१६ लैंगिक नैतिकता की बात ही ले लीजिए। धर्मशास्त्रीय मानक बहुत ही सख़्त हैं। लैंगिक रूप से घनिष्ठता स्थापित करने की एकमात्र स्थिति विवाह-बन्धन के अंतर्गत है, और विवाह-बन्धन के बाहर ऐसी सब घनिष्ठता निषिद्ध है। हम पढ़ते हैं: “न वेश्यागामी, न मूर्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न पुरुषवेश्या, न समलिंगकामी . . . परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे।” (१ कुरिन्थियों ६:९, १०, न्यू.व.) इसके अतिरिक्त, मसीहियों के लिए बाइबल का आदेश है कि सिर्फ़ एकविवाह हो, एक पत्नी के लिए एक ही पति। (१ तीमुथियुस ३:२) और जबकि ऐसी आत्यंतिक स्थितियाँ हैं जहाँ शायद तलाक़ या अलहदगी पाने की अनुमति दी जाती है, बाइबल कहती है कि सामान्यतः विवाह-बन्धन ज़िदगी भर के लिए है। स्वयं यीशु ने कहा: “जिस ने उन्हें बनाया उस ने आरम्भ से नर और नारी बनाकर कहा, ‘इस कारण मनुष्य अपने माता-पिता से अलग होकर अपनी पत्नी के साथ रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे’ . . . सो वे अब दो नहीं, परन्तु एक तन हैं: इसलिए जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।”—मत्ती १९:४-६, ९; १ कुरिन्थियों ७:१२-१६.
१७ आज, व्यापक रूप से इन मानकों की उपेक्षा की जाती है। असंयत लैंगिक अभ्यासों को बरदाश्त किया जाता है। एक साथ घूम रहे किशोर-किशोरियों के बीच यौन-संबंध को साधारण समझा जाता है। विवाह के बिना एक साथ रहना स्वीकृत है। शादी-शुदा दम्पतियों के बीच, दोनों, पति या पत्नी का अवैध लैंगिक प्रेमसंबंध होना असामान्य नहीं है। और इस आधुनिक दुनिया में तलाक़ एक विश्वमारी बन गयी है। बहरहाल, इन ढीले मानकों से खुशी प्राप्त नहीं हुई है। कुपरिणामों से साबित हुआ है कि बाइबल इन सख़्त नैतिक मानकों को बनाए रखने का आग्रह करने में आख़िरकार सही थी।
१८, १९. यहोवा के नैतिकता संबंधी मानकों की उपेक्षा होने के परिणामस्वरूप क्या हुआ है?
१८ लेडीज़ होम जर्नल में कहा गया: “सेक्स पर लगाए हुए ज़ोर से, जो उन्नीस सौ साठ और सत्तर के दशकों का प्रतीक था, अनन्त आनन्द प्राप्त नहीं हुआ है, बल्कि कुछ गंभीर मानवी दुःख ही प्राप्त हुए हैं।” यहाँ ज़िक्र किए गए “गंभीर मानवी दुःख” में उन बच्चों का दुःख शामिल है, जिन्हें अपने माता-पिता के तलाक़ की वजह से मानसिक रूप से आघात पहुँचा है, और गहरे भावनात्मक दर्द महसूस करनेवाले प्रौढ़ व्यक्तियों का दुःख भी। इस दुःख में एक-जनक परिवारों में वृद्धि और युवा अविवाहित लड़कियों के बीच एक विश्वमारी शामिल है, जो बच्चे पैदा करते हैं, जब कि वे खुद बस बचपन से निकल ही चुके हैं। इसके अतिरिक्त, यह लैंगिक रूप से प्रसारित विश्वमारियाँ भी शामिल करता है, जैसा कि जननांगी हर्पीज़, सूजाक (गनोरिया), उपदंश (सिफ़लिस), क्लॅमिडिया और एड्स।
१९ इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए, समाज-विज्ञान के एक प्राध्यापक ने कहा: “शायद हम इस हद तक तो बड़े हो चुके हैं कि हम इस बात पर विचार कर सकें कि क्या विवाह-पूर्व परहेज़ को एक ऐसी नीति के तौर से बढ़ावा देना हम सब के बेहतर रूप से काम न आएगा, जो कि हमारे नागरिकों की ज़रूरतों की ओर तथा उनके—रोग और अनचाहे गर्भ से—छुटकारा पाने के हक़ की ओर सर्वाधिक अनुकूल है?” बाइबल सही सही कहती है: “क्या ही धन्य है वह पुरुष, जो यहोवा पर भरोसा करता है, और अभिमानियों और मिथ्या की ओर मुड़नेवालों की ओर मुँह न फेरता हो।” (भजन संहिता ४०:४) जो लोग बाइबल की बुद्धि पर भरोसा रखते हैं, वे उन लोगों के झूठ से धोखा नहीं खाते, जो बाइबल की अवज्ञा करके कहते हैं कि एक अधिक ढीली नैतिक नियमावली से खुशी प्राप्त होती है। बाइबल के बुद्धिमान, पर सख़्त, मानक अधिकतम भलाई के लिए हैं।
ज़िन्दगी में कठिन समस्याएँ
२०. जिन लोगों को अपनी ज़िन्दगी में कठिन ग़रीबी का सामना करना पड़ता है, उनके लिए कौनसे बाइबल सिद्धान्त बहुत सहायक रहे हैं?
२० बाइबल की बुद्धिमानी से हमें उन कठिन समस्याओं से निपटने की मदद भी होती है, जिनका हम सामना करते हैं। उदाहरणार्थ, कई देशों में, ऐसे मसीही हैं जो कठिन, अत्याधिक ग़रीबी में जी रहे हैं। किन्तु वे अपनी ग़रीबी से निपटते हैं और फिर भी खुशी प्राप्त करते हैं। कैसे? परमेश्वर के प्रेरित वचन का अनुसरण करके। वे भजन संहिता ५५:२२ के दिलासा देनेवाले शब्दों को गम्भीरतापूर्वक लेते हैं: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे, वह तुझे सम्भालेगा।” सहने की शक्ति पाने के लिए वे परमेश्वर पर निर्भर रहते हैं। फिर वे बाइबल सिद्धान्तों पर अमल करके ऐसी हानिकारक, खर्चीली आदतों से दूर रहते हैं, जैसा कि धूम्रपान तथा मद्यासक्ति। वे मेहनती हैं, जैसा कि बाइबल उपयुक्त बताती है, और अकसर पाते हैं कि वे अपने परिवारों का पेट भर सकते हैं, जब कि आलसी लोग या वे जो निराशोन्मत्त होते हैं, विफल हो जाते हैं। (नीतिवचन ६:६-११; १०:२६) इसके अतिरिक्त, वे बाइबल की चेतावनी की ओर ध्यान देते हैं: “कुटिल काम करनेवालों के विषय डाह न कर!” (भजन संहिता ३७:१) वे जूए का सहारा नहीं लेते और न ही अपराधी कामों का, जैसा कि ड्रग्स बेचना। ये बातें शायद उनकी समस्याओं के लिए एक तत्काल “समाधान” पेश करती हैं, परन्तु दीर्घकालीन परिणाम शायद कड़वा होंगे।
२१, २२. (अ) एक मसीही औरत ने बाइबल में से मदद और दिलासा कैसे प्राप्त की? (ब) बाइबल के बारे में और कौनसी वास्तविकता हमें यह समझने की मदद करती है कि यह परमेश्वर का वचन है?
२१ क्या बाइबल का अनुसरण करने से सचमुच उन लोगों की मदद होती है, जो बहुत ही ग़रीब हैं? हाँ, जैसा कि अनेकानेक अनुभवों से साबित होता है। एशिया में रहनेवाली एक मसीही विधवा लिखती है: “हालाँकि मैं प्रायः ग़रीबी की ही अवस्था में गुज़र करती हूँ, मेरे दिल में विद्वेष या कड़वाहट नहीं है। बाइबल सच्चाई की वजह से मेरा दृष्टिकोण सकारात्मक बन जाता है।” वह बताती है कि उसकी स्थिति में यीशु द्वारा दी एक उल्लेखनीय प्रतिज्ञा पूरा हुई है। यीशु ने कहा: “इसलिए पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करते रहो तो ये सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी।” (मत्ती ६:३३, न्यू.व.) वह साक्ष्य देती है कि परमेश्वर को दी उसकी सेवा को अपने जीवन में प्रथम स्थान पर रखकर, उसे हमेशा, किसी न किसी रीति से, जीवन की आवश्यकताएँ मिल जाती हैं। और उसकी मसीही सेवा से उसे प्रतिष्ठा एवं ज़िन्दगी में एक लक्ष्य मिलता है, जिस से उसकी ग़रीबी सहनीय बन जाती है।
२२ सचमुच, उसकी बुद्धि की गहराई से यह साबित होता है कि बाइबल दरअसल परमेश्वर का ही वचन है। मात्र मनुष्यों द्वारा बनायी गयी कोई भी किताब ज़िन्दगी की इतनी सारी पहलुओं पर व्याख्या नहीं कर सकती है और न ही इतने गहरे रूप से कुशाग्रबुद्धि तथा हर बार सही हो सकती है। लेकिन बाइबल के बारे में एक और वास्तविकता है जो उसके ईश्वरीय स्रोत का प्रमाण देती है। इस में लोगों को उनकी बेहतरी के लिए परिवर्तित करने की ताक़त है। हम इस पर अगले लेख में विचार-विमर्श करेंगे।
क्या आप व्याख्या कर सकते हैं?
◻ बाइबल को परमेश्वर के वचन के तौर से स्वीकार करने की वजह से यहोवा के गवाह किस रीति से आशीर्वाद प्राप्त हैं?
◻ परमेश्वर के वचन में विश्वास रखनेवालों के तौर से, हमें कौनसी ज़िम्मेदारी है, और हमारा आचरण हमें यह ज़िम्मेदारी निभाने में मदद कैसे कर सकता है?
◻ कौनसी बात है जो बाइबल की बुद्धिमान सलाह को मात्र मानवी सलाह से उच्च बनाती है?
◻ बाइबल की बुद्धि की गहराई को दर्शानेवाले कुछ मिसाल क्या हैं?