छुटकारा पाकर एक नयी दुनिया में प्रवेश करने की तैयारी करें
“लूत की पत्नी को स्मरण रखो।”—लूका १७:३२.
१. हमारा आज का पाठ ईश्वरीय छुटकारे के कौनसे ऐतिहासिक मिसाल को विशिष्ट करता है, और किस तरह इस से हमारा फ़ायदा हो सकता है?
नूह और उसके परिवार के लिए यहोवा द्वारा किए बढ़िया छुटकारे के बारे में बताने के बाद, प्रेरित पतरस ने एक और ऐतिहासिक मिसाल का उल्लेख किया। उसने सदोम और अमोरा भस्म होते समय धर्मी लूत के संरक्षण की ओर ध्यान आकर्षित किया, जैसा कि हम २ पतरस २:६-८ में पढ़ते हैं। इस विवरण को हमारे लाभ के लिए सुरक्षित रखा गया। (रोमियों १५:४) उस छुटकारे के संबंध में क्या हुआ था, उस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना, हमें परमेश्वर की नयी दुनिया में प्रवेश करने तक संरक्षण पा सकने की स्थिति में आने की मदद कर सकता है।
दुनिया की जीवन-शैली की ओर हम कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं
२. सदोम और अमोरा में हो रहे किस प्रकार के चाल-चलन से परमेश्वर द्वारा उनका नाश हो गया?
२ उन नगरों और उनके निवासियों का नाश क्यों किया गया? प्रेरित पतरस “अशुद्ध चाल-चलन” में अतिसेवन का उल्लेख करता है। (२ पतरस २:७) जैसे कि यूनानी शब्द के उपयोग से सूचित है, जिस से वह अभिव्यक्ति अनुवादित है, सदोम और अमोरा के लोग ऐसी रीति से अपराध करते थे जिससे क़ानून और प्राधिकर के लिए निर्लज्ज अनादर, तिरस्कार भी, प्रदर्शित होता था। यहूदा ७ कहता है कि वे ‘बेहद व्यभिचार करने लगे और अनैसर्गिक प्रयोजन से पराए शरीर के पीछे लग गए।’ (न्यू.व.) उनके व्यवहार की अश्लीलता तब प्रकट हुई जब सदोम के पुरुष, “जवानों से लेकर बूढ़ों तक, वरन चारों ओर के सब लोगों ने” लूत के घर को घेर लिया और माँग की कि वह अपने मेहमानों को सदोम के पुरुषों की विकृत काम-वासना तृप्त करने के लिए उनके हाथों सौंप दिए जाएँ। और उन्होंने लूत की भर्त्सना ज़ोर-ज़ोर से की, इसलिए कि उसने उनकी गिरी हुई माँगों का प्रतिरोध किया।—उत्पत्ति १३:१३; १९:४, ५, ९.
३. (अ) लूत और उसका परिवार सदोम जैसे भ्रष्ट अड़ोस-पड़ोस में किस तरह रहने लगे थे? (ब) सदोम के लोगों के अशुद्ध चाल-चलन के प्रति लूत की क्या प्रतिक्रिया थी?
३ आरंभ में लूत सदोम के पास के इलाके में इसलिए आया था कि वहाँ भौतिक समृद्धि पाने की अधिक संभावना थी। कुछ समय बाद, वह उस नगर में ही रहने लगा। (उत्पत्ति १३:८-१२; १४:१२; १९:१) लेकिन वह उस नगर के पुरुषों के लम्पट आदतों से सहमत न था, और वे आदमी भी उसे अपने में से एक नहीं मानते थे, प्रत्यक्षतः इसलिए कि लूत और उसका परिवार उनके सामाजिक जीवन में हिस्सा नहीं लेते थे। जैसा कि २ पतरस २:७, ८ कहता है: “लूत . . . अधर्मियों के अशुद्ध चाल-चलन से बहुत दुःखी था—क्योंकि वह धर्मी उनके बीच में रहते हुए, और उन के अधर्म के कामों को देख देखकर और सुन सुनकर, हर दिन अपने सच्चे मन को पीड़ित करता था।” वे परिस्थितियाँ लूत के लिए एक कठिन परीक्षा बनीं इसलिए कि, एक धर्मी पुरुष के नाते, वह ऐसे चाल-चलन से नफ़रत करता था।
४. (अ) किन किन रीतियों से आज की परिस्थितियाँ प्राचीन सदोम की परिस्थितियों के समान हैं? (ब) अगर हम धर्मी लूत के जैसे हैं, तो हम मौजूदा भ्रष्ट परिस्थितियों की ओर कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं?
४ हमारे समय में भी, मानवीय समाज का नैतिक स्तर भ्रष्ट हो गया है। कई देशों में, अधिकाधिक लोग विवाह-पूर्व या विवाहोत्तर यौन-संबंध में लग जाते हैं। पाठशालाओं में कई युवजन भी इस जीवन-शैली में गहरे रूप से उलझे हुए हैं, और वे उन लोगों की हँसी उड़ाते हैं जो उनके साथ शामिल नहीं हो जाते। समलिंगकामी सुस्पष्ट रूप से अपनी पहचान देते हैं और स्वीकृति माँगने के लिए बड़े शहरों के रास्तों पर जुलूस निकालते हैं। पादरी-वर्ग इन रंगरलियों में शामिल हो गया है। औपचारिक रूप से, अनेक गिरजाएँ पादरी के तौर से ज्ञात समलिंगकामियों और व्यभिचारियों को अभिषिक्त नहीं करते। फिर भी, वास्तविकता यह है, जैसा कि ख़बरों ने दिखाया है, पादरियों के वर्गों में समलिंगकामियों, व्यभिचारियों और परस्त्रीगामियों को पाना बिल्कुल ही मुश्किल नहीं है। दरअसल, सैक्स स्कैंडलों की वजह से कुछेक धार्मिक अगुवों का तबादला दूसरे शहरों में किया गया है या मजबूर होकर भी उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा है। धार्मिकता के प्रेमी ऐसी बुराई से हमदर्दी नहीं दिखाते; वे “बुराई से घृणा” करते हैं। (रोमियों १२:९) उन्हें ख़ास तौर से दुःख तब होता है जब उन लोगों का चाल-चलन, जो परमेश्वर की सेवा करने का दावा करते हैं, परमेश्वर के नाम पर कलंक लाता है और अनभिज्ञ लोगों का घृणा से सभी धर्मों पर पीठ फेरने का कारण बनता है।—रोमियों २:२४.
५. यहोवा ने सदोम और अमोरा का जो नाश किया, उससे हमारे कौनसे प्रश्न का उत्तर मिलता है?
५ साल पर साल, स्थिति बिगड़ती जाती है। क्या इसका कोई अन्त होगा? जी हाँ, होगा! यहोवा ने प्राचीन सदोम और अमोरा के साथ जो किया, वह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि, उनके निश्चित समय पर, वह न्यायदण्ड देंगे। वह पूर्ण रूप से दुष्ट लोगों का नाश करेंगे, परन्तु अपने वफ़ादार सेवकों को छुटकारा दिलाएँगे।
ज़िन्दगी में कौनसा व्यक्ति या कौनसी चीज़ पहले स्थान पर आती है?
६. (अ) लूत की बेटियों से शादी करने वाले नौजवानों के वृत्तान्त में कौनसा समयोचित सबक़ है? (ब) अपने होनेवाले पति के रवैये से लूत की बेटियों की परीक्षा कैसे हुई?
६ केवल उन्हीं लोगों को, जो सच्ची ईश्वरीय भक्ति दर्शाते हैं, बचा लिया जाएगा। इस संबंध में, उस बात पर ग़ौर करें, जो यहोवा के स्वर्गदूतों ने सदोम और अमोरा के नाश होने से पहले लूत को कही थी। “यहाँ तेरे और कौन कौन हैं? दामाद, बेटे, बेटियाँ वा नगर में तेरा जो कोई है, सभी को लेकर इस स्थान से निकल जा। क्योंकि हम यह स्थान नाश करने पर हैं।” इसलिए लूत ने उन नौजवानों से बात की जो उसकी बेटियों से शादी करनेवाले थे। उसने उन्हें बार-बार प्रोत्साहित किया: “उठो, इस स्थान से निकल चलो, क्योंकि यहोवा इस नगर को नाश किया चाहता है!” लूत के घराने से उनके रिश्ते से उन्हें छुटकारा पाने का एक ख़ास मौक़ा प्रदान हुआ, लेकिन उनको व्यक्तिगत रूप से कार्य करना था। उन्हें यहोवा के प्रति आज्ञाकारिता का ठोस सबूत पेश करना था। उलटा, उनकी नज़रों में लूत “ठट्ठा करनेहारा सा जान पड़ा।” (उत्पत्ति १९:१२-१४) आप अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि लूत की बेटियों को कैसे लगा होगा जब उन्हें यह पता चला। इस से परमेश्वर के प्रति उनकी वफ़ादारी की परीक्षा हुई।
७, ८. (अ) जब स्वर्गदूतों ने लूत से अपने परिवार को लेकर भाग जाने का आग्रह किया, तब उसने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी, और यह एक अविवेकी बात क्यों थी? (ब) छुटकारा पाने के लिए लूत और उसके परिवार के लिए क्या अत्यावश्यक था?
७ अगली सुबह, भोर के समय, स्वर्गदूत लूत से आग्रह करने लगे। उन्होंने कहा: “उठ, अपनी पत्नी और दोनों बेटियों को जो यहाँ हैं, ले जा, नहीं तो तू भी इस नगर के अधर्म में भस्म हो जाएगा!” लेकिन “वह विलम्ब करता रहा।” (उत्पत्ति १९:१५, १६) क्यों? उसे किस बात ने रोक लिया? क्या यह उसका कोई भौतिक लाभ था जो सदोम में था—ठीक वही बात जो उसे सबसे पहले लुभाकर इस इलाके में खिंच लायी थी? अगर वह इनसे लगा रहता, तो वह सदोम के साथ नष्ट होता।
८ करुणा दिखाकर, स्वर्गदूतों ने उसके परिवारवालों का हाथ पकड़कर उन्हें जल्दी कराके नगर से बाहर ले गए। नगर के बाह्यांचल में, यहोवा के स्वर्गदूत ने आज्ञा दी: “अपना प्राण लेकर भाग जा; पीछे की ओर न ताकना, और तराई भर में न ठहरना! उस पहाड़ पर भाग जाना, नहीं तो तू भी भस्म हो जाएगा!” अब भी लूत हिचकिचाता रहा। आख़िरकार, यह तै होने के बाद कि वह ऐसे स्थान पर जा सकता था, जो इतना दूर न था, वह और उसके परिवारवाले भाग निकले। (उत्पत्ति १९:१७-२२) और अधिक देर नहीं की जा सकती थी; आज्ञापालन अत्यावश्यक था।
९, १०. (अ) लूत की पत्नी के संरक्षण के लिए मात्र अपने पति के साथ होना क्यों काफ़ी न था? (ब) जब लूत की पत्नी मारी गयी, तब लूत और उसकी बेटियों पर और कौनसी परीक्षा आयी?
९ फिर भी, जब वे सदोम से भाग निकले, तब छुटकारा अभी तक पूरा नहीं हुआ था। उत्पत्ति १९:२३-२५ हमें बताता है: “लूत के सोअर के निकट पहुँचते ही सूर्य पृथ्वी पर उदय हुआ। तब यहोवा ने अपनी ओर से सदोम और अमोरा पर गन्धक और आग बरसायी। और उन नगरों को और उस सम्पूर्ण तराई को, और नगरों के सब निवासियों को, भूमि की सारी उपज समेत नाश कर दिया।” लेकिन लूत की पत्नी कहाँ थी?
१० वह अपने पति के साथ भाग निकली तो थी। फिर भी, वह जो कर रहा था, क्या वह उस से पूरी तरह से सहमत थी? ऐसी कोई बात नहीं है जिस से सूचित हो सके कि वह किसी भी तरह से सदोम में हो रही अनैतिकता को पसंद करती थी। लेकिन क्या परमेश्वर के लिए उसका प्रेम, अपने घर और वहाँ की भौतिक चीज़ों के लिए उसके मोह से ज़्यादा मज़बूत था? (लूका १७:३१, ३२ से तुलना करें।) दबाव के तले, जो उसके दिल में था, वह प्रकट हो गया। प्रत्यक्षतः वे सोअर के पास पहुँच गए थे, शायद नगर को प्रवेश करने के स्थान पर, जब उसने अवज्ञाकारी रूप से मुड़कर पीछे देखा। और जैसा कि बाइबल वृत्तान्त बताता है, “वह नमक का खम्भा बन गयी।” (उत्पत्ति १९:२६) अब लूत और उसकी बेटियों के सम्मुख एक और परीक्षा थी। क्या लूत का अपनी मृत पत्नी के लिए लगाव या लड़कियों का अपनी मरी हुई माँ के प्रति भावनाएँ, यहोवा के लिए उनके प्रेम से ज़्यादा मज़बूत था, जिन्होंने यह विपत्ति लायी थी? क्या वे परमेश्वर का आज्ञापालन करते रहते, हालाँकि उनके क़रीब को कोई व्यक्ति उनके प्रति बेवफ़ा साबित हो चुका था? यहोवा पर पूरा भरोसा रखकर, उन्होंने पीछे नहीं देखा।
११. हम ने यहाँ उस छुटकारे के बारे में क्या सीखा है जो यहोवा देते हैं?
११ जी हाँ, यहोवा ईश्वरीय भक्ति रखनेवालों को परीक्षा में से निकाल लेना जानते हैं। वह पवित्र उपासना में संयुक्त संपूर्ण परिवारों को बचाना जानते हैं; वह व्यक्तियों को भी बचाना जानते हैं। जब वे उनसे सचमुच प्रेम रखते हैं, वह उनके साथ व्यवहार करने में बहुत लिहाज़ दिखाते हैं। “वह हमारी सृष्टि जानता है, और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी हैं।” (भजन संहिता १०३:१३, १४) परन्तु उनका छुटकारा सिर्फ़ उन्हीं लोगों के लिए है जो ईश्वरीय भक्ति रखनेवाले हैं, जिनकी भक्ति असली है, और जिनकी आज्ञाकारिता वफ़ादारी की एक अभिव्यक्ति है।
एक अधिक बड़े छुटकारे के लिए प्रेममय तैयारियाँ
१२. जिस छुटकारे का हम उत्सुकता से इंतज़ार करते हैं, उसे ले आने से पहले यहोवा कौनसी प्रेममय तैयारियाँ करनेवाले थे?
१२ यहोवा ने नूह और लूत के दिनों में जो किया, उस से उन्होंने सभी दुष्टों को हमेशा के लिए नहीं निकाल दिया। जैसा कि शास्त्रपद बताता है, इस से आनेवाली घटनाओं के लिए मात्र एक दृष्टान्त स्थापित हुआ। उन घटनाओं के आने से पहले, यहोवा के मन में और भी कई बातें थीं जिनका प्रयोजन उन्होंने उन लोगों के लाभ के लिए किया था, जो उनसे प्रेम रखते थे। वह अपने एकलौते पुत्र, यीशु मसीह, को पृथ्वी पर भेजने वाले थे। यहाँ, यीशु परमेश्वर के नाम से कलंक मिटा देता, उस तरह की भक्ति प्रदर्शित करके, जो एक पूर्ण मानव के तौर से, आदम परमेश्वर को दे सकता था, और जिसे देना चाहिए था। परन्तु यीशु कहीं ज़्यादा मुश्किल परिस्थितियों में ऐसा कर दिखाता। यीशु अपने पूर्ण मानवीय जीवन को एक बलिदान के तौर से अर्पित करता, ताकि आदम के विश्वास दिखानेवाले संतान वह सब कुछ पा सकते, जो आदम ने खो दिया था। फिर, वफ़ादार इन्सानों से बना एक “छोटा झुण्ड” मसीह के साथ उसके स्वर्गीय राज्य में हिस्सा लेने के लिए परमेश्वर द्वारा चुने जाते, और एक नए मानवीय समाज की बुनियाद बनने के लिए सभी जातियों में से “एक बड़ी भीड़” एकत्र की जाती। (लूका १२:३२; प्रकाशितवाक्य ७:९) यह पूरा होने पर, परमेश्वर वह महान् छुटकारा कर दिखाते जो जलप्रलय और सदोम तथा अमोरा के नाश से संबंधित घटनाओं से पूर्वाभासित है।
क्यों अब निश्चयात्मक कार्य ज़रूरी है
१३, १४. हम इस तथ्य से क्या सीख सकते हैं कि पतरस ने लूत और नूह के दिनों में हुए अधर्मी लोगों के नाश को उदाहरण के तौर से इस्तेमाल किया?
१३ परमेश्वर के वचन के विद्यार्थी जानते हैं कि यहोवा ने कई मौक़ों पर अपने सेवकों के लिए छुटकारे के कृत्य कर दिखाए हैं। बहरहाल, अधिकांश स्थितियों में बाइबल नहीं कहती कि ‘जैसे उस समय था, वैसे ही मनुष्य के पुत्र की उपस्थिति होगी।’ पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरणा पाए हुए प्रेरित पतरस ने किस कारण से केवल दो उदाहरणों को विशिष्ट किया? लूत और नूह के दिनों में जो घटित हुआ, उसके विषय में क्या अलग था?
१४ एक सुस्पष्ट संकेत यहूदा ७ में पाया जाता है, जहाँ हम पढ़ते हैं कि “सदोम और अमोरा और उन के आस पास के नगर . . . आग के अनन्त दण्ड में पड़कर दृष्टान्त ठहरे हैं।” जी हाँ, उन नगरों के घोर पापियों का नाश अनन्त था, जैसा कि इस मौजूदा रीति-व्यवस्था के अन्त में दुष्टों का नाश भी अनन्त होगा। (मत्ती २५:४६) नूह के दिनों में हुए जलप्रलय का उल्लेख भी उसी तरह ऐसे संदर्भों में किया जाता है जिस में अनन्त दण्डों पर विचार-विमर्श किया गया है। (२ पतरस २:४, ५, ९-१२; ३:५-७) तो लूत और नूह के दिनों में हुए अधर्मी लोगों के विनाश से, यहोवा ने प्रदर्शित किया कि वह अधर्म करनेवालों को हमेशा के लिए नष्ट करने के द्वारा अपने सेवकों को छुटकारा दिलाएँगे।—२ थिस्सलुनीकियों १:६-१०.
१५. (अ) दुष्ट कार्य करनेवालों को कौनसी आग्रही चेतावनी दी जाती है? (ब) जो कोई अधर्म करने में लगे रहते हैं, उन पर न्यायदण्ड क्यों लाया जाएगा?
१५ दुष्ट लोगों के विनाश से यहोवा को कोई खुशी नहीं मिलती, और ना ही यह उनके सेवकों को कोई खुशी लाती है। अपने गवाहों के ज़रिए, यहोवा लोगों को प्रोत्साहित करते हैं: “तुम अपने अपने बुरे मार्ग से फिर जाओ; तुम क्यों मरो?” (यहेज़केल ३३:११) फिर भी, जब लोग इस प्रेमपूर्वक निवेदन को मानने की कोई इच्छा प्रकट नहीं करते परन्तु अपने ही स्वार्थी जीवन क्रम में लगे रहते हैं, तब खुद अपने पवित्र नाम के लिए यहोवा के आदर से तथा अपने वफ़ादार सेवकों के लिए, जो अधर्मी मनुष्यों के हाथों दुर्व्यवहार भुगतते हैं, उनके प्रेम से यह आवश्यक होता है कि वह न्यायदण्ड दें।
१६. (अ) हम क्यों आश्वस्त रह सकते हैं कि पूर्वबतलाया गया छुटकारा बहुत नज़दीक़ है? (ब) यह छुटकारा किस से होगा और इसे पाकर कैसी स्थिति होगी?
१६ छुटकारा लाने के लिए परमेश्वर का समय बहुत ही नज़दीक़ है! यीशु ने अपनी उपस्थिति और इस रीति-व्यवस्था की समाप्ति के चिह्न के तौर से जो मनोवृत्ति और घटनाएँ पूर्वबतलायी थीं, वह सुस्पष्ट रूप से दिखायी दे रही हैं। उस चिह्न के लक्षण सर्वप्रथम ७५ वर्ष पहले प्रकट होने लगे, और यीशु ने कहा कि “यह पीढ़ी” तब तक नहीं जाती, जब तब इस अधर्मी दुनिया पर परमेश्वर का न्यायदण्ड नहीं आ जाता। जब यहोवा निश्चित करेंगे कि राज्य संदेश का प्रचार पर्याप्त हद तक सारी पृथ्वी में सभी जातियों को एक गवाही के रूप में किया जा चुका है, तब इस दुष्ट दुनिया का अन्त आएगा, और उसके साथ साथ आएगा, ईश्वरीय भक्ति रखनेवालों के लिए छुटकारा। (मत्ती २४:३-३४; लूका २१:२८-३३) किस से छुटकारा? उन परीक्षाओं से, जो उन्हें दुष्टों के हाथों भुगतनी पड़ी हैं, और उन परिस्थितियों से जो उनके लिए, धर्म के प्रेमियों के तौर से, दिन पर दिन दुःख का कारण रही हैं। यह एक ऐसा छुटकारा भी होगा जिसे पाकर एक नयी दुनिया में बीमारियाँ और मृत्यु अतीत की बातें होंगी।
छुटकारे के विचार से ईश्वरीय मदद
१७. (अ) हमें अपने आप से कौनसा गंभीर करनेवाला सवाल करना चाहिए? (ब) हम किस तरह सबूत दे सकते हैं कि, नूह के जैसे, हम “ईश्वरीय भय” से प्रेरित हैं?
१७ हमें व्यक्तिगत रूप से जिस सवाल पर ग़ौर करना चाहिए, वह यह है, ‘क्या मैं परमेश्वर के उस कार्य के लिए तैयार हूँ?’ अगर हम अपने पर या धर्म की अपनी निज धारणा पर भरोसा कर रहे हैं, तो हम तैयार नहीं हैं। पर अगर, नूह के जैसे, हम “ईश्वरीय भय” से प्रेरित हैं, तो हम विश्वास के साथ यहोवा के दिए निदेशन की ओर अनुकूल प्रतिक्रिया दिखा रहे हैं, और यही हमारे छुटकारे का कारण बनेगा।—इब्रानियों ११:७.
१८. ऐसा क्यों है कि ईश-तंत्रीय प्राधिकार के लिए असली आदर सीखना छुटकारा पाकर नयी दुनिया में प्रवेश करने के लिए हमारी तैयारी का एक महत्त्वपूर्ण भाग है?
१८ ऐसे लोगों का वर्णन बख़ूबी से करते हुए, जो अभी भी यहोवा द्वारा दिए संरक्षण का आनन्द लेते हैं, भजन संहिता ९१:१, २ कहता है: “जो परमप्रधान के छाए हुए स्थान में बैठा रहे, वह सर्वशक्तिमान की छाया में ठिकाना पाएगा। मैं यहोवा के विषय में कहूँगा, कि वह मेरा शरणस्थान और गढ़ है; वह मेरा परमेश्वर है, मैं उस पर भरोसा रखूँगा।” यहाँ लोगों का एक समूह है जो परमेश्वर की ओर से इस तरह सुरक्षा पाते हैं जैसे नर-परिन्दे के ताक़तवर पँखों के नीचे बच्चे सुरक्षा पाते हैं। उनका पूरा भरोसा यहोवा पर है। वे मानते हैं कि वह परमप्रधान, सर्वशक्तिमान हैं। इसके परिणामस्वरूप, वे ईश-तंत्रीय प्राधिकार का आदर करते हैं और खुद को उसके अधीन करते हैं, चाहे यह प्राधिकार माता-पिता द्वारा प्रयुक्त हो या “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के द्वारा। (मत्ती २४:४५-४७) क्या यह व्यक्तिगत रूप से हमारे बारे में सच है? नूह के जैसे, क्या हम ‘यहोवा की सब आज्ञाओं के अनुसार करना’ और उसकी बतायी हुई रीति के अनुसार करना सीख रहे हैं? (उत्पत्ति ६:२२) अगर ऐसा ही कर रहे हैं, तो हम उस तैयारी की ओर अनुकूल प्रतिक्रिया दिखा रहे हैं जो यहोवा हमें इसलिए दे रहे हैं कि छुटकारा पाकर उनकी धर्मी नयी दुनिया में प्रवेश कर सकें।
१९. (अ) हमारा प्रतीकात्मक हृदय क्या है, और यह अत्यावश्यक क्यों है कि हम उसकी ओर ध्यान दें? (नीतिवचन ४:२३) (ब) सांसारिक प्रलोभनों की ओर हमारी प्रतिक्रिया के संबंध में हम लूत के मिसाल से किस तरह फ़ायदा उठा सकते हैं?
१९ उस तैयारी में हमारे प्रतीकात्मक हृदय की ओर ध्यान देना भी शामिल है। “यहोवा मनों के जाँचनेवाले हैं।” (नीतिवचन १७:३, न्यू.व.) वह हमें यह समझने की मदद करते हैं कि जो हम बाहर से दिखायी देते हैं, वह महत्त्वपूर्ण नहीं पर, उलटा, भीतरी व्यक्ति, हमारा हृदय महत्त्व रखता है। जबकि हम अपने इर्द-गिर्द के दुनियावालों के जैसे हिंसा या अनैतिकता में भाग नहीं लेते, हमें ऐसी बातों से बहकाए जाने या मन बहलाने के ख़िलाफ़ सचेत रहना चाहिए। लूत के जैसे, हमें ऐसे अधर्मी कार्यों के बस अस्तित्व से ही व्यथित होना चाहिए। बुराई से घृणा करनेवाले बुराई करने के तरीक़ों को खोजते नहीं रहेंगे; फिर भी, जो लोग उससे घृणा नहीं करते, शायद वे शरीर की दृष्टि से तो ऐसा करने से परहेज़ करेंगे, जबकि मानसिक रूप से वे चाहते रहेंगे कि काश उस में हिस्सा ले सकें। “हे यहोवा के प्रमियो, बुराई से घृणा करो।”—भजन संहिता ९७:१०.
२०. (अ) बाइबल हमें एक भौतिकवादी जीवन-शैली के ख़िलाफ़ किन किन रीतियों से चेतावनी देती है? (ब) हम किस तरह बता सकते हैं कि भौतिकवाद पर बाइबल के महत्त्वपूर्ण सबक़ हमारे हृदय में जड़ पकड़े हैं या नहीं?
२० यहोवा हमें प्रेममय रूप से न सिर्फ़ अनैतिक आचरण से परन्तु एक भौतिकवादी जीवन-शैली से भी बचकर रहने के लिए शिक्षा दे रहे हैं। उसका वचन सलाह देता है, ‘खाने और पहनने से सन्तोष करो।’ (१ तीमुथियुस ६:८) जब नूह और उसके बेटे जहाज़ में गए, तब उन्हें अपने घरों को छोड़ना पड़ा। लूत और उसके परिवार को भी, अपनी जानें बचाने के लिए घर और सम्पत्ति को त्याग देना पड़ा। हमने अपनी चाहत कहाँ लगायी है? “लूत की पत्नी को स्मरण रखो।” (लूका १७:३२) यीशु ने प्रोत्साहित किया: “इसलिए पहले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करते रहो, तो ये सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी।” (मत्ती ६:३३) क्या हम ऐसा कर रहे हैं? अगर हमारा मार्गदर्शन यहोवा के धार्मिक स्तरों से होता है और अगर उनके राज्य के सुसमाचार को घोषित करना हमारी ज़िन्दगी का प्रथम लक्ष्य है, तो हम सचमुच, छुटकारा पाकर उनकी नयी दुनिया में प्रवेश करने के लिए उनकी तैयारी की ओर अनुकूल प्रतिक्रिया दिखा रहे हैं।
२१. हम क्यों सही-सही आशा कर सकते हैं कि यहोवा की छुटकारे की प्रतिज्ञा जल्दी ही पूरी की जाएगी?
२१ ईश्वरीय भक्ति रखनेवालों को, जो राज्य सत्ता में उसकी उपस्थिति के चिह्न को पूर्ण देखते, यीशु ने कहा: “सीधे होकर अपने सिर ऊपर उठाना; क्योंकि तुम्हारा छुटकारा निकट होगा।” (लूका २१:२८) क्या आपने उस चिह्न को देखा है, जैसे यह तफ़सीलवार विकसित हुआ है? तो फिर यक़ीन रखें कि यहोवा के छुटकारे की प्रतिज्ञा बहुत ही नज़दीक़ है! पूरी तरह से कायल हों कि “यहोवा ईश्वरीय भक्ति रखनेवालों को परीक्षा में से निकाल लेना जानते हैं।”—२ पतरस २:९, न्यू.व.
आपने क्या सीखा है?
◻ लूत के जैसे, हमें दुनिया की जीवन-शैली की ओर कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए?
◻ सदोम से भाग निकलते समय भी लूत और उसके परिवार ने कौनसी परीक्षाओं का सामना किया?
◻ पतरस ने जिन मिसालों का इस्तेमाल किया है, वे किस तरह यहोवा के पक्ष में एक दृढ़ निर्णय लेने की अत्यावश्यकता पर बल देते हैं?
◻ छुटकारा पाने के लिए अपने लोगों को तैयार करते हुए, यहोवा हमें कौनसे महत्त्वपूर्ण सबक़ सिखा रहे हैं?
[पेज 20 पर तसवीरें]
परमेश्वर के लोग उनकी ओर से इस तरह सुरक्षा पाते हैं जैसे नर-परिन्दे के ताक़तवर पँखों के नीचे बच्चे सुरक्षा पाते हैं