सत्य में सहकर्मियों के तौर से चलें
यूहन्ना की दूसरी और तीसरी पत्री से विशिष्टताएँ
सत्य का ज्ञान यहोवा के उपासकों का पहचान-चिह्न है। (यूहन्ना ८:३१, ३२; १७:१७) ईश्वरीय सत्य में चलना उद्धार के लिए ज़रूरी है। और परमेश्वर के सेवकों को सत्य में सहकर्मी होना चाहिए।
प्रेरित यूहन्ना की दूसरी और तीसरी उत्प्रेरित चिट्ठियाँ ‘सत्य में चलने’ के बारे में बताती हैं। (२ यूहन्ना ४, न्यू.व.; ३ यूहन्ना ३, ४) यूहन्ना की तीसरी पत्री में “सत्य के पक्ष में सहकर्मियों” के रूप से सहयोग देना भी प्रोत्साहित किया गया है। (३ यूहन्ना ५-८) संभवतः, दोनों चिट्ठियाँ इफिसुस में या उसके आस-पास सामान्य युग के क़रीब वर्ष ९८ में लिखी गयीं। लेकिन उन में जो कहा गया है, वे बातें आज यहोवा के लोगों के फ़ायदे के लिए हो सकती हैं।
यूहन्ना की दूसरी पत्री सत्य पर ज़ोर देती है
यूहन्ना की दूसरी पत्री में पहले सत्य और प्रेम पर ज़ोर दिया गया और ‘मसीह के विरोधी’ के बारे में सावधान किया गया। (आयत १-७) यह पत्री “चुनी हुई श्रीमती” को संबोधित थी, जो कि शायद एक व्यक्ति थीं। लेकिन अगर यह एक मण्डली को भेजी गयी थी, तो उसके “लड़केबाले” आत्मा द्वारा उत्पन्न मसीही थे, जिन को परमेश्वर ने स्वर्गीय जीवन के लिए “चुना” था। (रोमियों ८:१६, १७; फिलिप्पियों ३:१२-१४) यूहन्ना बहुत आनन्दित हुआ कि कुछेक व्यक्ति ‘सत्य में चल’ रहे थे, और इस प्रकार धर्मत्याग का प्रतिरोध कर रहे थे। फिर भी, यह ज़रूरी था कि वे ‘मसीह के विरोधी’ के विषय में सावधान रहें, जो कि नहीं मानते कि यीशु शरीर में आया। आज यहोवा के गवाह धर्मत्याग के ख़िलाफ़ ऐसी चेतावनियों के विषय सावधानी बरतते हैं।
यूहन्ना ने आगे धर्मत्यागियों से निपटने के विषय में सलाह दी और फिर एक निजी इच्छा और अभिवादन के साथ समाप्त किया। (आयत ८-१३) प्रचार कार्य जैसे परिश्रम के द्वारा, उसने और अन्यों ने ऐसा फल उत्पन्न किया था जिसके परिणामस्वरूप उन लोगों का धर्मान्तरण हुआ था जिनको उसने यह चिट्ठी भेजी थी। सिर्फ़ आध्यात्मिक रूप से अपने विषय में ‘चौकस रहने’ से, वे “पूरा प्रतिफल पाते,” जिस में प्रत्यक्षतः विश्वसनीय अभिषिक्त लोगों के लिए रखा हुआ स्वर्गीय “मुकुट” भी शामिल था। (२ तीमुथियुस ४:७, ८) अगर कोई जो “मसीह की शिक्षा में बना नहीं रहता,” उनके पास आए, तो उन्हें ‘कभी न तो घर में आने देना चाहिए और न अभिवादन करना चाहिए’ ताकि वे उसके “बुरे कामों” में साझी होने से बच सकें। यह आशा व्यक्त करने के बाद कि वह आता और उन संगी विश्वासियों के सम्मुख बात करता, यूहन्ना ने अभिवादन के साथ समाप्त की।
यूहन्ना की तीसरी पत्री सहयोग पर ज़ोर देती है
यूहन्ना की तीसरी पत्री गयुस के नाम थी और इस में, वह संगी विश्वासियों के लिए क्या कर रहा था, इस विषय में सबसे पहले ग़ौर किया गया। (आयत १-८) सम्पूर्ण मसीही उपदेश का अनुसरण करने के द्वारा गयुस ‘सत्य में सचमुच चलता था।’ वह अतिथि-भाइयों की सहायता करके एक “विश्वासी” काम भी कर रहा था। यूहन्ना ने लिखा: “हम ऐसों का स्वागत करने लिए बाध्य हैं, जिस से हम भी सत्य के पक्ष में उन के सहकर्मी हों।” आज यहोवा के गवाह सफ़री अध्यक्षों की समान मेहमानदारी करते हैं।
देमेत्रियुस के आचरण में और दियुत्रिफेस के बुरे आचरण में वैषम्य दिखलाने के बाद, यूहन्ना ने अपनी पत्री समाप्त की। (आयत ९-१४) आत्म-श्लाधा की खोज करनेवाले दियुत्रिफेस ने यूहन्ना के लिए आदर बिल्कुल नहीं दिखाया और उन लोगों को, जो भाइयों का स्वागत कर रहे थे, मण्डली से निकल-बाहर करने की कोशिश भी की। यद्यपि, देमेत्रियुस नामक व्यक्ति का उल्लेख एक उत्तम मिसाल के तौर से किया गया। यूहन्ना गयुस को जल्द ही देखने की आशा करता था और उसने अपनी चिट्ठी अभिवादन और इस इच्छा से समाप्त की, कि गयुस को शान्ति मिलती रहे।
[पेज 31 पर बक्स/तसवीरें]
काग़ज़, कलम और सियाही से: यूहन्ना “काग़ज़ और सियाही से” बहुत कुछ लिखने के बजाय, “चुनी हुई श्रीमती” और उसके “लड़केबालों” से भेंट करना चाहता था। गयुस को “काग़ज़ और सियाही से” लिखते रहने के बजाय, प्रेरित ने आशा की कि वह उसे जल्दी ही देखेगा। (२ यूहन्ना १, १२; ३ यूहन्ना १, १३, १४) जिस यूनानी शब्द [काʹला·मोस] का अनुवाद “कलम” किया गया है, यह एक “बेंत” या “सरकण्डे” का ज़िक्र करता है और उसका अनुवाद “लिखने का सरकण्डा” भी किया जा सकता है। यूनानियों और रोमियों के बीच, सरकण्डे से बनी कलम नोकदार होती थी और बाद वाले समयों के पर की कलमों के जैसे चीरी हुई होती थी। यूनानी शब्द मीʹलान, जिसका अनुवाद “सियाही” किया गया है, पुलिंग विशेषण मीʹलास का नपुंसक रूप है, जिसका अर्थ है “काला।” सबसे पुरनी सियाहियों में, रंगद्रव्य एक कार्बनमय काला रंग होता था—तेल या लकड़ी को जलाकर पाया गया एक क़िस्म का काजल, या वनस्पति अथवा पशु स्रोतों से पाया गया क्रिस्टलीय काठकोयला। आम तौर पर, सियाही को सूखी हुई सिलों या टिक्कियों में रखा जाता था, जिन्हें लिपिक भिगोया करता था और अपनी कूँची या सरकण्डे से काग़ज़ पर लगाया करता था। उन दिनों का काग़ज़ एक पतले पदार्थ से बना काग़ज़ था, जो कि पॅपाइरस के पौधे से प्राप्त पट्टियों से बनाया गया था। प्रारंभिक मसीहियों ने ऐसे काग़ज़ को पत्रों, लपेटवें काग़जों, और प्राचीन पाण्डुलिपियों के लिए इस्तेमाल किया।