एक चित्त होकर चलना
“हे यहोवा अपना मार्ग मुझे दिखा, . . . मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूं।”—भजन ८६:११.
१. यहोवा अपने निष्ठावान् जनों को कैसे प्रतिफल देता है?
‘हे प्रभु [यहोवा, NW], केवल तू ही परमेश्वर है।’ (भजन ८६:८, १०) दाऊद ने मूल्यांकन से छलकते हुए हृदय से परमेश्वर की प्रशंसा की। दाऊद का पूरे इस्राएल के ऊपर राजा बनने से भी पहले, यहोवा ने उसे शाऊल और पलिश्तियों से बचाया था। अतः वह गा सकता था: “यहोवा मेरी चट्टान और मेरा गढ़ और मेरा छुड़ानेवाला है। निष्ठावान् व्यक्ति के साथ तू निष्ठा के साथ कार्य करेगा।” (२ शमूएल २२:२, २६, NW) यहोवा ने अपने निष्ठावान् सेवक को अनेक आज़माइशों में से सुरक्षित रखा था। दाऊद अपना भरोसा और विश्वास अपने निष्ठावान् परमेश्वर पर रख सकता था, लेकिन उसे निरंतर मार्गदर्शन की ज़रूरत थी। दाऊद ने अब परमेश्वर से निवेदन किया: “हे यहोवा अपना मार्ग मुझे दिखा।”—भजन ८६:११.
२. यहोवा ने हमें उसके सिखलाए हुए होने के लिए कैसे प्रबन्ध किया है?
२ दाऊद सांसारिक विचारों या दर्शनशास्त्रों से कोई सरोकार नहीं रखना चाहता था। वह ‘यहोवा का सिखलाया हुआ’ होना चाहता था, जैसे कि परमेश्वर के भविष्यवक्ता ने बाद में अभिव्यक्त किया। (यशायाह ५४:१३) संभवतः दाऊद अपने दिन में उपलब्ध बाइबल की केवल नौ ही पुस्तकों पर मनन कर सकता था। फिर भी, यहोवा की ओर से वह हिदायत उसके लिये अमूल्य थी! आज सिखलाए जाने में हम बाइबल की सभी ६६ पुस्तकों पर, और साथ ही “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” द्वारा उपलब्ध किये गये प्रचुर राज्य साहित्यों पर दावत कर सकते हैं। (मत्ती २४:४५) “जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखनेवालों के लिये तैयार की हैं, . . . बरन परमेश्वर की गूढ़ बातें भी,” को जाँचने के लिये, आइये हम यहोवा से प्रार्थना करें, कि उसकी आत्मा हमारी मदद करे।—१ कुरिन्थियों २:९, १०.
३. किन तरीक़ों से बाइबल की हिदायत हमें लाभ पहुँचा सकती है?
३ हमारे जीवन में उत्पन्न हो सकने वाले हरेक प्रश्न और समस्या का उत्तर बाइबल में है। “जितनी बातें पहिले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिये लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्र शास्त्र की शान्ति के द्वारा आशा रखें।” (रोमियों १५:४) यहोवा की हिदायत को आत्मसात् करने से हमें कष्ट सहने के लिये शक्ति मिलेगी, हताशा के समय में हमें सांत्वना मिलेगी, और राज्य आशा को हमारे हृदयों में उज्ज्वल रखेगी। परमेश्वर के वचन को “रात दिन” पढ़ने और उस पर मनन करने में हम आनन्द पाएं, क्योंकि बाइबल-आधारित बुद्धि “उनके लिये . . . जीवन का वृक्ष बनती है” “जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं,” “और जो उसको पकड़े रहते हैं, वह धन्य हैं।”—भजन १:१-३; नीतिवचन ३:१३-१८; यूहन्ना १७:३ को भी देखिए.
४. हमारे कार्य के सम्बन्ध में, यीशु ने हमारे लिए कौनसा उदाहरण रखा है?
४ परमेश्वर का पुत्र, यीशु, जो “दाऊद की सन्तान” भी कहलाता है, हमेशा हिदायत के लिये यहोवा की ओर देखता था। (मत्ती ९:२७)a उसने कहा: “पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है, क्योंकि जिन जिन कामों को वह करता है उन्हें पुत्र भी उसी रीति से करता है।” “मैं . . . अपने आप से कुछ नहीं करता, परन्तु जैसे मेरे पिता ने मुझे सिखाया, वैसे ही ये बातें कहता हूं।” (यूहन्ना ५:१९; ८:२८) यीशु ने हमारे लिये ‘उसके चिन्ह पर चलने’ का एक आदर्श छोड़ा है। (१ पतरस २:२१) ज़रा सोचिये! अगर हम अध्ययन करेंगे जैसे कि यीशु ने किया होगा, तब किसी भी परिस्थिति में हम वैसा ही कार्य करेंगे जैसा कार्य यहोवा हम से चाहेगा। यहोवा का मार्ग हमेशा सही मार्ग होता है।
५. “सत्य” क्या है?
५ दाऊद आगे घोषित करता है: “मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलूंगा।” (भजन ८६:११) एक हज़ार साल बाद, पीलातुस, ने दाऊद की सन्तान, यीशु, को सम्बोधित करते हुए पुछा: “सत्य क्या है?” यीशु ने अभी-अभी अपने राज्य को “इस जगत का नहीं” होने के ऊपर ध्यान आकर्षित किया था। उसने आगे कहा: “तू कहता है, क्योंकि मैं राजा हूं; मैं ने इसलिये जन्म लिया, और इसलिये जगत में आया हूं कि सत्य पर गवाही दूं।” (यूहन्ना १८:३३-३८) यीशु यहाँ पर बता रहा था कि सत्य मसीही राज्य पर केंद्रित करता है। वस्तुतः, बाइबल का सम्पूर्ण मूल-विषय है राज्य के द्वारा यहोवा के नाम का पवित्रीकरण।—यहेजकेल ३८:२३; मत्ती ६:९, १०; प्रकाशितवाक्य ११:१५.
६. सत्य में चलते समय, हमें किन बातों से सावधान रहना चाहिये?
६ सत्य में चलने का अर्थ है, राज्य की आशा को अपने जीवन में मुख्य चिंता बनाना। हमें, यीशु के उदाहरण के अनुसार, राज्य हितों को प्रथम रखने में अविभाजित होना है, और अवसर के अनुसार राज्य सत्य की गवाही देने में उत्साहपूर्ण। (मत्ती ६:३३; यूहन्ना १८:३७) हम लोग ऐसा नहीं कर सकते कि केवल नाममात्र सेवकाई देते हुए कुछ समय सत्य में चलें, पर फिर विमार्ग लेकर अपने आपको प्रसन्न करने के लिये अत्याधिक मनोरंजन में मग्न हो जाएं या समय बरबाद करनेवाली जीविका आरंभ करें या “धन . . . की सेवा” करें। (मत्ती ६:२४) हम इन में से एक उपमार्ग पर गुम हो सकते हैं, और फिर कभी भी ‘सकरा मार्ग जो जीवन को पहुंचाता है’ पर वापस जाने के मार्ग को नहीं ढूँढ़ पाएं। आइये हम उस मार्ग से विचलित न हों! (मत्ती ७:१३, १४) हमारा महान् प्रशिक्षक, यहोवा, यह कहते हुए अपने वचन और संगठन के द्वारा, उस मार्ग को स्पष्ट करता है: “जब कभी तुम दहिनी वा बाई ओर मुड़ने लगो तब . . . मार्ग यही है, इसी पर चलो।”—यशायाह ३०:२१.
उचित भय
७. हम अपने आपको कैसे “एक” चित्त कर सकते हैं?
७ दाऊद की प्रार्थना आयत ११ में जारी रहती है: “मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूं।” दाऊद की तरह, हमें भी चाहिये कि परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में हमारा हृदय अविभाजित और पूर्ण हो। यह मूसा की सलाह के अनुसार है: “और अब, हे इस्राएल, तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ से इसके सिवाय और क्या चाहता है, कि तू अपने परमेश्वर यहोवा का भय माने, और उसके सारे मार्गों पर चले, उस से प्रेम रखे, और अपने पूरे मन और अपने सारे प्राण से उसकी सेवा करे, और यहोवा की जो जो आज्ञा और विधि मैं आज तुझे सुनाता हूं उनको ग्रहण करे, जिस से तेरा भला हो?” (व्यवस्थाविवरण १०:१२, १३) वस्तुतः, अपने भलाई के लिये ही हम यहोवा की सेवा में मन और प्राण लगाते हैं। इस प्रकार हम उसके प्रतिष्ठ नाम का उचित भय दिखाते हैं। यहोवा के नाम का शाब्दिक अर्थ है “वह जो करवाता है,” विशेष रूप से अपने महान् उद्देश्यों को पूर्ति पर लाने के संबंध में। यह पूरे विश्व के ऊपर उसके सर्वोच्च अधिकार के लिये भी प्रतीक है। परमेश्वर के प्रताप के विस्मय में सेवा करने से, हम मरणशील मनुष्य के भय से नहीं बहकेंगे। हमारे हृदय विभाजित नहीं होंगे। बल्कि, सर्वोच्च न्यायी और सर्वसत्ताधारी प्रभु, यहोवा, जो हमारे जीवनों को अपने हाथ में रखता है, को अप्रसन्न करने वाले कोई भी ऐसे काम करने से डरेंगे।—यशायाह १२:२; ३३:२२.
८, ९. (क) “संसार के नहीं” होने का क्या अर्थ है? (ख) “एक तमाशा” बनने के लिए हमें कौन-कौन से क़दम उठाने चाहिए?
८ निन्दा और अत्याचार का सामना करते हुए भी, हम अपने इर्द-गिर्द के दुष्ट संसार का नहीं होने के यीशु के निर्भीक उदाहरण का अनुकरण करेंगे। (यूहन्ना १५:१७-२१) इसका यह अर्थ नहीं है कि यीशु के चेलों को एकान्तवासी की तरह या मठ में छिपकर रहना है। यीशु ने अपने पिता को प्रार्थना में कहा: “मैं यह बिनती नहीं करता, कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख। जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं। सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर: तेरा वचन सत्य है। जैसे तू ने जगत में मुझे भेजा, वैसे ही मैं ने भी उन्हें जगत में भेजा।” (यूहन्ना १७:१५-१८) यीशु की तरह, हमें भी राज्य सत्य को घोषित करने के लिये भेजा गया है। यीशु सुगम्य था। उसके सिखाने के ढंग से लोग विश्राम पाते थे। (मत्ती ७:२८, २९; ११:२८, २९; यूहन्ना ७:४६ से तुलना कीजिए.) हमारे साथ भी ऐसा ही होना चाहिए।
९ हमारी मैत्रिक मित्रता, सुरुचिपूर्ण सँवरना और दिखाव-बनाव, कृपापूर्वक और निर्मल वार्तालाप, के कारण सही हृदय वाले लोगों को हम और हमारा संदेश स्वीकार्य होना चाहिये। हमें बेढंगापन, निर्लज्ज पहनावा, संगति जो सांसारिक उलझनों की ओर ले जा सकती हैं, और चरित्रहीन, सिद्धांतहीन जीवन के ढंग से दूर रहना चाहिये, जो हम अपने इर्द-गिर्द के संसार में देखते हैं। “जगत और स्वर्गदूतों और मनुष्यों के लिये एक तमाशा” ठहरने के कारण, हम प्रतिदिन २४ घंटे अनुकरणीय मसीहियों के तौर पर सेवा करने और जीने के काम पर हैं। (१ कुरिन्थियों ४:९; इफिसियों ५:१-४; फिलिप्पियों ४:८, ९; कुलुस्सियों ४:५, ६) इसे करने के लिये हमें एक चित्त होना चाहिये।
१०. यहोवा उन लोगों को कैसे याद रखता है जो उसकी पवित्र सेवकाई में अपने आपको एक चित्त करते हैं?
१० हम जो यहोवा के महान् उद्देश्यों पर मनन करते हुए और अपने जीवन को पवित्र सेवकाई से भरपूर रखते हुए, उसके नाम के भय में अपने आपको एक चित्त करते हैं, यहोवा द्वारा याद रखे जाएंगे। “यहोवा की दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिये फिरती रहती है कि जिनका मन उसकी ओर निष्कपट रहता है, उनकी सहायता में वह अपना सामर्थ दिखाए।” (२ इतिहास १६:९) भविष्यसूचक रूप से हमारे दिन को सम्बोधित करते हुए, मलाकी ३:१६ बताता है: “तब यहोवा का भय माननेवालों ने आपस में बातें कीं, और यहोवा ध्यान धरकर उनकी सुनता था; और जो यहोवा का भय मानते और उसके नाम का सम्मान करते थे, उनके स्मरण के निमित्त उसके साम्हने एक पुस्तक लिखी जाती थी।” यहोवा के उस हितकर भय में हम एक चित्त हों!
यहोवा की करुणा
११. यहोवा की करुणा अपने निष्ठावान् जनों के प्रति कैसे अभिव्यक्त की जाएगी?
११ दाऊद की प्रार्थना कितनी भावपूर्ण है! वह आगे कहता है: “हे प्रभु हे मेरे परमेश्वर मैं अपने सम्पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम की महिमा सदा करता रहूंगा। क्योंकि तेरी करुणा मेरे ऊपर बड़ी है; और तू ने मुझ को अधोलोक की तह में जाने से बचा लिया है।” (भजन ८६:१२, १३) इस भजन में दूसरी बार, दाऊद यहोवा की उसकी करुणा—उसके निष्ठावान् प्रेम— के लिये प्रसंशा करता है। इतना महान् है यह प्रेम कि असंभव प्रतीत होने वाली स्थितियों में भी यह बचा सकता है। जब शाऊल विराने में उसका पीछा कर रहा था, तब शायद दाऊद ने एक कोने में छुपकर मरने के जैसे महसूस किया हो। यह निम्नतम शीओल—क़बर की तह—के आमने-सामने आने के समान था। परन्तु यहोवा ने उसे छुड़ाया! इसी प्रकार, यहोवा ने अक़सर अपने आधुनिक-दिन के सेवकों को अद्भुत तरीक़ों से राहत पहुँचाई है, और साथ ही उसने खराई रखनेवालों को, जिन्होंने मौत तक भी निष्ठापूर्वक सही है, थामे रखा है। सभी निष्ठावान् व्यक्तियों को उनका प्रतिफल मिलेगा, अगर ज़रूरत पड़ी तो पुनरुत्थान के ज़रिये भी।—अय्यूब १:६-१२; २:१-६, ९, १०; २७:५; ४२:१०; नीतिवचन २७:११; मत्ती २४:९, १३; प्रकाशितवाक्य २:१० से तुलना कीजिए.b
१२. किस प्रकार से पादरी वर्ग दुःसाहसी और बलात्कारी हुआ है, और उसका प्रतिफल क्या होगा?
१२ अत्याचारियों के विषय में दाऊद पुकारता है: “हे परमेश्वर अभिमानी लोग तो मेरे विरुद्ध उठे हैं, और बलात्कारियों का समाज मेरे प्राण का खोजी हुआ है, और वे तेरा कुछ विचार नहीं रखते।” (भजन ८६:१४) आज, अत्याचारियों में मसीही जगत के पादरी भी सम्मिलित हैं। ये लोग परिकल्पना करते हैं कि वे परमेश्वर की उपासना करते हैं पर उसके पवित्र नाम को उन्होंने उपाधि “प्रभु” से प्रतिस्थापित कर दिया है और उसे रहस्यमय त्रियेक के रूप में प्रस्तुत किया है जिसका असल में बाइबल में कहीं भी ज़िक्र नहीं आता है। कितना दुःसाहस! इस के अतिरिक्त, वे राजनीतिक शक्तियों को प्रेरित करने की कोशिश करते हैं कि वे यहोवा के गवाहों को ग़ैर-कानूनी करार दें और उन्हें क़ैद कर लें, जैसे अभी भी पृथ्वी भर में काफ़ी बड़ी संख्या के देशों में हो रहा है। ये पादरी का वेष धारण करने वाले परमेश्वर के नाम के निंदक, बड़े बाबुल के सभी वेश्या जैसे अंशों के साथ, अपना प्रतिफल प्राप्त करेंगे।—प्रकाशितवाक्य १७:१, २, १५-१८; १९:१-३.
१३. यहोवा अपनी भलाई को दिखाते हुए कौनसे गुणों को प्रकट करता है?
१३ इसके सुखप्रद प्रतिकूल में दाऊद की प्रार्थना जारी रहती है: “परन्तु प्रभु तू दयालु और अनुग्रहकारी ईश्वर है, तू विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करुणामय [और सत्य, NW] है।” (भजन ८६:१५) सचमुच, हमारे परमेश्वर के ऐसे गुण सर्वोत्तम हैं। ये शब्द हमें सीनै पर्वत की ओर वापस ले जाते हैं जब मूसा ने यहोवा की महिमा देखने के लिए निवेदन किया था। यहोवा ने उत्तर दिया: “मैं अपनी सारी भलाई तेरे साम्हने से चलाऊंगा, और तेरे सम्मुख यहोवा नाम का प्रचार करूंगा।” पर उसने मूसा को चेतावनी दी: “तू मेरे मुख का दर्शन नहीं कर सकता; क्योंकि मनुष्य मेरे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता।” उसके बाद यह घोषित करते हुए यहोवा बादल में उतरा: “यहोवा, यहोवा, ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य।” (निर्गमन ३३:१८-२०, फुटनोट; ३४:५, ६) दाऊद ने इन शब्दों को अपनी प्रार्थना में दुहराया। हमारे लिए यहोवा के ऐसे गुण किसी शारीरिक रूप से भी कहीं अधिक अर्थ रखते हैं! हमारे अपने अनुभव से, क्या हम यहोवा की भलाई का मूल्यांकन नहीं करते हैं, जो इन उत्तम गुणों में उदाहरणित है?
‘भलाई का एक लक्षण’
१४, १५. यहोवा अपने सेवकों को ‘भलाई का एक लक्षण’ कैसे दिखाता है?
१४ दाऊद फिर से यहोवा के आशीष का विनय करता है, कहते हुए: “मेरी ओर फिरकर मुझ पर अनुग्रह कर; अपने दास को तू शक्ति दे, और अपनी दासी के पुत्र का उद्धार कर। मुझे भलाई का कोई [एक, NW] लक्षण दिखा, जिसे देखकर मेरे बैरी निराश हों, क्योंकि हे यहोवा तू ने आप मेरी सहायता की और मुझे शान्ति दी है।” (भजन ८६:१६, १७) दाऊद स्वीकार करता है कि ‘यहोवा के दासी के पुत्र’ के तौर पर, उसे भी यहोवा का होना है। यही बात आज हम सब के लिए भी सच है, जिन्होंने अपने जीवन को यहोवा और उसकी सेवा को समर्पित कर दिया है। हमें यहोवा की पवित्र आत्मा के द्वारा उसकी रक्षक शक्ति की ज़रूरत है। इसलिए, हम अपने परमेश्वर से बिनती करते हैं कि वह हमें ‘भलाई का एक लक्षण’ दिखाए। यहोवा की भलाई अभी-अभी विचार-विमर्श किये अच्छे गुणों को सम्मिलित करती है। इस आधार पर, हम यहोवा से हमें देने के लिये कौनसे लक्षण, या चिह्न, की अपेक्षा कर सकते हैं?
१५ यहोवा “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान” का देनेवाला है और, जैसे यीशु हमें आश्वासन देता है, वह “अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा” देने में दानी है। (याकूब १:१७; लूका ११:१३) पवित्र आत्मा—यहोवा की ओर से क्या ही अमूल्य देन! पवित्र आत्मा के ज़रिये, अत्याचार के समय में भी यहोवा हृदय का आनन्द प्रदान करता है। इस भाँति, जब यीशु के प्रेरितों की जानों का मुक़दमा चल रहा था, तब वे आनन्द के साथ घोषित कर सके कि परमेश्वर उन लोगों को पवित्र आत्मा देता है जो शासक के रूप में उसकी आज्ञा पालन करते हैं। (प्रेरितों ५:२७-३२) पवित्र आत्मा के आनन्द ने उन्हें “भलाई का एक लक्षण” दिखाया।
१६, १७. (क) पौलुस और बरनबास को यहोवा ने अपनी भलाई का कौनसा लक्षण दिया? (ख) सताए गए थिस्सलुनीकियों को कौनसा लक्षण दिया गया?
१६ एशिया माइनर के बीच में से उनकी मिशनरी यात्रा के दौरान, पौलुस और बरनबास को कठिनाइयों, यहाँ तक कि घोर अत्याचार का सामना करना पड़ा। जब उन्होंने पिसिदिया के अन्ताकिया में प्रचार किया, यहूदियों ने उनके संदेश को ठुकरा दिया। अतः, वे अन्यजातियों के लोगों की ओर फिरे। क्या परिणाम हुआ? “यह सुनकर अन्यजाति आनन्दित हुए, और परमेश्वर के वचन की बड़ाई करने लगे: और जितने अनन्त जीवन के लिये ठहराए गए थे, उन्हों ने विश्वास किया।” परन्तु यहूदियों ने हंगामा मचाया, जिस कारण इन मिशनरियों को देश से बाहर निकाला गया। क्या वे और नए विश्वासकर्ता इस बारे में निराश हो गए? बिल्कुल नहीं! बल्कि, “चेले आनन्द से और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते रहे।” (प्रेरितों १३:४८, ५२) यहोवा ने उन्हें अपनी भलाई का वह लक्षण दिया।
१७ बाद में, थिस्सलुनीकियों की नई कलीसिया पर अत्याचार किया गया। जिस कारण प्रेरित पौलुस ने एक सांत्वना पत्र लिखा, और क्लेश में उनकी सहनशीलता की सराहना की। उन्होंने “बड़े क्लेश में पवित्र आत्मा के आनन्द के साथ वचन को” माना था। (१ थिस्सलुनीकियों १:६) परमेश्वर, जो दयालु और अनुग्रहकारी, विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करुणामय और सत्य है, की ओर से एक स्पष्ट लक्षण के रूप में “पवित्र आत्मा के आनन्द” ने उन्हें निरंतर शक्तिशाली बनाया।
१८. पूर्वी यूरोप में हमारे भाइयों ने यहोवा की भलाई का मूल्यांकन कैसे दिखाया है?
१८ हाल के समय में, पूर्वी यूरोप में हमारे निष्ठावान् भाइयों के प्रति यहोवा ने अपनी भलाई अभिव्यक्त की है, उन लोगों को लज्जित करते हुए जो उनसे घृणा करते थे—उनके भूतपूर्व अत्याचारी। हाल में चाहे दशकों के दमन से उन्हें राहत दी गई है, इन प्रिय भाइयों को अभी भी सहना पड़ रहा है, क्योंकि अनेक घोर आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। फिर भी, उनकी ‘पवित्र आत्मा का आनन्द’ उन्हें सांत्वना देता है। इससे बढ़कर उन्हें और क्या आनन्द मिल सकता है कि वे गवाही को विस्तृत करने में अपनी नई स्वतंत्रताओं का उपयोग करें? बहुत लोग उनकी बात सुन रहे हैं जैसे कि सम्मेलनों और बपतिस्मा की रिपोर्टों से पता चलता है।—प्रेरितों ९:३१; १३:४८ से तुलना कीजिए.
१९. भजन ८६:११ के शब्दों को हम अपना कैसे बना सकते हैं?
१९ इस लेख में और पूर्वगामी लेख में जो कुछ विचार-विमर्श किया गया है, वह यहोवा के प्रति दाऊद की भावपूर्ण प्रार्थना को दुहराता है: “हे यहोवा अपना मार्ग मुझे दिखा, . . . मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूं।” (भजन ८६:११) आइये हम अपने १९९३ के वार्षिक पाठ के इन शब्दों को अपना बनाएं, जैसे-जैसे हम राज्य हितों के समर्थन में और हमारे एकाकी परमेश्वर, सर्वसत्ताधारी प्रभु यहोवा, की अक्षय भलाई के मूल्यांकन में जी जान से काम करें।
[फुटनोट]
a पूर्वसूचित “वंश” के तौर पर, यीशु दाऊद के राज्य का वारिस था और इस प्रकार शाब्दिक अथवा आध्यात्मिक माने में “दाऊद की सन्तान” था।—उत्पत्ति ३:१५; भजन ८९:२९, ३४-३७.
b आधुनिक-दिन के उदाहरणों के लिये, यहोवा के गवाहों की वार्षिक-पुस्तक (Yearbook of Jehovah’s Witnesses), संस्करण १९७४, पृष्ठ ११३-२१२; १९८५, पृष्ठ १९४-७; १९८६, पृष्ठ २३७-८; १९८८, पृष्ठ १८२-५; १९९०, पृष्ठ १७१-२; १९९२, पृष्ठ १७४-८१, देखिए।
आप किस तरह जवाब देंगे?
▫ “हे यहोवा अपना मार्ग मुझे दिखा,” प्रार्थना करने से हम क्या दिखाते हैं?
▫ यहोवा के नाम का भय मानने के लिए अपने को एक चित्त करने का क्या अर्थ है?
▫ सब निष्ठावान् जनों के प्रति यहोवा अपनी करुणा कैसे दिखाएगा?
▫ यहोवा हमें “भलाई का एक लक्षण” कैसे दिखाता है?
[पेज 28 पर बक्स]
१९९३ के लिए वार्षिक पाठ: “हे यहोवा अपना मार्ग मुझे दिखा, . . . मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूं।” —भजन ८६:११.
[पेज 27 पर तसवीरें]
यहोवा उन लोगों के लिए एक चट्टान और गढ़ है जो सत्य में सीधे चलते हैं
[पेज 30 पर तसवीरें]
जून में, रूस के सेंट पिटर्सबर्ग में, यहोवा के गवाहों के “ज्योति वाहक” अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में ४६,२१४ उपस्थित हुए और ३,२५६ का बपतिस्मा हुआ। क्या ही अपूर्वरीति से ये अपने लिए यहोवा की भलाई का लाभ, “पवित्र आत्मा के आनन्द” के साथ उठा रहे हैं!