यहोवा के गवाह क्यों जागते रहते हैं
“जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा।”—मत्ती २४:४२.
१. ‘जागते रहने’ की सलाह किस पर लागू होती है?
परमेश्वर के हर सेवक को—चाहे जवान हो या बूढ़ा, नया-नया समर्पण किया हो या सेवा का लम्बा रिकार्ड हो—बाइबल की सलाह लागू होती है: “जागते रहो”! (मत्ती २४:४२) यह महत्त्वपूर्ण क्यों है?
२, ३. (क) यीशु ने किस चिह्न का स्पष्टता से वर्णन किया, और भविष्यवाणी की पूर्ति ने क्या दिखाया है? (ख) मत्ती २४:४२ में उल्लिखित कौनसी परिस्थिति हमारे विश्वास की असलियत को परखती है, और कैसे?
२ पृथ्वी पर अपनी सेवकाई के अन्त के क़रीब यीशु ने राज्य शक्ति में अपनी अदृश्य उपस्थिति का चिह्न पूर्वबताया। (मत्ती, अध्याय २४ और २५) उसने स्पष्ट रूप से अपनी शाही उपस्थिति के उस समय का वर्णन किया—और भविष्यवाणी की पूर्ति में हुई घटनाएँ दिखाती हैं कि १९१४ में स्वर्ग में उसे सिंहासनारूढ़ किया गया। उसने एक परिस्थिति की ओर भी संकेत किया जो तब हमारे विश्वास की असलियत को परखती। जब वह बड़े क्लेश के दौरान वधिक के रूप में क्रियाशील होकर वर्तमान दुष्ट व्यवस्था का नाश करता, उस समय के संदर्भ में यीशु ने कहा: “उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता; न स्वर्ग के दूत, और न पुत्र, परन्तु केवल पिता।” इसी को ध्यान में रखते हुए उसने कहा: “इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा।”—मत्ती २४:३६, ४२.
३ हमारा उस दिन और घड़ी को न जानना जब बड़ा क्लेश शुरू होगा यह माँग करता है कि यदि हम मसीही होने का दावा करते हैं तो हमें हर दिन सच्चे मसीहियों के समान जीना चाहिए। जिस तरह आप अपने जीवन का प्रयोग कर रहे हैं क्या उससे आपको बड़े क्लेश के आने पर प्रभु की स्वीकृति मिलेगी? या यदि मृत्यु पहले आ जाती है, तब क्या वह आपको एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद रखेगा जिसने अपने वर्तमान जीवन के अन्त तक निष्ठा से यहोवा की सेवा की?—मत्ती २४:१३; प्रकाशितवाक्य २:१०.
आरंभिक शिष्यों ने जागते रहने का प्रयास किया
४. आध्यात्मिक रूप से जागते रहने के यीशु के उदाहरण से हम क्या सीख सकते हैं?
४ स्वयं यीशु मसीह ने आध्यात्मिक रूप से जागते रहने का सर्वोत्तम उदाहरण रखा। उसने अपने पिता से बार-बार और जोश के साथ प्रार्थना की। (लूका ६:१२; २२:४२-४४) जब उसके सामने संकट आए तो उसने शास्त्रवचनों में दिए गए निर्देशन पर अत्यधिक भरोसा रखा। (मत्ती ४:३-१०; २६:५२-५४) उसने अपने आपको उस कार्य से विचलित नहीं होने दिया जो यहोवा ने उसे नियुक्त किया था। (लूका ४:४०-४४; यूहन्ना ६:१५) क्या वे जो स्वयं को यीशु के अनुयायी समझते थे उसी प्रकार जागते रहते?
५. (क) यीशु के प्रेरितों को आध्यात्मिक संतुलन बनाए रखने में समस्याएँ क्यों हुईं? (ख) अपने पुनरुत्थान के बाद यीशु ने अपने प्रेरितों को क्या सहायता दी?
५ कभी-कभी, यीशु के प्रेरित भी लड़खड़ा गए। अति उत्सुकता और ग़लत विचारों के कारण उन्हें निराशाएँ हुईं। (लूका १९:११; प्रेरितों १:६) इससे पहले कि वे पूरी तरह यहोवा पर भरोसा रखना सीखते, अचानक आए संकटों ने उनका संतुलन बिगाड़ दिया। अतः, जब यीशु गिरफ़्तार हुआ, उसके प्रेरित भाग गए। कुछ समय बाद उसी रात को पतरस ने डर के कारण मसीह को जानने से भी बार-बार इन्कार कर दिया। यीशु की इस सलाह को प्रेरितों ने अब तक गंभीरता से नहीं लिया था: “जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो।” (मत्ती २६:४१, ५५, ५६, ६९-७५) अपने पुनरुत्थान के बाद यीशु ने उनके विश्वास को मज़बूत करने के लिए शास्त्रवचनों का प्रयोग किया। (लूका २४:४४-४८) और जब ऐसा प्रतीत हुआ कि उनमें से कुछ लोग उन्हें सौंपी गयी सेवकाई को शायद दूसरा स्थान दें, तो यीशु ने ज़्यादा महत्त्वपूर्ण कार्य पर ध्यान लगाने के लिए उनकी प्रेरणा को मज़बूत बनाया।—यूहन्ना २१:१५-१७.
६. यीशु ने पहले अपने शिष्यों को कौनसे दो फंदों के विरुद्ध चेतावनी दी थी?
६ इससे पहले, यीशु ने अपने शिष्यों को सतर्क किया था कि उन्हें संसार का भाग नहीं होना था। (यूहन्ना १५:१९) उसने सलाह भी दी थी कि एक दूसरे पर प्रभुता न जमाएँ बल्कि साथ मिलकर भाइयों की तरह सेवा करें। (मत्ती २०:२५-२७; २३:८-१२) क्या उन्होंने उसकी सलाह मानी? क्या उन्होंने वह कार्य आगे रखा जो उसने उन्हें दिया था?
७, ८. (क) प्रथम-शताब्दी के मसीहियों द्वारा बनाया गया रिकार्ड कैसे दिखाता है कि उन्होंने यीशु की सलाह को गंभीरता से लिया? (ख) निरन्तर आध्यात्मिक रूप से जागते रहना क्यों ज़रूरी था?
७ जब तक प्रेरित जीवित थे, उन्होंने कलीसिया की सुरक्षा की। इतिहास साक्षी है कि आरंभिक मसीही रोमी साम्राज्य के राजनीतिक मामलों में अंतर्ग्रस्त नहीं थे और उनका कोई उच्च पादरी वर्ग नहीं था। दूसरी ओर, वे परमेश्वर के राज्य के उत्साही उद्घोषक थे। पहली शताब्दी के अन्त तक, वे पूरे रोमी साम्राज्य में गवाही दे चुके थे। और उन्होंने एशिया, यूरोप, और उत्तरी अफ्रीका में शिष्य बनाए थे।—कुलुस्सियों १:२३.
८ लेकिन, प्रचार करने में उन उपलब्धियों का यह अर्थ नहीं था कि अब आध्यात्मिक रूप से जागते रहने की कोई ज़रूरत नहीं थी। यीशु का पूर्वबताया गया आगमन दूर भविष्य में होना था। और जैसे ही कलीसिया ने सा.यु. दूसरी शताब्दी में प्रवेश किया ऐसी स्थितियाँ खड़ी हुईं जिन्होंने मसीहियों की आध्यात्मिकता को ख़तरे में डाल दिया। यह कैसे?
जिन्होंने जागते रहना छोड़ दिया
९, १०. (क) प्रेरितों की मृत्यु के बाद, किन विकासों ने दिखाया कि अनेक तथाकथित मसीही नहीं जाग रहे थे? (ख) इस अनुच्छेद में उल्लिखित कौन से शास्त्रवचन तथाकथित मसीहियों को आध्यात्मिक रूप से मज़बूत रहने में मदद दे सकते थे?
९ कलीसिया में आनेवाले कुछ लोगों ने अपना विश्वास यूनानी तत्त्वज्ञान के ढंग से व्यक्त करना शुरू कर दिया, ताकि जो प्रचार वे कर रहे थे वह संसार के लोगों को ज़्यादा स्वीकार्य हो जाए। धीरे-धीरे, झूठे सिद्धान्त, जैसे कि त्रियेक और आत्मा का अंतर्निहित अमरत्व दूषित क़िस्म की मसीहियत के भाग बन गए। इसके कारण सहस्राब्दिक आशा को त्याग दिया गया। क्यों? जिन्होंने आत्मा के अमरत्व में विश्वास को अपनाया उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि मसीह के राज्य की आशिषें उस आत्मा को मानव देह छोड़ने के बाद आत्मिक क्षेत्र में प्राप्त होंगी। इसलिए उन्होंने राज्य शक्ति में मसीह की उपस्थिति के लिए जागते रहने की कोई ज़रूरत नहीं देखी।—गलतियों ५:७-९; कुलुस्सियों २:८; १ थिस्सलुनीकियों ५:२१ से तुलना कीजिए.
१० इस स्थिति को अन्य विकासों से बढ़ावा मिला। मसीही ओवरसियर होने का दावा करनेवाले कुछ लोगों ने अपनी कलीसिया को अपने लिए प्रमुखता प्राप्त करने के माध्यम के रूप में प्रयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने स्वयं अपने विचारों और शिक्षाओं को धूर्तता से शास्त्रों के जितना या उससे भी ज़्यादा महत्त्व दिया। अवसर आने पर इस धर्मत्यागी गिरजे ने राजनीतिक सरकार के हितों की सेवा करने के लिए भी अपने आपको उपलब्ध कराया।—प्रेरितों २०:३०; २ पतरस २:१, ३.
अधिक जागते रहने के परिणाम
११, १२. प्रोटेस्टेंट धर्म-सुधार ने सच्ची उपासना की वापसी को क्यों नहीं चिह्नित किया?
११ रोमन कैथोलिक गिरजे द्वारा शताब्दियों के दुर्व्यवहार के बाद, १६वीं शताब्दी में कुछ सुधारक बोल पड़े। लेकिन इससे सच्ची उपासना की वापसी चिह्नित नहीं हुई। क्यों नहीं?
१२ हालाँकि विभिन्न प्रोटेस्टेंट समूह रोम की शक्ति से मुक्त हो गए, वे अपने साथ धर्मत्याग की अनेक मूल शिक्षाएँ और अभ्यास ले गए—पादरी-ग़ैरपादरी वर्ग की धारणा, साथ ही त्रियेक में विश्वास, आत्मा का अमरत्व, और मृत्यु के बाद अनन्त यातना। और रोमन कैथोलिक गिरजे के समान, वे संसार के भाग बने रहे, राजनीतिक तत्त्वों के साथ नज़दीकी मित्रता में रहे। इसलिए उनमें राजा के रूप में मसीह के आगमन की किसी भी प्रत्याशा को ठुकराने की प्रवृत्ति हो गयी।
१३. (क) क्या बात दिखाती है कि कुछ लोगों ने सचमुच परमेश्वर के वचन को बहुमोल जाना? (ख) उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान, कौन सी घटना कुछ तथाकथित मसीहियों के लिए ख़ास दिलचस्पी की हुई? (ग) अनेक लोगों को निराशा क्यों हुई?
१३ फिर भी, यीशु ने पूर्वबताया था कि उसके प्रेरितों की मृत्यु के बाद राज्य के असली वारिस (जिनकी समानता उसने गेहूँ से की) नक़ली मसीहियों (या, जंगली पौधों) के साथ-साथ कटनी के समय तक बढ़ते रहेंगे। (मत्ती १३:२९, ३०) आज हम किसी निश्चितता से उनकी सूची नहीं बना सकते जिन्हें स्वामी ने गेहूँ के रूप में देखा। लेकिन यह उल्लेखनीय है कि १४वीं, १५वीं, और १६वीं शताब्दियों के दौरान ऐसे पुरुष थे जिन्होंने सामान्य लोगों की भाषा में बाइबल का अनुवाद करने के लिए स्वयं अपनी जान और स्वतंत्रता ख़तरे में डाली। अन्य लोगों ने बाइबल को न सिर्फ़ परमेश्वर के वचन के रूप में स्वीकार किया बल्कि त्रियेक को अशास्त्रीय मानकर अस्वीकार भी किया। कुछ लोगों ने आत्मा के अमरत्व में और नरकाग्नि में यातना के विश्वास को परमेश्वर के वचन से पूरी तरह असंगत मानकर अस्वीकार किया। साथ ही, १९वीं शताब्दी के दौरान बाइबल के अधिक अध्ययन के फलस्वरूप अमरीका, जर्मनी, इंगलैंड, और रूस में समूहों ने यह विश्वास व्यक्त करना शुरू किया कि मसीह की वापसी का समय निकट था। लेकिन उनकी अधिकांश प्रत्याशाएँ निराशा में बदल गयीं। क्यों? काफ़ी हद तक इसलिए कि उन्होंने मनुष्यों पर बहुत ज़्यादा भरोसा किया और शास्त्रवचनों पर पर्याप्त भरोसा नहीं किया।
किस प्रकार ये जागते हुए साबित हुए
१४. सी. टी. रस्सल और उसके साथियों द्वारा बाइबल अध्ययन करने के लिए अपनाए गए तरीक़े का वर्णन कीजिए।
१४ फिर, १८७० में चार्ल्स टेज़ रस्सल और उसके कुछ साथियों ने एलिगेनी, पेंसिल्वेनिया में बाइबल अध्ययन के लिए एक समूह बनाया। वे उन अनेक बाइबल सच्चाइयों को समझनेवाले पहले लोग नहीं थे जो उन्होंने अपनायीं। लेकिन अध्ययन करते समय उन्होंने यह आदत बनायी कि एक दिए गए प्रश्न पर हर शास्त्रवचन की ध्यानपूर्वक जाँच करें।a उनका उद्देश्य किसी पूर्वकल्पित धारणा के लिए प्रमाण वचन ढूँढना नहीं था, बल्कि इस बात को निश्चित करना था कि वे ऐसे निष्कर्ष निकालें जो विचाराधीन विषय पर बाइबल जो कुछ भी कहती है उसके सामंजस्य में हों।
१५. (क) भाई रस्सल के अलावा अन्य लोगों ने क्या समझ लिया था? (ख) किस बात ने बाइबल विद्यार्थियों को इन लोगों से अलग चिह्नित किया?
१५ उनसे पहले कुछ अन्य लोगों ने समझ लिया था कि मसीह अदृश्य रूप से एक आत्मा की तरह वापस आएगा। कुछ लोग समझ गए थे कि मसीह की वापसी का उद्देश्य पृथ्वी को जलाकर सभी मानव जीवन को मिटाना नहीं था, बल्कि पृथ्वी के सभी परिवारों को आशिष देना था। कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने समझ लिया था कि वर्ष १९१४ अन्यजातियों के समय का अंत चिह्नित करेगा। लेकिन भाई रस्सल के संगी बाइबल विद्यार्थियों के लिए ये धर्मविज्ञानिक चर्चा के लिए मुद्दों से अधिक थे। उन्होंने अपने जीवन को इन सच्चाइयों के इर्द-गिर्द बनाया और इन्हें एक ऐसे पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय प्रसार दिया जो उस युग में अपूर्व था।
१६. वर्ष १९१४ में भाई रस्सल ने क्यों लिखा: “हम परीक्षा के समय में हैं”?
१६ फिर भी, उन्हें जागते रहने की ज़रूरत थी। क्यों? उदाहरण के रूप में, हालाँकि वे जानते थे कि १९१४ बाइबल भविष्यवाणी द्वारा चिह्नित था, वे निश्चित रूप से नहीं जानते थे कि उस वर्ष में क्या होगा। इससे उनके सामने एक परीक्षा आयी। नवम्बर १, १९१४ की वॉचटावर में भाई रस्सल ने लिखा: “आइए हम याद रखें कि हम परीक्षा के समय में हैं। . . . यदि कोई कारण है जो किसी व्यक्ति को प्रभु और उसके सत्य में विश्वास त्यागने और प्रभु के हित के लिए बलिदान करना छोड़ने की ओर प्रवृत्त करे, तो हृदय में परमेश्वर के लिए प्रेम ने ही नहीं, बल्कि किसी और चीज़ ने प्रभु में उसकी दिलचस्पी को प्रेरित किया है; संभवतः इस आशा ने उसकी दिलचस्पी को प्रेरित किया है कि समय थोड़ा है; समर्पण केवल कुछ ही समय के लिए है।”
१७. किस प्रकार ए. एच. मैकमिलन और उसके जैसे अन्य लोगों ने आध्यात्मिक संतुलन बनाए रखा?
१७ तभी कुछ लोगों ने यहोवा की सेवा को त्याग दिया। लेकिन ए. एच. मैक्मिलन ने ऐसा नहीं किया। वर्षों बाद उसने साफ़-साफ़ स्वीकार किया: “कभी-कभी किसी एक निश्चित तारीख़ के लिए हमारी प्रत्याशाएँ शास्त्रवचन द्वारा प्रमाणित बातों से अधिक थीं।” आध्यात्मिक संतुलन बनाए रखने में किस बात ने उसकी मदद की? जैसे उसने कहा, उसे एहसास हुआ कि “जब वे प्रत्याशाएँ पूरी नहीं हुईं, उससे परमेश्वर के उद्देश्य नहीं बदले।” उसने आगे कहा: “मैं ने सीखा कि हमें अपनी ग़लतियों को स्वीकार करना चाहिए और अधिक प्रबोधन के लिए परमेश्वर के वचन में खोज करते रहना चाहिए।”b नम्रतापूर्वक, उन प्रारंभिक बाइबल विद्यार्थियों ने परमेश्वर के वचन को अपने दृष्टिकोण को पुनःसमंजित करने दिया।—२ तीमुथियुस ३:१६, १७.
१८. संसार का भाग न होने के मामले में किस प्रकार मसीहियों के जागते रहने से प्रगतिशील लाभ हुए?
१८ आनेवाले वर्षों में उनके जागते रहने की ज़रूरत कम नहीं हुई। निःसंदेह, वे जानते थे कि मसीहियों को जगत का भाग नहीं होना था। (यूहन्ना १७:१४; याकूब ४:४) इसके सामंजस्य में, परमेश्वर के राज्य की राजनीतिक अभिव्यक्ति के रूप में राष्ट्र संघ का समर्थन करने में वे मसीहीजगत के साथ शामिल नहीं हुए। लेकिन १९३९ तक उन्होंने मसीही तटस्थता के मसले को स्पष्ट रूप से नहीं समझा था।—द वॉचटावर, नवम्बर १, १९३९ देखिए.
१९. क्योंकि संगठन जागता रहा इसलिए कलीसिया निरीक्षण में क्या लाभ हुए हैं?
१९ उनका कभी कोई पादरी वर्ग नहीं था, हालाँकि कुछ निर्वाचित प्राचीनों ने महसूस किया कि उनसे मात्र कलीसिया में प्रचार करने की अपेक्षा की जानी चाहिए। लेकिन, शास्त्रों के अनुरूप रहने की तीव्र इच्छा के कारण, संगठन ने शास्त्रों के प्रकाश में प्राचीनों की भूमिका पर पुनर्विचार किया, और ऐसा उन्होंने द वॉचटावर के स्तंभों के माध्यम से बार-बार किया। शास्त्रों ने जो सूचित किया उसके सामंजस्य में संगठनात्मक परिवर्तन किए गए।
२०-२२. विश्वव्यापी राज्य उद्घोषणा के पूर्वबताए गए कार्य को निष्पन्न करने के लिए किस प्रकार सम्पूर्ण संगठन ने प्रगतिशील रूप से तीव्र तैयारी की है?
२० परमेश्वर के वचन में हमारे दिन के लिए बताए गए कार्य को पूरी तरह निष्पन्न करने के लिए सम्पूर्ण संगठन तीव्र गति से तैयारी कर रहा था। (यशायाह ६१:१, २) हमारे दिन में सुसमाचार किस हद तक उद्घोषित किया जाना था? यीशु ने कहा: “अवश्य है कि पहिले सुसमाचार सब जातियों में प्रचार किया जाए।” (मरकुस १३:१०) मानवी दृष्टिकोण से, वह कार्य अकसर असंभव प्रतीत हुआ है।
२१ फिर भी, कलीसिया के सिर के रूप में मसीह पर भरोसे के साथ, विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग आगे बढ़ा है। (मत्ती २४:४५) वफ़ादारी और दृढ़ता से उन्होंने यहोवा के लोगों को वह कार्य बताया है जिसे किया जाना है। वर्ष १९१९ से, क्षेत्र सेवकाई को अधिक महत्त्व दिया गया। अनेकों के लिए घर-घर जाकर अजनबी लोगों से बात करना आसान नहीं था। (प्रेरितों २०:२०) लेकिन (१९१९ में) “धन्य हैं वे जो निडर हैं” और (१९२१ में) “साहसी रहिए” जैसे अध्ययन लेखों ने कुछ लोगों को यहोवा में भरोसे के साथ, कार्य शुरू करने के लिए मदद की।
२२ वर्ष १९२२ में “राजा और राज्य की घोषणा करो, घोषणा करो, घोषणा करो” के निवेदन ने इस कार्य को योग्य प्राधान्य देने के लिए ज़रूरी प्रेरणा प्रदान की। वर्ष १९२७ से जिन प्राचीनों ने शास्त्रीय ज़िम्मेदारी को स्वीकार नहीं किया उन्हें निकाल दिया गया। लगभग उसी समय, संस्था के सफ़री प्रतिनिधियों, पिल्ग्रिमस् को क्षेत्र सेवा में प्रकाशकों को व्यक्तिगत शिक्षण देने के लिए क्षेत्रीय सेवा निदेशक नियुक्त किया गया। हर व्यक्ति पायनियर कार्य नहीं कर सकता था, लेकिन सप्ताहांतों में अनेक लोग सुबह जल्दी शुरू करके, एक सैंडविच खाने के लिए सिर्फ़ थोड़ा समय रुककर और फिर शाम तक सेवा में लगकर, पूरा दिन सेवा में बिता रहे थे। वे ईश्वरशासित विकास के महत्त्वपूर्ण समय थे, और जिस रीति से यहोवा अपने लोगों की अगुआई कर रहा था उस पर पुनर्विचार करने से हम बहुत लाभ पाते हैं। वह आज भी ऐसा कर रहा है। उसकी आशिष से, स्थापित राज्य के सुसमाचार को प्रचार करने का कार्य सफल समाप्ति पर लाया जाएगा।
क्या आप जागे हुए हैं?
२३. मसीही प्रेम और संसार से अलगाव के बारे में हम व्यक्तिगत रूप से किस प्रकार प्रदर्शित कर सकते हैं कि हम जागे हुए हैं?
२३ यहोवा के निर्देशन के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते हुए, उसका संगठन हमें उन अभ्यासों और मनोवृत्तियों की तरफ़ सतर्क करता रहा है जो जगत के भाग के रूप में हमारी पहचान करा सकते हैं और इस प्रकार हमें उसके साथ मिट जाने के ख़तरे में डाल सकते हैं। (१ यूहन्ना २:१७) क्रमशः, हमें यहोवा के निर्देशन के प्रति प्रतिक्रिया दिखाने के द्वारा व्यक्तिगत रूप से जागते रहने की ज़रूरत है। यहोवा हमें एक साथ रहने और काम करने के बारे में भी शिक्षण देता है। मसीही प्रेम का वास्तव में जो अर्थ है उस के लिए मूल्यांकन बढ़ाने में उसके संगठन ने हमारी मदद की है। (१ पतरस ४:७, ८) हमारा जागते रहना यह माँग करता है कि हम मानव अपरिपूर्णताओं के बावजूद निष्कपटता से इस सलाह पर अमल करने का प्रयास करें।
२४, २५. किन अनिवार्य पहलुओं में हमें जागते रहना चाहिए, किस प्रत्याशा को ध्यान में रखते हुए?
२४ विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास ने अकसर हमें याद दिलाया है: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना।” (नीतिवचन ३:५) “निरन्तर प्रार्थना में लगे रहो।” (१ थिस्सलुनीकियों ५:१७) हमें सलाह दी गयी है कि अपने फ़ैसले परमेश्वर के वचन के आधार पर करें। इस वचन को ‘अपने पांव के लिये दीपक, और अपने मार्ग के लिये उजियाला’ बनने दें। (भजन ११९:१०५) प्रेमपूर्वक हमें प्रोत्साहन दिया गया है कि परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार के प्रचार को अपने जीवन में आगे रखें। यह कार्य यीशु ने हमारे दिन के लिए पूर्वबताया था।—मत्ती २४:१४.
२५ जी हाँ, विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास निश्चित ही जगा हुआ है। व्यक्तिगत रूप से हमें भी जागते रहने की ज़रूरत है। ऐसा करने के फलस्वरूप, ऐसा हो कि जब मनुष्य का पुत्र न्याय करने आए तब हम उन लोगों में पाए जाएँ जो उसके सामने स्वीकृत स्थिति में खड़े होंगे।—मत्ती २४:३०; लूका २१:३४-३६.
[फुटनोट]
a ए. एच. मैकमिलन द्वारा प्रगति करता विश्वास (अंग्रेज़ी), प्रेन्टिस हॉल, निग., १९५७, पृष्ठ १९-२२.
b द वॉचटावर, अगस्त १५, १९६६, पृष्ठ ५०४-१० देखिए.
पुनर्विचार
▫ जैसा मत्ती २४:४२ में दिखाया गया है, हमें जागते रहने की ज़रूरत क्यों है?
▫ किस प्रकार यीशु और उसके प्रथम-शताब्दी अनुयायी आध्यात्मिक रूप से जागते रहे?
▫ वर्ष १८७० से, क्योंकि यहोवा के सेवक जागते रहे हैं क्या विकास हुए हैं?
▫ क्या बात प्रमाण देगी कि हम व्यक्तिगत रूप से जागे हुए हैं?
[पेज 29 पर तसवीरें]
यीशु अपने पिता द्वारा नियुक्त कार्य में व्यस्त रहा। उसने जोश के साथ प्रार्थना भी की
[पेज 30 पर तसवीरें]
चार्ल्स् टेज़ रस्सल अपने अन्तिम वर्षों में
[पेज 31 पर तसवीरें]
सारी पृथ्वी पर ४७,००,००० से अधिक राज्य उद्घोषक सक्रिय हैं