झूठे ईश्वरों के विरुद्ध साक्षी
“यहोवा की वाणी है कि तुम मेरे साक्षी हो और मेरे दास हो, जिन्हें मैं ने . . . चुना है।”—यशायाह ४३:१०.
१. सच्चा परमेश्वर कौन है, और किन पहलुओं में वह उन अनेकों ईश्वरों से सर्वोच्च है जिनकी आज उपासना की जाती है?
सच्चा परमेश्वर कौन है? आज, पूरी मानवजाति के सामने यह सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। हालाँकि मनुष्य अनेकों ईश्वरों की उपासना करते हैं, केवल एक है जो हमें जीवन दे सकता है और हमारे सामने एक सुखी भविष्य रख सकता है। केवल एक है जिसके बारे में कहा जा सकता है: “हम उसी में जीवित रहते, और चलते-फिरते, और स्थिर रहते हैं।” (प्रेरितों १७:२८) सचमुच, केवल एक परमेश्वर के पास उपासना प्राप्त करने का अधिकार है। जैसे प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में स्वर्गीय कोरस कहता है: “हे हमारे प्रभु [यहोवा], और परमेश्वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।”—प्रकाशितवाक्य ४:११.
२, ३. (क) शैतान ने कैसे झूठ बोलकर उपासना प्राप्त करने के यहोवा के अधिकार को चुनौती दी? (ख) हव्वा के पाप का हव्वा के लिए और उसके बच्चों के लिए क्या परिणाम हुआ, और शैतान के लिए क्या परिणाम हुआ?
२ अदन की वाटिका में, शैतान ने झूठ बोलकर उपासना प्राप्त करने के यहोवा के अधिकार को चुनौती दी। एक सर्प का प्रयोग करके उसने हव्वा से कहा कि यदि वह यहोवा के नियम का विद्रोह करे और उस वृक्ष का फल खाए जिसे यहोवा ने वर्जित किया था, तो वह स्वयं परमेश्वर के तुल्य हो जाएगी। उसके शब्द थे: “परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।” (उत्पत्ति ३:५) हव्वा ने सर्प की बात पर विश्वास कर लिया और वर्जित फल खा लिया।
३ निःसंदेह, शैतान ने झूठ बोला। (यूहन्ना ८:४४) पाप करने पर एकमात्र तरीक़े से हव्वा “परमेश्वर के तुल्य” बनी, और वह यह था कि उसने भले बुरे का निर्णय करने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली, वह काम जो यहोवा पर छोड़ा जाना चाहिए था। और शैतान के झूठ के बावजूद, अंततः वह मर गयी। सो हव्वा के पाप का एकमात्र असली लाभग्राही था शैतान। सचमुच, हव्वा को पाप करने के लिए राज़ी करने में शैतान का अकथित लक्ष्य था स्वयं एक ईश्वर बनना। जब हव्वा ने पाप किया, तब वह उसकी पहली मानव अनुयायी बनी, और जल्द ही आदम उसके साथ हो लिया। उनके अधिकांश बच्चे न सिर्फ़ “पाप के साथ” जन्मे बल्कि शैतान के प्रभाव में भी आ गए, और थोड़े ही समय में एक समस्त संसार अस्तित्व में आ गया जो सच्चे परमेश्वर से विमुख था।—उत्पत्ति ६:५; भजन ५१:५.
४. (क) इस संसार का ईश्वर कौन है? (ख) किस बात की बहुत ज़रूरत है?
४ वह संसार जलप्रलय में नष्ट हो गया। (२ पतरस ३:६) जलप्रलय के बाद यहोवा से विमुख दूसरा संसार विकसित हुआ, और वह अभी-भी अस्तित्व में है। उसके बारे में बाइबल कहती है: “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (१ यूहन्ना ५:१९) यहोवा के नियम के वास्तविक और शाब्दिक अभिप्राय के विरुद्ध कार्य करने के द्वारा यह संसार शैतान के लक्ष्यों को पूरा करता है। वह इसका ईश्वर है। (२ कुरिन्थियों ४:४) फिर भी, वह मूलतः एक शक्तिहीन ईश्वर है। वह लोगों को सुखी नहीं बना सकता अथवा उनको जीवन नहीं दे सकता; केवल यहोवा ऐसा कर सकता है। अतः, वे लोग जो अर्थपूर्ण जीवन और एक बेहतर संसार चाहते हैं, उन्हें पहले यह सीखना है कि यहोवा सच्चा परमेश्वर है और फिर उसकी इच्छा पर चलना सीखना है। (भजन ३७:१८, २७, २८; सभोपदेशक १२:१३) अतः विश्वासी पुरुषों और स्त्रियों के लिए बहुत ज़रूरी है कि यहोवा के बारे में साक्षी दें, अथवा उसके बारे में सत्य की घोषणा करें।
५. पौलुस ने किस ‘गवाहों के बादल’ का उल्लेख किया? उसकी सूची के कुछ लोगों के नाम बताइए।
५ शुरू से ही, ऐसे विश्वासी जन संसार में रहे हैं। इब्रानियों अध्याय ११ में प्रेरित पौलुस उनकी एक लम्बी सूची देता है और उन्हें “गवाहों का ऐसा बड़ा बादल” कहता है। (इब्रानियों १२:१) आदम और हव्वा का दूसरा पुत्र, हाबील पौलुस की सूची पर पहला था। प्रलयपूर्व समय से हनोक और नूह का भी उल्लेख है। (इब्रानियों ११:४, ५, ७) यहूदी जाति का पूर्वज, इब्राहीम प्रमुख है। इब्राहीम, जिसे “परमेश्वर का मित्र” कहा गया है, यीशु का पूर्वज बना, जो “विश्वासयोग्य, और सच्चा गवाह” है।—याकूब २:२३; प्रकाशितवाक्य ३:१४.
सत्य के पक्ष में इब्राहीम की साक्षी
६, ७. किन तरीक़ों से इब्राहीम का जीवन और कार्य एक साक्षी थे कि यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है?
६ इब्राहीम ने कैसे एक साक्षी के रूप में कार्य किया? यहोवा पर अपने पक्के विश्वास और उसके प्रति अपनी निष्ठावान आज्ञाकारिता के द्वारा। जब उसे ऊर शहर को छोड़कर अपना बाक़ी जीवन एक दूर देश में जीने का आदेश दिया गया तब इब्राहीम ने आज्ञा मानी। (उत्पत्ति १५:७; प्रेरितों ७:२-४) भ्रमणशील आदिवासी अकसर अपना बनजारा जीवन छोड़कर शहर के ज़्यादा सुरक्षित जीवन का चुनाव करते हैं। अतः, जब इब्राहीम ने तम्बुओं में बसने के लिए शहर छोड़ा, तब उसने यहोवा परमेश्वर पर अपने भरोसे का ठोस प्रमाण दिया। उसकी आज्ञाकारिता देखनेवालों के लिए एक साक्षी थी। यहोवा ने इब्राहीम को उसके विश्वास के लिए भरपूर आशिष दी। तम्बुओं में रहने के बावजूद, इब्राहीम भौतिक रूप से समृद्ध हुआ। जब लूत और उसके परिवार को बन्दी बनाकर ले जाया गया, तब यहोवा ने इब्राहीम को उसके अनुधावन में सफलता दी, जिससे कि वह उन्हें छुड़ाने में समर्थ हुआ। इब्राहीम की पत्नी ने अपने बुढ़ापे में एक पुत्र को जन्म दिया, और इस प्रकार यहोवा की प्रतिज्ञा की पुष्टि हुई कि इब्राहीम का वंश होगा। इब्राहीम के माध्यम से लोगों ने देखा कि यहोवा जीवता परमेश्वर है जो अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा करता है।—उत्पत्ति १२:१-३; १४:१४-१६; २१:१-७.
७ लूत को छुड़ाकर लौटते समय इब्राहीम को शालेम (बाद में यरूशलेम कहलाया) का राजा, मेल्कीसेदेक मिला, जिसने इब्राहीम का यह कहकर स्वागत किया: ‘परमप्रधान परमेश्वर की ओर से अब्राम, तू धन्य हो।’ सदोम का राजा भी उसे मिला और उसे उपहार देना चाहता था। इब्राहीम ने इनकार किया। क्यों? वह नहीं चाहता था कि उसकी आशिषों के स्रोत के विषय में कोई संदेह हो। उसने कहा: “परमप्रधान ईश्वर यहोवा, जो आकाश और पृथ्वी का अधिकारी है, उसकी मैं यह शपथ खाता हूं, कि जो कुछ तेरा है उस में से न तो मैं एक सूत, और न जूती का बन्धन, न कोई और वस्तु लूंगा; कि तू ऐसा न कहने पाए, कि अब्राम मेरे ही कारण धनी हुआ।” (उत्पत्ति १४:१७-२४) इब्राहीम क्या ही उत्तम साक्षी था!
साक्षियों की एक जाति
८. मूसा ने यहोवा में बड़ा विश्वास कैसे दिखाया?
८ इब्राहीम का वंशज, मूसा भी पौलुस की साक्षियों की सूची में आता है। मूसा ने मिस्र के धन से मुँह मोड़ा और बाद में इस्राएल के संतानों को स्वतंत्र कराने के लिए उस महान विश्व शक्ति के शासक का हिम्मत के साथ सामना किया। उसे साहस कहाँ से मिला? अपने विश्वास से। पौलुस कहता है: “[मूसा] अनदेखे को मानो देखता हुआ दृढ़ रहा।” (इब्रानियों ११:२७) मिस्र के ईश्वर दृश्य थे, उन्हें छुआ जा सकता था। आज भी, उनकी प्रतिमाएँ लोगों को प्रभावित करती हैं। लेकिन यहोवा, अदृश्य होने पर भी मूसा के लिए उन सभी झूठे ईश्वरों से कहीं ज़्यादा वास्तविक था। मूसा को इस बात पर कोई संदेह नहीं था कि यहोवा अस्तित्व में था और कि वह अपने उपासकों को प्रतिफल देता। (इब्रानियों ११:६) मूसा एक उल्लेखनीय साक्षी बना।
९. इस्राएल जाति को यहोवा की सेवा कैसे करनी थी?
९ इस्राएलियों को स्वतंत्र कराने के बाद, मूसा यहोवा और याकूब के ज़रिए इब्राहीम के वंशजों के बीच एक वाचा का मध्यस्थ बना। परिणामस्वरूप, इस्राएल जाति यहोवा की विशेष सम्पत्ति के रूप में अस्तित्व में आयी। (निर्गमन १९:५, ६) पहली बार, एक राष्ट्रीय साक्षी दी जानी थी। लगभग ८०० साल बाद, यशायाह के द्वारा कहे गए यहोवा के शब्द सिद्धान्त रूप में उस जाति के अस्तित्व के आरम्भ से लागू हुए: “यहोवा की वाणी है कि तुम मेरे साक्षी हो और मेरे दास हो, जिन्हें मैं ने इसलिये चुना है कि समझकर मेरी प्रतीति करो और यह जान लो कि मैं वही हूं।” (यशायाह ४३:१०) यह नयी जाति यहोवा के साक्षियों के रूप में कैसे कार्य करती? अपने विश्वास और आज्ञाकारिता से और उनके पक्ष में किए गए यहोवा के कार्यों के द्वारा।
१०. इस्राएल के पक्ष में यहोवा के शक्तिशाली कार्यों ने किस तरह एक साक्षी दी, और परिणाम क्या हुए?
१० अपने आरम्भ के कुछ ४० साल बाद, इस्राएल प्रतिज्ञात देश पर कब्ज़ा करने ही वाला था। भेदिये यरीहो शहर की टोह लगाने गए, और यरीहो की एक निवासी, राहाब ने उन्हें सुरक्षा दी। क्यों? उसने कहा: “हम ने सुना है कि यहोवा ने तुम्हारे मिस्र से निकलने के समय तुम्हारे साम्हने लाल समुद्र का जल सुखा दिया। और तुम लोगों ने सीहोन और ओग नाम यरदन पार रहनेवाले एमोरियों के दोनों राजाओं को सत्यानाश कर डाला है। और यह सुनते ही हमारा मन पिघल गया, और तुम्हारे कारण किसी के जी में जी न रहा; क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा ऊपर के आकाश का और नीचे की पृथ्वी का परमेश्वर है।” (यहोशू २:१०, ११) यहोवा के शक्तिशाली कार्यों की रिपोर्ट ने राहाब और उसके परिवार को प्रेरित किया कि यरीहो और उसके झूठे ईश्वरों को त्यागकर इस्राएल के साथ यहोवा की उपासना करें। स्पष्टतः, यहोवा ने इस्राएल के द्वारा एक शक्तिशाली साक्षी दी थी।—यहोशू ६:२५.
११. साक्षी देने के बारे में सभी इस्राएली माता-पिताओं पर क्या ज़िम्मेदारी थी?
११ जब इस्राएली मिस्र में ही थे, यहोवा ने मूसा को फ़िरौन के पास भेजा और कहा: “फ़िरौन के पास जा; क्योंकि मैं ही ने उसके और उसके कर्मचारियों के मन को इसलिये कठोर कर दिया है, कि अपने चिन्ह उनके बीच में दिखलाऊं। और तुम लोग अपने बेटों और पोतों से इसका वर्णन करो कि यहोवा ने मिस्रियों को कैसे ठट्ठों में उड़ाया और अपने क्या क्या चिन्ह उनके बीच प्रगट किए हैं; जिस से तुम यह जान लोगे कि मैं यहोवा हूं।” (निर्गमन १०:१, २) आज्ञाकारी इस्राएली अपने बच्चों को यहोवा के शक्तिशाली कार्यों के बारे में बताते। क्रमशः, उनके बच्चे उन कार्यों के बारे में अपने बच्चों को बताते, और इसी प्रकार यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता। इस प्रकार, यहोवा के शक्तिशाली कामों को याद रखा जाता। इसी समान आज भी, माता-पिताओं की ज़िम्मेदारी है कि अपने बच्चों को साक्षी दें।—व्यवस्थाविवरण ६:४-७; नीतिवचन २२:६.
१२. सुलैमान और इस्राएल पर यहोवा की आशिष ने कैसे एक साक्षी के रूप में कार्य किया?
१२ जब इस्राएल विश्वासी था तब उस पर यहोवा की आशिष ने आस-पास की जातियों के लिए एक साक्षी का कार्य किया। जैसे यहोवा की प्रतिज्ञात आशिषों का गुणगान करने के बाद मूसा ने कहा: “पृथ्वी के देश देश के सब लोग यह देखकर, कि तू यहोवा का कहलाता है [यहोवा का नाम तुझ पर पुकारा गया है, फुटनोट], तुझ से डर जाएंगे।” (व्यवस्थाविवरण २८:१०) सुलैमान को उसके विश्वास के कारण बुद्धि और धन दिया गया था। उसके राज्य में वह जाति समृद्ध हुई और एक लम्बी अवधि तक शान्ति का आनन्द लिया। उस समय के बारे में हम पढ़ते हैं: “देश देश के लोग पृथ्वी के सब राजाओं की ओर से जिन्हों ने सुलैमान की बुद्धि की कीर्त्ति सुनी थी, उसकी बुद्धि की बातें सुनने को आया करते थे।” (१ राजा ४:२५, २९, ३०, ३४) सुलैमान से मिलने आए लोगों में से प्रमुख थी शीबा की रानी। उस जाति और उसके राजा पर यहोवा की आशिष स्वयं देखने के बाद उसने कहा: ‘धन्य है तेरा परमेश्वर यहोवा, जो तुझ से ऐसा प्रसन्न हुआ, कि तुझे अपनी राजगद्दी पर इसलिये विराजमान किया कि तू अपने परमेश्वर यहोवा की ओर से राज्य करे; तेरे परमेश्वर ने इस्राएल से प्रेम किया।’—२ इतिहास ९:८.
१३. इस्राएल की सबसे प्रभावकारी साक्षी शायद क्या थी, और हम अभी-भी उससे कैसे लाभ उठाते हैं?
१३ प्रेरित पौलुस ने इस्राएल की संभवतः सबसे प्रभावकारी साक्षी का उल्लेख किया। रोम में मसीही कलीसिया के साथ शारीरिक इस्राएल के बारे में चर्चा करते समय, उसने कहा: “परमेश्वर के वचन उन को सौंपे गए।” (रोमियों ३:१, २) इस्राएल के साथ यहोवा के व्यवहार को, साथ ही उसकी सलाह, उसके नियमों, और उसकी भविष्यवाणियों को अभिलिखित करने के लिए कुछ विश्वासी इस्राएलियों को उत्प्रेरित किया गया, जिनमें से पहला मूसा था। इन लेखों के द्वारा उन प्राचीन शास्त्रियों ने आनेवाली सभी पीढ़ियों को—आज हमारी पीढ़ी को भी—साक्षी दी कि केवल एक परमेश्वर है, और उसका नाम यहोवा है।—दानिय्येल १२:९; १ पतरस १:१०-१२.
१४. यहोवा के लिए साक्षी देनेवाले कुछ लोगों ने सताहट क्यों सही?
१४ दुःख की बात है कि इस्राएल विश्वास रखने से बारंबार चूक गया, और फिर यहोवा को अपनी ही जाति में साक्षी भेजने पड़े। इनमें से अनेकों को सताया गया। पौलुस ने कहा कि “कई एक ठट्ठों में उड़ाए जाने; और कोड़े खाने; बरन बान्धे जाने; और कैद में पड़ने के द्वारा परखे गए।” (इब्रानियों ११:३६) सचमुच विश्वासी साक्षी! यह कितने दुःख की बात है कि अकसर उनकी सताहट यहोवा की चुनी हुई जाति के संगी सदस्यों से आयी! (मत्ती २३:३१, ३७) वास्तव में, उस जाति का पाप इतना बढ़ गया कि सा.यु.पू. ६०७ में यहोवा बाबुलियों को लाया कि यरूशलेम को उसके मंदिर सहित नष्ट कर दें और बचे हुए इस्राएलियों में से अधिकांश को बन्धुआई में ले जाएँ। (यिर्मयाह २०:४; २१:१०) क्या वह यहोवा के नाम की राष्ट्रीय साक्षी का अन्त था? जी नहीं।
ईश्वरों की परीक्षा
१५. बाबुल की बन्धुआई में भी साक्षी कैसे दी गयी?
१५ बाबुल की बन्धुआई में भी, जाति के विश्वासी सदस्य यहोवा के परमेश्वरत्व और शक्ति के बारे में साक्षी देने से नहीं हिचकिचाए। उदाहरण के लिए, दानिय्येल ने हिम्मत के साथ नबूकदनेस्सर के स्वप्नों का अर्थ बताया, बेलशस्सर के लिए दीवार पर लिखी हुई बातों को समझाया, और प्रार्थना के मामले में दारा के सामने समझौता करने से इनकार किया। तीन इब्रानियों ने भी एक प्रतिमा के सामने झुकने से इनकार करते समय नबूकदनेस्सर को एक शानदार साक्षी दी।—दानिय्येल ३:१३-१८; ५:१३-२९; ६:४-२७.
१६. यहोवा ने इस्राएल की अपने देश में वापसी के बारे में कैसे पूर्वबताया, और इस वापसी का उद्देश्य क्या होता?
१६ फिर भी, यहोवा ने ठाना कि इस्राएल की मिट्टी पर एक बार फिर एक राष्ट्रीय साक्षी दी जाती। यहेजकेल ने, जिसने बाबुल में निर्वासित यहूदियों के बीच भविष्यवाणी की, विध्वस्त देश के सम्बन्ध में यहोवा के निश्चय के बारे में लिखा: “मैं तुम पर बहुत मनुष्य अर्थात् इस्राएल के सारे घराने को बसाऊंगा; और नगर फिर बसाए और खण्डहर फिर बनाएं जाएंगे।” (यहेजकेल ३६:१०) यहोवा ऐसा क्यों करता? मूलतः स्वयं अपने नाम की साक्षी के लिए। यहेजकेल के द्वारा उसने कहा: “हे इस्राएल के घराने, मैं इस को तुम्हारे निमित्त नहीं, परन्तु अपने पवित्र नाम के निमित्त करता हूं जिसे तुम ने उन जातियों में अपवित्र ठहराया।”—यहेजकेल ३६:२२; यिर्मयाह ५०:२८.
१७. यशायाह ४३:१० के शब्दों का संदर्भ क्या है?
१७ बाबुल की बन्धुआई से इस्राएल की वापसी की भविष्यवाणी करते समय भविष्यवक्ता यशायाह उत्प्रेरित हुआ कि यशायाह ४३:१० के शब्द लिखे, और कहे कि इस्राएल यहोवा का साक्षी था, उसका दास था। यशायाह ४३ और ४४ में, यहोवा का वर्णन इस्राएल के सृजनहार, रचयिता, परमेश्वर, पवित्र जन, उद्धारकर्ता, छुड़ानेवाला, राजा, और कर्त्ता के रूप में किया गया है। (यशायाह ४३:३, १४, १५; ४४:२) इस्राएल की बन्धुआई की अनुमति इसलिए दी गयी थी क्योंकि वह जाति उसे योग्य महिमा देने से बार-बार चूक गयी। लेकिन, वे अब भी उसके लोग थे। यहोवा ने उनसे कहा था: “मत डर, क्योंकि मैं ने तुझे छुड़ा लिया है; मैं ने तुझे नाम लेकर बुलाया है, तू मेरा ही है।” (यशायाह ४३:१) बाबुल में इस्राएल की बन्धुआई का अन्त होता।
१८. बाबुल से इस्राएल की मुक्ति ने कैसे साबित किया कि एकमात्र सच्चा परमेश्वर यहोवा है?
१८ सचमुच, यहोवा ने बाबुल से इस्राएल की मुक्ति को ईश्वरों की एक परीक्षा बना दिया। उसने जातियों के झूठे ईश्वरों को चुनौती दी कि अपने साक्षी लाएँ, और उसने इस्राएल को अपना साक्षी कहा। (यशायाह ४३:९, १२) जब उसने इस्राएल की बन्धुआई की सराखें तोड़ीं, तब उसने साबित किया कि बाबुल के ईश्वर कोई ईश्वर नहीं थे और कि एकमात्र सच्चा परमेश्वर वही है। (यशायाह ४३:१४, १५) इस घटना के कुछ २०० साल पहले, जब उसने बताया कि फारसी कुस्रू यहूदियों को स्वतंत्र कराने में उसका सेवक होगा, तब उसने अपने परमेश्वरत्व का और प्रमाण दिया। (यशायाह ४४:२८) इस्राएल मुक्त होता। क्यों? यहोवा समझाता है: “कि वे [इस्राएल] मेरा गुणानुवाद करें।” (यशायाह ४३:२१) यह एक साक्षी देने के लिए अतिरिक्त अवसर देता।
१९. कुस्रू द्वारा इस्राएलियों को यरूशलेम वापस जाने का निमंत्रण देने के द्वारा और उस वापसी के बाद विश्वासी यहूदियों के कार्यों के द्वारा क्या साक्षी दी गयी?
१९ जब समय आया, तो ठीक जैसे भविष्यवाणी की गयी थी फारसी कुस्रू ने बाबुल पर विजय पायी। जबकि कुस्रू एक विधर्मी था, उसने यहोवा के परमेश्वरत्व की घोषणा की जब उसने बाबुल में यहूदियों को यह आदेश जारी किया: “उसकी समस्त प्रजा के लोगों में से तुम्हारे मध्य जो कोई हो, उसका परमेश्वर उसके साथ रहे, और वह यहूदा के यरूशलेम को जाकर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का भवन बनाए—जो यरूशलेम में है वही परमेश्वर है।” (एज्रा १:३) अनेक यहूदियों ने अनुकूल प्रतिक्रिया दिखायी। वे लम्बी यात्रा करके प्रतिज्ञात देश गए और उन्होंने प्राचीन मंदिर स्थल पर एक वेदी बनायी। निरुत्साह और कड़े विरोध के बावजूद, वे अंततः मंदिर और यरूशलेम शहर का पुनःनिर्माण करने में समर्थ हुए। यह सब वैसे ही हुआ जैसे स्वयं यहोवा ने कहा, “न तो बल से, और न शक्ति से, परन्तु [उसकी] आत्मा के द्वारा होगा।” (जकर्याह ४:६) इन उपलब्धियों ने अतिरिक्त प्रमाण दिया कि यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है।
२०. इस्राएल की कमज़ोरियों के बावजूद, प्राचीन संसार में उनके द्वारा यहोवा के नाम को साक्षी देने के बारे में क्या कहा जा सकता है?
२० अतः, हालाँकि इस्राएल अपरिपूर्ण और कभी-कभी विद्रोही लोगों की जाति थी, यहोवा ने उसे अपने साक्षी के रूप में प्रयोग करना जारी रखा। मसीही-पूर्व संसार में, वह जाति अपने मंदिर और याजकवर्ग सहित सच्ची उपासना का विश्व केंद्र थी। जो कोई इब्रानी शास्त्र में इस्राएल के सम्बन्ध में यहोवा के कार्यों के बारे में पढ़ता है उसे इस विषय में किसी भी प्रकार का कोई संदेह नहीं हो सकता कि सच्चा परमेश्वर केवल एक है, और उसका नाम यहोवा है। (व्यवस्थाविवरण ६:४; जकर्याह १४:९) लेकिन, यहोवा के नाम को कहीं बड़ी साक्षी दी जानी थी, और इसकी चर्चा हम अगले लेख में करेंगे।
क्या आपको याद है?
▫ इब्राहीम ने कैसे साक्षी दी कि यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है?
▫ मूसा के किस उल्लेखनीय गुण ने उसे एक विश्वासी साक्षी बनने में समर्थ किया?
▫ किन तरीक़ों से इस्राएल ने यहोवा के बारे में एक राष्ट्रीय साक्षी दी?
▫ बाबुल से इस्राएल की मुक्ति कैसे इस बात का प्रदर्शन थी कि एकमात्र सच्चा परमेश्वर यहोवा है?
[पेज 10 पर तसवीरें]
अपने विश्वास और आज्ञाकारिता से इब्राहीम ने यहोवा के परमेश्वरत्व की उल्लेखनीय साक्षी दी