‘रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलना’
“हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते हैं।”—२ कुरिन्थियों ५:७.
१. ‘विश्वास से चलने’ का अर्थ क्या है?
हर बार जब हम परमेश्वर के वचन में दिए निर्देशों के अनुसार प्रार्थना करते हैं, हम यह दिखाते हैं कि कम-से-कम कुछ हद तक हम में विश्वास है। जब हम दूसरों को परमेश्वर के राज्य के बारे में साक्षी देने लगते हैं, तब इससे भी विश्वास दिखता है। और जब हम अपना जीवन यहोवा को समर्पित करते हैं, हम ‘विश्वास से चलने’ की अपनी इच्छा का सबूत देते हैं, यानी, ऐसा जीवन जीने की जिस पर विश्वास का नियंत्रण है।—२ कुरिन्थियों ५:७; कुलुस्सियों १:९, १०.
२. क्यों ज़रूरी नहीं कि कलीसिया की गतिविधियों में भाग लेना एक व्यक्ति में विश्वास होने का सबूत है?
२ अगर हमें सचमुच इस तरीक़े से जीना है, तो हमें ऐसे विश्वास की ज़रूरत है जिसका ठोस आधार हो। (इब्रानियों ११:१, ६) कई लोग यहोवा के साक्षियों की ओर इसलिए खिंचे आते हैं क्योंकि वे उनमें उच्च नैतिक दर्जों और प्रेम को देखते हैं। यह एक अच्छी शुरूआत तो है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि ऐसे लोगों में विश्वास है। दूसरे लोग हैं जिनका विवाह-साथी या माता/पिता विश्वास में मज़बूत है और ये शायद कुछ ऐसी गतिविधियों में भाग लें जिनमें उनका प्रिय जन भाग लेता है। अपने घर में ऐसा प्रभाव डालनेवाले एक व्यक्ति का होना सचमुच एक आशीष है, लेकिन यह भी परमेश्वर के लिए हमारे अपने प्रेम और हमारे अपने विश्वास की जगह नहीं ले सकता।—लूका १०:२७, २८.
३. (क) ठोस आधार का विश्वास पाने के लिए, हमें खुद बाइबल के बारे में किस बात का यक़ीन होना चाहिए? (ख) क्यों कुछ लोग दूसरों की तुलना में ज़्यादा आसानी से बाइबल के ईश्वर-प्रेरित होने का यक़ीन कर लेते हैं?
३ जो लोग सचमुच विश्वास से चलते हैं उन्हें इस बात का पूरा यक़ीन है कि बाइबल परमेश्वर का वचन है। इस बात के ढेरों सबूत हैं कि पवित्र शास्त्र, सचमुच “ईश्वर-प्रेरित” है।a (२ तीमुथियुस ३:१६, NW) एक व्यक्ति को यक़ीन दिलाने के लिए इनमें से कितने सबूतों की जाँच करना ज़रूरी है? यह शायद उसकी पृष्ठभूमि पर निर्भर करे। जिस बात से एक व्यक्ति को पूरा यक़ीन हो जाता है, वही बात शायद दूसरे को क़ायल न करे। कुछ मामलों में, एक व्यक्ति को ढेर सारे पक्के सबूत दिखाए जाने पर भी, वह शायद उसके उचित निष्कर्ष को स्वीकार न करना चाहे। क्यों? उन इच्छाओं के कारण जो उसके दिल की गहराइयों में दबी हुई हैं। (यिर्मयाह १७:९) इस प्रकार, हालाँकि एक व्यक्ति शायद परमेश्वर के उद्देश्य में दिलचस्पी रखने का दावा करे, हो सकता है कि उसका हृदय संसार द्वारा स्वीकार किए जाने के लिए लालायित हो। वह शायद जीने का ऐसा तरीक़ा छोड़ना नहीं चाहता जो बाइबल के दर्जों के विरोध में है। लेकिन, अगर कोई व्यक्ति सच्चाई के लिए सचमुच भूखा है, अगर वह खुद से सच बोलता है और अगर वह नम्र है, तो कुछ समय बाद उसे एहसास हो जाएगा कि बाइबल ही परमेश्वर का वचन है।
४. विश्वास पाने के लिए एक व्यक्ति की ओर से क्या ज़रूरी है?
४ जिन लोगों को बाइबल का अध्ययन करने में मदद दी जा रही है, वे अकसर कुछ ही महीनों में यह समझ जाते हैं कि उन्होंने इस बात के ढेरों सबूत देख लिए हैं कि यह परमेश्वर का वचन है। अगर यह बात उन्हें यहोवा द्वारा सिखलाए जाने के लिए अपना हृदय खोलने को प्रेरित करती है, तो फिर उनके अंतरतम विचार, उनकी इच्छाएँ और उनकी प्रेरणाएँ सीखी गयी बातों के साँचे में धीरे-धीरे ढलती जाएँगी। (भजन १४३:१०) रोमियों १०:१० (NHT) कहता है कि एक व्यक्ति “हृदय से” विश्वास रखता है। ऐसे विश्वास से ज़ाहिर होता है कि एक व्यक्ति असल में कैसा महसूस करता है, और यह उसके जीवन में साफ़ नज़र आएगा।
ठोस आधार के विश्वास के अनुसार नूह ने काम किया
५, ६. नूह का विश्वास किस पर आधारित था?
५ नूह एक ऐसा व्यक्ति था जिसके विश्वास का ठोस आधार था। (इब्रानियों ११:७) उसके पास इसका कौन-सा आधार था? नूह के पास परमेश्वर का वचन था, लिखित रूप में नहीं लेकिन जैसे उससे बोला गया था उस रूप में। उत्पत्ति ६:१३ कहता है: “परमेश्वर ने नूह से कहा, सब प्राणियों के अन्त करने का प्रश्न मेरे साम्हने आ गया है; क्योंकि उनके कारण पृथ्वी उपद्रव से भर गई है।” (तिरछे टाइप हमारे।) यहोवा ने नूह को एक जहाज़ बनाने का निर्देश दिया और उसके निर्माण के बारे में हर छोटी बात बतायी। उसके बाद परमेश्वर ने आगे कहा: “मैं आप पृथ्वी पर जलप्रलय करके सब प्राणियों को, जिन में जीवन की आत्मा है, आकाश के नीचे से नाश करने पर हूं: और सब जो पृथ्वी पर हैं मर जाएंगे।”—उत्पत्ति ६:१४-१७.
६ क्या इससे पहले बरसात हुई थी? बाइबल नहीं बताती। उत्पत्ति २:५ कहता है: “यहोवा परमेश्वर ने . . . जल नहीं बरसाया था।” लेकिन, सदियों बाद जीनेवाले मूसा ने, नूह के समय की नहीं वरन् उससे बहुत समय पहले की बात करते हुए परिस्थिति का इस तरह वर्णन किया। जैसे उत्पत्ति ७:४ में दिखाया गया है, नूह से बात करते वक़्त यहोवा ने बरसात का ज़िक्र किया और साफ़ है कि नूह को इसका अर्थ समझ में आया। फिर भी, नूह का विश्वास दिखनेवाली बातों पर न था। प्रेरित पौलुस ने लिखा कि नूह को “उन बातों के विषय में जो उस समय दिखाई न पड़ती थीं, चितौनी” दी गयी। परमेश्वर ने नूह से कहा कि वह पृथ्वी पर “जलप्रलय,” या जैसे उत्पत्ति ६:१७ में न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन का फुटनोट कहता है, “आकाशीय सागर” लानेवाला था। उस समय तक, ऐसी घटना कभी नहीं घटी थी। लेकिन वह सारी सृष्टि जिसे नूह देख सकता था एक प्रमाण के रूप में सामने थी कि परमेश्वर वास्तव में ऐसा एक विनाशकारी जलप्रलय ला सकता है। विश्वास से प्रेरित होकर, नूह ने जहाज़ बनाया।
७. (क) परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने के लिए नूह को किस बात की ज़रूरत नहीं थी? (ख) नूह के विश्वास पर ग़ौर करने से हमें कैसे लाभ होता है, और हमारा विश्वास कैसे दूसरों के लिए आशीष हो सकता है?
७ परमेश्वर ने नूह को कोई तारीख़ नहीं दी थी कि जलप्रलय कब शुरू होगा। लेकिन नूह ने इस बात को जब-आएगा-तब-देखेंगे की मनोवृत्ति अपनाने के लिए एक बहाने की तरह इस्तेमाल नहीं किया, न ही उसने जहाज़ बनाने और प्रचार करने के काम को अपने जीवन में कम महत्त्व का समझा। काफ़ी समय के रहते, परमेश्वर ने नूह से कहा कि जहाज़ के अंदर कब जाना है। इस दौरान, “जैसी परमेश्वर ने उसे आज्ञा दी थी, नूह ने ऐसा ही किया। उसने सब कुछ वैसा ही किया।” (उत्पत्ति ६:२२, NHT) नूह विश्वास से चला, बाहरी रूप को देखकर नहीं। हम कितने आभारी हैं कि उसने ऐसा किया! उसके विश्वास के कारण, हम आज जीवित हैं। हमारे मामले में भी, जो विश्वास हम दिखाते हैं, उसका न केवल हमारे भविष्य पर बल्कि हमारे बच्चों और हमारे चारों ओर के दूसरे लोगों के भविष्य पर भी बहुत बड़ा असर हो सकता है।
इब्राहीम का विश्वास
८, ९. (क) इब्राहीम ने किस बात को अपने विश्वास का आधार बनाया? (ख) यहोवा ने किस रूप में इब्राहीम को “दर्शन दिया”?
८ एक और उदाहरण पर ग़ौर कीजिए—इब्राहीम के। (इब्रानियों ११:८-१०) इब्राहीम ने किस बात को अपने विश्वास का आधार बनाया? वह कसदियों के ऊर में जिस आबोहवा में पला-बढ़ा था उसमें मूर्तियों की उपासना और पैसों का लोभ सब तरफ़ था। लेकिन इब्राहीम के नज़रिए को दूसरे प्रभावों ने ढाला। बेशक वह नूह के बेटे शेम के साथ उठ-बैठ सका, जो उसके जन्म के बाद डेढ़ सौ साल तक जीया। इब्राहीम को यह यक़ीन हो गया कि यहोवा “परमप्रधान ईश्वर . . . [है], जो आकाश और पृथ्वी का अधिकारी है।”—उत्पत्ति १४:२२.
९ किसी और बात ने भी इब्राहीम पर गहरा असर डाला था। “इब्राहीम हारान में बसने से पहिले जब मिसुपुतामिया में था; तो . . . [यहोवा] ने उसे दर्शन दिया। और उस से कहा कि तू अपने देश और अपने कुटुम्ब से निकलकर उस देश में चला जा, जिसे मैं तुझे दिखाऊंगा।” (प्रेरितों ७:२, ३) यहोवा ने किस रूप में इब्राहीम को “दर्शन दिया”? इब्राहीम ने परमेश्वर को आमने-सामने नहीं देखा। (निर्गमन ३३:२०) लेकिन, यह संभव है कि अलौकिक वैभव के प्रदर्शन के साथ यहोवा ने इब्राहीम को किसी सपने में या किसी संदेश लानेवाले स्वर्गदूत अथवा प्रतिनिधि के माध्यम से दर्शन दिया। (उत्पत्ति १८:१-३; २८:१०-१५; लैव्यव्यवस्था ९:४, ६, २३, २४ से तुलना कीजिए।) चाहे यहोवा ने किसी भी माध्यम से इब्राहीम को दर्शन दिया हो, उस वफ़ादार मनुष्य को भरोसा था कि परमेश्वर उसके सामने एक बहुमूल्य विशेषाधिकार रख रहा है। इब्राहीम ने विश्वास से जवाबी कार्य किया।
१०. यहोवा ने कैसे इब्राहीम के विश्वास को मज़बूत किया?
१० इब्राहीम का विश्वास उस देश के बारे में विस्तृत जानकारी पाने पर निर्भर नहीं था जहाँ परमेश्वर उसे ले जा रहा था। उसका विश्वास यह जानने पर नहीं टिका था कि कब वह देश उसे दिया जाएगा। उसे विश्वास था क्योंकि वह यहोवा को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में जानता था। (निर्गमन ६:३) यहोवा ने इब्राहीम से कहा कि उसकी संतान होगी, लेकिन कभी-कभार इब्राहीम सोचता था कि यह कैसे हो सकता है। उसकी उम्र बढ़ती जा रही थी। (उत्पत्ति १५:३, ४) यहोवा ने यह कहकर इब्राहीम के विश्वास को मज़बूत किया कि वह ऊपर तारों को देखे कि उन्हें गिन सकता है या नहीं। “तेरा वंश ऐसा ही होगा,” परमेश्वर ने कहा। यह बात इब्राहीम को गहराई से छू गयी। यह स्पष्ट था कि इन विस्मित कर देनेवाले आकाशीय पिंडों का सृष्टिकर्ता अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर सकता है। इब्राहीम “ने यहोवा पर विश्वास किया।” (उत्पत्ति १५:५, ६) इब्राहीम ने सिर्फ़ इसलिए विश्वास नहीं किया कि जो वह सुन रहा था उसे अच्छा लगा; उसके विश्वास का ठोस आधार था।
११. (क) जब इब्राहीम १०० साल का होनेवाला था, तब उसने परमेश्वर की इस प्रतिज्ञा पर कैसे प्रतिक्रिया दिखायी कि वृद्ध सारा एक बेटा जनेगी? (ख) किस प्रकार के विश्वास से इब्राहीम ने अपने बेटे को मोरिय्याह पर्वत पर जाकर बलि चढ़ाने की परीक्षा का सामना किया?
११ जब इब्राहीम १०० साल का होनेवाला था और उसकी पत्नी, सारा ९० की, तब यहोवा ने अपनी प्रतिज्ञा दोहरायी कि इब्राहीम के एक बेटा होगा और सारा माँ बनेगी। इब्राहीम ने अपनी स्थिति का सही-सही जायज़ा लिया। “फिर भी, परमेश्वर की प्रतिज्ञा के सम्बन्ध में वह अविश्वास के कारण विचलित नहीं हुआ, परन्तु परमेश्वर की महिमा करते हुए विश्वास में दृढ़ हुआ, और पूर्णतः आश्वस्त होकर कि जो प्रतिज्ञा उसने की थी, वह उसे पूरा करने में भी समर्थ है।” (रोमियों ४:१९-२१, NHT) इब्राहीम जानता था कि परमेश्वर की प्रतिज्ञा कभी नाकाम नहीं हो सकती। बाद में, अपने विश्वास के कारण इब्राहीम ने परमेश्वर की बात मानी जब उससे कहा गया कि अपने बेटे इसहाक को लेकर मोरिय्याह देश में जाए और उसे एक बलि के रूप में चढ़ा दे। (उत्पत्ति २२:१-१२) इब्राहीम को पूरा-पूरा भरोसा था कि जिस परमेश्वर ने चमत्कार करके उस बेटे का जन्म संभव कराया, वह उसे दुबारा जीवित कर सकता था ताकि उसके बारे में परमेश्वर ने जो और प्रतिज्ञाएँ की थीं वे पूरी हों।—इब्रानियों ११:१७-१९.
१२. कब तक इब्राहीम विश्वास से चलता रहा, और उसके लिए तथा मज़बूत विश्वास दिखानेवाले उसके परिवारजनों के लिए कौन-सा प्रतिफल रखा है?
१२ इब्राहीम ने दिखाया कि वह विश्वास के नियंत्रण में था, केवल इक्का-दुक्का हालात में नहीं बल्कि अपने सारे जीवन में। अपने जीवन-काल में इब्राहीम को प्रतिज्ञात देश का कोई भी भाग विरासत में परमेश्वर से नहीं मिला। (प्रेरितों ७:५) तब भी, इब्राहीम थक-हारकर वापस कसदियों के ऊर को नहीं गया। सौ साल तक, अपनी मृत्यु की घड़ी तक, वह उस देश में तंबुओं में रहा जहाँ परमेश्वर उसे ले गया था। (उत्पत्ति २५:७) उसके और उसकी पत्नी सारा, उनके बेटे इसहाक, और उनके पोते याकूब के बारे में इब्रानियों ११:१६ कहता है: “परमेश्वर उन का परमेश्वर कहलाने में उन से नहीं लजाता, सो उस ने उन के लिये एक नगर तैयार किया है।” जी हाँ, यहोवा ने अपने मसीहाई राज्य के पृथ्वी के क्षेत्र में उनके लिए एक जगह रखी है।
१३. यहोवा के सेवकों में आज कौन इब्राहीम जैसा विश्वास होने का सबूत देते हैं?
१३ यहोवा के सेवकों में आज ऐसे लोग हैं जो इब्राहीम जैसे हैं। वे सालों से विश्वास रखकर चलते रहे हैं। जो शक्ति परमेश्वर देता है, उससे उन्होंने पहाड़ जैसी बाधाओं को पार किया है। (मत्ती १७:२०) वे विश्वास से इसलिए विचलित नहीं हो रहे हैं क्योंकि वे यह नहीं जानते कि परमेश्वर आख़िर किस घड़ी उन्हें प्रतिज्ञा की गयी विरासत देनेवाला है। वे जानते हैं कि यहोवा का वचन नाकाम नहीं हो सकता, और वे उसके साक्षियों में गिने जाने को एक अमूल्य विशेषाधिकार मानते हैं। क्या आप भी ऐसा महसूस करते हैं?
मूसा को प्रेरित करनेवाला विश्वास
१४. मूसा के विश्वास की नींव कैसे डाली गयी?
१४ विश्वास का एक और उदाहरण है मूसा। उसका विश्वास किस नींव पर टिका था? यह नींव बचपन में डाली गयी थी। हालाँकि फ़िरौन की बेटी ने मूसा को नील नदी में पपीरस के एक बक्से में पाया और उसे अपना पुत्र मानकर अपनाया, मूसा की अपनी इब्रानी माँ, योकेबेद ने उस लड़के को पाला-पोसा और उसके शुरूआती सालों में उसे अपनी निगरानी में रखा। स्पष्ट है कि योकेबेद ने उसे अच्छी तरह शिक्षा दी, और यहोवा के लिए उसके मन में प्रेम और इब्राहीम को की गयी परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के लिए क़दरदानी बिठायी। बाद में, फ़िरौन के घराने का एक सदस्य होने के नाते, मूसा “को मिसरियों की सारी विद्या पढ़ाई गई।” (प्रेरितों ७:२०-२२; निर्गमन २:१-१०; ६:२०; इब्रानियों ११:२३) लेकिन, उसके अच्छे पद के बावजूद, मूसा का दिल परमेश्वर के लोगों के साथ था जो दासत्व में थे।
१५. यहोवा के लोगों के साथ अपनी पहचान कराने का अर्थ मूसा के लिए क्या था?
१५ अपनी उम्र के ४०वें साल में, मूसा ने एक इस्राएली को बचाने के लिए, जिसके साथ अन्याय किया जा रहा था, एक मिस्री को मार गिराया। इस घटना ने दिखाया कि मूसा परमेश्वर के लोगों को किस नज़र से देखता था। सच, “विश्वास ही से मूसा ने सयाना होकर फिरौन की बेटी का पुत्र कहलाने से इन्कार किया।” मिस्र के दरबार का एक सदस्य होने के नाते “पाप में थोड़े दिन के सुख” को भोगने के बजाय, उसे विश्वास ने प्रेरित किया कि परमेश्वर के सताए जा रहे लोगों के साथ अपनी पहचान कराए।—इब्रानियों ११:२४, २५; प्रेरितों ७:२३-२५.
१६. (क) यहोवा ने मूसा को क्या काम सौंपा, और परमेश्वर ने कैसे उसकी मदद की? (ख) अपने काम को पूरा करने में, मूसा ने कैसे विश्वास दिखाया?
१६ अपने लोगों को राहत दिलाने के लिए मूसा क़दम उठाने को उत्सुक था, लेकिन उनके छुटकारे के लिए परमेश्वर का समय अभी आया नहीं था। मूसा को मिस्र से भागना पड़ा। कुछ ४० साल बाद यहोवा ने एक स्वर्गदूत के ज़रिए मूसा को मिस्र लौटकर उस देश से इस्राएलियों को निकाल लाने का काम सौंपा। (निर्गमन ३:२-१०) मूसा की प्रतिक्रिया क्या थी? उसने इस्राएल को छुड़ाने की यहोवा की क़ाबिलीयत पर शक नहीं किया, लेकिन हाँ परमेश्वर ने उसके सामने जो काम रखा उसके लिए वह अयोग्य महसूस कर रहा था। प्रेम से, यहोवा ने मूसा को प्रोत्साहन दिया जिसकी उसे ज़रूरत थी। (निर्गमन ३:११–४:१७) मूसा का विश्वास मज़बूत हो गया। वह मिस्र को लौटा और उसने बार-बार फ़िरौन के सामने जाकर उसे चेतावनी दी कि अगर उसने यहोवा की उपासना करने के लिए इस्राएल को नहीं जाने दिया तो मिस्र पर विपत्तियाँ आ पड़ेंगी। मूसा के पास इन विपत्तियों को लाने की शक्ति नहीं थी। वह विश्वास से चला, रूप को देखकर नहीं। उसका विश्वास यहोवा और उसके वचन में था। फ़िरौन ने मूसा को धमकाया। लेकिन मूसा टस-से-मस न हुआ। “विश्वास ही से राजा के क्रोध से न डरकर उस ने मिसर को छोड़ दिया, क्योंकि वह अनदेखे को मानो देखता हुआ दृढ़ रहा।” (इब्रानियों ११:२७) मूसा परिपूर्ण नहीं था। उसने ग़लतियाँ कीं। (गिनती २०:७-१२) लेकिन, परमेश्वर ने जब से उसे काम सौंपा तब से उसका पूरा जीवन विश्वास के नियंत्रण में था।
१७. नूह, इब्राहीम और मूसा के लिए विश्वास से चलने का क्या परिणाम हुआ, हालाँकि वे परमेश्वर का नया संसार देखने के लिए जीवित नहीं रहे?
१७ ऐसा हो कि आपका विश्वास भी नूह, इब्राहीम और मूसा के जैसा साबित हो। यह सच है कि उन्होंने अपने समय में परमेश्वर के नए संसार को नहीं देखा। (इब्रानियों ११:३९) परमेश्वर का नियुक्त समय तभी आया नहीं था; उसके उद्देश्य के दूसरे पहलू थे जिनका पूरा होना अभी बाक़ी था। फिर भी, परमेश्वर के वचन में अपने विश्वास से वे विचलित नहीं हुए और उनके नाम परमेश्वर की जीवन की किताब में हैं।
१८. जो स्वर्गीय जीवन के लिए बुलाए गए हैं, उनके लिए विश्वास से चलते रहना क्यों ज़रूरी है?
१८ “परमेश्वर ने हमारे लिये पहिले से एक उत्तम बात ठहराई,” प्रेरित पौलुस ने लिखा। यानी, परमेश्वर ने पहले से पौलुस जैसे लोगों के लिए, जिन्हें मसीह के साथ स्वर्गीय जीवन के लिए बुलाया गया है, कोई उत्तम बात ठहराई। (इब्रानियों ११:४०) ये वे हैं जो ख़ास तौर पर पौलुस के मन में थे, जब उसने २ कुरिन्थियों ५:७ में अभिलिखित शब्द लिखे: “हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते हैं।” जब यह बात लिखी गयी, तब तक उनमें से किसी ने भी अपना स्वर्गीय प्रतिफल हासिल नहीं किया था। वे उसे अपनी शारीरिक आँखों से देख नहीं सकते थे, लेकिन उस पर उनके विश्वास का ठोस आधार था। मसीह मरे हुओं में से जिलाया गया था, स्वर्गीय जीवन की आशीष पानेवालों में का पहला फल था। और उसके स्वर्ग चढ़ने से पहले ५०० से ज़्यादा साक्षियों ने उसे देखा था। (१ कुरिन्थियों १५:३-८) अपना पूरा जीवन उस विश्वास द्वारा नियंत्रित होने का उनके पास पर्याप्त कारण था। हमारे पास भी विश्वास से चलने के ठोस कारण हैं।
१९. जैसे इब्रानियों १:१, २ में दिखाया है, परमेश्वर ने किसके ज़रिए हमसे बात की है?
१९ आज, यहोवा किसी स्वर्गदूत के ज़रिए अपने लोगों से बात नहीं कर रहा, जैसे उसने जलती हुई झाड़ी के पास मूसा से की थी। परमेश्वर ने अपने पुत्र के ज़रिए बात की है। (इब्रानियों १:१, २) परमेश्वर ने उसके ज़रिए जो कहा, उसे उसने बाइबल में भी लिखवा दिया, जिसका अनुवाद संसार भर में आम लोगों की भाषाओं में हुआ है।
२०. नूह, इब्राहीम और मूसा से हमारी स्थिति कैसे कहीं ज़्यादा अच्छी है?
२० हमारे पास नूह, इब्राहीम और मूसा से कहीं ज़्यादा है। हमारे पास परमेश्वर का संपूर्ण वचन है—उसमें से ज़्यादातर बातें तो पूरी हो चुकी हैं। हर प्रकार की परीक्षा में खुद को यहोवा के वफ़ादार साक्षी साबित करनेवाले पुरुषों और स्त्रियों के बारे में बाइबल जो कुछ कहती है उसको मद्देनज़र रखते हुए, इब्रानियों १२:१ आग्रह करता है: “आओ, हर एक रोकनेवाली वस्तु, और [आसानी से] उलझानेवाले पाप को दूर करके, वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें।” हमारा विश्वास कुछ ऐसा नहीं है जिसे तुच्छ समझा जाए। हमें ‘[आसानी से] उलझानेवाला पाप’ है विश्वास की कमी। अगर हमें ‘विश्वास से चलते रहना’ है तो कड़ा संघर्ष ज़रूरी है।
[फुटनोट]
a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित बाइबल—परमेश्वर का वचन या मनुष्य का वचन? (अंग्रेज़ी) देखिए।
आपकी टिप्पणी क्या है?
◻ ‘विश्वास से चलने’ में क्या बात शामिल है?
◻ नूह के विश्वास दिखाने के तरीक़े से हम कैसे लाभ उठा सकते हैं?
◻ विश्वास दिखाने के इब्राहीम के तरीक़े से हमें कैसे मदद मिलती है?
◻ विश्वास के एक उदाहरण के रूप में बाइबल क्यों मूसा की ओर संकेत करती है?
[पेज 10 पर तसवीर]
इब्राहीम विश्वास से चला
[पेज 10 पर तसवीर]
मूसा और हारून ने फ़िरौन के सामने विश्वास दिखाया