क्या आपका काम आग में भी टिका रहेगा?
“हर एक मनुष्य चौकस रहे, कि वह [नींव] पर कैसा रद्दा रखता है।”—१ कुरिन्थियों ३:१०.
१. जो लोग आगे चलकर चेले बन सकते हैं उनके लिए वफादार मसीही क्या उम्मीद रखते हैं?
एक मसीही पति-पत्नी अपने नए-नए जन्मे बच्चे को निहारते हैं। एक सुसमाचार प्रचारक एक बाइबल विद्यार्थी की लगन और दिलचस्पी को देखता है। एक मसीही प्राचीन सिखाते वक्त स्टेज से देखता है कि सुननेवालों में एक नया व्यक्ति बैठा है जो बड़े ही चाव से बाइबल के हवालों को निकाल रहा है। यहोवा के इन सभी वफादार सेवकों को एक उम्मीद है। वे सोच रहे हैं, ‘क्या यह शख्स आगे चलकर यहोवा से प्रेम करेगा और उसकी सेवा करेगा और क्या यह हमेशा वफादार बना रहेगा?’ बेशक ऐसा खुद-ब-खुद नहीं हो जाता। इसके लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।
२. प्रेरित पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को सिखाने के काम की अहमियत कैसे याद दिलायी और इससे प्रेरणा पाकर हम अपनी कैसी जाँच कर सकते हैं?
२ प्रेरित पौलुस खुद एक काबिल शिक्षक था। सिखाने और चेले बनाने के काम की अहमियत पर ज़ोर देते हुए उसने लिखा: “समय के विचार से तो तुम्हें गुरू हो जाना चाहिए था।” (इब्रानियों ५:१२) पौलुस ने जिन मसीहियों को लिखा उन्होंने वक्त के हिसाब से सच्चाई में बहुत कम उन्नति की थी। दूसरों को सिखाना तो दूर रहा, उन्हें खुद इस बात की ज़रूरत थी कि कोई उनको सच्चाई की बुनियादी बातें फिर से याद दिलाए। आज, हम सभी अच्छा करते हैं जब हम समय-समय पर अपनी सिखाने की काबिलीयत की जाँच करते हैं और यह देखते हैं कि हम इसे कैसे बढ़ा सकते हैं। लोगों की ज़िंदगी का सवाल है। हम क्या कर सकते हैं?
३. (क) प्रेरित पौलुस ने मसीही चेले बनाने के काम की तुलना किससे की? (ख) मसीही निर्माण के काम में हमें कौन-सा बड़ा सम्मान मिला है?
३ एक दृष्टांत को उन पर लागू करते हुए, पौलुस ने चेले बनाने के काम की तुलना एक भवन के निर्माण से की। उसने यह कहकर शुरूआत की: “हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं; तुम परमेश्वर का खेत हो और परमेश्वर का भवन हो।” (१ कुरिन्थियों ३:९, NHT) सो हम मनुष्यों के निर्माण का काम करते हैं, मसीह के चेले बनने में हम उनकी मदद करते हैं। और इस काम में हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं जिसने “सब कुछ बनाया।” (इब्रानियों ३:४) कितना बड़ा सम्मान! आइए देखें कि कुरिन्थियों को दी गयी पौलुस की ईश्वर-प्रेरित सलाह, अपने काम में ज़्यादा कुशल बनने में हमारी कैसे मदद कर सकती है। हम खासकर अपनी “सिखाने की कला” पर गौर करेंगे।—२ तीमुथियुस ४:२, NW.
सही नींव डालना
४. (क) मसीही निर्माण के काम में पौलुस की क्या भूमिका थी? (ख) ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि यीशु और उसके सुननेवाले, दोनों पक्की नींव की अहमियत समझते थे?
४ एक भवन को मज़बूत और टिकाऊ बनाने के लिए अच्छी नींव डालने की ज़रूरत होती है। इसलिए पौलुस ने लिखा: “परमेश्वर के उस अनुग्रह के अनुसार, जो मुझे दिया गया, मैं ने बुद्धिमान राजमिस्त्री की नाईं नेव डाली।” (१ कुरिन्थियों ३:१०) ऐसा ही दृष्टांत इस्तेमाल करते हुए, यीशु मसीह ने एक ऐसे घर के बारे में बताया जो बाढ़ आने पर भी टिका रहा क्योंकि उसे बनानेवाले ने घर बनाने के लिए मज़बूत नींव का चुनाव किया था। (लूका ६:४७-४९) यीशु नींव की अहमियत के बारे में बहुत अच्छी तरह जानता था। क्योंकि जब यहोवा पृथ्वी की नींव डाल रहा था तब वह भी वहाँ मौजूद था।a (नीतिवचन ८:२९-३१) उसी तरह, यीशु के सुननेवाले भी पक्की नींव की अहमियत समझते थे। क्योंकि इस्राएल में कभी-कभी बाढ़ आती थी और भूकंप होते थे तब सिर्फ पक्की नींववाले घर ही टिके रह सकते थे। मगर, पौलुस किस नींव के बारे में बात कर रहा था?
५. मसीही कलीसिया की नींव कौन है, और इसकी भविष्यवाणी कैसे की गयी थी?
५ पौलुस ने लिखा: “उस नेव को छोड़ जो पड़ी है, और वह यीशु मसीह है: कोई दूसरी नेव नहीं डाल सकता।” (१ कुरिन्थियों ३:११) इससे पहले भी यीशु की तुलना एक नींव से की गयी थी। असल में, यशायाह २८:१६ में भविष्यवाणी की गयी थी: “प्रभु यहोवा यों कहता है, देखो, मैं ने सिय्योन में नेव का एक पत्थर रखा है, एक परखा हुआ पत्थर, कोने का अनमोल और अति दृढ़ नेव के योग्य पत्थर।” बहुत पहले से ही यहोवा का यह उद्देश्य था कि उसका बेटा मसीही कलीसिया की नींव बने।—भजन ११८:२२; इफिसियों २:१९-२२; १ पतरस २:४-६.
६. पौलुस ने कुरिन्थ के मसीहियों में सही नींव कैसे डाली?
६ हर मसीही की नींव कौन है? जैसे पौलुस ने कहा, सच्चे मसीही के लिए परमेश्वर के वचन में बतायी गयी नींव के सिवा और कोई नींव नहीं है, और वह नींव है यीशु मसीह। बेशक पौलुस ने यही नींव डाली थी। कुरिन्थ में, जहाँ तत्वज्ञान का बहुत आदर किया जाता था, उसने लोगों को संसार की बुद्धि से प्रभावित करने की कोशिश नहीं की। इसके बजाय, पौलुस ने “क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह” का प्रचार किया, जिसे अन्यजातियों ने “मूर्खता” समझकर रद्द कर दिया। (१ कुरिन्थियों १:२३) पौलुस ने सिखाया कि यीशु, यहोवा के उद्देश्यों में सबसे अहम भूमिका रखता है।—२ कुरिन्थियों १:२०; कुलुस्सियों २:२, ३.
७. पौलुस के खुद को “बुद्धिमान राजमिस्त्री” कहने से हम क्या सीख सकते हैं?
७ पौलुस ने बताया कि उसने “बुद्धिमान राजमिस्त्री” के रूप में यह शिक्षा दी। उसकी इस बात से अहंकार की बू नहीं आती। क्योंकि वह सिर्फ यहोवा से मिले अद्भुत वरदान के लिए आभार दिखा रहा था। यह वरदान था, काम को अच्छी तरह से व्यवस्थित करना और निर्देशन देना। (१ कुरिन्थियों १२:२८) सच है कि आज हमारे पास वे चमत्कारिक वरदान नहीं हैं जो पहली सदी के मसीहियों को दिए गए थे। और शायद हम यह भी सोचें कि हम कुदरती अच्छे शिक्षक नहीं हैं। लेकिन एक खास मायने में हम हैं। गौर कीजिए: यहोवा हमारी मदद करने के लिए अपनी पवित्र आत्मा हमें देता है। (लूका १२:११, १२ से तुलना कीजिए।) हम यहोवा से प्रेम करते हैं और उसके वचन की बुनियादी शिक्षाओं को जानते हैं। दूसरों को सिखाने के लिए ये सचमुच अद्भुत वरदान हैं। आइए हम संकल्प करें कि इन वरदानों का इस्तेमाल हम अच्छी नींव डालने के लिए करेंगे।
८. भावी चेलों में हम मसीह की नींव कैसे डाल सकते हैं?
८ जब हम मसीह की नींव डालते हैं, तब हम उसे चरनी में पड़े एक लाचार बच्चे के रूप में नहीं दिखाते, न ही हम उसे त्रिएक में यहोवा की बराबरी का एक व्यक्ति बताते। हम यह शिक्षा नहीं देते, क्योंकि झूठे मसीही ही ऐसी गलत शिक्षाओं की नींव डालते हैं जो बाइबल में नहीं पायी जातीं। इसके बजाय, हम यह सिखाते हैं कि यीशु इस पृथ्वी पर जीनेवालों में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य था, उसने हमारे लिए अपना सिद्ध जीवन दे दिया और अब वह यहोवा द्वारा नियुक्त राजा के रूप में स्वर्ग में राज कर रहा है। (रोमियों ५:८; प्रकाशितवाक्य ११:१५) इसके साथ, हम जिन्हें बाइबल सिखाते हैं, उन्हें हम यीशु के नक्शेकदम पर चलने और उसके जैसे गुण दिखाने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं। (१ पतरस २:२१) हम चाहते हैं कि उन पर सेवकाई के लिए यीशु के जोश का असर पड़े। जिस तरह वह दीन और सताए हुओं के लिए करुणा दिखाता था, पाप के बोझ तले दबे हुओं के लिए दया रखता था और परीक्षाओं का सामना करते वक्त जैसी हिम्मत दिखाता था इन सभी बातों से वे प्रभावित हों। सच, यीशु महान नींव है। मगर नींव डालने के बाद क्या?
सही चीज़ों से निर्माण करना
९. हालाँकि पौलुस का मुख्य काम नींव डालना था, उसने जिन्हें सच्चाई सिखायी थी उनके लिए वह कैसी चिंता रखता था?
९ पौलुस ने लिखा: “यदि कोई इस नेव पर सोना या चान्दी या बहुमोल पत्थर या काठ या घास या फूस का रद्दा रखे। तो हर एक का काम प्रगट हो जाएगा; क्योंकि वह दिन उसे बताएगा; इसलिये कि आग के साथ प्रगट होगा: और वह आग हर एक का काम परखेगी कि कैसा है?” (१ कुरिन्थियों ३:१२, १३) पौलुस का क्या मतलब था? उन हालात पर गौर कीजिए जिनकी वज़ह से पौलुस ने यह लिखा। पौलुस का मुख्य काम नींव डालना था। अपनी मिशनरी यात्राओं में, वह नगर-नगर गया और ऐसे अनेक लोगों को सुसमाचार सुनाया जिन्होंने मसीह के बारे में पहले कभी नहीं सुना था। (रोमियों १५:२०) जैसे-जैसे लोग उसके द्वारा सिखायी गयी सच्चाई को अपनाते गए, कलीसियाएँ बनती गयीं। पौलुस इन वफादार लोगों की बहुत ज़्यादा चिंता करता था। (२ कुरिन्थियों ११:२८, २९) मगर उसका काम ऐसा था कि वह एक जगह रुक नहीं सकता था। इसलिए, कुरिन्थ में १८ महीने नींव डालने का काम करने के बाद, वह दूसरे नगरों में प्रचार करने के लिए चला गया। मगर, उसे इस बात में गहरी दिलचस्पी थी कि जो काम उसने वहाँ किया है उसे दूसरों ने कैसे आगे बढ़ाया।—प्रेरितों १८:८-११; १ कुरिन्थियों ३:६.
१०, ११. (क) पौलुस ने अलग-अलग किस्म की निर्माण सामग्री में फर्क कैसे दिखाया? (ख) प्राचीन कुरिन्थ में शायद किस-किस किस्म की इमारतें होती थीं? (ग) किस किस्म की इमारतों का आग से बच निकलना संभव है और चेले बनानेवाले मसीही इससे कौन-सा सबक सीख सकते हैं?
१० कुरिन्थ में पौलुस ने जो नींव डाली थी उस पर निर्माण करनेवाले कुछ लोग शायद अपना काम सही तरीके से नहीं कर रहे थे। इस समस्या की वज़ह समझाने के लिए, पौलुस दो किस्म के रद्दों में फर्क बताता है: एक तरफ सोना, चाँदी और बहुमूल्य पत्थर और दूसरी तरफ काठ और घास-फूस। एक भवन बढ़िया, मज़बूत, आग में टिक सकनेवाली चीज़ों से बनाया जा सकता है या फिर जल्दबाज़ी में बहुत जल्द खराब होनेवाली, कम समय चलनेवाली और जल्द ही आग पकड़नेवाली चीज़ों से खड़ा किया जा सकता है। बेशक कुरिन्थ जैसे बड़े नगर में दोनों ही किस्म की बहुत सारी इमारतें थीं। वहाँ आलीशान मंदिर थे जिन्हें बड़े-बड़े, कीमती पत्थरों और शिलाओं से बनाया गया था और शायद इन पत्थरों के सामने के भाग पर या कुछ भाग पर सोना और चाँदी मढ़ा गया था या उससे सजावट की गयी थी।b ये मज़बूत इमारतें अपने आस-पास की, लकड़ी के ऊबड़-खाबड़ फट्टों और फूस से बनी झोंपड़ियों, छोटे-छोटे घरों और बाज़ार की चौकियों के सामने बहुत बड़ी और आलीशान नज़र आती होंगी।
११ आग लगने पर इन इमारतों का क्या होता? आज भी इसका जवाब उतना ही साफ है जितना पौलुस के समय में था। असल में, रोमी जनरल ममीअस ने सा.यु.पू. १४६ में कुरिन्थ नगर पर कब्ज़ा करके उसमें आग लगा दी। लकड़ी, घास-फूस से बनी झोपड़ियाँ बेशक पूरी तरह जलकर राख हो गयीं। सोने और चाँदी से मढ़े हुए पत्थरों की मज़बूत इमारतों का क्या हुआ? बेशक, ये खड़ी रहीं। कुरिन्थ में पौलुस से सच्चाई सीखनेवाले लोग शायद हर रोज़ इन इमारतों के पास से गुज़रते होंगे, जो ऐसे विनाश से बचकर निकली थीं जिससे उनके आस-पास की कमज़ोर इमारतें राख में मिल गयी थीं। तो फिर, पौलुस ने कितने बेहतरीन तरीके से अपनी बात कह दी! सिखाते वक्त, हमें खुद को निर्माण करनेवाले समझना है। हम चाहते हैं कि सबसे बढ़िया और टिकाऊ चीज़ों का इस्तेमाल करें। इस तरह हमारे काम के टिकने की ज़्यादा संभावना होगी। ये टिकाऊ चीज़ें क्या हैं और इन्हें इस्तेमाल करना क्यों ज़रूरी है?
क्या आपका काम आग में भी टिका रहेगा?
१२. किन तरीकों से कुरिन्थ के कुछ मसीही लापरवाही से निर्माण का काम कर रहे थे?
१२ ज़ाहिर है, पौलुस को लग रहा था कि कुरिन्थ के कुछ मसीही घटिया किस्म का निर्माण काम कर रहे थे। समस्या क्या थी? पूरी बात पढ़ने से पता चलता है कि इस कलीसिया को फूट का रोग लगा हुआ था और कुछ लोग कलीसिया में एकता बनाए रखने की परवाह किए बगैर खास व्यक्तियों को हद से ज़्यादा अहमियत दे रहे थे चाहे कलीसिया में एकता रहे या ना रहे। कुछ कह रहे थे, “मैं पौलुस का हूं,” तो दूसरे ज़ोर दे रहे थे, “मैं अपुल्लोस का हूं।” कुछ लोग शायद खुद को सबसे ज़्यादा बुद्धिमान समझते थे। तो इसमें ताज्जुब की कोई बात नहीं कि इसकी वज़ह से वहाँ दुनियावी सोच-विचार, आध्यात्मिक रूप से बचपने और ‘डाह और झगड़े’ का माहौल बन गया था। (१ कुरिन्थियों १:१२; ३:१-४, १८) ऐसा सोच-विचार बेशक कलीसिया में दी जा रही शिक्षा में और सेवकाई में नज़र आ रहा था। इसका नतीजा यह हुआ कि चेले बनाने का काम लापरवाही से किया जा रहा था, जैसे कोई घटिया माल लगाकर निर्माण का काम करे। यह काम “आग” से नहीं बच पाता। पौलुस किस आग के बारे में बात कर रहा था?
१३. पौलुस के दृष्टांत में आग का क्या मतलब है और सब मसीहियों को क्या पता होना चाहिए?
१३ हम सब जीवन में एक आग से गुज़रते हैं, वह है हमारे विश्वास की परीक्षाएँ। (यूहन्ना १५:२०; याकूब १:२, ३) कुरिन्थ के मसीहियों को और उसी तरह आज हमें यह पता होना चाहिए कि ऐसे हर व्यक्ति की परीक्षा होगी जिसे हम सच्चाई सिखाते हैं। अगर हम घटिया तरीके से सिखाएँगे तो उसके नतीजे बहुत बुरे हो सकते हैं। पौलुस ने चिताया: “जिस का काम उस पर बना हुआ स्थिर रहेगा, वह मजदूरी पाएगा। और यदि किसी का काम जल जाएगा, तो वह हानि उठाएगा; पर वह आप बच जाएगा परन्तु जलते जलते।”c—१ कुरिन्थियों ३:१४, १५.
१४. (क) मसीही चेले बनानेवाला व्यक्ति शायद क्या “हानि उठाएगा,” पर फिर भी वह कैसे जलते जलते बच जाएगा? (ख) हम हानि उठाने का खतरा कैसे कम कर सकते हैं?
१४ कितनी ज़बरदस्त और गंभीर बात है! किसी व्यक्ति को एक चेला बनाने के लिए कड़ी मेहनत करने के बाद उसे प्रलोभन या सताहट की वज़ह से गिरता हुआ देखना और सच्चाई के मार्ग को छोड़कर जाते हुए देखना बहुत दर्दनाक हो सकता है। पौलुस भी इस दर्द को समझता था इसलिए उसने कहा कि हम ऐसे मामलों में हानि उठाते हैं। यह अनुभव इतना दर्दनाक हो सकता है मानो हमारा बचाव “जलते जलते” हुआ हो, यह उस आदमी की तरह होगा जिसने आग में सबकुछ खो दिया और वह खुद बड़ी मुश्किल से बच पाया। हम अपनी तरफ से यह हानि उठाने का खतरा कैसे कम कर सकते हैं? टिकाऊ चीज़ों से निर्माण कीजिए! अगर हम अपने विद्यार्थियों को सिखाते वक्त उनके दिल तक पहुँचते हैं, और बुद्धि, समझ, यहोवा का भय और सच्चे विश्वास जैसे कीमती मसीही गुणों के लिए उनकी कदरदानी बढ़ाते हैं, तो हम मज़बूत और आग में टिकी रहनेवाली चीज़ों से निर्माण कर रहे होंगे। (भजन १९:९, १०; नीतिवचन ३:१३-१५; १ पतरस १:६, ७) जो इन गुणों को हासिल करते हैं वे परमेश्वर की इच्छा पर चलते रहेंगे; और सदा तक जीवित रहने की उनकी आशा पक्की है। (१ यूहन्ना २:१७) मगर हम अपनी ज़िंदगी में पौलुस के दृष्टांत का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं? कुछ मिसालों पर गौर कीजिए।
१५. हम क्या-क्या सावधानियाँ बरत सकते हैं ताकि हमारे बाइबल विद्यार्थियों में निर्माण के काम में कोई लापरवाही न हो?
१५ जब हम बाइबल विद्यार्थियों को सिखाते हैं, तब हमें कभी-भी किसी इंसान को यहोवा परमेश्वर से ज़्यादा अहमियत नहीं देनी चाहिए। हम उन्हें यह नहीं सिखाना चाहते कि उनको हमसे बुद्धि मिल रही है। हम चाहते हैं कि वे मार्गदर्शन के लिए यहोवा, उसके वचन और उसके संगठन की ओर देखें। ऐसा करने के लिए, उनके सवालों का जवाब देते वक्त हम अपने ही विचार नहीं बताएँगे। इसके बजाय, हम उन्हें बाइबल और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” द्वारा दी गयी किताबों का इस्तेमाल करते हुए जवाब ढूँढ़ना सिखाएँगे। (मत्ती २४:४५-४७) इसी वज़ह से, हम ध्यान रखेंगे कि जिनके साथ हम बाइबल अध्ययन करते हैं उन्हें अपनी जागीर न समझें। दूसरों को उनमें दिलचस्पी लेते देखकर बुरा मानने के बजाय, हमें अपने विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करना चाहिए कि प्यार दिखाने में अपना “हृदय खोल” दें और कलीसिया में ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को जानने और समझने की कोशिश करें।—२ कुरिन्थियों ६:१२, १३.
१६. प्राचीन आग में टिकनेवाली चीज़ों से निर्माण कैसे कर सकते हैं?
१६ मसीही प्राचीन भी चेलों के निर्माण में एक खास भूमिका निभाते हैं। कलीसिया में सबको सिखाते वक्त, वे आग में टिकनेवाली चीज़ों से निर्माण करने की कोशिश करते हैं। उनकी सिखाने की योग्यता, अनुभव और व्यक्तित्व अलग-अलग हो सकता है, मगर वे इसका फायदा उठाकर लोगों को अपना चेला बनाने की कोशिश नहीं करते। (प्रेरितों २०:२९, ३० से तुलना कीजिए।) हमें सही-सही नहीं मालूम कि कुरिन्थ में कुछ लोग क्यों यह कह रहे थे, “मैं पौलुस का हूं” या “मैं अपुल्लोस का हूं।” मगर यह बात पक्की है कि इन वफादार प्राचीनों ने ऐसे फूट डालनेवाले सोच-विचार को बढ़ावा नहीं दिया था। पौलुस ऐसी चापलूसी से खुश नहीं हुआ; उसने ऐसे लोगों को ज़बरदस्त फटकार लगायी। (१ कुरिन्थियों ३:५-७) उसी तरह आज भी प्राचीन यह नहीं भूलते कि वे किसी और के नहीं बल्कि ‘परमेश्वर के झुंड’ की रखवाली कर रहे हैं। (१ पतरस ५:२) यह झुंड किसी इंसान की जागीर नहीं है। सो अगर झुंड पर या प्राचीनों के निकाय में कोई एक इंसान हावी होने लगता है तो प्राचीन ऐसे किसी भी रवैये का डटकर विरोध करते हैं। अगर प्राचीन कलीसिया की नम्रता से सेवा करने की इच्छा रखते हैं, लोगों के दिल तक पहुँचते हैं और पूरे तन-मन से यहोवा की सेवा करने के लिए भेड़ों की मदद करते हैं तो वे आग में टिकनेवाली चीज़ों से निर्माण कर रहे होते हैं।
१७. मसीही माता-पिता आग में टिकनेवाली चीज़ों से निर्माण करने की कैसे कोशिश करते हैं?
१७ मसीही माता-पिता को भी इस मामले में गहरी चिंता रहती है। उनका कितना बड़ा अरमान होता है कि उनके बच्चे हमेशा की ज़िंदगी पाएँ! इसीलिए तो वे अपने बच्चों के दिलों में परमेश्वर के वचन के उसूलों को बिठाने और ‘समझाकर सिखाने’ के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। (व्यवस्थाविवरण ६:६, ७) वे चाहते हैं कि उनके बच्चों के लिए सच्चाई का मतलब सिर्फ ढेर सारे नियमों की लंबी-चौड़ी लिस्ट रटना न हो, बल्कि उनके लिए सच्चाई का मतलब होना चाहिए फलदायक और खुशियों भरा जीवन का मार्ग जिस पर चलने से आशीषें मिलती हैं। (१ तीमुथियुस १:११) अपने बच्चों से प्रेम करनेवाले माता-पिता, मसीह के वफादार चेलों के रूप में उनका निर्माण करने के लिए आग में टिकनेवाली चीज़ें इस्तेमाल करते हैं। वे धीरज के साथ अपने बच्चों पर मेहनत करते हैं। वे उनमें से ऐसे बुरे गुण निकालने की कोशिश करते हैं जिनसे यहोवा को नफरत है और जो गुण उसे पसंद हैं उन्हें पैदा करने में वे उनकी मदद करते हैं।—गलतियों ५:२२, २३.
कौन ज़िम्मेदार है?
१८. जब एक चेला बाइबल की शिक्षा को ठुकरा देता है तो क्यों यह ज़रूरी नहीं कि इसमें उसके सिखानेवाले की गलती हो?
१८ इस चर्चा से एक बहुत ही ज़रूरी सवाल पैदा होता है। अगर एक व्यक्ति जिसकी हमने मदद करने की कोशिश की, सच्चाई से दूर चला जाता है, तो क्या इसका मतलब यह है कि हम एक अच्छे शिक्षक नहीं हैं, कि हमने घटिया माल लगाकर निर्माण किया था? ऐसा ज़रूरी नहीं है। पौलुस के शब्द बेशक हमें यह याद दिलाते हैं कि चेले बनाने के काम में हिस्सा लेना बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। अच्छा निर्माण करने के लिए हम अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। मगर परमेश्वर का वचन हमसे यह नहीं कहता कि जब कोई ऐसा व्यक्ति सच्चाई से दूर चला जाता है जिसकी हमने मदद की थी, तो इसकी सारी ज़िम्मेदारी हम खुद पर ले लें और खुद को दोषी महसूस करने लगें। निर्माण करनेवालों के रूप में हमारी भूमिका के अलावा और भी बहुत-सी बातें इसमें शामिल होती हैं। मिसाल के तौर पर, ध्यान दीजिए कि पौलुस ऐसे शिक्षक के बारे में भी क्या कहता है जिसने घटिया तरीके से निर्माण काम किया: “वह हानि उठाएगा; पर वह आप बच जाएगा।” (१ कुरिन्थियों ३:१५) अगर एक शिक्षक का आखिरकार उद्धार हो जाता है, मगर अपने विद्यार्थी में उसने जो मसीही व्यक्तित्व बनाने की कोशिश की वह मानो अग्निमय परीक्षा में ‘जल जाता’ है, तो हमें क्या निष्कर्ष निकालना चाहिए? यही कि यहोवा सबसे पहले उस विद्यार्थी को अपने फैसलों के लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार ठहराता है, चाहे वह वफादार रहे या न रहे।
१९. अगले लेख में हम किस विषय पर चर्चा करेंगे?
१९ अपनी या व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी का बहुत बड़ा महत्त्व है। हम सब पर इसका असर होता है। बाइबल इसके बारे में क्या सिखाती है? हमारा अगला लेख इस विषय पर चर्चा करेगा।
[फुटनोट]
a शब्द “पृथ्वी की नेव” शायद उन भौतिक शक्तियों की ओर संकेत करते हैं जो पृथ्वी और दूसरे आकाशीय पिंडों को उनकी अपनी-अपनी जगह पर बनाए रखती हैं। इसके अलावा, पृथ्वी का निर्माण इस तरीके से किया गया है कि वह कभी न “डगमगाए,” या कभी नष्ट न हो।—भजन १०४:५.
b जिन ‘बहुमोल पत्थरों’ का ज़िक्र पौलुस कर रहा था, ज़रूरी नहीं कि वे रत्न हों, जैसे कि हीरे और मणि। वे निर्माण में लगाए जानेवाले महँगे पत्थर हो सकते हैं जैसे संगमरमर, सिलखड़ी या ग्रेनाइट।
c पौलुस बनानेवाले के बचने पर नहीं बल्कि उसके “काम” के बचे रहने पर सवाल उठा रहा था। द न्यू इंग्लिश बाइबल इस आयत का अनुवाद यूँ करती है: “अगर एक मनुष्य की इमारत टिकी रहती है, तो उसे इनाम दिया जाएगा; अगर वह जल जाती है तो उसे नुकसान उठाना पड़ेगा; उसकी जान तो बच जाएगी मगर मानो आग में जलते-जलते।”
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ सच्चे मसीही में “नेव” क्या है और यह कैसे डाली जाती है?
◻ हम अलग-अलग किस्म की निर्माण की चीज़ों से क्या सीख सकते हैं?
◻ “आग” का क्या मतलब है और इसकी वज़ह से कैसे कुछ लोग ‘हानि उठाएँगे’?
◻ बाइबल सिखानेवाले शिक्षक, प्राचीन और माता-पिता कैसे आग में टिकनेवाली चीज़ों से निर्माण कर सकते हैं?
[पेज 9 पर तसवीर]
अनेक प्राचीन नगरों में, आग में टिकनेवाली पत्थर की इमारतों के साथ कुछ कमज़ोर इमारतें भी होती थीं