सतर्क रहिए और मेहनती बनिए!
“इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस घड़ी को।”—मत्ती २५:१३.
१. प्रेरित यूहन्ना किस बात की बेताबी से आस लगाए हुए था?
बाइबल में दी गयी आखिरी बातचीत में यीशु ने वादा किया: “मैं शीघ्र आनेवाला हूं।” उसके प्रेरित यूहन्ना ने इसका जवाब दिया: “आमीन। हे प्रभु यीशु आ।” इससे पता चलता है कि उस प्रेरित के मन में इस बारे में कोई शक नहीं था कि यीशु आएगा। क्योंकि यूहन्ना उन प्रेरितों में से एक था जिन्होंने यीशु से पूछा था: “ये बातें कब होंगी? और तेरे आने [“उपस्थिति,” NW; यूनानी, पारूसिया] का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?” बेशक, यूहन्ना पूरे-पूरे विश्वास के साथ यीशु की भविष्य में होनेवाली उपस्थिति की बेताबी से आस लगाए हुए था।—प्रकाशितवाक्य २२:२०; मत्ती २४:३.
२. यीशु की उपस्थिति के संबंध में, चर्च की क्या हालत है?
२ लेकिन, आजकल ऐसा विश्वास बहुत ही कम दिखायी देता है। कई चर्चों में यीशु के ‘आने’ के बारे में शिक्षा तो दी जाती है, मगर उनके बहुत ही कम सदस्य उसके आने की सचमुच उम्मीद करते हैं। इसी वज़ह से उनमें से ज़्यादातर लोग ऐसा जीवन बिताते हैं मानो यीशु नहीं आएगा। इसके बारे में नए नियम में पारूसिया (अँग्रेज़ी) पुस्तक कहती है: “पारूसिया की आशा चर्च के लोगों की ज़िंदगी में, उनके विचारों में और उनके कामों में बहुत ही कम मायने रखती है। . . . इसकी वज़ह से चर्च को जिस निहायत गंभीरता से सुधार करने के और सुसमाचार का प्रचार करने के अपने काम को लेना चाहिए, वह गंभीरता अगर पूरी तरह खत्म नहीं हुई है, तो कम ज़रूर हुई है।” लेकिन इसकी गंभीरता सभी लोगों में कम नहीं हुई है!
३. (क) पारूसिया के बारे में सच्चे मसीही कैसा महसूस करते हैं? (ख) अब हम खासकर किस बात की चर्चा करनेवाले हैं?
३ यीशु के सच्चे चेले इस दुनिया की दुष्ट व्यवस्था के अंत का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। और वफादारी के साथ ऐसा करते हुए, हमें यीशु की उपस्थिति से संबंधित सभी बातों के बारे में सही नज़रिया रखना चाहिए और उसके मुताबिक काम भी करना चाहिए। इससे हमें ‘अन्त तक धीरज धरने और उद्धार पाने’ में मदद मिलेगी। (मत्ती २४:१३) मत्ती अध्याय २४ और २५ में लिखी हुई भविष्यवाणी देते वक्त यीशु ने ऐसी बुद्धिमानी भरी सलाह दी जिसे हम अमल में ला सकते हैं और जिससे हमें हमेशा-हमेशा का लाभ होगा। अध्याय २५ में ऐसे दृष्टांत हैं जिन्हें आप शायद जानते ही हैं। इनमें से एक दृष्टांत दस कुँवारियों (समझदार व मूर्ख कुँवारियों) के बारे में और दूसरा तोड़ों के बारे में है। (मत्ती २५:१-३०) हमें इन दृष्टांतों से क्या फायदा हो सकता है?
पाँच कुँवारियों की तरह ही सतर्क रहिए!
४. कुँवारियों के दृष्टांत का निचोड़ क्या है?
४ मत्ती २५:१-१३ में दिए गए कुँवारियों के दृष्टांत को फिर से पढ़ना हमारे लिए अच्छा होगा। इस दृष्टांत में यहूदियों के एक शानदार विवाह समारोह के बारे में बताया गया है जिसमें दुल्हा, दुल्हन को लेने के लिए उसके पिता के घर जाता है ताकि वह दुल्हन को अपने (या अपने पिता के) घर ले आए। ऐसी बारात में शायद गाने-बजानेवाले रहे होंगे और उस बारात के घर पहुँचने का सही-सही समय पता नहीं होता। इस दृष्टांत में, दस कुँवारियाँ दूल्हे के पहुँचने के लिए देर रात तक इंतज़ार करती हैं। उनमें से पाँच कुँवारियों ने मूर्खता की और अपनी मशालों के लिए काफी तेल साथ नहीं लायीं। इसीलिए उन्हें जाकर तेल खरीदने की ज़रूरत पड़ी। मगर, बाकी की पाँच कुँवारियों ने अक्लमंदी दिखायी और वे अपनी-अपनी कुप्पियों में तेल भरकर साथ लायी थीं, ताकि इंतज़ार करते वक्त अगर तेल खत्म हो जाए तो वे उन्हें फिर से भर सकें। सो, जब दुल्हा आया तो केवल यही पाँच कुँवारियाँ मौजूद थीं और स्वागत के लिए तैयार खड़ी थीं। इसलिए केवल इन्हें ही दावत के लिए अंदर आने दिया गया। मगर जब वे पाँच मूर्ख कुँवारियाँ वापस आयीं, तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उन्हें अंदर नहीं लिया गया।
५. कुँवारियों के दृष्टांत के लाक्षणिक अर्थ को समझने में कौन-सी आयतें हमारी मदद करती हैं?
५ इस दृष्टांत के कई पहलुओं को लाक्षणिक अर्थ में समझा जा सकता है। मसलन, बाइबल यीशु को दुल्हा कहती है। (यूहन्ना ३:२८-३०) यीशु ने अपनी तुलना राजा के एक बेटे के साथ की जिसके विवाह की दावत की तैयारी की गयी थी। (मत्ती २२:१-१४) और बाइबल मसीह की तुलना एक पति के साथ भी करती है। (इफिसियों ५:२३) बाइबल की दूसरी आयतों में अभिषिक्त मसीहियों को मसीह की “दुलहिन” कहा गया है, लेकिन दिलचस्पी की बात यह है कि इस दृष्टांत में दुल्हन का कोई ज़िक्र नहीं है। (यूहन्ना ३:२९; प्रकाशितवाक्य १९:७; २१:२, ९) मगर, इस दृष्टांत में दस कुँवारियों की बात ज़रूर की गयी है और बाइबल की दूसरी आयतों में अभिषिक्त जनों की तुलना एक ऐसी कुँवारी के साथ की गयी है जिसका मसीह के साथ विवाह होनेवाला है।—२ कुरिन्थियों ११:२.a
६. कुँवारियों के दृष्टांत के आखिर में यीशु ने क्या सलाह दी?
६ हालाँकि इस दृष्टांत के लाक्षणिक अर्थ हैं और यह भविष्य के लिए भी मतलब रखता है, फिर भी इसमें ऐसे कई अच्छे सबक हैं जिन्हें हम सीख सकते हैं। मसलन, यीशु ने इस दृष्टांत के आखिर में कहा: “इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस घड़ी को।” सो इस दृष्टांत से हम यह सीखते हैं कि हम सभी को इस दुष्ट व्यवस्था के होनेवाले अंत के बारे में सतर्क रहने और होशियार रहने की ज़रूरत है। हालाँकि हम कोई सही-सही तारीख तो नहीं बता सकते, लेकिन अंत आएगा ही। इस संबंध में गौर कीजिए कि पाँच कुँवारियों ने कैसी मनोवृत्ति दिखायी और बाकी पाँच ने कैसी मनोवृत्ति दिखायी।
७. दृष्टांत की पाँच कुँवारियाँ किस अर्थ में मूर्ख साबित हुईं?
७ यीशु ने कहा: “उन में पांच मूर्ख . . . थीं।” क्या वे इसलिए मूर्ख थीं क्योंकि उन्हें लगा कि दुल्हा नहीं आएगा? क्या वे सुख-विलास में पड़ गयी थीं? या क्या उन्हें धोखा दिया गया था? ऐसा कुछ भी नहीं था, क्योंकि यीशु ने कहा कि ये पाँच कुँवारियाँ “दूल्हे से भेंट करने को निकलीं।” उन्हें मालूम था कि वह आनेवाला है और वे उसकी खुशियों में शरीक होना चाहती थीं, और “विवाह-भोज” (NHT) में भी भाग लेना चाहती थीं। लेकिन, क्या वे इसके लिए पूरी तरह से तैयार थीं? उन्होंने उसके लिए कुछ समय तक, यानी “आधी रात” तक तो इंतज़ार किया, लेकिन उन्होंने इस तरह से तैयारी नहीं की थी कि दुल्हा जब भी आए, उस वक्त वे उसका स्वागत करने के लिए तैयार रहें, चाहे वह जल्दी आ जाए, या फिर इतनी देर से जिसकी उम्मीद उन्होंने नहीं की थी।
८. दृष्टांत की पाँच कुँवारियाँ किस तरह समझदार साबित हुईं?
८ दूसरी पाँच कुँवारियाँ भी—जिन्हें यीशु ने समझदार कहा—जलती हुई मशालें लेकर दूल्हे के आने की उम्मीद में बाहर गयीं। उन्हें भी इंतज़ार करना पड़ा, लेकिन वे “समझदार” थीं। जिस यूनानी शब्द को यहाँ “समझदार” अनुवादित किया गया है, उसका मतलब “समझ-बूझ रखनेवाला, बुद्धिमान और व्यवहार-कुशल” भी हो सकता है। अपनी-अपनी मशालों के लिए, ये पाँच कुँवारियाँ कुप्पियों में ज़्यादा तेल साथ लायीं, ताकि ज़रूरत पड़ने पर इस्तेमाल कर सकें। ऐसा करने के द्वारा उन्होंने साबित किया कि वे समझदार थीं। दरअसल, उन्होंने दूल्हे के आने पर तैयार रहना इतना ज़रूरी समझा कि वे अपना तेल बाँटना नहीं चाहती थीं। इस प्रकार की सतर्कता गलत नहीं थी, और यह इस बात से साबित होता है कि जब दुल्हा आया तब वे मौजूद थीं और उससे भेंट करने के लिए पूरी तरह से तैयार थीं। “जो [कुँवारियाँ] तैयार थीं, वे उसके साथ विवाह-भोज में अन्दर चली गईं। तब द्वार बन्द कर दिया गया।”—NHT.
९, १०. कुँवारियों के दृष्टांत के ज़रिए यीशु असल में क्या कहना चाह रहा था, और हमें अपने आपसे कौन-से सवाल पूछने चाहिए?
९ यीशु मसीह शादी-ब्याह में किस तरह पेश आना है, इसके बारे में शिक्षा नहीं दे रहा था, ना ही वह उदारता पर कोई सलाह दे रहा था। वह असल में यह कहना चाह रहा था: “इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस घड़ी को।” सो अपने आपसे पूछिए, ‘क्या मैं यीशु की उपस्थिति के संबंध में सचमुच सतर्क हूँ?’ हम यह मानते हैं कि यीशु अभी स्वर्ग में राज कर रहा है, लेकिन इस हकीकत पर हम कितना ध्यान देते हैं कि ‘मनुष्य का पुत्र बड़ी सामर्थ और ऐश्वर्य के साथ बहुत जल्द आकाश के बादलों पर आता दिखेगा’? (मत्ती २४:३०) जब कुँवारियाँ दूल्हे से मिलने निकली थीं, तब उसे आने में देर थी। मगर “आधी रात” बीत जाने पर, उसका आना ज़्यादा करीब आ पहुँचा था। उसी तरह, जब हमने इस दुष्ट व्यवस्था का नाश करने के लिए मनुष्य के पुत्र के आने का इंतज़ार करना पहले शुरू किया था, तब देर थी। मगर अब उसका आना और भी नज़दीक आ पहुँचा है। (रोमियों १३:११-१४) क्या हम आज भी उतने ही सतर्क हैं, और जैसे-जैसे वह समय नज़दीक आता जा रहा है, क्या हम और भी सतर्क होते जा रहे हैं?
१० “जागते रहो,” इस आज्ञा को मानने के लिए ज़रूरी है कि हम हमेशा सतर्क रहें। (तिरछे टाइप हमारे।) पाँच कुँवारियों ने ध्यान नहीं दिया और उनका तेल खत्म हो गया और फिर वे तेल खरीदने निकल गयीं। उसी तरह, आज एक मसीही का ध्यान आसानी से भटक सकता है, और यीशु के निकट भविष्य में आ जाने पर वह पूरी तरह तैयार नहीं होगा। पहली सदी के मसीहियों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था। और आज भी कुछ लोगों के साथ ऐसा हो सकता है। इसलिए, आइए हम अपने आपसे यह सवाल पूछें कि ‘क्या कहीं मेरे साथ भी ऐसा तो नहीं हो रहा?’—१ थिस्सलुनीकियों ५:६-८; इब्रानियों २:१; ३:१२; १२:३; प्रकाशितवाक्य १६:१५.
मेहनती बनिए क्योंकि अंत नज़दीक आ रहा है
११. यीशु ने इसके बाद कौन-सा दृष्टांत बताया, और यह किससे मिलता-जुलता था?
११ अपने अगले दृष्टांत में, यीशु ने अपने शिष्यों से सिर्फ इतना ही नहीं कहा कि वे सतर्क रहें। समझदार और मूर्ख कुँवारियों के बारे में बताने के बाद, उसने तोड़ों का दृष्टांत बताया। (मत्ती २५:१४-३० पढ़िए।) कई मायनों में यह मोहरों के दृष्टांत से मिलता-जुलता था जिसे उसने पहले बताया था। यीशु ने मोहरों का दृष्टांत इसीलिए दिया था क्योंकि कई लोग “समझते थे, कि परमेश्वर का राज्य अभी प्रगट हुआ चाहता है।”—लूका १९:११-२७.
१२. तोड़ों के दृष्टांत का निचोड़ क्या है?
१२ तोड़ों के दृष्टांत में यीशु ने एक आदमी के बारे में बताया जिसने दूर देश जाने से पहले अपने तीन दासों को बुलवा भेजा। एक दास को उसने पाँच तोड़े दिए, दूसरे को दो और तीसरे को सिर्फ एक दिया—“अर्थात् हर एक को उस की सामर्थ के अनुसार दिया।” हो सकता है कि यह एक चाँदी का तोड़ा हो जो कि उस समय में उतने धन के बराबर था जितना कोई मज़दूर १४ सालों में कमा लेता। यह कुछ कम धन नहीं था! जब वह आदमी लौटकर आया, तब उसने अपने दासों से लेखा लिया कि जब वह “बहुत दिनों” तक घर से दूर था, तब उन्होंने क्या-क्या किया। पहले दो दासों को जो कुछ दिया गया था, उससे उन्होंने दुगना कमाया। इसलिए स्वामी ने उन्हें “धन्य” कहा, और हर एक को ज़्यादा ज़िम्मेदारी सौंपने का वादा किया और आखिर में कहा: “अपने स्वामी के आनन्द में सम्भागी हो।” मगर, जिस दास को एक तोड़ा दिया गया था उसने अपने स्वामी से शिकायत की कि वह बेहद कठोर है, इसलिए उसने उस तोड़े से मुनाफा कमाने के लिए कुछ नहीं किया था। उसने जाकर उस पैसे को छिपा दिया था, और उसने उसे सर्राफों के पास भी नहीं रखा था, जिससे उसे कुछ ब्याज तो मिल ही जाता। इसकी वज़ह से उसके स्वामी ने उसे “दुष्ट और आलसी दास” कहा क्योंकि उसने अपने स्वामी के हित के लिए कुछ नहीं किया था। इस वज़ह से जो तोड़ा उसे दिया गया था उसे वापस ले लिया गया, और उसे बाहर फेंक दिया गया “जहां रोना और दांत पीसना होगा।”
१३. यीशु उस दृष्टांत के स्वामी की तरह कैसे साबित हुआ?
१३ यहाँ पर भी, इस दृष्टांत की बातों को लाक्षणिक अर्थ में समझा जा सकता है। मिसाल के तौर पर, यीशु जो दूर देश जानेवाले आदमी को सूचित करता है, अपने चेलों को छोड़कर स्वर्ग में चला जाता, और वहाँ राजा की हैसियत से राज-पाट मिलने तक इंतज़ार करता।b (भजन ११०:१-४; प्रेरितों २:३४-३६; रोमियों ८:३४; इब्रानियों १०:१२, १३) यहाँ से भी हम एक महत्त्वपूर्ण सबक सीख सकते हैं, जिसे हम सभी को अपनी-अपनी ज़िंदगी में अमल में लाना चाहिए। यह क्या है?
१४. तोड़ों का दृष्टांत किस महत्त्वपूर्ण ज़रूरत पर ज़ोर देता है?
१४ चाहे हमारी आशा स्वर्ग में अमर जीवन की हो या इस पृथ्वी पर हमेशा-हमेशा जीने की, यीशु के दृष्टांत से यह साफ ज़ाहिर होता है कि हमें मसीही कामों में लगे रहना चाहिए और यत्न करना चाहिए। दरअसल, इस दृष्टांत का निचोड़ एक ही शब्द में दिया जा सकता है: मेहनत। ऐसा करने में प्रेरितों ने सा.यु. ३३ से ही अच्छा आदर्श रखा। इसके बारे में लिखा है: “[पतरस] ने बहुत और बातों से भी गवाही दे देकर समझाया कि अपने आप को इस टेढ़ी जाति से बचाओ।” (प्रेरितों २:४०-४२) और उसे अपनी मेहनत के कितने बढ़िया फल मिले! मसीही प्रचार के काम में बाकी के लोग भी प्रेरितों के साथ हो लिए, और वे भी इसमें मेहनत करते थे। इस वज़ह से सुसमाचार ‘जगत में बढ़ता गया।’—कुलुस्सियों १:३-६, २३; १ कुरिन्थियों ३:५-९.
१५. हमें किस खास तरीके से तोड़ों के दृष्टांत की मुख्य बात को अमल में लाना चाहिए?
१५ ध्यान में रखिए कि इस दृष्टांत को कब दिया गया—जब यीशु ने अपनी उपस्थिति की भविष्यवाणी की। और हमारे पास इस बात के ढेरों सबूत हैं कि यीशु का पारूसिया चल रहा है और यह जल्द ही अपने अंतिम चरण पर पहुँचेगा। याद कीजिए की यीशु ने कहा: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (मत्ती २४:१४) इसका मतलब है “अंत” के और उस प्रचार के काम के बीच में एक गहरा संबंध है जिसे मसीहियों को करना है। इस मामले में हम किस दास के जैसे हैं? अपने आप से पूछिए: ‘क्या किसी वज़ह से यह कहा जा सकता है कि मैं उस दास की तरह हूँ जिसे कुछ दिया गया था, मगर उसने जाकर उसे छिपा दिया और शायद अपने ही कामों में लगा रहा? या क्या यह साफ-साफ पता चलता है कि मैं उन दासों की तरह हूँ जो अच्छे और विश्वासयोग्य थे? क्या मैंने हर मौके पर अपने स्वामी के हित में काम करते जाने का पक्का फैसला किया है?’
उसकी उपस्थिति के दौरान सतर्क रहना और मेहनत करना
१६. जिन दो दृष्टांतों की हमने चर्चा की है, उनके द्वारा यीशु आपको क्या कहना चाहता है?
१६ जी हाँ, इन दोनों दृष्टांतों के लाक्षणिक अर्थ तो हैं और ये भविष्य के लिए मतलब भी रखते हैं, मगर यीशु इनके द्वारा हमारा हौसला बढ़ाता है। उसके कहने का तात्पर्य था: सतर्क रहिए; मेहनती बनिए, खासकर तब, जब मसीहा के पारूसिया का चिन्ह दिखता है। और वह पारूसिया अभी चल रहा है। सो क्या हम सचमुच सतर्क हैं और मेहनती हैं?
१७, १८. शिष्य याकूब ने यीशु की उपस्थिति के बारे में क्या सलाह दी?
१७ जब यीशु जैतून के पहाड़ पर यह भविष्यवाणी कह रहा था, तब उसका सौतेला भाई, याकूब वहाँ मौजूद नहीं था; मगर इसके बारे में उसे बाद में पता चला, और उसने इसके तात्पर्य को साफ-साफ समझ लिया। इसलिए उसने लिखा: “सो हे भाइयो, प्रभु के आगमन तक धीरज धरो, देखो, गृहस्थ [किसान] पृथ्वी के बहुमूल्य फल की आशा रखता हुआ प्रथम और अन्तिम वर्षा होने तक धीरज धरता है। तुम भी धीरज धरो, और अपने हृदय को दृढ़ करो, क्योंकि प्रभु का शुभागमन निकट है।” (तिरछे टाइप हमारे।)—याकूब ५:७, ८.
१८ याकूब ने कहा कि परमेश्वर उनका न्याय करेगा जो अपने धन का गलत इस्तेमाल करते हैं। इसके बाद उसने मसीहियों से आग्रह किया कि यहोवा द्वारा न्याय चुकाने का इंतज़ार करते वक्त हम धीरज न खो बैठें। अपना धीरज खो बैठनेवाला मसीही शायद बदला लेने पर उतारू हो जाए, मानो उसके खिलाफ जो कुछ भी किया गया हो, उनका न्याय बस उसी को करना है। मगर, हमें धीरज नहीं खोना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर के न्याय का समय बेशक आएगा। इस बात को एक किसान का उदाहरण बहुत अच्छी तरह समझाता है, जिसके बारे में याकूब ने बताया।
१९. एक इस्राएली किसान कैसा धीरज धर सकता था?
१९ जब एक इस्राएली किसान बीज बोता, तो उसे इंतज़ार करना पड़ता, पहले तो उस बीज से अंकुर फूटने का, फिर पौधे के पूरी तरह बढ़ने का, और फिर आखिर में कटनी का। (लूका ८:५-८; यूहन्ना ४:३५) उन महीनों के दौरान, हो सकता है कि ऐसे मौके आए हों और ऐसी वज़हें भी रही हों, जब उसे किसी चिंता ने सताया हो। क्या पहली बारिश होगी, और अगर होगी तो क्या काफी होगी? अंतिम बारिश का क्या? क्या कीड़े फसल खा जाएँगे, या क्या तूफान फसल को बरबाद कर देगा? (योएल १:४; २:२३-२५ से तुलना कीजिए।) फिर भी, एक इस्राएली किसान यहोवा पर और उसके बनाए हुए कुदरती नियमों पर भरोसा कर सकता था। (व्यवस्थाविवरण ११:१४; यिर्मयाह ५:२४) इन पर भरोसा रखकर जब वह किसान धीरज धरता, तो इसका मतलब होता कि उसे पूरा विश्वास था कि वह जिसका इंतज़ार कर रहा है वह आएगा, ज़रूर आएगा!
२०. याकूब की सलाह के मुताबिक हम धीरज कैसे दिखा सकते हैं?
२० जबकि एक किसान को शायद कुछ जानकारी होती है कि फसल की कटनी कब होगी, मगर पहली सदी के मसीही इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं लगा पाए कि यीशु की उपस्थिति कब होगी। मगर, एक बात तो पक्की थी कि उसकी उपस्थिति होगी ही। याकूब ने लिखा: “प्रभु का शुभागमन [“उपस्थिति,” यूनानी में पारूसिया] निकट है।” जब याकूब ने ये शब्द लिखे, तब मसीह की उपस्थिति का चिन्ह बड़े पैमाने पर, या विश्व पैमाने पर नहीं दिखायी दिया था। मगर वह अभी दिखायी दे रहा है! सो, क्योंकि हम इस समय में जी रहे हैं, तो हमें कैसा महसूस करना चाहिए? वह चिन्ह अब हकीकत में दिख रहा है। हम उसे अपनी आँखों से देखते हैं। इसीलिए हम विश्वास के साथ कह सकते हैं, ‘मैं उस चिन्ह को पूरा होते हुए देख रहा हूँ।’ और हम पूरे यकीन के साथ कह सकते हैं, ‘प्रभु की उपस्थिति हो चुकी है, और वह बहुत ही जल्द अपने अंतिम चरण पर पहुँचेगी।’
२१. हमें क्या करने का संकल्प करना चाहिए?
२१ क्योंकि प्रभु की उपस्थिति हो चुकी है, हमारे पास अभी चर्चा किए गए यीशु के दो दृष्टांतों के मुख्य सबक को अच्छी तरह समझने और उन पर अमल करने के खास कारण हैं। यीशु ने कहा: “इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस घड़ी को।” (मत्ती २५:१३) इसीलिए अभी वह वक्त है कि हम अपनी मसीही सेवा में जोश के साथ जुट जाएँ। आइए हम अपनी रोज़ की ज़िंदगी से दिखाएँ कि यीशु असल में जो कहना चाहता था, उसे हमने समझा है। आइए हम सतर्क रहें! आइए हम मेहनती बनें!
[फुटनोट]
a दृष्टांत के लाक्षणिक अर्थ के लिए, गॉड्स किंगडम ऑफ ए थाउज़न्ड इर्यस हैज़ अप्रोच्ड, पुस्तक के पेज १६९-२११ देखिए। इस पुस्तक को वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी ने प्रकाशित किया है।
b अँग्रेज़ी पुस्तक गॉड्स किंगडम ऑफ ए थाउज़न्ड इर्यस हैज़ अप्रोच्ड, पेज २१२-५६ देखिए।
क्या आपको याद है?
◻ समझदार और मूर्ख कुँवारियों के दृष्टांत से आपने कौन-सी महत्त्वपूर्ण बात समझी है?
◻ तोड़ों के दृष्टांत से यीशु आपको कौन-सी ज़रूरी सलाह दे रहा है?
◻ एक इस्राएली किसान की तरह, हमें पारूसिया के दौरान किस तरह का धीरज दिखाना चाहिए?
◻ हम अब जिस समय में जी रहे हैं यह खासकर रोमांचक क्यों है और इसलिए हमें क्या करना चाहिए?
[पेज 23 पर तसवीर]
कुँवारियों और तोड़ों के दृष्टांत से आपने कौन-से सबक सीखे?