एक दूसरे का आदर करो
“परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।” —रोमियों १२:१०.
१, २. (क) दीनता दिखाने का एक तरीका कौन-सा है? (ख) बाइबल में शब्द “आदर” का मतलब क्या है और ऐसा करना किन लोगों के लिए आसान होता है?
हमारे पिछले लेख में बाइबल की इस सलाह पर ज़ोर दिया गया: “तुम सब के सब एक दूसरे की सेवा के लिये दीनता से कमर बान्धे रहो, क्योंकि परमेश्वर अभिमानियों का साम्हना करता है, परन्तु दीनों पर अनुग्रह करता है।” (१ पतरस ५:५) दीनता से अपनी कमर बान्धने का एक तरीका है एक-दूसरे का आदर करना।
२ बाइबल में शब्द “आदर” का मतलब है एक दूसरे का सम्मान, इज़्ज़त और लिहाज़ करना। हम आदर कैसे कर सकते हैं? एक दूसरे को दया दिखाकर, उनकी इज़्ज़त करके, उनके विचार सुनकर, और हमसे जो भी सही विनती की जाती है, उसे पूरा करके। और ऐसा करना खासकर उनके लिए आसान होता है जो मन में दीन होते हैं। लेकिन, जो लोग घमंडी होते हैं, उन्हें दूसरों का दिल से आदर करने में मुश्किल होती है, और इसीलिए वे चापलूसी और खुशामद करके अपना काम निकलवाने की कोशिश करते हैं।
यहोवा इंसानों का आदर करता है
३, ४. यहोवा ने इब्राहीम का कैसे आदर किया और क्यों?
३ आदर दिखाने के मामले में खुद यहोवा की मिसाल बेहतरीन है। यहोवा इंसानों को मशीन नहीं समझता क्योंकि उसने उन्हें इस क्षमता के साथ बनाया कि वे अपना फैसला खुद कर सकें। (१ पतरस २:१६) मिसाल के तौर पर, जब उसने इब्राहीम से कहा कि वह सदोम के घोर पाप की वज़ह से सदोम का नाश करेगा, तो इब्राहीम ने पूछा: “क्या तू सचमुच दुष्ट के संग धर्मी को भी नाश करेगा? कदाचित् उस नगर में पचास धर्मी हों: तो क्या तू सचमुच उस स्थान को नाश करेगा और उन पचास धर्मियों के कारण जो उस में हों न छोड़ेगा?” यहोवा ने कहा कि अगर उस नगर में ५० धर्मी जन हों तो भी वह उसे बख्श देगा। फिर इब्राहीम उससे नम्रता से बिनती करता रहा। उसने पूछा अगर उसमें सिर्फ ४५ हों तो? ४० हों तो? ३०? २०? १०? यहोवा ने इब्राहीम से कहा कि अगर सदोम में सिर्फ दस धर्मी जन भी हों तो भी वह उसका नाश नहीं करेगा।—उत्पत्ति १८:२०-३३.
४ यहोवा जानता था कि सदोम में दस धर्मी इंसान भी नहीं हैं। फिर भी जब इब्राहीम ने यहोवा को अपने विचार बताए, तब यहोवा ने उसकी बात सुनी और इस तरह उसका आदर किया। क्यों? क्योंकि इब्राहीम “ने यहोवा पर विश्वास किया [था]; और यहोवा ने इस बात को उसके लेखे में धर्म गिना।” इब्राहीम को “परमेश्वर का मित्र” भी कहा गया। (उत्पत्ति १५:६; याकूब २:२३) इतना ही नहीं, यहोवा ने यह देखा कि खुद इब्राहीम भी दूसरों का आदर करता है। उदाहरण के लिए जब इब्राहीम के और उसके भांजे लूत के चरवाहों में ज़मीन को लेकर कहासूनी हो गयी, तो उसने पहले लूत को अपने लिए ज़मीन चुनने का मौका दिया और इस तरह उसका आदर किया। लूत ने अपने लिए बेहतरीन जगह चुनी और इब्राहीम कहीं और चला गया।—उत्पत्ति १३:५-११.
५. यहोवा ने लूत का कैसे आदर किया?
५ उसी तरह यहोवा ने लूत की विनती सुनी जिससे पता चलता है कि यहोवा ने उसका आदर किया। सदोम को नाश करने से पहले उसने लूत को पहाड़ी इलाके में भाग जाने के लिए कहा। लेकिन लूत ने कहा कि वह वहाँ नहीं, मगर सोअर जाना चाहता है, हालाँकि वह शहर उसी इलाके में था जिसका नाश होनेवाला था। तब यहोवा ने उससे कहा: “देख, मैं ने इस विषय में भी तेरी बिनती अंगीकार [स्वीकार] की है, कि जिस नगर की चर्चा तू ने की है, उसको मैं नाश न करूंगा।” यहोवा ने वफादार लूत का कहना मानकर उसका भी आदर किया।—उत्पत्ति १९:१५-२२; २ पतरस २:६-९.
६. यहोवा ने मूसा का कैसे आदर किया?
६ यहोवा ने अपने लोगों को गुलामी से छुड़ाने के लिए मूसा को फिर से मिस्र में भेजा ताकि वह फिरौन से बात करके उसके लोगों को रिहा कराए। लेकिन मूसा ने कहा: “हे मेरे प्रभु, मैं बोलने में निपुण नहीं।” तो यहोवा ने उसे हिम्मत दिलाते हुए कहा: ‘मैं तेरे मुख के संग होकर जो कुछ तुझे करना होगा वह तुझ को सिखलाता जाऊंगा।’ लेकिन फिर भी मूसा ने ना-नुकुर की। यहोवा ने फिर से मूसा का ढाढस बाँधा और उसके भाई, हारून का इंतज़ाम किया ताकि वह उसके लिए बात करे।—निर्गमन ४:१०-१६.
७. यहोवा ने क्यों कुछ लोगों की विनतियों को सुनकर उनका आदर किया?
७ इन सभी मामलों से पता चलता है कि यहोवा दूसरों का, खासकर उसकी सेवा करनेवालों का आदर करता है। हालाँकि जो कुछ उन्होंने यहोवा से माँगा, वह उसकी इच्छा से अलग था, फिर भी उसने उनकी विनतियों को सुना, क्योंकि उनकी विनतियाँ उसके मकसद के आड़े नहीं आती थीं।
यीशु ने दूसरों का आदर किया
८. यीशु ने एक बहुत ही बीमार औरत का कैसे आदर किया?
८ यहोवा की तरह यीशु ने भी दूसरों का आदर किया। एक बार जब भीड़ यीशु को घेरे हुए थी, तो उसमें एक ऐसी औरत भी थी जिसके १२ साल से लहू बहता था और उसे कोई हकीम ठीक नहीं कर पाया था। और क्योंकि वह मूसा की व्यवस्था के हिसाब से अशुद्ध थी, इसलिए उसे उस भीड़ में नहीं होना चाहिए था। लेकिन वह यीशु के पीछे हो ली, और उसने बस यीशु के कपड़े छूए और बिलकुल ठीक हो गयी। उस वक्त यीशु व्यवस्था के नियमों को लेकर अड़ नहीं गया, और ना ही उसने उसे भीड़ में आने के लिए डाँटा। इसके बजाय, उसके हालात को मद्दे नज़र रखते हुए, उसने उसका आदर किया और कहा: “पुत्री तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है: कुशल से जा, और अपनी इस बीमारी से बची रह।”—मरकुस ५:२५-३४; लैव्यव्यवस्था १५:२५-२७.
९. यीशु ने एक अन्यजाति स्त्री का आदर कैसे किया?
९ एक और मौके पर, एक कनानी स्त्री ने यीशु से कहा: “हे प्रभु दाऊद के सन्तान, मुझ पर दया कर, मेरी बेटी को दुष्टात्मा बहुत सता रहा है।” क्योंकि यीशु को इस्राएल की जाति के पास भेजा गया था, अन्यजातियों के पास नहीं, इसलिए यीशु ने कहा: “यह उचित नहीं कि [इस्राएल के] बच्चों का खाना लेकर उसे घर के कुत्तों [अन्यजातियों] के आगे डाल दिया जाये।” इस पर स्त्री ने जवाब दिया: “किन्तु अपने स्वामी की मेज़ से गिरे हुए चूरे में से थोड़ा बहुत तो घर के कुत्ते भी खा ही लेते हैं।” यह सुनकर यीशु ने उसकी बेटी को ठीक कर दिया। इस तरह उस अन्यजाति स्त्री के विश्वास की वज़ह से यीशु ने उसका आदर किया। इतना ही नहीं, उसने “घर के कुत्तों” का ज़िक्र किया, न कि जंगली कुत्तों का, जिससे उसकी बात में रूखापन न रहे। ऐसा करके यीशु ने करुणा भी दिखायी।—मत्ती १५:२१-२८, ईज़ी टू रीड।
१०. यीशु ने अपने शिष्यों को कौन-सा बढ़िया सबक सिखाया, और यह क्यों ज़रूरी था?
१० यीशु के शिष्यों में स्वार्थ था, जिसकी वज़ह से वह उन्हें दीन होने और दूसरों का आदर करने के बारे में हमेशा सिखाता रहा। एक बार जब उनमें बहस छिड़ गयी तो यीशु ने पूछा: “तुम किस बात पर विवाद करते थे?” वे खामोश रहे क्योंकि “उन्हों ने आपस में यह वाद-विवाद किया था, कि हम में से बड़ा कौन है?” (मरकुस ९:३३, ३४) जल्द ही यीशु को मार दिया जानेवाला था और यह उसकी आखिरी रात थी, मगर फिर भी “उन में यह बाद-विवाद . . . हुआ; कि हम में से कौन बड़ा समझा जाता है?” (लूका २२:२४) सो, यीशु ने फसह के भोज के समय ‘बरतन में पानी भरकर चेलों के पांव धोए।’ यह कितनी बढ़िया मिसाल है! ज़रा सोचिए, यीशु परमेश्वर का बेटा था, इस जहाँ में यहोवा के बाद सिर्फ उसी का स्थान आता है फिर भी उसने अपने शिष्यों के पाँव धोए और आदर करने के बारे में उनके सामने एक बढ़िया मिसाल कायम की। उसने कहा: “मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है, कि जैसा मैं ने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो।”—यूहन्ना १३:५-१५.
पौलुस ने दूसरों का आदर किया
११, १२. पौलुस ने मसीही बनने के बाद क्या सीखा, और उसने यह बात उनेसिमुस के सिलसिले में कैसे लागू की?
११ यीशु मसीह की तरह प्रेरित पौलुस ने भी दूसरों का आदर किया। (१ कुरिन्थियों ११:१) उसने कहा: “हम मनुष्यों से आदर नहीं चाहते थे, . . . परन्तु जिस तरह माता अपने बालकों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही हम ने भी तुम्हारे बीच में रहकर कोमलता दिखाई है।” (१ थिस्सलुनीकियों २:६, ७) जिस तरह एक माँ अपने बच्चे की परवाह करती है, उसी तरह पौलुस ने मसीही बनने के बाद अपने मसीही भाई-बहनों के साथ कोमलता से व्यवहार किया। और इस तरह उसने दीन होना सीखा और उनका आदर किया। लेकिन ऐसा करते वक्त उसने उनकी आज़ादी पर कोई पाबंदी नहीं लगाई। यह उस घटना से पता चलता है जब वह रोम में एक कैदी था।
१२ उनेसिमुस नाम का एक दास था जो अपने मालिक का घर छोड़कर भाग गया था। वह पौलुस की शिक्षाओं को सुनकर एक मसीही बन गया और उसका एक दोस्त भी। उस दास का मालिक था फिलेमोन, जो खुद एक मसीही था और एशिया माइनर में रहता था। पौलुस ने फिलेमोन को एक खत लिखा और कहा कि उनेसिमुस उसके लिए कितने काम का आदमी है और इसलिए वह “उसे . . . अपने ही पास रखना चाहता था।” फिर भी पौलुस ने उनेसिमुस को फिलेमोन के पास वापस भेज दिया और लिखा: “मैं ने तेरी इच्छा बिना कुछ भी करना न चाहा कि तेरी यह कृपा दबाव से नहीं पर आनन्द से हो।” पौलुस ने अपने प्रेरित होने का नाजायज़ फायदा नहीं उठाया, मगर उसने फिलेमोन का आदर किया और उनेसिमुस को रोम में अपने पास न रखा। इतना ही नहीं उसने फिलेमोन से कहा कि वह भी उनेसिमुस का आदर करे। उसने कहा कि उसे “दास की नाईं नहीं, बरन दास से भी उत्तम, अर्थात् भाई” समझे।—फिलेमोन १३-१६.
आज आदर करना
१३. रोमियों १२:१० में हमसे क्या करने के लिए कहा गया है?
१३ परमेश्वर का वचन हमें सलाह देता है: “परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।” (रोमियों १२:१०) इसका मतलब है कि हमें यह सोचकर इंतज़ार नहीं करना चाहिए कि पहले दूसरों को मेरा आदर करने दो। इसके बजाय आदर दिखाने में हमें खुद पहल करनी चाहिए। “कोई अपनी ही भलाई को न ढूंढ़े, बरन औरों की।” (१ कुरिन्थियों १०:२४; १ पतरस ३:८, ९) सो, यहोवा के सेवक ऐसे अवसरों की खोज में रहते हैं जब वे अपने परिवार के लोगों का, कलीसिया में अपने भाई-बहनों का, और कलीसिया के बाहर के लोगों का भी आदर कर सकें।
१४. पति-पत्नी एक-दूसरे को आदर कैसे दिखा सकते हैं?
१४ बाइबल कहती है कि “हर एक पुरुष का सिर मसीह है: और स्त्री का सिर पुरुष है।” (१ कुरिन्थियों ११:३) सो यहोवा ने पुरुष को यह ज़िम्मेदारी दी है कि वह अपनी पत्नी के साथ बिलकुल वैसे व्यवहार करे जैसे मसीह ने अपनी कलीसिया के साथ किया था। और १ पतरस ३:७ में पति से कहा गया कि वह अपनी पत्नी को ‘निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करे।’ वह ऐसा तभी कर सकता है जब वह उसके विचारों को सुनने के लिए तैयार रहता हो और उसके सुझावों पर गौर करता हो। (उत्पत्ति २१:१२) वह उसे कोई भी चीज़ चुनने का पहला मौका देगा, बशर्ते यह बाइबल के उसूलों के खिलाफ न हो। साथ ही वह काम में उसका हाथ बटाएगा और दया से व्यवहार करेगा। “पत्नी [को] भी अपने पति का भय” मानना चाहिए। (इफिसियों ५:३३) वह उसकी बातें सुनेगी, हमेशा अपनी ही बात पर अड़ने की कोशिश नहीं करेगी, उसे नीचा नहीं दिखाएगी या उसे तंग नहीं करेगी। अगर कुछ मामलों में पत्नी के पास अपने पति से बेहतर काबिलियत हो, तो भी वह उस पर हुक्म नहीं चलाएगी, पर दीनता दिखाएगी।
१५. बुज़ुर्गों के साथ कैसे पेश आना चाहिए, और बुज़ुर्गों को भी क्या करना चाहिए?
१५ मसीही कलीसिया में भी ऐसे लोग हैं जो खासकर आदर पाने के योग्य हैं, जैसे बुज़ुर्ग लोग। “पक्के बालवाले के साम्हने उठ खड़े होना, और बूढ़े [आदमी, या बूढ़ी औरत] का आदरमान करना।” (लैव्यव्यवस्था १९:३२) और खासकर ऐसे बुज़ुर्ग आदर पाने के योग्य हैं जिन्होंने कई साल वफादारी से यहोवा की सेवा की है, क्योंकि “पक्के बाल शोभायमान मुकुट ठहरते हैं; वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं।” (नीतिवचन १६:३१) ओवरसियरों को भी उम्र में अपने से बड़े भाई-बहनों का आदर करने के द्वारा मिसाल कायम करनी चाहिए। और बेशक, बुज़ुर्गों को भी अपने से छोटे लोगों का आदर करना चाहिए, खासकर उनका जिन पर झुंड की रखवाली करने की ज़िम्मेदारी है।—१ पतरस ५:२, ३.
१६. माता-पिता और बच्चे एक-दूसरे का आदर कैसे करते हैं?
१६ बच्चों को अपने माता-पिता का आदर करना चाहिए: “हे बालको, प्रभु में अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है। अपनी माता और पिता का आदर कर (यह पहिली आज्ञा है, जिस के साथ प्रतिज्ञा भी है)। कि तेरा भला हो, और तू धरती पर बहुत दिन जीवित रहे।” साथ ही, माता-पिता को भी अपने बच्चों का आदर करना चाहिए क्योंकि उनसे कहा गया है कि “अपने बच्चों को रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण करो।”—इफिसियों ६:१-४; निर्गमन २०:१२.
१७. कौन “दो गुने” आदर के योग्य हैं?
१७ उनका भी आदर किया जाना चाहिए जो कलीसिया की सेवा करने के लिए मेहनत करते हैं: “जो प्राचीन अच्छा प्रबन्ध करते हैं, विशेष करके वे जो वचन सुनाने और सिखाने में परिश्रम करते हैं, दो गुने आदर के योग्य समझे जाएं।” (१ तीमुथियुस ५:१७) उनका आदर करने का एक तरीका इब्रानियों १३:१७ में बताया गया है: “अपने अगुवों की मानो; और उन के आधीन रहो।”
१८. कलीसिया के बाहर के लोगों के साथ हमें कैसे पेश आना चाहिए?
१८ क्या हमें कलीसिया के बाहर के लोगों का भी आदर करना चाहिए? जी हाँ, बिलकुल करना चाहिए। उदाहरण के लिए हमसे यह कहा गया है कि “हर एक व्यक्ति प्रधान अधिकारियों के आधीन रहे।” (रोमियों १३:१) ये ऐसे सरकारी अधिकारी हैं जिन्हें यहोवा आज अधिकार चलाने देता है, जब तक कि उसका राज्य उनकी जगह न ले ले। (दानिय्येल २:४४) हमसे कहा गया है कि “हर एक का हक्क चुकाया करो, जिसे कर चाहिए, उसे कर दो; जिसे महसूल चाहिए, उसे महसूल दो; जिस से डरना चाहिए, उस से डरो; जिस का आदर करना चाहिए उसका आदर करो।” (रोमियों १३:७) साथ ही हमें ‘सब [आदमियों और औरतों] का आदर करना चाहिए।’—१ पतरस २:१७.
१९. हम दूसरों की “भलाई” और उनका आदर कैसे कर सकते हैं?
१९ हाँ, यह सच है कि हमें कलीसिया के बाहर के लोगों का भी आदर करना चाहिए। मगर ध्यान दीजिए कि बाइबल के मुताबिक हम यह कैसे कर सकते हैं: “जहां तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्वासी भाइयों के साथ।” (गलतियों ६:१०) और इस तरह की “भलाई” करने का बेहतरीन तरीका है उनमें आध्यात्मिक ज़रूरत पैदा करके उसे पूरा करना। (मत्ती ५:३) ऐसा हम पौलुस की इस सलाह को मानकर कर सकते हैं: “अपने आप को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।” जब हम होशियारी से हर मौके पर गवाही देते हुए “अपनी सेवा को पूरा” करते हैं, तो हम न सिर्फ दूसरों का भला करते हैं मगर हम उनका आदर भी करते हैं।—२ तीमुथियुस २:१५; ४:५.
यहोवा का आदर करना
२०. फ़िरौन और उसकी सेना का क्या हुआ, और क्यों?
२० यहोवा खुद अपनी रचना का आदर करता है। तो फिर यह उचित होगा कि हम भी यहोवा का आदर करें। (नीतिवचन ३:९; प्रकाशितवाक्य ४:११) यहोवा यह भी कहता है: “जो मेरा आदर करें मैं उनका आदर करूंगा, और जो मुझे तुच्छ जानें वे छोटे समझे जाएंगे।” (१ शमूएल २:३०) जब मिस्र के फ़िरौन से कहा गया कि वह परमेश्वर के लोगों को जाने दे, तो उसने घमंड के नशे में चूर होकर पूछा: ‘यहोवा कौन है, कि मैं उसका वचन मानूं?’ (निर्गमन ५:२) बाद में जब इस्राएलियों का नामों-निशान मिटाने के लिए फ़िरौन ने अपनी सेना को भेजा, तो यहोवा ने इस्राएल की खातिर लाल समुद्र को दो भागों में बाँट दिया। लेकिन जब मिस्री उनका पीछा करते हुए समुद्र के अंदर तक चले आए, तो यहोवा ने समुद्र को फिर से एक कर दिया। “फ़िरौन के रथों और सेना को . . . [यहोवा] ने समुद्र में डाल दिया।” (निर्गमन १४:२६-२८; १५:४) सो जब फ़िरौन ने घमंडी होकर यहोवा का आदर करने से इंकार किया, तो यहोवा ने उसका नाश कर दिया।—भजन १३६:१५.
२१. यहोवा बेलशस्सर के विरुद्ध क्यों हो गया, और इसका अंजाम क्या हुआ?
२१ बाबुल के राजा बेलशस्सर ने भी यहोवा का आदर करने से इंकार किया। एक बार जब राजा और उसके दोस्तों में पीने का दौर चला, तो उसने यरूशलेम के मंदिर से लूट कर लाए गए सोने और चांदी के पवित्र बर्तनों में शराब पीकर यहोवा का मज़ाक उड़ाया। और पीते समय उसने विधर्मी देवताओं की महिमा की। इसलिए यहोवा के सेवक दानिय्येल ने उससे कहा: ‘तेरा मन नम्र न हुआ। वरन तू ने स्वर्ग के प्रभु के विरुद्ध सिर उठाया है।’ उसी रात को बेलशस्सर मारा गया और उसका राज्य उससे छीन लिया गया।—दानिय्येल ५:२२-३१.
२२. (क) इस्राएल के धर्मगुरुओं और लोगों पर यहोवा का क्रोध क्यों भड़का? (ख) यहोवा ने किन लोगों पर दया दिखाई और इसका नतीजा क्या हुआ?
२२ पहली सदी में जब राजा हेरोदेस आम जनता को एक भाषण दे रहा था, तो लोग चिल्ला उठे: “यह तो मनुष्य का नहीं परमेश्वर का शब्द है।” वह मूर्ख राजा अपने लिए महिमा चाहता था, इसलिए उसने लोगों को ऐसा करने से नहीं रोका। इस पर “प्रभु के एक स्वर्गदूत ने तुरन्त उसे मारा, क्योंकि उस ने परमेश्वर की महिमा न की।” (प्रेरितों १२:२१-२३) हेरोदेस ने यहोवा की महिमा करने के बजाय खुद की महिमा की इसलिए वह मारा गया। करीब उसी समय की बात है। धर्मगुरुओं ने परमेश्वर के बेटे, यीशु को जान से मार डालने की साज़िश करके खुद परमेश्वर का निरादर किया था। कुछ शासक जानते थे कि यीशु सच्चाई सिखाता है, मगर वे उसके शिष्य नहीं बनना चाहते थे “क्योंकि मनुष्यों की प्रशंसा उन को परमेश्वर की प्रशंसा से अधिक प्रिय लगती थी।” (यूहन्ना ११:४७-५३; १२:४२, ४३) उस पूरी-की-पूरी जाति ने, न तो यहोवा का आदर किया और न ही उसके भेजे हुए बेटे यीशु का। इसलिए यहोवा ने भी उनका आदर नहीं किया और उन्हें छोड़ दिया। उसने उनको और उनके मंदिर को विनाश होने से नहीं बचाया। मगर उसने उन लोगों को विनाश से बचाया जो उसका और उसके बेटे का आदर करते थे।—मत्ती २३:३८; लूका २१:२०-२२.
२३. परमेश्वर की नयी दुनिया में जीने के लिए हमें क्या करना चाहिए? (भजन ३७:९-११; मत्ती ५:५)
२३ सो, जो कोई इस दुष्ट दुनिया के विनाश के बाद परमेश्वर की नयी दुनिया में जीना चाहता है, उसे परमेश्वर का, और उसके बेटे का आदर करना चाहिए और उनकी आज्ञा माननी चाहिए। (यूहन्ना ५:२२, २३; फिलिप्पियों २:९-११) जो उनका आदर नहीं करते वे इस पृथ्वी पर से “नाश होंगे।” लेकिन जो परमेश्वर और मसीह का आदर करते और वफादारी से उनकी सेवा करते हैं, ऐसे धर्मी लोग ही इस पृथ्वी पर “बसे रहेंगे।”—नीतिवचन २:२१, २२.
आइए दोहराएँ
◻ दूसरों का आदर करने का मतलब क्या है, और यहोवा ने कैसे दूसरों का आदर किया?
◻ यीशु और पौलुस ने दूसरों का आदर कैसे किया?
◻ आज, हमारे दिनों में कौन आदर के योग्य हैं?
◻ हमें यहोवा और यीशु का आदर क्यों करना चाहिए?
[पेज 17 पर तसवीर]
यहोवा ने इब्राहीम की बिनती सुनकर उसका आदर किया
[पेज 18 पर तसवीर]
सुखी विवाह के लिए पति-पत्नी, दोनों को एक दूसरे का आदर करना चाहिए